सागर। मौजूदा राजनीति के हालात देखकर 1961 में देश की संसद में हुए इस वाक्ये पर भरोसा करना आसान नहीं होगा कि राजनीति में पहले इतनी संवेदनशीलता हुआ करती थी. ये वाक्या तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू और सागर से कांग्रेस सांसद ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी के बीच का है. जबलपुर में हुए उषा भार्गव कांड के कारण सागर में भी दंगे भड़क गए थे. इन दंगों को लेकर प्रधानमंत्री नेहरू जमकर नाराज थे. जब संसद सत्र शुरू हुआ, तो ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी का संसद के गलियारे में प्रधानमंत्री नेहरू से सामना हो गया. नेहरू ने देखते ही आग बबूला हो गए और कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि 'तुम्हारे होते हुए दंगे हो गए, तुम खुद क्यों नहीं मर गए.
ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी ने दंगे रोकने जान लगा दी, लेकिन प्रधानमंत्री के शब्दों ने उन्हें बहुत आहत किया और तत्काल प्रधानमंत्री को अपना इस्तीफा सौंपकर दंगों की जांच करने की बात कही. पंडित नेहरू जमकर नाराज थे. उन्होंने तत्काल इंदिरा गांधी की अध्यक्षता में कमेटी बनायी और कमेटी ने सागर में जाकर जांच की, तो पता चला कि सागर के दंगे ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी के कारण रुके थे. जब रिपोर्ट सदन में रखी गयी, तो नेहरू जी में भरे सदन अपने सांसद से माफी मांगी.
जबलपुर के उषा भार्गव कांड के कारण भड़के थे दंगे
दरअसल, 1961 में जबलपुर में 20 साल की लड़की उषा भार्गव के अपहरण और दुष्कर्म के बाद उषा भार्गव ने आत्महत्या कर ली थी. अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी. अपने बयानों में उसने दो मुस्लिम युवकों पर अपहरण और दुष्कर्म का आरोप लगाया था, लेकिन आरोपी रसूखदार होने के कारण पुलिस कार्रवाई में देरी हुई और दंगे भड़क गए. दंगे की स्थिति भयावह होती गई और धीरे-धीरे जबलपुर से निकलकर दूसरे शहरों में भी दंगे होने लगे. सागर में भी सांप्रदायिक दंगों ने भयावह रूप धारण कर लिया. सागर में जब दंगे भड़के थे, तब सागर के सांसद कांग्रेस के ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी थे. दंगे के समय पर ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी किसी सरकारी काम से बेंगलुरु गए थे. जब उन्हें दंगे की खबर लगी, तो तत्काल सागर वापस आए.
सागर दंगे की आग में झुलस रहा था. दंगों पर काबू करने के लिए सशहर सेना के हवाले कर दिया गया. सांसद ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी ने सागर पहुंचते ही सेना के साथ मिलकर घर-घर जाकर शांति स्थापित करने के लिए काफी मेहनत की और धीरे-धीरे दंगे की आग में झुलस रहा सागर शांत हो गया.
प्रधानमंत्री नेहरू ने अपनी पार्टी के सांसद को लगाई फटकार
तत्कालीन सांसद स्वर्गीय ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी के पोते आशीष ज्योतिषी बताते हैं कि दंगे शांत होने के बाद दिल्ली में संसद का सत्र था. जबलपुर के बाद सागर में दंगों को लेकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जमकर नाराज थे. इसी दौरान संसद के गलियारे में सांसद ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी का प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से सामना हो गया. उनको देखते ही पंडित नेहरू जमकर नाराज हो गए और तल्ख लहजे में कहा कि "तुम्हारे होते हुए सागर में दंगे हो गए, तुम खुद क्यों नहीं मर गए". देश के प्रधानमंत्री का अपने ही सांसद के प्रति ये गंभीर संवाद था. उस वक्त एक सांसद की जवाबदेही क्या होती थी और प्रधानमंत्री देश में हो रही घटनाओं को लेकर किस तरह संज्ञान लेते थे.
