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बिहार में शराबबंदी खत्म होगी? PK और मांझी के बयान को समझिए, सवाल- क्या दारू वोट बैंक का बना जरिया? - liquor prohibition in Bihar

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 10, 2024, 9:03 PM IST

बिहार में शराबबंदी कानून को लेकर विभिन्न दलों के बीच तीखी बहस होती रही है. लेकिन, हाल ही में प्रशांत किशोर की इस घोषणा ने सियासी गलियारों में नई हलचल पैदा कर दी कि अगर उनकी सरकार बनती है तो एक घंटे के अंदर शराबबंदी कानून को समाप्त कर दिया जाएगा. इस बयान के बाद राज्य के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों में बेचैनी बढ़ गई है, और शराबबंदी पर जारी बहस अब नए सिरे से तेज हो गई है. पढ़ें, विस्तार से.

शराबबंदी पर सियासत.
शराबबंदी पर सियासत. (ETV Bharat)
शराबबंदी कानून पर सियासत तेज. (ETV Bharat)

पटना: बिहार में अप्रैल 2016 में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू किया गया था. शराबबंदी को लागू करने के लिए बिहार में कड़े कानून बनाए गए थे. बाद में शराबबंदी कानून को लेकर कई संशोधन किए गए. शराबबंदी कानून में पीने वालों के लिए राहत भी दी गई और जुर्माने की राशि लेकर छोड़ने का प्रावधान किया गया. इस कानून को लेकर हमेशा राजनीतिक विवाद छिड़ा रहा. नीतीश की साथ रहनेवाली पार्टी को छोड़कर अन्य पार्टियों इसके ठीक से लागू नहीं होने की बात करते रहते हैं.

शराबबंदी कानून खत्म करने पर जोर : यदि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों की बात करें तो नीतीश सरकार द्वारा शराबबंदी लागू किए जाने के बाद से लगभग 1 करोड़ बिहारियों ने शराब पीना छोड़ दिया है. इसका असर भी दिखाई पड़ रहा है. एक रिसर्च (एशियाई विकास अनुसंधान संस्थान) के मुताबिक शराबबंदी के बाद से दूध जैसी चीजों पर घरेलू खर्च बढ़ गया है. बावजूद इसके बिहार के कई राजनीतिक पार्टियां अपनी रोटी सेंकने में लगी है. उनका कहना है कि 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में अगर उनकी पार्टी सरकार में आती है तो बिहार से शराबबंदी कानून खत्म कर देंगे. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि राजनीतिक दलों के लिए बिहार में शराबबंदी सिर्फ एक वोट बैंक है?

महिलाओं को पसंद है यह कानूनः शराबबंदी कानून से महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा में 37% की कमी दर्ज की गई है. राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के मामले 12% बढ़े हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराध दर में 45% की कमी दर्ज की गई है, राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के खिलाफ अपराध दर में 3% की वृद्धि हुई है. शराबबंदी कानून के पक्ष में महिलाएं आवाज बुलंद करती रही हैं और इसका फायदा भी नीतीश कुमार को मिलता रहा है.

ETV GFX
ETV GFX (ETV Bharat)

पीके की घोषणा से सियासत तेजः कोई भी पार्टी इसे समाप्त करने की बात नहीं कही. तमाम तरह की कमियां निकालती रही है. विपक्ष में रहनेवाली पार्टियों ने यहां तक आरोप लगाये हैं कि इस कानून के तहत सिर्फ गरीब और दलित समुदाय के लोग पकड़े जा रहे हैं. शराब माफिया को पुलिस छोड़ देती है. इस कानून के आने के बाद समानांतर अर्थव्यवस्था शुरू होने के भी आरोप लगते रहे हैं, लेकिन किसी भी दल ने इसे समाप्त करने की वकालत नहीं की. अब प्रशांत किशोर ने यह घोषणा कर सभी को बैकफुट पर धकेल दिया.

क्या कहते हैं राजनीति के जानकारः राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर संजय कुमार का मानना है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में शराबबंदी बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है. राजनीतिक दल इसे अपने-अपने तरीके से भुनाने में जुटे हैं. शराबबंदी कानून को लेकर राजनीतिक दलों का कई बार दोहरा स्टैंड देखने को मिला है. राजनीतिक दल जब नीतीश कुमार के साथ होते हैं तो वह शराबबंदी की खूबियों को बताते हैं लेकिन जैसे ही विपक्ष में आ जाते हैं तो उन्हें खामियां नजर आने लगती है.

