नई दिल्ली: दिल्ली के RML (राम मनोहर लोहिया) अस्पताल में रिश्वतखोरी का मामला उजागर होने के बाद अस्पताल की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में है. अस्पताल के एमएस जिनसे सवाल पूछा जाना है, वो छुट्टी पर हैं. उनकी अनुपस्थिति में डॉ. मनोज कुमार चार्ज देख रहे हैं.
दरअसल, आरएमएल अस्पताल में इलाज के नाम पर रिश्वत वसूली का मामला सामने आया. सीबीआई ने 2 डॉक्टरों समेत 11 लोगों को गिरफ्तार किया. इसकी खबर के बाहर आते ही हड़कंप मच गया और दिल्ली में नामी सरकारी अस्पताल में इलाज के नाम पर हो रही वसूली का पर्दाफाश भी हो गया. इस पूरे प्रकरण में अब शक की सुई अस्पताल के एमएस डॉ. अजय शुक्ला पर घूम रही है, क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि इंप्लांट्स रिश्वतखोरी मामले में उन पर भी गंभीर आरोप लग चुके हैं और अंदरखाने चर्चा ये भी है कि रिश्वतखोरी मामला सामने आते ही RML के एमएस डॉ. शुक्ला छुट्टी पर गए हैं.
दरअसल, डॉ. अजय शुक्ला के पास ऑर्थो विभाग है. आरोप लग रहे हैं कि उनके विभाग में भी इंप्लांट्स के बदले रिश्वत के आरोप लगते रहे हैं. अब जैसे ही इस बड़े रिश्वतखोरी मामले का उजागर हुआ तो अचानक से उनका 20 दिनों की छुट्टी पर निकल जाना अपने आप में कई बड़े सवाल खड़े करता है.
सूत्रों के मुताबिक, डॉ. शुक्ला की कई शिकायतें स्वास्थ्य मंत्रालय भी जा चुकी हैं. आरएमएल अस्पताल में रिश्वतखोरी की जड़ें काफी गहरी जमी हैं. इंप्लांट्स को लेकर फार्मा कंपनी से लेकर, सप्लायर, बिचौलिए और डॉक्टर बड़े खेल में लिप्त रहते हैं. मोटे कमीशन के लालच में मरीजों से महंगे इंप्लांट्स खरीदवाए जाते हैं.
आरएमएल अस्पताल में सीबीआई की जो कार्रवाई हुई है, वह केवल ट्रेलर है. सूत्रों के मुताबिक, इस अस्पताल में केवल कार्डियो ही नहीं, बल्कि ऑर्थो इंप्लाट्ंस को लेकर भी बड़ा खेल खेला जाता रहा है. मौजूदा डायरेक्टर एवं ऑर्थो डिपार्टमेंट के पूर्व एचओडी डॉ. अजय शुक्ला पर भी इस मामले में काफी आरोप लगे हैं और उनके खिलाफ जांच कमटियां भी बैठाई गई. जांच कमेटी ने भी ऑर्थो इंप्लांट्स की आड़ में बडा खेल होने का जिक्र किया और कार्रवाई की सिफारिश की थी, लेकिन शिकायत ने स्वास्थ्य मंत्रालय तक पहुंचकर ही दम तोड़ दिया.इस मामले में डॉ. अजय शुक्ला से उनके नंबर पर बात करने का प्रयास किया गया तो नंबर एक्जिस्ट नहीं मिला.
इंप्लांट्स के नाम पर ऐसे होता है खेल
सूत्रों के मुताबिक, सरकारी अस्पतालों में भी इंप्लांट्स के पैसे लिए जाते हैं. इसकी आपूर्ति किसी बिचौलिए के माध्यम से अस्पतालों में की जाती है. ओपन टेंडर से फार्मा कंपनी को इसका ठेका दिया जाता है. फिर एजेंट के माध्यम से इंप्लांट्स मरीज तक पहुंचाया जाता है. कंपनी की ओर से मोटा कमीशन बंधा होता है, इसलिए इंप्लांस्ट्स वास्तविक मूल्य से लगभग दो-गुने दामों में मरीज को दिया जाता है. इसमें कमीशन के पैसे की डीलिंग कैश में होती है. नियम के तहत हर साल टेंडर निकाला जाना चाहिए, लेकिन यदि कमीशन अधिक मिल रहा हो तो नियमों को ताक पर रखकर एक ही कंपनी को बार-बार टेंडर अलॉट कर दिया जाता है.
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