जोधपुर. पीपल का वृक्ष भारत में पवित्र माना जाता रहा है. इसकी पूजा भी होती है. वैज्ञानिक रूप से भी पीपल का वृक्ष बहुत उपयोगी माना गया है, क्योंकि ये सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देता है. अब पीपल से जुड़ा एक और तथ्य सामने आया है, जो बताता है कि यह वृक्ष वर्तमान समय में और कितना ज्यादा उपयोगी साबित हो रहा है. एक शोध में समाने आया है कि पीपल के पेड़ की पत्तियां हवा में मौजूद नैनो मेटल पार्टिकल को रोकने में भी सक्षम हैं, यानी की हवा को साफ करने में सहायक हैं. ऐसे में जहां पीपल के पेड़ ज्यादा होंगे उन क्षेत्र में हवा में मौजूद कैडमियम, लेड, निकल, कॉपर, आयरन, कार्बन, सिलिकॉन जैसी धातुओं की मात्रा कम होगी. इससे सांस लेने के लिए हवा काफी साफ मिलेगी.
यह शोध पोलैंड की लाइफ साइंसेज यूनिवर्सिटी ऑफ वारसॉ और जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय ने किया है. इस शोध का प्रकाशन वायु प्रदूषण पर विश्व की सबसे बड़ी विज्ञान पत्रिका एनवायरमेंटल साइंस एंड पॉल्यूशन रिसर्च (ESPR) में हुआ है. ईएसपीआर में प्रकाशन के बाद भारत की विज्ञान पत्रिका करंट साइंस ने इसे प्रॉब्लम सॉल्विंग रिसर्च के तौर पर भी प्रकाशित किया है. यूरोपियन यूनियन के इस प्रोजेक्ट के लिए व्यास विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. ज्ञान सिंह शेखावत और वारसा विश्वविद्यालय के वनस्पतिज्ञ डॉ. रॉबर्ट पोपेक ने शोध के लिए जोधपुर का चयन किया.
पढे़ं. विश्व पृथ्वी दिवस आज, जयपुर की शान बन रहे हैं ईको-टूरिज्म वाले यह पार्क - world earth day
10 पेड़ों की पत्तियों के नमूने लिए गए : जोधपुर में सर्वाधिक वायु प्रदूषण रहता है और इसका प्रमुख कारण पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) यानी हवा में मौजूद छोटे कण हैं, जिसमें धूल कण, इंडस्ट्री और वाहनों के धुएं से निकलने वाली भारी धातुएं, जल वाष्प शामिल हैं. जोधपुर के सर्वाधिक प्रदूषित, मध्यम प्रदूषित, कम प्रदूषित और हरियाली वाले 35 इलाकों से 10 पेड़ों की पत्तियों के नमूने लिए गए. इनमें पीपल, आम, नीम, जाल, शीशम, अशोक, खेजड़ी, बेर, बोगनवेलिया और गिलोय की पत्तियां शमिल थीं. प्रो. शेखावत ने बताया कि अभी भी प्रोजेक्ट चल रहा है. अब मेटल के अलावा अन्य पर काम चल रहा है.
यह है कारण जिसकी वजह से पीपल है कारगर : सभी पेड़ों की पत्तियों की सतह पर प्राकृतिक मोम विकसित होता है. इसकी वजह से हवा में तैर रहे भारी धातु कणों को चिपका लेती है. पीपल पत्ती पर सर्वाधिक मोम होता है, जिसके कारण धातु कण प्रभावी तरीके से चिपक जाते हैं और बारिश के मौसम में पानी के साथ बहकर जमीन पर आ जाते हैं. वहीं, अन्य कई पेड़ों की पत्तियों पर मोम कम होने से धातु के कण फिर से उड़ जाते हैं. प्रो. ज्ञानसिंह शेखावत का कहना है कि पीपल जो यह मोम विकसित करता है वह काफी ज्यादा प्रभावी होता है. इसकी वजह से पत्तियों पर चिपके कण बंधे रहते हैं. शोध में जोधपुर में पीपल के वृक्ष की पत्तियों पर कैडमियम और लेड सर्वाधिक मिला है. पीपल में हेमेआक्सीजेनज-1 नाम एंजाइम होता है जिसकी वजह से घातक मेटल के नैनो कण पत्तियों पर लंबे समय तक चिपके रहने के बावजूद पेड़ सुरक्षित रहता है.
पढे़ं. अजमेर में एक ऐसी दरगाह, जहां कड़वा नीम भी लगता है मीठा, 850 वर्ष पुराना है पेड़ - Gaiban Shah Dargah
इसलिए नैनो पार्टिकुलेट है घातक : प्रो. शेखावत बताते हैं कि तकनीक आजकल नैनो पर जा रही है. ऐसे में एयर पॉल्यूशन में नैनो पार्टिकल का खतरा बढ़ रहा है. धातुओं के इतने महीन कण हवा में तैरते हैं, जिनका फिल्टर करना संभव नहीं है. यह कण हवा के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर रहे हैं, जिसका नुकसान हमें उठाना पड़ रहा है. यह क्रम लगातार बढ़ेगा. प्रदूषण को नियंत्रित करने की कोई विशेष तकनीक भी नहीं है, जो बनी वो सब कारगर साबित नहीं हुई. ऐसे में जो प्राकृतिक स्त्रोत हमारे लिए कारगर हो सकते हैं, इसको लेकर यह प्रोजेक्ट चल रहा है.