पंडित नेहरू की ये बात सुनकर ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी जमकर आहत हुए और उन्होंने तत्कालीन पीएम नेहरू से कहा कि 'आपने मेरे ऊपर गंभीर आरोप लगाए हैं. मेरा निवेदन है कि आप दंगे की जांच करा लें.' पंडित नेहरू जमकर नाराज थे, तो उन्होंने दंगे की जांच करने के लिए इंदिरा गांधी की अध्यक्षता में कमेटी बनायी. इंदिरा गांधी ने कमेटी के साथ सागर आकर दंगों की जांच की. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि "ज्योतिषी जी संत की तरह हैं. उनके रहते हुए, ये हालात बन पाए कि सागर में देंगे रुक गए. सागर में जो आज प्रेम और भाईचारे का माहौल है. वह ज्योतिषी जी के कारण है.' जब रिपोर्ट संसद में रखी गयी, तो प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने भारी सदन में ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी से माफी मांगी. प्रधानमंत्री नेहरू के माफी मांगने से ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी सदन में ही रो पड़े. प्रधानमंत्री ने कहा कि 'मैं आपसे माफी मांग रहा हूं और आप रो रहे हो, तो ज्योतिषी ने जवाब दिया कि पंडित जी मेरे से देश का प्रधानमंत्री माफी मांग रहा है.'
कौन थे ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी
हम तो हैं बचपन के बागी, लिखी बगावत भाग्य हमारे।
जेलों में ही कटे जवानी, ऐसे ही कुछ पड़े सितारे।।
इन पंक्तियों के तेवर से साफ है कि ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी ना सिर्फ एक अच्छे साहित्यकार थे, बल्कि आजादी के लिए समर्पित सिपाही थे. उनके लिखे लेख और कविताएं इतने जोशीले और तेजस्वी होती थे कि अंग्रेज उनके भाषण और कविताओं को लेकर तरह-तरह के कष्ट देते थे. पंडित ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी का जन्म 14 मार्च, 1909 को नरसिंहपुर के करेली में हुआ था. महज 11 साल की उम्र में 1920 के असहयोग आंदोलन के उनके नेतृत्व में चार सौ छात्रों ने नर्मदा जल लेकर संकल्प लिया कि वे सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं करेंगे और गांधीजी के विचारों का प्रचार कर आजादी की अलख जगाएंगे. 1930 में कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया. उन्हें गिरफ्तार कर 3 माह के जेल में डाल दिया गया. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में ज्योतिषी के जोशीले भाषण के कारण डेढ़ साल की सजा हुई. कमलेश’ उपनाम से उन्होंने क्रांतिकारी रचनाओं के माध्यम से सागर ही नहीं बल्कि पूरे बुंदेलखंड में आजादी की ज्वाला जलाई. आजादी के बाद वे दो बार विधायक और एक बार सांसद बने. 10 सितम्बर 1997 को उनका निधन हो गया.
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आज वैसा राजनीतिक माहौल नहीं
ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी के पोते आशीष ज्योतिषी कहते हैं कि 'सागर में हुए दंगों को आज 64 साल होने को आए हैं. तब से लेकर सागर में आज तक कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ. उसके पीछे माना जाता है कि 1961 के दंगों के बाद ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी ने सागर की सामाजिक समरसता भाईचारे और सद्भाव का माहौल कायम करने में जो मेहनत की थी. वह आज तक कायम है. वहीं प्रधानमंत्री के रूप में पंडित नेहरू और सांसद के रूप में पंडित ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी के संस्मरण को लेकर कहते हैं कि इस घटना से साफ है कि उस समय राजनीति में मानवीय संवेदनाओं को लेकर गंभीरता और संवेदनशीलता थी, जो आज देखने नहीं मिलती है. आज मणिपुर जल रहा है, लेकिन देश के प्रधानमंत्री को कोई मतलब नहीं है. ना ही किसी की जवाब देही तय की गयी. आज चुनाव जीतने के लिए दंगे कराए जाते हैं, ताकि वोटों का ध्रुवीकरण हो सके. उस समय देश पहले था और बाकी सारी चीज बाद में थी. इस तरह की घटनाओं को लेकर किसी को माफी नहीं थी.