"शराब कौन पीता है. युवा वर्ग इसका सेवन करते हैं. शराबबंदी कानून समाप्त करने की बात करके प्रशांत किशोर बिहार के युवाओं पर डोर डाल रहे हैं तो नीतीश कुमार को महिलाओं से समर्थन की उम्मीद है. नीतीश का मानना है कि महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार नहीं होना पड़ रहा है."- डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

जीतन राम मांझी का अपना स्टैंडः शराबबंदी कानून को लेकर हम पार्टी के संरक्षक जीतन राम मांझी का एक अपना अलग स्टैंड रहा है. वो अगर सत्ता पक्ष यानी कि नीतीश कुमार के साथ में भी रहते थे तो शराबबंदी की समीक्षा करने की वकालत करते रहते थे. उन्होंने कई मौके पर इस पर अपने सुझाव दिया. साथ ही नीतीश कुमार से मिलकर इस कानून को समाप्त करवाने की भी बात कही थी. उनका कहना है कि शराबबंदी कानून के तहत ज्यादातर गरीब जेल के अंदर बंद हैं. जो सामर्थ्यवान हैं वह छूट जाते हैं.

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"हमारे नेता जीतन राम मांझी का स्टैंड क्लीयर है. हम लोग शराबबंदी कानून के रिव्यू की बात करते रहे हैं और आज भी उसे पर कायम हैं. शराबबंदी कानून का रिव्यू होना चाहिए क्योंकि कानून के तहत ज्यादातर गरीब लोग जेल जा रहे हैं."- विजय यादव, मुख्य प्रदेश प्रवक्ता, हम

भाजपा और राजद के बीच नूराकुश्तीः भाजपा जब नीतीश कुमार के साथ रहती है तो शराबबंदी की खूबियों पर जोर देती है. पार्टी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा है कि हम लोग शराबबंदी के पक्ष में हैं और इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए. कुछ सामाजिक तत्व हैं जो अवैध कारोबार कर रहे हैं उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो रही है. राष्ट्रीय जनता दल ने शराबबंदी को लेकर नीतीश सरकार को घेरा है. पार्टी प्रवक्ता शक्ति यादव ने कहा है कि शराबबंदी बिहार में पूरी तरह फेल है.

सरकार बड़ी रकम खर्च कर रहीः मद्य निषेध विभाग शराबबंदी को सफल बनाने के लिए लगातार काम कर रही है. इस पर सरकार करोड़ों का खर्च कर रही है. सिपाही के पद पर हजारों की संख्या में भर्ती की गई है. ड्रोन खरीदने में खर्च किए गए तो इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में भी करोड़ों रुपए सरकार ने खर्च किए हैं. शराब पीने के नुकसान होते हैं और इसे लेकर जागरूकता अभियान चलाया गया, इस पर भी बड़ी राशि सरकार खर्च कर रही है.

सामानांतर अर्थव्यवस्था कायमः शराबबंदी कानून आने के बाद यह कहा जा रहा है कि राज्य में एक समानांतर अर्थव्यवस्था कायम हो गई है. शराब माफिया का सिंडिकेट कायम हो चुका है. गांव-गांव तक इसके सदस्य हैं और होम डिलीवरी हो रही है. विपक्ष की ओर से आरोप लगाया जाता है कि पुलिस प्रशासन के मिली भगत से शराब का अवैध कारोबार फल फूल रहा है. बड़ी संख्या में लोग इस धंधे से जुड़े हुए हैं.

न्यायालय पर बढ़ा दबावः शराबबंदी कानून के वजह से न्यायालय पर दबाव बड़ा है न्यायालय में केस का अंबार लग गया है. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि शराबबंदी कानून ने कोर्ट का दम घुट कर रख दिया है पटना हाई कोर्ट में 14 से 15 जज हर रोज शराब मामले में बेल की सुनवाई कर रहे हैं, इसका असर यह पढ़ रहा है कि बाकी मामलों की सुनवाई नहीं हो पा रही है शराबबंदी कानून का साइड इफेक्ट यह भी देखने को मिल रहा है कि लोग दूसरी नशे के आदी हो रहे हैं जैसे गांजा चरस ड्रग्स की लत लोगों में लग रही है इसके डिमांड भी बढ़े हैं.

