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सपनों के आशियानों पर बिल्डरों की लेटलतीफी भारी, उत्तराखंड में लटके कई प्रोजेक्ट्स, देखें आंकड़े - Housing Projects in Uttarakhand

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jul 12, 2024, 4:18 PM IST

Updated : Jul 12, 2024, 9:19 PM IST

Housing Projects in Uttarakhand, Uttarakhand RERA Statistics रियल एस्टेट कारोबार में बड़े बड़े बिल्डर और भू-माफियाओं का सिक्का चलता है. हज़ारों करोड़ के इस धंधे में कई बार आशियाना ढूंढने वालों को सिर्फ धोखा ही मिलता है. उत्त्तराखंड में भी पिछले कुछ सालों में बड़ी बड़ी हाउसिंग सोसाइटीज डेवलप हुई हैं. कईयों सोसाइटीज डेवलप होने के बाद भी ये सेक्टर लोगों का भरोसा नहीं जीत पाया है. आज भी कई प्रोजेक्ट्स विवादों में हैं, जिसके कारण ग्राहकों को अपने ही आशियाने के लिए धक्के ही खाने पड़े हैं.

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उत्तराखंड में विवादों के साये में हाउसिंग प्रोजेक्ट्स (Etv Bharat)
उत्तराखंड में विवादों के साये में हाउसिंग प्रोजेक्ट्स (Etv Bharat)

देहरादून: उत्तराखंड के कई शहरों को यहां की बेहतर कानून व्यवस्था और पर्यावरणीय खूबियों के कारण रहने के लिहाज से मुफीद माना जाता है. यही वजह है कि राज्य के मैदानी जिलों में रियल एस्टेट का कारोबार खूब फल फूल रहा है. पिछले 5 से 10 सालों के दौरान इस कारोबार में काफी तेजी आयी है. उत्तराखंड के अलावा बाकी राज्यों के लोग भी देहरादून और हल्द्वानी जैसे शहरों में बन रहे इन प्रोजेक्ट्स में अपना आशियाना ढूंढते नजर आए हैं. रियल स्टेट की एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि इसमें कई बार लोग धोखाधड़ी का शिकार हो जाते हैं. चिंता की बात यह है कि आम लोग सैकड़ों करोड़ के धंधे और रसूख वाले बिल्डर्स के सामने लाचार होते हैं. जिसके कारण वे अपनी गाढ़ी कमाई से हाथ धो बैठते हैं.

उत्तराखंड में रेरा की स्थिति: उत्तराखंड में बना रहे प्रोजेक्ट पर आंकड़ों के लिहाज से नजर दौड़ आए तो स्थितियां यहां भी कुछ बेहतर नजर नहीं आती हैं. प्रदेशभर में ऐसे प्रोजेक्ट्स पर नजर रखने वाली अथॉरिटी के पास शिकायतों को लेकर क्या स्थिति है आइये आपको बताते हैं. प्रदेश में उत्तराखंड रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) ऐसे प्रोजेक्ट पर नजर है. रेरा सचिव एसएल सेमवाल ने बताया विभिन्न प्रोजेक्ट को लेकर अभी तक 1199 शिकायतें मिली हैं. इन शिकायतों में 891 शिकायतों पर अंतिम निर्णय लिया जा चुका है. 308 शिकायतें ऐसी हैं जिनका अभी समाधान होना बाकी है. रेरा ऐसी शिकायतों पर रिकवरी का आदेश, आपसी समन्वय के तहत हल निकालने का विकल्प देता है.

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उत्तराखंड में रेरा की स्थिति (ईटीवी भारत ग्राफिक्स)

कविता भाटिया की आपबीती: देश मे रियल एस्टेट अथॉरिटी के रूप में रेरा सख्ती दिखाने की कोशिश तो कर रहा है लेकिन उसे इतनी शक्ति नहीं दी गयी है कि वो पूरी तरह से ग्राहकों को न्याय दिल पाए. इसलिए कई लोग सालों साल तक बिल्डर के चक्कर काटते रहते हैं. रेरा से अपने पक्ष में निर्णय आने के बावजूद भी उन्हें फैसले के अनुरूप रिकवरी नहीं मिल पाती. कविता भाटिया भी उन्हीं में से एक हैं, जिन्होंने एक बड़े बिल्डर के खिलाफ अपनी शिकायत रेरा में की थी. साल 2019 में उन्होंने अपनी शिकायत को रखा. इसके बाद 2022 में उनके पक्ष में फैसला भी आया. रेरा ने कविता भाटिया को 10.15 ब्याज के साथ पैसा लौटाने के लिए बिल्डर को कहा गया, लेकिन आज तक उन्हें पैसा नहीं मिला.

