देहरादून: 'मां' को भगवान से बड़ा दर्जा दिया गया है. वो मां ही है, जो अपने बच्चे के लिए हर दर्द सहती है. अगर बच्चे पर कोई मुसीबत आती है, तो वह अपनी जान की बाजी लगाने से पीछे नहीं हटती. ये पक्तियां देहरादून निवासी प्रिया यादव की मां आशा यादव पर बिलकुल सटीक बैठती हैं, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना अपनी बेटी को नई जिंदगी देने के लिए अपनी एक किडनी दे दी, ताकि उनकी बेटी इस दुनिया में रहकर अपने सपनों को पूरा कर सके.
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बीपी की बीमारी के चलते प्रिया की दोनों किडनी हुईं खराब: 10 साल पहले के उस वक्त को याद करते हुए प्रिया यादव बताती हैं कि, साल 2014 की बात है जब उनको बीपी के कारण किडनी में दिक्कत हो गई थी. दरअसल, प्रिया यादव को सिर में दर्द की समस्या थी, जिसके चलते वह अपना इलाज अस्पताल में करवा रही थी. इसी दौरान उन्हें बीपी की समस्या भी थी, जिसे डॉक्टर पकड़ नहीं पाए, क्योंकि उस समय प्रिया की उम्र काफी कम थी. लिहाजा डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन पर ही प्रिया ने ज्यादा पेन किलर दवाइयों का सेवन किया. जिसका नतीजा यह हुआ कि प्रिया की दोनों किडनी खराब हो गईं. पहले तो उन्होंने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया लेकिन जब ज्यादा ही समस्या होने लगी और वजन तेजी से घटने लगा तब कुछ टेस्ट हुए. टेस्ट में यह साफ हो गया कि प्रिया की दोनों किडनी खराब हो चुकी हैं.
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मां ने अपनी किडनी देकर बेटी की बचाई जान: प्रिया बताती हैं कि, इस रिपोर्ट के बाद घर वाले बहुत परेशान हो गए थे. किडनी लेना या देना इतना आसान नहीं है. प्रिया की फैमिली ने उत्तराखंड के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और तमाम राज्यों में ऐसे लोगों की तलाश की जो उनको किडनी डोनेट कर सकते थे, लेकिन ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला. सारे विकल्प तलाशने के बाद ये फैसला लिया गया कि परिवार का कोई सदस्य यह काम कर सकता है. तब प्रिया की मां आशा यादव ने बेटी की जिंदगी बचाने के लिए बड़ा फैसला लिया. हालांकि, सिर्फ फैसला लेना ही सब कुछ नहीं था. इसके लिए प्रिया के परिवार को एक कानूनी प्रक्रिया से गुजरना था. प्रिया को तब ये मालूम हुआ कि किडनी लेना या देना इतना आसान नहीं है. इस प्रोसेस के लिए बकायदा कोर्ट से परमिशन लेनी पड़ती है. इसका एक डिटेल्ड प्रोसेस होता है.
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प्रिया बताती हैं कि, उनकी मां के कुछ टेस्ट हुए और 4 से 5 दिन उन्हें दिल्ली में डॉक्टरों की देखरेख में उनके साथ ही रखा गया. सब टेस्ट सफल रहने के बाद किडनी ट्रांसप्लांट ऑपरेशन हुआ. प्रिया आज भी उन दिनों को याद कर भावुक हो जाती हैं. प्रिया बताती हैं कि, 'मैं उन दिनों में अपने साथ-साथ अपने परिवार को भी दर्द में देखा है. मैं अपनी पुरानी तस्वीर को देखती हूं तो सोचती हूं कि अगर मैं जल्द ही किडनी ट्रांसप्लांट ना करवाती तो शायद आज कुछ भी बचा न होता. मैंने भगवान को नहीं देखा, लेकिन मां के रूप में मेरे जीवन को बचाने वाली भगवान मेरी मां ही है.'