शराब पीकर हुड़दंगः सड़क दुर्घटना को भी शराब से कई बार जोड़कर देखा जाता है. आमतौर पर लोग शराब पीकर गाड़ी चलाते हैं और दुर्घटना का शिकार होते हैं. आंकड़ों की अगर बात करें तो 2016 में सड़क दुर्घटना में 10571 लोगों की मौत हुई थी. 2017 में आंकड़ा बढ़कर 11797 हो गया. 2018 में 12717 हो गया, 2019 में 15211, 2020 में 14474, 2021 में 8974 लोगों की मौत सड़क दुर्घटना में हुई थी.

क्या है शराबबंदी कानूनः बिहार में 2016 में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू की गयी थी. इसके तहत बिहार में शराब की खरीद बिक्री और शराब पीना दोनों पर गैरकानूनी घोषित कर दिया गया. यहां तक कि दूसरे राज्य से शराब पीकर आना पर भी गिरफ्तार कर लिया जाता है. इस कानून का उद्देश्य नशे के कारण होने वाली सामाजिक बुराइयों को रोकना था. शुरुआती वर्षों में इसके कुछ सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले. घरेलू हिंसा और सड़क दुर्घटनाओं में कमी आई, और महिलाओं के जीवन में सुधार हुआ.

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शराबबंदी कानून खत्म करने पर जोर : यदि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों की बात करें तो नीतीश सरकार द्वारा शराबबंदी लागू किए जाने के बाद से लगभग 1 करोड़ बिहारियों ने शराब पीना छोड़ दिया है. इसका असर भी दिखाई पड़ रहा है. एक रिसर्च (एशियाई विकास अनुसंधान संस्थान) के मुताबिक शराबबंदी के बाद से दूध जैसी चीजों पर घरेलू खर्च बढ़ गया है. बावजूद इसके बिहार के कई राजनीतिक पार्टियां अपनी रोटी सेंकने में लगी है. उनका कहना है कि 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में अगर उनकी पार्टी सरकार में आती है तो बिहार से शराबबंदी कानून खत्म कर देंगे. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि राजनीतिक दलों के लिए बिहार में शराबबंदी सिर्फ एक वोट बैंक है?

महिलाओं को पसंद है यह कानूनः शराबबंदी कानून से महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा में 37% की कमी दर्ज की गई है. राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के मामले 12% बढ़े हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराध दर में 45% की कमी दर्ज की गई है, राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के खिलाफ अपराध दर में 3% की वृद्धि हुई है. शराबबंदी कानून के पक्ष में महिलाएं आवाज बुलंद करती रही हैं और इसका फायदा भी नीतीश कुमार को मिलता रहा है.

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क्या कहते हैं राजनीति के जानकारः राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर संजय कुमार का मानना है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में शराबबंदी बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है. राजनीतिक दल इसे अपने-अपने तरीके से भुनाने में जुटे हैं. शराबबंदी कानून को लेकर राजनीतिक दलों का कई बार दोहरा स्टैंड देखने को मिला है. राजनीतिक दल जब नीतीश कुमार के साथ होते हैं तो वह शराबबंदी की खूबियों को बताते हैं लेकिन जैसे ही विपक्ष में आ जाते हैं तो उन्हें खामियां नजर आने लगती है.

"शराब कौन पीता है. युवा वर्ग इसका सेवन करते हैं. शराबबंदी कानून समाप्त करने की बात करके प्रशांत किशोर बिहार के युवाओं पर डोर डाल रहे हैं तो नीतीश कुमार को महिलाओं से समर्थन की उम्मीद है. नीतीश का मानना है कि महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार नहीं होना पड़ रहा है."- डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

जीतन राम मांझी का अपना स्टैंडः शराबबंदी कानून को लेकर हम पार्टी के संरक्षक जीतन राम मांझी का एक अपना अलग स्टैंड रहा है. वो अगर सत्ता पक्ष यानी कि नीतीश कुमार के साथ में भी रहते थे तो शराबबंदी की समीक्षा करने की वकालत करते रहते थे. उन्होंने कई मौके पर इस पर अपने सुझाव दिया. साथ ही नीतीश कुमार से मिलकर इस कानून को समाप्त करवाने की भी बात कही थी. उनका कहना है कि शराबबंदी कानून के तहत ज्यादातर गरीब जेल के अंदर बंद हैं. जो सामर्थ्यवान हैं वह छूट जाते हैं.