तीन शिकायतें अक्सर करती हैं परेशान: अपना खुद का घर पाने के लिए लोग पैसा लोन लेकर बिल्डर को देते हैं. सालों साल तक इसका ब्याज भी चुकाते हैं. इसके बाद भी उन्हें समय पर घर नहीं मिल पाता है. उल्टा वह बैंक के कर्जदार बन जाते हैं. लोगों द्वारा प्रोजेक्ट को लेकर मुख्य तौर पर तीन तरह की शिकायतें आती हैं. पहली बात तय समय पर प्रोजेक्ट पूरा न होना, दूसरा बिल्डर द्वारा घर में जिस क्वालिटी का वादा किया जाता है वह न होना, फ्लैट को बताए गए लेआउट के अनुसार ना बनाना, ये तीनों ही शिकायतें अक्सर लोगों को परेशान करती हैं.

उत्तराखंड में प्रोजेक्ट्स की हकीकत: उत्तराखंड में रेरा के पास किसी भी प्रोजेक्ट को बनाने से पहले बिल्डर को रजिस्ट्रेशन करवाना होता है. आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि प्रदेश में किस तरह तमाम प्रोजेक्ट समय पर पूरे नहीं हो पाए है. यहीं से ग्राहकों की समस्या शुरू हो जाती है. साल 2017 से 2024 तक कुल 515 प्रोजेक्ट्स रेरा में रजिस्टर्ड हुए. इनमें से केवल 118 प्रोजेक्ट ही अब तक पूरे हो पाये हैं. 138 प्रोजेक्ट ऐसे हैं जो तय समय सीमा पर भी पूरे नहीं हो पाये हैं. फिलहाल 245 रजिस्टर्ड प्रोजेक्ट राज्य में गतिमान हैं. बात अगर अब तक के प्रोजेक्ट्स की करें तो साल 2017 में 145, 2018 में 83, 2019 में 39, 2020 में 46, 2021 में 31, 2022 में 71, 2023 में 68 और 2024 में अब तक 32 प्रोजेक्ट रेरा में रजिस्टर्ड हो चुके हैं. साल 2017 के 57 प्रोजेक्ट का समय खत्म हो चुका है. साल 2018 के 48 प्रोजेक्ट भी समय पर पूरे नहीं हुए. साल 2019 के 21 प्रोजेक्ट का समय भी खत्म हो गया है. साल 2020 के 9 प्रोजेक्ट का रजिस्ट्रेशन भी एक्सपायर हो गया है.

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उत्तराखंड में प्रोजेक्ट्स की हकीकत (ईटीवी भारत ग्राफिक्स)

बेहद जरूरी हैं ये दो सर्टिफिकेट: हाउसिंग सोसायटी को लेकर दो तरह के सर्टिफिकेट बेहद जरूरी होते हैं. जिसके लिए लोग जागरुक नहीं दिखाई देते. रियल एस्टेट से जुड़ी अथॉरिटी भी इसको लेकर शिथिल दिखाई देती है. इसमें पहले सर्टिफिकेट कंप्लीशन से जुड़ा है, यानी प्रोजेक्ट का काम पूरा होने और फ्लैट कंप्लीट होने से जुड़ा कंप्लीशन सर्टिफिकेट ग्राहक को लेना होता है. इसी तरह ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट भी इस मामले में बेहद जरूरी होता है. यह सर्टिफिकेट ग्राहक द्वारा फ्लैट पर कब्जे से जुड़ा होता है. अमूमन देखा जाता है कि ना तो इस पर अथॉरिटीज ध्यान देती हैं, ना ही लोगों को इसके बारे में कुछ ज्यादा जानकारी होती है.

