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सारंडा में मौजूद माओवादियों के पास पैसे हुए खत्म! दूसरे इलाके के कमांडरों से मांगी जा रही मदद - Maoists of Saranda

सारंडा में मौजूद माओवादियों का आर्थिक संकट गहराने लगा है. इनके पैसे खत्म हो चुके हैं. यही वजह है कि ये दूसरे इलाके के कमांडरों से पैसे मांग रहे हैं.

MAOISTS OF SARANDA
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Apr 5, 2024, 5:51 PM IST

Updated : Apr 5, 2024, 6:12 PM IST

पलामू: सारंडा में मौजूद माओवादियों के पास पैसा खत्म हो गया है. सारंडा में मौजूद माओवादी दूसरे इलाके के कमांडरों से पैसा मांगने के फिराक में हैं. पैसे के लिए माओवादियों के ईआरबी सुप्रीमो मिसिर बेसरा की टीम ने मनोहर गंझू और बूढ़ापहाड़ से जुड़े कॉरिडोर में रबिन्द्र गंझू से संपर्क करने की कोशिश की है. इसकी भनक सुरक्षा एजेंसियों को भी मिली है. भनक मिलने के बाद सारंडा, बूढ़ापहाड़ और छकरबंधा कॉरिडोर पर निगरानी बढ़ा दी गई है.

नक्सल से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि सारंडा के इलाके में माओवादियों के पास पैसे का संकट है. वे पैसे के लिए रबिन्द्र गंझू और मनोहर गंझू से संपर्क कर रहे हैं, हालांकि कितना पैसा मांगा गया है और भेजा जाना है इसकी जानकारी किसी के पास नही है. सारंडा के इलाके में माओवादियों को काफी नुकसान हुआ है. पिछले पांच वर्षों में नक्सल विरोधी अभियान के दौरान 89 प्रतिशत लैंड माइंस और विस्फोटक सारंडा के इलाके से बरामद हुए हैं.

सारंडा के इलाके में अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं माओवादी

सारंडा माओवादियों का ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो (ईआरबी) का मुख्यालय है. सारंडा से माओवादी झारखंड-बिहार के अलावा उत्तरी छत्तीसगढ़ के और नॉर्थ ईस्ट के राज्य में अपनी गतिविधि का संचालन करते हैं. पिछले तीन वर्षों के दौरान सुरक्षा बलों ने माओवादियों की यूनिफाइड कमांड बिहार के छकरबंधा और झारखंड में मौजूद ट्रेनिंग सेंटर बूढापहाड़ को ध्वस्त कर दिया है.

माओवादी सारंडा के इलाके में खुद को बचाने की अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं. सुरक्षाबलों पिछले एक वर्ष से सारंडा के इलाके में अभियान चला रहे हैं. नक्सल मामलों के जानकर देवेंद्र गुप्ता बताते है कि सारंडा के इलाके मर माओवादी अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं, माओवादियों को लेवी मिलना कम हो गया है. माओवादियों के पास कैडर कम हैं और भर्ती भी नहीं हो रही है. माओवादियों के पास पैसे खत्म होते जा रहे हैं और वे कमजोर होते जा रहे हैं.

पुलिस नक्सल विरोधी अभियान चला रही है. हम लोग सभी तरह के नेटवर्क पर नजर रखे हुए हैं, इस तरह की सूचना या जुड़ी जानकारी सामने आने पर बड़ी कार्रवाई की जाएगी. माओवादियों के मदद पहुंचाने वालों पर भी कार्रवाई की जाएगी- अंजनी अंजन, एसपी लातेहार

माओवादी-झारखंड बिहार और कोयल शंख जोन से सबसे अधिक वसूलते हैं लेवी

दरअसल, माओवादियों के झारखंड-बिहार उत्तरी छत्तीसगढ़ सीमांत कमेटी के मध्य जोन और कोयल शंख जोन से माओवादियों को सबसे अधिक लेवी मिलती है. माओवादियों के मध्य जोन में पलामू चतरा और बिहार के गया औरंगाबाद शामिल है. जबकि कोयल शंख जोन में आधा पलामू, लातेहार, गढ़वा लोहरदगा सिमडेगा का इलाका शामिल है. माओवादी सबसे अधिक मध्यजोन से लेवी वसूलते थे.

एक पूर्व माओवादी ने बताया कि मीडिया में वह आधिकारिक तौर पर अपना नाम नहीं बताना चाहते हैं, इससे कई तरह की परेशानी होती है. उन्होंने बताया कि माओवादी सबसे अधिक मध्यजोन से लेवी भी वसूलते हैं. मध्यजोन से सालाना 50 करोड़ रुपए से अधिक को लेवी वसूली होती थी. मध्यजोन में सरकारी योजना, माइनिंग, ट्रांसपोर्ट, कोयला कारोबार, बीड़ी पत्ता कारोबारी से अधिक लेवी मिलती है.

पूर्व माओवादी बताते हैं जोनल कमांडर लेवी वसूलते हैं, दस्ता का खर्चा काटकर बाकी के पैसा केंद्रीय कमेटी को भेजना पड़ता है. लेकिन पिछले एक दशक में केंद्रीय कमेटी के पास कम पैसा जा रहा है. यही वजह है कि सारंडा समेत कई इलाकों में माओवादियों को पैसे की संकट हो गई है. हाल के दिनों में माओवादी कमजोर हुए हैं. लेवी का पैसा झारखंड-बिहार सीमा के इलाके में मनोहर गंझू और कोयल शंख जोन में रबिन्द्र गंझू के पास जमा हो रहा है.

