भोपाल। मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों पर मतदान खत्म हो चुका है. एमपी में पूरे चार चरणों में चुनाव खत्म हुए. वोटिंग प्रतिशत 66.77 फीसदी तक पहुंचा जो 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले चार फीसदी कम है. चुनाव आयोग ने भी मंजूर किया कि इस बार वोटिंग प्रतिशत कम रहा. जब बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दल बूथ स्तर से वोट शेयर बढ़ाने का दावा करते रहे. जब चुनाव आयोग लोकतंत्र के इस सबसे बड़े अभियान के लिए कैम्पेन चलाता रहा, तो फिर मतदान में वोटर कहां अटक गया. वोटर के उदासीन हो जाने की वजह क्या है. वोटर की इस उदासीनता के पीछे वजह क्या रही. चौथे चरण में बाकी तीन चरणों से ज्यादा मतदान होने के बावजूद भी एमपी में 3.93 फीसदी कम वोटिंग हुई है. सवाल ये कि आखिर एमपी में वोटर अटक कहां गया.
एमपी में चुनाव खत्म, सवाल वोटर क्यों नहीं निकला
एमपी में चार चरणों का चुनाव खत्म हो चुका है. 29 सीटों पर वोटिंग पूरी हो चुकी है. आंकड़ों में देखें ते पहले चरण में 67 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ, जो पिछले चुनाव से 7 फीसदी से ज्यादा कम था. दूसरे चरण में भी वोटिंग ने 60 का आंकड़ा पार किया, 67 फीसदी तक पहुंचा, लेकिन पिछले चुनाव के मुकाबले ये भी नौ फीसदी कम रहा. दो चरणों के चुनाव में कम मतदान ने बीजेपी की सांसे फुला दी थी, यही वजह रही कि एन वोटिंग के दौरान केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह भोपाल आए और ये हिदायत देकर गए कि अगर वोटिंग प्रतिशत गिरा तो जवाबदारी जिम्मेदार मंत्री की होगी. ध्यान रखें फिर विभाग भी बदल सकता है और मंत्री पद भी जा सकता है.
शाह की इस हिदायत के बाद बीजेपी ने तीसरे चरण के मतदान के पहले जोर लगाया और आंकड़ा 66.75 प्रतिशत तक पहुंच गया. 2019 की वोटिंग के मुकाबले देखें तो जो करीब 0.11 अधिक था. चौथे चरण में वोटिंग 71 फीसदी से ज्यादा हुई, लेकिन ये 2019 के मुकाबले 3.93 प्रतिशत कम है. वरिष्ठ पत्रकार दिनेश गुप्ता कहते हैं, 'असल में चुनाव जिस तरह से इस बार रहा, मुकाबले जैसा कुछ दिखा नहीं. एक तरफ एक पार्टी जीत के लिए पूरी तरह से आश्वस्त बल्कि आंकड़ा दे रही कि इतनी सीटों के पार उनकी जीत जाएगी. दूसरी तरफ दूसरी पार्टी कि उतनी तैयारी दिखाई नहीं देती. लिहाजा वोटर भी ठंडा पड़ गया. असल में या तो वोट एंटी इन्कबमेंसी का होता है या प्रो इन्कमबेंसी का. इस बार दोनों ही उल्लेखनीय तौर पर दिखाई नहीं दी. पूरे चुनाव में कोई मुद्दा कोई ऐसी हवा नहीं थी जो वोटर को मतदान के लिए मोटिवेट कर सके. लिहाजा बहुत कोशिशों के बावजूद भी वोटिंग प्रतिशत बढ़ नहीं सका.'
कम वोटिंग में भी ऐतिहासिक वोट शेयर बीजेपी का
बीजेपी ने वोट शेयर बढ़ाने के लिए चुनाव के चार महीने पहले से प्लानिंग की. बूथ लेवल और पन्ना प्रभारी तक बनाए, लेकिन पार्टी वोटर को बूथ तक नहीं खींच पाई. हालांकि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ईटीवी भारत से बातचीत में ये दावा करते हैं कि 'मत प्रतिशत इस बार भले कम रहा हो. इसके बावजूद बीजेपी आत्मविश्वास से भरी हुई है. हम दावे के साथ ये कह रहे हैं कि सर्वाधिक वोट शेयर बीजेपी का होगा. एतिहासिक वोट शेयर होगा. जो वोट नहीं पड़ा वो असल में कांग्रेस का है.'
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जागरूक वोटर भी सन्नाटे में ऐसा क्या हुआ
इंदौर लोकसभा सीट एमपी की उन लोकसभा सीटों में से हैं. जहां पर जीत की लीड तीन से पांच लाख की रहती है. आखिरी चरण की आठ सीटों का आंकलन करें तो इंदौर ही वो सीट है, जहां मतदान का प्रतिशत 60.53 फीसदी पर आकर अटक गया. बाकी उज्जैन से लेकर मंदसौर, रतलाम, खरगोन और देवास में 70 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ. क्या इंदौर में कांग्रेस उम्मीदवार का नामांकन वापिस लेना बीजेपी के लिए उल्टा दांव पड़ गया. वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा कहते हैं, 'ऐसा मान सकते हैं क्योंकि अगर इस कदम को समर्थन होता, तो जनता उस तादात में बाहर वोट देने निकलते. जनता ने शंकर लालवानी को जीता हुआ मान लिया और जब मुकाबला ही नहीं तो चुनाव ठंडा पड़ गया, लेकिन अब इंदौर में बीजेपी के लिए दो चुनौती है. पहली जब मुकाबले में कोई है ही नहीं..तो लीड का अंतर बहुत ज्यादा होना चाहिए. दूसरा इस चुनाव के नतीजे कैलाश विजयवर्गीय की राजनीति की दिशा भी तय करेंगे. ये प्रयोग उन्हीं का था.