मुरैना। एमपी के चंबल-अंचल में भी अजब गजब कारनामे देखने और सुनने को मिलते हैं. अब इतिहास में पहली बार खच्चरों का जन्मदिन मनाने जाने की खबर से लोग आश्चर्यचकित हैं. मुरैना जिले के बानमोर कस्बे में रहने वाले एक प्रजापति परिवार ने अपनी घोड़ी के बच्चों (खच्चरों) का दस्टोन समारोह यानि जन्म उत्सव धूमधाम से मनाया और केक काटने के बाद 300 से ज्यादा लोगों को दावत भी दे डाली. घोड़ी के मालिक के ससुराल से पक्ष से झूले, खिलौने भी आए और सभी ने जन्मदिन को उत्साह से मनाया.
प्रजापति परिवार ने खच्चर के लिए मांगी थी मन्नत
दरअसल, बानमोर के प्रजापति परिवार ने मन्नत मांगी थी कि उनकी घोड़ी खच्चर (घोड़ा और गधे की बीच की प्रजाति) को जन्म दे. परिवार कई साल से घोड़ों के व्यवसाय से जुड़ा हुआ है. बानमोर की खदान रोड पर रहने वाले सुनील प्रजापति के घर एक घोड़ा और एक घोड़ी है. अप्रैल में घोड़ी ने दो बच्चों को जन्म दिया है. उन्होंने बताया कि बेहट के काशी बाबा से मन्नत मांगी थी कि अगर उनकी घोड़ी को खच्चर पैदा हुए, तो वे उनका दस्टोन समारोह खूब धूमधाम से मनाएंगे. मन्नत पूरी होने पर 8 मई को दस्टोन समारोह ठीक वैसे ही मनाया, जैसे हम अपने बच्चों का मनाते हैं. दोनों खच्चर का नामकरण भी हुआ. नर खच्चर को भोला, जबकि मादा का नाम चांदनी रखा गया है.
ननिहाल से सामान तो बैंड-बाजा से हुआ स्वागत
सुनील प्रजापति की ससुराल ग्वालियर में ही है. उनके ससुराल वाले इस उत्सव में समान लेकर आए, तो तो सुनील ने बैंड-बाजे से उनका स्वागत कराया. ससुराल से आए सामान में साड़ी, तौलिया, झूला, पालना, खिलौने भी लाए थे. गांव और रिश्तेदारों को दावत पर भी बुलाया गया था.
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खुद के बच्चों का नहीं किया दस्टोन (बर्थ सेलिब्रेशन)
सुनील प्रजापति का कहना है कि 'उन्होंने अपने बच्चों निखिल 18 वर्ष, नैंसी 12 वर्ष और वेद 8 वर्ष और गोद ली हुई बेटी भावना 22 वर्ष का दस्टोन नहीं किया. इस कारण कुछ लोग घोड़े के बच्चे का दस्टोन मनाए जाने को लेकर आश्चर्य में पड़ गए. सुनील कहते हैं कि अपने बच्चों का तो सभी जन्मदिन और दस्टोन मनाते हैं. अपने घर में पल रहे पशु भी परिवार के सदस्य होते हैं. परिवार का मूल काम ईंट के भट्टों पर मजदूरी और मिट्टी के बर्तन बनाने का है. खच्चरों से उनके काम में मदद मिलेगी. खच्चर मिट्टी और सामान ढोने के लिए सबसे उपयुक्त पशु होता है.