मसूरी (उत्तराखंड): मसूरी... ये नाम सुनते ही हरी भरी वादियां आपके जेहन में आ जाती होंगी. यहां की घुमावदार सड़कें, शानदार लैंडस्केप सभी का मन मोह लेती हैं. मसूरी का 150 साल पुराना रहा भरा पेड़ भी यहां की एक पहचान है. ये पेड़ छावनी परिषद के कब्रिस्तान में आज से 150 साल पहले इंग्लैंड की महारानी डचेस ऑफ एडिनबर्ग ने लगाया था. 150 साल पहले लगाया गया ये पेड़ आज भी संरक्षित है. ये पेड़ आज भी आज भी हरा भरा है. छावनी परिषद में कई ऐसे पेड़ हैं, जो किसी ने अपने रिश्तेदार या अपने परिजनों की याद में लगाए हैं.
मसूरी छावनी परिषद में देवदार और साइप्रस के पेड़ भी हैं. जिन्हें किसी भी हाल में काटने की अनुमति नहीं दी गई है, लेकिन मसूरी का हर इलाका छावनी परिषद नहीं है, जहां पेड़ों को संरक्षित करने की परंपरा सी है. मसूरी के ही खट्टापानी क्षेत्र में कुछ वन माफियाओं ने देवदार के पेड़ों पर आरी चला दी. ऐसा ही दूसरे इलाकों में भी हो रहा है. मसूरी में पेड़ कटने के कारण लैंडस्लाइड की घटनाएं बढ़ रही हैं.
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में इन दिनों लैंडस्लाइड की घटनाएं देखने को मिल रही हैं. नैनीताल, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, टिहरी उत्तरकाशी, चमोली, जोशीमठ, मसूरी जैसे इलाकों में आए दिन लैंडस्लाइड की घटनाओं के लोगों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. पहाड़ों की रानी मसूरी में बरसात के सीजन में सबसे ज्यादा लैंडस्लाइड की घटनाएं होती हैं. जानकार लैंडस्लाइड की इन घटनाओं के लिए अंधाधुंध के साथ ही बेतरतीब विकास कार्यों को जिम्मेदार बता रहे हैं.
पेड़ों पर चली आरियां: कंक्रीट के जंगल लैंडस्लाइड की घटनाओं के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं. बात अगर पहाड़ों की रानी की करें तो यहां लगातार हो रहे निर्माण से लगातार मसूरी का सौंदर्य खराब होता चला जा रहा है. दिनों दिन मसूरी कंक्रीट के जंगल में तब्दील होता जा रहा है. हाल ही में मसूरी के खट्टापानी क्षेत्र में कुछ वन माफियाओं ने देवदार के पेड़ों पर आरी चला दी. जिसको लेकर छावनी प्रशासन ने अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई.
हाल ही में मंलिगार क्षेत्र में एक देवदार का पेड़ काटा गया. ये पेड़ काफी पुराना था. इस पेड़ को काटने के पीछे कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है. इस पेड़ के काटे जाने से प्रकृति प्रेमियों में काफी आक्रोश है. प्रकृति प्रेमियों का कहना है कि मसूरी के शहरी और छावनी क्षेत्र में कई ऐसे बेशकीमती और यादगार पेड़ हैं, जिन्हें काटा नहीं जाना चाहिए, लेकिन कई ठेकेदार और वन माफिया षडयंत्र के तहत इन पेड़ों को कटवा रहे हैं.
कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रहा मसूरी: प्रकृति प्रेमियों ने कहा कि मसूरी की खूबसूरती और हरियाली को देखते हुए अंग्रेजों ने मसूरी का निर्माण करवाया था. यहां देश-विदेश से पर्यटक इस सौंदर्य का आनंद लेने आते थे, लेकिन अब बीतते दिनों के साथ मसूरी में अंधाधुंध निर्माण हो रहा है. आज मसूरी कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गया है. प्रकृति प्रेमियों ने बताया कि देहरादून विकास प्राधिकरण का गठन साल 1984 में किया गया था. मसूरी के नियोजित विकास को लेकर इसका गठन किया गया था, लेकिन भ्रष्टाचार लिप्त अधिकारियों ने नियमों और कानून को ठेंगा दिखाकर मसूरी में बेतहाशा नक्शे पास कर दिए.
