हैदराबाद : अफ्रीका के अलावा कई यूरोप के देशों के बाद अब भारत में मंकीपॉक्स का पहला संदिग्ध मरीज सामने आया है. संक्रमित व्यक्ति प्रभावित देश की यात्रा से भारत लौटा है. हालांकि लक्षण दिखने के बाद उसे आइसोलेशन में रखा गया है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मंकीपॉक्स का कनेक्शन बंद से जोड़ा जाता है, लेकिन यह 100 प्रतिशत अनिवार्य नहीं है कि इसका वायरस बंदर से ही लोगों में फैले. वहीं सवाल यह उठता है कि बीमारी का नाम आखिर बंदरों के नाम पर क्यों और कैसे पड़ा. इस संबंध में अमेरिकन हेल्थ एजेंसी सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) की रिपोर्ट के मुताबिक इस बीमारी को पहले मंकीपॉक्स के नाम से जाना जाता है, हालांकि बाद में इसका नाम Mpox कर दिया गया. लेकिन लोगों के द्वारा इसे आम बोलचाल में एमपॉक्स के स्थान पर मंकीपॉक्स ही कहा जाता है.
आखिर कैसे मंकीपॉक्स से जुड़ा बंदर का नाम
एमपॉक्स एक ऐसी डिजीज है जो जानवरों और इंसानों के बीच फैल सकती है. वहीं मंकीपॉक्स का पहला मामला 1958 में आया था. उस दौरान बंदरों में इसका वायरस पाया गया था, इसी कारण इस बीमारी का नाम मंकीपॉक्स पड़ गया. लकेिन यह वायरस बंदर में कहां से आया इसके बारे में अभी तक जानकारी नहीं उपलब्ध है.
इंसान में मंकीपॉक्स का मामला 1970 में आया था सामने
वैज्ञानिकों का मानना है कि चूहे-गिलहरी और बंदर इस तरह के वायरस के घर होते हैं. इन्हीं से संक्रमण फैलता है. बता दें कि इंसानों में मंकीपॉक्स का पहला मामला 1970 में प्रकाश में आया था. इसमें मरीज डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑप कॉन्गो का निवासी था. दूसरी तरफ साल 2022 में एमपॉक्स दुनिया भर में फैल गया. इससे पहले एमपॉक्स के मामले बहुत कम मिलते थे.
वायरस फैलने की वजह?
इस संबंध में सीडीसी के रिपोर्ट मुताबिक मंकीपॉक्स वायरस से संक्रमित व्यक्ति की लार, पसीने और उसकी संक्रमित चीजों से लोगों में यह फैल सकता है. इतना ही नहीं संक्रमित प्रेग्नेंट महिला से उसके बच्चे में भी यह वायरस पहुंच सकता है. इसके अलावा संक्रमित व्यक्ति के कपड़े और सतह के छूने के बाद यह वायरस लोगों को बीमार भी कर सकता है.
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