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मुंबई बम विस्फोट मामला : हाई कोर्ट ने विस्फोटक की खेप उतारने देने के दो आरोपियों को राहत दी

mumbai bomb blast case : मुंबई में 1993 में हुए बम विस्फोट के मामले में आरोपी केंद्रीय उत्पाद शुल्क के दो तत्कालीन अफसरों को राहत प्रदान की है. कोर्ट ने उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के आदेश को रद्द कर दिया. पढ़िए पूरी खबर...

Bombay High Court
बंबई हाई कोर्ट
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By PTI

Published : Mar 10, 2024, 5:28 PM IST

मुंबई : बंबई हाई कोर्ट ने शहर में 1993 के सिलसिलेवार बम धमाकों में इस्तेमाल विस्फोटकों की खेप उतराने की अनुमति देने के आरोप में केंद्रीय उत्पाद शुल्क के दो तत्कालीन अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के आदेश के करीब 20 साल बाद उन्हें राहत दे दी. मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ ने अनुशासनात्मक कार्रवाई का आदेश रद्द करते हुए कहा कि विभागीय जांच में दोनों (अब सेवानिवृत्त) अधिकारियों के खिलाफ आरोप साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं मिला.

हाई कोर्ट ने चार मार्च को दिए अपने फैसले में कहा कि केंद्रीय उत्पाद शुल्क विभाग के सेवानिवृत्त अधीक्षक एस एम पडवाल और यशवंत लोटाले वेतन और पेंशन का बकाया जैसे सभी लाभों के हकदार होंगे जिनका भुगतान उन्हें दो महीने के भीतर किया जाए. मुंबई में 12 मार्च 1993 को अलग-अलग स्थानों पर 12 बम विस्फोट हुए थे जिसमें 257 लोगों की मौत हो गयी थी और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे.

बाद में एक विशेष अदालत ने मामले में 100 लोगों को दोषी ठहराया था और 23 अन्य को बरी कर दिया था. हाई कोर्ट ने कहा कि पडवाल और लोटाले ने मामले में किसी आपराधिक मुकदमे का सामना नहीं किया. उसने कहा कि कथित तौर पर उपलब्ध सबूत के आधार पर उनके खिलाफ आरोप साबित नहीं होते हैं. अदालत ने कहा, 'हमारा निर्विवाद निष्कर्ष है कि यह एक ऐसा मामला है जहां कोई सबूत नहीं है और परिणामस्वरूप दंड देने का आदेश पारित करते समय अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा निकाला गया निष्कर्ष गलत है.'

हाई कोर्ट ने कहा कि उनके खिलाफ उपलब्ध सबूत केवल पूछताछ के दौरान पुलिस के समक्ष आरोपियों का कथित कबूलनामा है. पडवाल और लोटाले पर विस्फोटक, हथियार और गोला बारुद की खेप को उतारने की अनुमति देने के लिए घूस लेने का आरोप लगाया गया था. पडवाल को सेवा से बर्खास्त करने का आदेश दिया गया था जबकि लोटाले को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गयी थी और उन्हें पेंशन तथा ग्रेच्युटी की केवल 65 फीसदी रकम देने का आदेश दिया गया था.

दोनों अधिकारियों ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के समक्ष इस आदेश को चुनौती दी. अधिकरण ने पडवाल के बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया जबकि लोटाले के खिलाफ अनुशासनात्मक आदेश को बरकरार रखा. इसके बाद लोटाले ने उच्च न्यायालय में अपील की जबकि केंद्र सरकार ने पडवाल को राहत देने के अधिकरण के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. हाई कोर्ट ने पडवाल के खिलाफ केंद्र सरकार की याचिका खारिज कर दी और लोटाले की याचिका स्वीकार कर ली.

ये भी पढ़ें - हाई कोर्ट ने 22 जनवरी को सार्वजनिक अवकाश घोषित करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज की

मुंबई : बंबई हाई कोर्ट ने शहर में 1993 के सिलसिलेवार बम धमाकों में इस्तेमाल विस्फोटकों की खेप उतराने की अनुमति देने के आरोप में केंद्रीय उत्पाद शुल्क के दो तत्कालीन अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के आदेश के करीब 20 साल बाद उन्हें राहत दे दी. मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ ने अनुशासनात्मक कार्रवाई का आदेश रद्द करते हुए कहा कि विभागीय जांच में दोनों (अब सेवानिवृत्त) अधिकारियों के खिलाफ आरोप साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं मिला.

हाई कोर्ट ने चार मार्च को दिए अपने फैसले में कहा कि केंद्रीय उत्पाद शुल्क विभाग के सेवानिवृत्त अधीक्षक एस एम पडवाल और यशवंत लोटाले वेतन और पेंशन का बकाया जैसे सभी लाभों के हकदार होंगे जिनका भुगतान उन्हें दो महीने के भीतर किया जाए. मुंबई में 12 मार्च 1993 को अलग-अलग स्थानों पर 12 बम विस्फोट हुए थे जिसमें 257 लोगों की मौत हो गयी थी और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे.

बाद में एक विशेष अदालत ने मामले में 100 लोगों को दोषी ठहराया था और 23 अन्य को बरी कर दिया था. हाई कोर्ट ने कहा कि पडवाल और लोटाले ने मामले में किसी आपराधिक मुकदमे का सामना नहीं किया. उसने कहा कि कथित तौर पर उपलब्ध सबूत के आधार पर उनके खिलाफ आरोप साबित नहीं होते हैं. अदालत ने कहा, 'हमारा निर्विवाद निष्कर्ष है कि यह एक ऐसा मामला है जहां कोई सबूत नहीं है और परिणामस्वरूप दंड देने का आदेश पारित करते समय अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा निकाला गया निष्कर्ष गलत है.'

हाई कोर्ट ने कहा कि उनके खिलाफ उपलब्ध सबूत केवल पूछताछ के दौरान पुलिस के समक्ष आरोपियों का कथित कबूलनामा है. पडवाल और लोटाले पर विस्फोटक, हथियार और गोला बारुद की खेप को उतारने की अनुमति देने के लिए घूस लेने का आरोप लगाया गया था. पडवाल को सेवा से बर्खास्त करने का आदेश दिया गया था जबकि लोटाले को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गयी थी और उन्हें पेंशन तथा ग्रेच्युटी की केवल 65 फीसदी रकम देने का आदेश दिया गया था.

दोनों अधिकारियों ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के समक्ष इस आदेश को चुनौती दी. अधिकरण ने पडवाल के बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया जबकि लोटाले के खिलाफ अनुशासनात्मक आदेश को बरकरार रखा. इसके बाद लोटाले ने उच्च न्यायालय में अपील की जबकि केंद्र सरकार ने पडवाल को राहत देने के अधिकरण के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. हाई कोर्ट ने पडवाल के खिलाफ केंद्र सरकार की याचिका खारिज कर दी और लोटाले की याचिका स्वीकार कर ली.

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