मसूरी में बढ़ रही भूस्खलन की घटनाएं: उनका आरोप है कि यहां कई अवैध निर्माण भी चुके हैं. जिसको लेकर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है. मसूरी में पिछले चार-पांच सालों में भूस्खलन की घटनाएं भी लगातार बढ़ रही हैं. अंधाधुंध निर्माण कार्य इसके पीछे की मुख्य वजह है. प्रकृति प्रेमियों ने कहा मसूरी शहर पर अत्यधिक भार पड़ रहा है. जिसको लेकर एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी पिछले दिनों संकेत दिए गए थे.
मसूरी में निर्माण कार्यों को नहीं रोका तो जोशीमठ जैसे होंगे हालात: एनजीटी ने साफ कहा था मसूरी में निर्माण कार्यों को रोका जाए नहीं तो इसका हाल भी जोशीमठ जैसा होगा, लेकिन उसके बाद भी सरकार ने मसूरी को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया. हाल में ही मसूरी देहरादून मार्ग पर कई जगह भारी भूस्खलन हुआ है. जिससे मार्ग क्षतिग्रस्त हो गए हैं. लैंडस्लाइड के कारण लोग परेशान हो रहे हैं. दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं. इसके बाद भी जिम्मेदार अधिकारियों को कोई फर्क नहीं पड़ता.
क्या बोले मसूरी वन प्रभाग के डीएफओ? मसूरी वन प्रभाग के डीएफओ अमित कंवर ने बताया मसूरी वन विभाग बिना जांच पड़ताल के किसी भी पेड़ को काटने की अनुमति नहीं देता. उन्होंने कहा कई बार विकास को लेकर किया जा रहे निर्माण को लेकर कई पेड़ों को काटने पड़ते हैं, लेकिन विभाग की ओर से यह सुनिश्चित किया जाता है कि एक पेड़ कटेगा तो उसकी जगह संबंधित को दो पेड़ लगाने होंगे.
डीएफओ अमित कंवर का छावनी परिषद में जो पेड़ काटा जा रहा है, वह उनके अधीन नहीं आता है. मसूरी छावनी परिषद में जितने भी जंगल हैं, उसको देखने का काम छावनी परिषद का प्रशासन करता है. उन्होंने बताया हरेला पर्व के तहत मसूरी और आसपास के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के पौधे रोपे जा रहे हैं. ताकि, पहाड़ों की रानी मसूरी की हरियाली बनी रहे.
ऐसा नहीं है कि पहाड़ों की रानी मसूरी में ही इस तरह की घटनाएं हो रही है. उत्तराखंड के अलग अलग जिलों में हर दिन लैंडस्लाइड की घटनाएं हो रही हैं. उत्तराखंड के कई जिले लैंडस्लाइड के लिहाज से देश में टॉप पर रहे हैं. खास बात यह है कि प्रदेश में लैंडस्लाइड के लिए तमाम विकास कार्यों को भी वजह माना जाता रहा है. कई इलाकों में भारी संख्या में पेड़ों के कटान ने भी भूस्खलन क्षेत्र विकसित किए हैं. तमाम हिल स्टेशनों में भी वन कटान के कारण परेशानियां खड़ी हुई है.
फॉरेस्ट लैंड ट्रांसफर बनी मुसीबत, वन क्षेत्र के कटान ने बढ़ाई परेशानी: मृदा संरक्षण के लिए वृक्षों का एक अहम रोल माना जाता है. पर्वतीय क्षेत्रों में वन क्षेत्र भूस्खलन जैसी घटनाओं के रोकथाम के लिए भी काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. हैरानी की बात ये है कि इन महत्वपूर्ण जानकारियों के बावजूद राज्य में बड़ी संख्या में पेड़ों का कटान जारी है. न केवल अवैध रूप से होने वाले वन क्षेत्र के कटान ने परेशानी बढ़ाई है. बल्कि, विकास कार्यों के लिए फॉरेस्ट लैंड ट्रांसफर भी मुसीबत पैदा कर रही है.
आंकड़ों पर एक नजर: आंकड़े भी इस बात की तस्दीक कर रहे हैं. उत्तराखंड राज्य स्थापना के बाद 43,806 हेक्टेयर लैंड ट्रांसफर हुआ. लैंड ट्रांसफर के 3,903 प्रस्तावों पर मुहर लगी. सड़क निर्माण के लिए सबसे ज्यादा वन भूमि हस्तांतरण हुई. 9,294 हेक्टेयर वन भूमि को सड़क बनाने के लिए हस्तांतरित किया गया. पेयजल योजनाओं के लिए 662 प्रस्ताव पर 165 हेक्टेयर वन भूमि हस्तांतरित हुई. वन भूमि हस्तांतरित होने के बाद योजना के लिए वृक्ष काटे जाते हैं. राज्य सरकार से औपचारिकता पूरी होने के बाद केंद्र से मंजूरी मिलती है.