माओवादी किससे कितना लेते हैं लेवी

प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी 5 लाख से अधिक की कोई भी सरकारी योजना में पांच प्रतिशत, ट्रांसपोर्ट में प्रति गाड़ी के हिसाब से, स्टोन प्लांट, क्रशर से 50 हजार सालाना, ईंट भट्ठा 30 हजार रुपए, कोयला कारोबार पर प्रति गाड़ी, बीड़ी पत्ता के प्रति बैग पर 70 से 120 रुपए की लेवी वसूलते हैं.

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नक्सल से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि सारंडा के इलाके में माओवादियों के पास पैसे का संकट है. वे पैसे के लिए रबिन्द्र गंझू और मनोहर गंझू से संपर्क कर रहे हैं, हालांकि कितना पैसा मांगा गया है और भेजा जाना है इसकी जानकारी किसी के पास नही है. सारंडा के इलाके में माओवादियों को काफी नुकसान हुआ है. पिछले पांच वर्षों में नक्सल विरोधी अभियान के दौरान 89 प्रतिशत लैंड माइंस और विस्फोटक सारंडा के इलाके से बरामद हुए हैं.

सारंडा के इलाके में अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं माओवादी

सारंडा माओवादियों का ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो (ईआरबी) का मुख्यालय है. सारंडा से माओवादी झारखंड-बिहार के अलावा उत्तरी छत्तीसगढ़ के और नॉर्थ ईस्ट के राज्य में अपनी गतिविधि का संचालन करते हैं. पिछले तीन वर्षों के दौरान सुरक्षा बलों ने माओवादियों की यूनिफाइड कमांड बिहार के छकरबंधा और झारखंड में मौजूद ट्रेनिंग सेंटर बूढापहाड़ को ध्वस्त कर दिया है.

माओवादी सारंडा के इलाके में खुद को बचाने की अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं. सुरक्षाबलों पिछले एक वर्ष से सारंडा के इलाके में अभियान चला रहे हैं. नक्सल मामलों के जानकर देवेंद्र गुप्ता बताते है कि सारंडा के इलाके मर माओवादी अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं, माओवादियों को लेवी मिलना कम हो गया है. माओवादियों के पास कैडर कम हैं और भर्ती भी नहीं हो रही है. माओवादियों के पास पैसे खत्म होते जा रहे हैं और वे कमजोर होते जा रहे हैं.

पुलिस नक्सल विरोधी अभियान चला रही है. हम लोग सभी तरह के नेटवर्क पर नजर रखे हुए हैं, इस तरह की सूचना या जुड़ी जानकारी सामने आने पर बड़ी कार्रवाई की जाएगी. माओवादियों के मदद पहुंचाने वालों पर भी कार्रवाई की जाएगी- अंजनी अंजन, एसपी लातेहार

माओवादी-झारखंड बिहार और कोयल शंख जोन से सबसे अधिक वसूलते हैं लेवी

दरअसल, माओवादियों के झारखंड-बिहार उत्तरी छत्तीसगढ़ सीमांत कमेटी के मध्य जोन और कोयल शंख जोन से माओवादियों को सबसे अधिक लेवी मिलती है. माओवादियों के मध्य जोन में पलामू चतरा और बिहार के गया औरंगाबाद शामिल है. जबकि कोयल शंख जोन में आधा पलामू, लातेहार, गढ़वा लोहरदगा सिमडेगा का इलाका शामिल है. माओवादी सबसे अधिक मध्यजोन से लेवी वसूलते थे.

एक पूर्व माओवादी ने बताया कि मीडिया में वह आधिकारिक तौर पर अपना नाम नहीं बताना चाहते हैं, इससे कई तरह की परेशानी होती है. उन्होंने बताया कि माओवादी सबसे अधिक मध्यजोन से लेवी भी वसूलते हैं. मध्यजोन से सालाना 50 करोड़ रुपए से अधिक को लेवी वसूली होती थी. मध्यजोन में सरकारी योजना, माइनिंग, ट्रांसपोर्ट, कोयला कारोबार, बीड़ी पत्ता कारोबारी से अधिक लेवी मिलती है.

पूर्व माओवादी बताते हैं जोनल कमांडर लेवी वसूलते हैं, दस्ता का खर्चा काटकर बाकी के पैसा केंद्रीय कमेटी को भेजना पड़ता है. लेकिन पिछले एक दशक में केंद्रीय कमेटी के पास कम पैसा जा रहा है. यही वजह है कि सारंडा समेत कई इलाकों में माओवादियों को पैसे की संकट हो गई है. हाल के दिनों में माओवादी कमजोर हुए हैं. लेवी का पैसा झारखंड-बिहार सीमा के इलाके में मनोहर गंझू और कोयल शंख जोन में रबिन्द्र गंझू के पास जमा हो रहा है.

माओवादी किससे कितना लेते हैं लेवी

प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी 5 लाख से अधिक की कोई भी सरकारी योजना में पांच प्रतिशत, ट्रांसपोर्ट में प्रति गाड़ी के हिसाब से, स्टोन प्लांट, क्रशर से 50 हजार सालाना, ईंट भट्ठा 30 हजार रुपए, कोयला कारोबार पर प्रति गाड़ी, बीड़ी पत्ता के प्रति बैग पर 70 से 120 रुपए की लेवी वसूलते हैं.

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Last Updated : Apr 5, 2024, 6:12 PM IST
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