आपको बता दें, जिस वक्त प्रिया यादव की किडनी का ट्रांसप्लांट हुआ था तब उनकी उम्र मात्र 18 साल थी, जबकि उनकी मां की उम्र 48 साल की थी. आज आशा यादव और उनकी बेटी प्रिया यादव दोनों सुरक्षित है. हां, इतना जरूर है कि अब प्रिया यादव को कुछ सावधानियां बरतनी पड़ती हैं जैसे वो ज्यादा बाहर का नहीं खाती हैं और मौसम के परिवर्तनों में कुछ सावधानियां लेनी पड़ती हैं. लेकिन प्रिया कहती हैं कि आज वह पूरी तरह स्वस्थ हैं.
किडनी हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग: ये प्रिया की कहानी है जिन्होंने एक छोटी उम्र में इस स्थिति को सहा और अपने अनुभव साझा किए. किडनी की समस्या किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है. ऐसे में इससे कैसे बचें और क्या सावधानियां बरतें ये जानना-समझना बेहद जरूरी हो जाता है. दरअसल, किडनी का काम शरीर के तरल पदार्थों को फिल्टर करने का है. सामान्य भाषा में बात करें, तो किडनी शरीर में आरओ (Reverse Osmosis) की तरह काम करता है. पहली बार विश्व किडनी दिवस साल 2006 में मनाया गया था. इस दौरान इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी और इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ किडनी फाउंडेशन ने विश्व किडनी दिवस मनाने की शुरुआत की थी. इस साल विश्व किडनी दिवस की थीम "Kidney Health for All" यानी 'सभी के लिए किडनी स्वास्थ्य' रखा गया है.
लोग बेवजह की दवाइयों का सेवन न करें: डॉ. केसी पंत ने बताया कि किडनी डिजीज के लिए तीन चीजें बहुत अहम रोल अदा करती हैं. जिसमे ब्लड प्रेशर, शुगर और बेवजह की दवाइयों का सेवन शामिल है. बेवजह या सेल्फ मेडिकेशन के तहत अधिकांश दवाइयां लेने से ड्रग्स इंड्यूज नेफ्रोपैथि हो जाती है, जो किडनी को नुकसान करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. ऐसे में जब टेस्ट करवाएं तो केएफटी का टेस्ट जरूर करवाएं. उन्होंने कहा कि दरअसल, किडनी एक तरह से शरीर का आरओ सिस्टम है, जो उम्र के साथ वीक होने लगता है, लेकिन अगर किसी व्यक्ति को बीपी या शुगर की बीमारी है, तो ऐसे 90 फीसदी लोगों में 50 साल के बाद किडनी संबंधित बीमारी हो जाती है.
बिना डॉक्टर्स की सलाह के न लें दवाइयां: देहरादून के दून अस्पताल के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. केसी पंत ने बताया कि लोगों में हिमोडायलिसिस या फिर ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है. लिहाजा, लोगों को चाहिए कि कोई भी मेडिसिन बिना डॉक्टर्स की सलाह के न लें. खासकर दर्द की दवाइयों का इस्तेमाल करने से बचें. इसके अलावा जिसको भी शुगर या फिर बीपी की बीमारी है, तो ऐसे लोगों को इस बीमारी को कंट्रोल करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि अपना रेगुलर चेकअप भी करवाते रहें, ताकि किडनी को नुकसान होने से पहले ही रोका जा सके.
नशीले पदार्थ नेफ्रोटॉक्सिक होते हैं: डॉ. केसी पंत ने कहा कि सभी तरह के नशीले पदार्थ नेफ्रोटॉक्सिक होते हैं. नेफ्रो का मतलब किडनी और टॉक्सिक का मतलब नुकसान होता है. शुरुआती दौर में लोग मनोरंजन के लिए नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं, लेकिन फिर उसकी आदत पड़ जाती है. इसके बाद इसके कॉम्प्लिकेशन देखने को मिलते हैं. उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में डायलिसिस की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में किडनी की बीमारी से बचने के लिए युवा उम्र से ही अपने शरीर पर ध्यान दे.
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