समाजसेवी अनूप नौटियाल ने कही ये बात: उत्तराखंड में पर्यावरणीय गतिविधियों को लेकर सक्रिय भूमिका अदा करने वाले और समाजसेवी अनूप नौटियाल कहते हैं कि राज्य में विकास के नाम पर पेड़ों को काटे जाने का सिलसिला तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है. लोकसभा में भी वन भूमि हस्तांतरण को लेकर पूछे गए एक सवाल में यह स्पष्ट किया गया था कि हिमालय राज्यों में उत्तराखंड विकास कार्यों के लिए वन भूमि हस्तांतरण को लेकर सबसे आगे रहने वाले राज्यों में रहा है.
वन भूमि हस्तांतरण पर सवाल: साल 2008 से 2023 तक उत्तराखंड में 14,141 हेक्टेयर वन भूमि विकास कार्यों के लिए हस्तांतरित की गई. जबकि, हिमाचल प्रदेश जिसका क्षेत्रफल उत्तराखंड से ज्यादा है, वहां पर इन सालों में केवल 6,697 हेक्टेयर वन भूमि को ही हस्तांतरित किया गया. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि उत्तराखंड में विकास कार्यों के लिए वन भूमि हस्तांतरण की इतनी ज्यादा जरूरत क्यों पड़ रही है.
विकास कार्यों के लिए पेड़ों की बलि: उत्तराखंड में वन भूमि हस्तांतरण के जरिए विकास कार्यों के लिए पेड़ों का कटान जारी है. इस दौरान ऑल वेदर रोड के लिए ही हजारों पेड़ों को काट दिया गया. चारधाम यात्रा मार्ग को जोड़ने वाले चार धाम प्रोजेक्ट में परियोजना के लिए करीब 56,000 से ज्यादा पेड़ काटे जाने की खबर है.
ऑल वेदर रोड पर कई जगह पहाड़ों के कटान और जंगलों को काटे जाने के कारण नए लैंडस्लाइड जोन भी बन गए हैं. जो कि मानसून सीजन के दौरान खासतौर पर सबसे ज्यादा खतरा बन गए है. अनूप नौटियाल भी कहते हैं कि प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से तो पेड़ों का कटान मुसीबत बन ही रहा है, लेकिन इसके अलावा दूसरी कई दिक्कतें भी दिखाई देने लगी है.
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भी पेड़ों का जमकर कटान हुआ है. एक आकलन के अनुसार राजधानी देहरादून और मसूरी में पिछले 20 सालों में हजारों पेड़ काटे गए हैं. अवैध पेड़ कटान को लेकर क्या कहते हैं आंकड़े यह भी देखिए.
- देहरादून को बाग बगीचों का माना जाता रहा है शहर
- उत्तराखंड बनने के बाद देहरादून से गायब हो गए कई बगीचे
- हिल स्टेशन मसूरी में भी अंधाधुंध निर्माण के कारण पेड़ों का जमकर हुआ कटान
- उत्तराखंड में पिछले 10 सालों में करीब 10,000 पेड़ अवैध रूप से कटे
- हर साल करीब 1,100 पेड़ अवैध रूप से काटे जा रहे हैं.
पर्यावरण विशेषज्ञ एसपी सती ने जताई चिंता: पर्यावरण विशेषज्ञ डॉक्टर एसपी सती कहते हैं कि देहरादून में लाखों पेड़ काटे जाने की बात सामने आई है. इसके कारण देहरादून में साल दर साल तापमान में बढ़ोतरी की भी स्थिति महसूस की जा रही है. तमाम योजनाओं के कारण भी पेड़ों को तेजी से काटा जा रहा है. जो नई दिक्कतों को पैदा कर रहा है.
क्या बोले देहरादून डीएफओ नीरज शर्मा: पूरे मामले में देहरादून डीएफओ नीरज शर्मा का कहना है कि कोई निजी भूमि में पेड़ काटना चाहता है तो उसे डीएफओ कार्यालय में आवेदन करना होता है. जिसमें भूमि का स्वामित्व, राजस्व या नगर निगम से पेड़ से संबंधित कागज, पेड़ की फोटो, पेड़ काटने का कारण आदि को बताना होता है. जिसके बाद रेंजर को भेजकर जांच की जाती है, फिर उसके बाद पेड़ काटने की अनुमति दी जाती है.
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