रियल स्टेट जानकार नीरज कोहली कहते हैं ऐसे मामलों में अथॉरिटी की बड़ी जिम्मेदारी होती है. इसी तरह लोगों का भी जागरूक होना जरूरी है. रेरा द्वारा ऐसे मामलों में सख्ती की जानी चाहिए. जिससे लोगों को समय से उनका घर मिल सके. हालांकि, रेरा भी अपने स्तर पर जल्द से जल्द निर्णय देने और लोगों को न्याय दिलाने की बात कहता रहता है.

पढे़ं-कैबिनेट मंत्री प्रेम चंद अग्रवाल ने ली समीक्षा बैठक, स्टेट हाउसिंग बोर्ड पर लिया गया बड़ा फैसला

उत्तराखंड में विवादों के साये में हाउसिंग प्रोजेक्ट्स (Etv Bharat)

देहरादून: उत्तराखंड के कई शहरों को यहां की बेहतर कानून व्यवस्था और पर्यावरणीय खूबियों के कारण रहने के लिहाज से मुफीद माना जाता है. यही वजह है कि राज्य के मैदानी जिलों में रियल एस्टेट का कारोबार खूब फल फूल रहा है. पिछले 5 से 10 सालों के दौरान इस कारोबार में काफी तेजी आयी है. उत्तराखंड के अलावा बाकी राज्यों के लोग भी देहरादून और हल्द्वानी जैसे शहरों में बन रहे इन प्रोजेक्ट्स में अपना आशियाना ढूंढते नजर आए हैं. रियल स्टेट की एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि इसमें कई बार लोग धोखाधड़ी का शिकार हो जाते हैं. चिंता की बात यह है कि आम लोग सैकड़ों करोड़ के धंधे और रसूख वाले बिल्डर्स के सामने लाचार होते हैं. जिसके कारण वे अपनी गाढ़ी कमाई से हाथ धो बैठते हैं.

उत्तराखंड में रेरा की स्थिति: उत्तराखंड में बना रहे प्रोजेक्ट पर आंकड़ों के लिहाज से नजर दौड़ आए तो स्थितियां यहां भी कुछ बेहतर नजर नहीं आती हैं. प्रदेशभर में ऐसे प्रोजेक्ट्स पर नजर रखने वाली अथॉरिटी के पास शिकायतों को लेकर क्या स्थिति है आइये आपको बताते हैं. प्रदेश में उत्तराखंड रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) ऐसे प्रोजेक्ट पर नजर है. रेरा सचिव एसएल सेमवाल ने बताया विभिन्न प्रोजेक्ट को लेकर अभी तक 1199 शिकायतें मिली हैं. इन शिकायतों में 891 शिकायतों पर अंतिम निर्णय लिया जा चुका है. 308 शिकायतें ऐसी हैं जिनका अभी समाधान होना बाकी है. रेरा ऐसी शिकायतों पर रिकवरी का आदेश, आपसी समन्वय के तहत हल निकालने का विकल्प देता है.

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उत्तराखंड में रेरा की स्थिति (ईटीवी भारत ग्राफिक्स)

कविता भाटिया की आपबीती: देश मे रियल एस्टेट अथॉरिटी के रूप में रेरा सख्ती दिखाने की कोशिश तो कर रहा है लेकिन उसे इतनी शक्ति नहीं दी गयी है कि वो पूरी तरह से ग्राहकों को न्याय दिल पाए. इसलिए कई लोग सालों साल तक बिल्डर के चक्कर काटते रहते हैं. रेरा से अपने पक्ष में निर्णय आने के बावजूद भी उन्हें फैसले के अनुरूप रिकवरी नहीं मिल पाती. कविता भाटिया भी उन्हीं में से एक हैं, जिन्होंने एक बड़े बिल्डर के खिलाफ अपनी शिकायत रेरा में की थी. साल 2019 में उन्होंने अपनी शिकायत को रखा. इसके बाद 2022 में उनके पक्ष में फैसला भी आया. रेरा ने कविता भाटिया को 10.15 ब्याज के साथ पैसा लौटाने के लिए बिल्डर को कहा गया, लेकिन आज तक उन्हें पैसा नहीं मिला.