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भाजपा और राजद के बीच नूराकुश्तीः भाजपा जब नीतीश कुमार के साथ रहती है तो शराबबंदी की खूबियों पर जोर देती है. पार्टी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा है कि हम लोग शराबबंदी के पक्ष में हैं और इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए. कुछ सामाजिक तत्व हैं जो अवैध कारोबार कर रहे हैं उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो रही है. राष्ट्रीय जनता दल ने शराबबंदी को लेकर नीतीश सरकार को घेरा है. पार्टी प्रवक्ता शक्ति यादव ने कहा है कि शराबबंदी बिहार में पूरी तरह फेल है.

सरकार बड़ी रकम खर्च कर रहीः मद्य निषेध विभाग शराबबंदी को सफल बनाने के लिए लगातार काम कर रही है. इस पर सरकार करोड़ों का खर्च कर रही है. सिपाही के पद पर हजारों की संख्या में भर्ती की गई है. ड्रोन खरीदने में खर्च किए गए तो इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में भी करोड़ों रुपए सरकार ने खर्च किए हैं. शराब पीने के नुकसान होते हैं और इसे लेकर जागरूकता अभियान चलाया गया, इस पर भी बड़ी राशि सरकार खर्च कर रही है.

सामानांतर अर्थव्यवस्था कायमः शराबबंदी कानून आने के बाद यह कहा जा रहा है कि राज्य में एक समानांतर अर्थव्यवस्था कायम हो गई है. शराब माफिया का सिंडिकेट कायम हो चुका है. गांव-गांव तक इसके सदस्य हैं और होम डिलीवरी हो रही है. विपक्ष की ओर से आरोप लगाया जाता है कि पुलिस प्रशासन के मिली भगत से शराब का अवैध कारोबार फल फूल रहा है. बड़ी संख्या में लोग इस धंधे से जुड़े हुए हैं.

न्यायालय पर बढ़ा दबावः शराबबंदी कानून के वजह से न्यायालय पर दबाव बड़ा है न्यायालय में केस का अंबार लग गया है. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि शराबबंदी कानून ने कोर्ट का दम घुट कर रख दिया है पटना हाई कोर्ट में 14 से 15 जज हर रोज शराब मामले में बेल की सुनवाई कर रहे हैं, इसका असर यह पढ़ रहा है कि बाकी मामलों की सुनवाई नहीं हो पा रही है शराबबंदी कानून का साइड इफेक्ट यह भी देखने को मिल रहा है कि लोग दूसरी नशे के आदी हो रहे हैं जैसे गांजा चरस ड्रग्स की लत लोगों में लग रही है इसके डिमांड भी बढ़े हैं.

शराब पीकर हुड़दंगः सड़क दुर्घटना को भी शराब से कई बार जोड़कर देखा जाता है. आमतौर पर लोग शराब पीकर गाड़ी चलाते हैं और दुर्घटना का शिकार होते हैं. आंकड़ों की अगर बात करें तो 2016 में सड़क दुर्घटना में 10571 लोगों की मौत हुई थी. 2017 में आंकड़ा बढ़कर 11797 हो गया. 2018 में 12717 हो गया, 2019 में 15211, 2020 में 14474, 2021 में 8974 लोगों की मौत सड़क दुर्घटना में हुई थी.

क्या है शराबबंदी कानूनः बिहार में 2016 में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू की गयी थी. इसके तहत बिहार में शराब की खरीद बिक्री और शराब पीना दोनों पर गैरकानूनी घोषित कर दिया गया. यहां तक कि दूसरे राज्य से शराब पीकर आना पर भी गिरफ्तार कर लिया जाता है. इस कानून का उद्देश्य नशे के कारण होने वाली सामाजिक बुराइयों को रोकना था. शुरुआती वर्षों में इसके कुछ सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले. घरेलू हिंसा और सड़क दुर्घटनाओं में कमी आई, और महिलाओं के जीवन में सुधार हुआ.

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