तीन शिकायतें अक्सर करती हैं परेशान: अपना खुद का घर पाने के लिए लोग पैसा लोन लेकर बिल्डर को देते हैं. सालों साल तक इसका ब्याज भी चुकाते हैं. इसके बाद भी उन्हें समय पर घर नहीं मिल पाता है. उल्टा वह बैंक के कर्जदार बन जाते हैं. लोगों द्वारा प्रोजेक्ट को लेकर मुख्य तौर पर तीन तरह की शिकायतें आती हैं. पहली बात तय समय पर प्रोजेक्ट पूरा न होना, दूसरा बिल्डर द्वारा घर में जिस क्वालिटी का वादा किया जाता है वह न होना, फ्लैट को बताए गए लेआउट के अनुसार ना बनाना, ये तीनों ही शिकायतें अक्सर लोगों को परेशान करती हैं.

उत्तराखंड में प्रोजेक्ट्स की हकीकत: उत्तराखंड में रेरा के पास किसी भी प्रोजेक्ट को बनाने से पहले बिल्डर को रजिस्ट्रेशन करवाना होता है. आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि प्रदेश में किस तरह तमाम प्रोजेक्ट समय पर पूरे नहीं हो पाए है. यहीं से ग्राहकों की समस्या शुरू हो जाती है. साल 2017 से 2024 तक कुल 515 प्रोजेक्ट्स रेरा में रजिस्टर्ड हुए. इनमें से केवल 118 प्रोजेक्ट ही अब तक पूरे हो पाये हैं. 138 प्रोजेक्ट ऐसे हैं जो तय समय सीमा पर भी पूरे नहीं हो पाये हैं. फिलहाल 245 रजिस्टर्ड प्रोजेक्ट राज्य में गतिमान हैं. बात अगर अब तक के प्रोजेक्ट्स की करें तो साल 2017 में 145, 2018 में 83, 2019 में 39, 2020 में 46, 2021 में 31, 2022 में 71, 2023 में 68 और 2024 में अब तक 32 प्रोजेक्ट रेरा में रजिस्टर्ड हो चुके हैं. साल 2017 के 57 प्रोजेक्ट का समय खत्म हो चुका है. साल 2018 के 48 प्रोजेक्ट भी समय पर पूरे नहीं हुए. साल 2019 के 21 प्रोजेक्ट का समय भी खत्म हो गया है. साल 2020 के 9 प्रोजेक्ट का रजिस्ट्रेशन भी एक्सपायर हो गया है.

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उत्तराखंड में प्रोजेक्ट्स की हकीकत (ईटीवी भारत ग्राफिक्स)

बेहद जरूरी हैं ये दो सर्टिफिकेट: हाउसिंग सोसायटी को लेकर दो तरह के सर्टिफिकेट बेहद जरूरी होते हैं. जिसके लिए लोग जागरुक नहीं दिखाई देते. रियल एस्टेट से जुड़ी अथॉरिटी भी इसको लेकर शिथिल दिखाई देती है. इसमें पहले सर्टिफिकेट कंप्लीशन से जुड़ा है, यानी प्रोजेक्ट का काम पूरा होने और फ्लैट कंप्लीट होने से जुड़ा कंप्लीशन सर्टिफिकेट ग्राहक को लेना होता है. इसी तरह ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट भी इस मामले में बेहद जरूरी होता है. यह सर्टिफिकेट ग्राहक द्वारा फ्लैट पर कब्जे से जुड़ा होता है. अमूमन देखा जाता है कि ना तो इस पर अथॉरिटीज ध्यान देती हैं, ना ही लोगों को इसके बारे में कुछ ज्यादा जानकारी होती है.

रियल स्टेट जानकार नीरज कोहली कहते हैं ऐसे मामलों में अथॉरिटी की बड़ी जिम्मेदारी होती है. इसी तरह लोगों का भी जागरूक होना जरूरी है. रेरा द्वारा ऐसे मामलों में सख्ती की जानी चाहिए. जिससे लोगों को समय से उनका घर मिल सके. हालांकि, रेरा भी अपने स्तर पर जल्द से जल्द निर्णय देने और लोगों को न्याय दिलाने की बात कहता रहता है.

पढे़ं-कैबिनेट मंत्री प्रेम चंद अग्रवाल ने ली समीक्षा बैठक, स्टेट हाउसिंग बोर्ड पर लिया गया बड़ा फैसला

Last Updated : Jul 12, 2024, 9:19 PM IST
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