रांचीः झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले सभी पार्टियां जिताऊ उम्मीदवारों के नामों पर मंथन करने में जुटी हुई हैं. रायशुमारी का दौर चल रहा है. बहुत से सीटिंग विधायक टिकट को लेकर असमंजस में हैं. दल बदलने का दौर जारी है. इससे इतर झामुमो, भाजपा, कांग्रेस, आजसू जैसे दलों में कुछ नेता ऐसे हैं, जिनका चुनाव लड़ता तय है. हालांकि कुछ के सीटों को लेकर सस्पेंस बना हुआ है.
झामुमो से किन नेताओं का चुनाव लड़ना है तय!
इस लिस्ट में पहला नाम हेमंत सोरेन का है. इनके नेतृत्व में ही इंडिया गठबंधन चुनाव लड़ने जा रही है. हेमंत सोरेन अपनी परंपरागत सीट बरहेट से चुनाव लड़ेंगे. इस सीट से जीत की हैट्रिक लगाने के लिए हेमंत सोरेन उतरेंगे. 2014 में उन्होंने झामुमो से भाजपा में गये हेमलाल मुर्मू को बड़े अंतर से हराया था. हेमंत सोरेन को 46.18 प्रतिशत वोट मिले थे. 2019 में हेमंत सोरेन ने भाजपा के सिमोन माल्टो को पटखनी दी थी. उनको 53.49 प्रतिशत वोट मिले थे. राज्य बनने के बाद से अबतक हुए चारों चुनावों में यहां से झामुमो के प्रत्याशी जीतते आ रहे हैं.
दूसरा नाम झामुमो नेत्री सह मुख्यमंत्री की पत्नी कल्पना सोरेन का है. उनका गांडेय से झामुमो प्रत्याशी बनना तय है. झामुमो के सरफराज अहमद ने उनके लिए यह सीट छोड़ दी थी. सीएम के बाद झामुमो की ओर से सबसे ज्यादा सक्रियता कल्पना सोरेन की दिख रही है. उन्होंने 2024 में हुए उपचुनाव में जीत के साथ राजनीतिक पारी की शुरुआत की है.
इसके बाद हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन का दुमका से चुनाव लड़ना तय है. उन्होंने भी हेमंत सोरेन द्वारा सीट खाली किए जाने के बाद उपचुनाव में जीत दर्ज की थी. इसके अलावा हेमंत कैबिनेट में मंत्री और चाईबासा से लगातार तीन चुनाव जीतने वाले दीपक बिरुआ का नाम आता है. 2009 और 2019 का चुनाव जीतने वाले रामदास सोरेन को घाटशिला में ताल ठोकना तय है. वजह है कि भाजपा में जा चुके चंपाई सोरेन के खेल को वो अच्छी तरह जानते हैं.
इनके बाद गढ़वा के विधायक और मंत्री मिथिलेश ठाकुर का चुनाव लड़ना तय है. 2009 और 2014 का चुनाव झामुमो की टिकट पर हारने के बाद 2019 में उन्होंने जीत हासिल की थी. नतीजतन, गैर ट्राइबल बेल्ट में सफलता के लिए उन्हें कैबिनेट में जगह भी मिली. मंत्री बेबी देवी के लिए डुमरी सीट पर चुनाव लड़ना फिक्स है. उनके स्वर्गीय पति जगरनाथ महतो की डुमरी में अमिट छाप है. उन्हें पति के निधन के बाद उपचुनाव में जीत मिली थी.
मधुपुर सीट पर झामुमो को पहचान दिलाने वाले दिगंत हाजी हुसैन के कोरोना काल में निधन के बाद उपचुनाव जीतकर मंत्री बने उनके पुत्र हफीजुल हसन इस सीट से झामुमो के दावेदार हैं. इसके बाद नाम आता है मंत्री बैद्यनाथ राम का. लातेहार सीट पर 2009 में भाजपा के विधायक रहे बैद्यनाथ राम अब झामुमो के हो गये हैं. 2019 में उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को बड़े अंतर से हराया था.
भाजपा और आजसू के नेता जो लड़ेंगे चुनाव
भाजपा की लिस्ट में पहला नाम बाबूलाल मरांडी का है. वह गिरिडीह के धनवार से विधायक हैं. लेकिन सीट को लेकर संशय है. भाजपा के भीतरखाने में अबतक चले मंथन के मुताबिक पार्टी अपने सभी बड़े एसटी नेताओं को रिजर्व सीट पर उतारना चाह रही है. इसलिए बाबूलाल मरांडी की सीट बदल सकती है. जेवीएम के सुप्रीमो रहते बाबूलाल मरांडी धनवार में 2014 का चुनाव भाकपा माले से हार गये थे. उन्होंने 2019 में भाजपा के लक्ष्मण प्रसाद सिंह को हराया था. इस बार सीट को लेकर तस्वीर साफ नहीं हो रही है.
इसके अलावा नेता प्रतिपक्ष बने अमर बाउरी का चंदनकियारी और हुसैनाबाद से कमलेश सिंह का अपनी परंपरागत सीट पर भाजपा प्रत्याशी बनना तय है. असम के सीएम हिमंता भी स्पष्ट कर चुके हैं कि दोनों सीटों पर आजसू से तालमेल बन चुका है.
इस बार भाजपा कोटे से चंपाई सोरेन का नाम सबसे आगे हैं. झामुमो के इस कद्दावर नेता के सीएम की कुर्सी छोड़ते ही भाजपा में आने के बाद से सरायकेला सीट पर इनकी दावेदारी पक्की है. वैसे चंपाई के जरिए भाजपा पूरे कोल्हान को साधना चाह रही है क्योंकि यह वो क्षेत्र है जहां भाजपा को पिछले चुनाव में मुंह की खानी पड़ी थी. राज्य बनने के बाद से अबतक हुए सभी चुनावों में चंपाई सोरेन इस सीट से लगातार जीतते रहे हैं. वैसे उनको 2019 का चुनाव छोड़कर हर चुनाव में भाजपा से जबरदस्त टक्कर मिलती रही है. अब वे भाजपा में आ गये हैं.
भाजपा को कोल्हान में चंपाई से काफी उम्मीदें हैं. भाजपा मानकर चल रही है कि चंपाई के आने से झामुमो को काउंटर करने में मदद मिली है. चंपाई सोरेन आदिवासी अस्मिता के एजेंडे को आगे बढ़ाने पर फोकस करते दिख रहे हैं. भाजपा में उनके महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों टीएमएच में भर्ती होने के दौरान पीएम मोदी ने खुद फोन करके उनका हालचाल पूछा था.
एनडीए के घटक दल में शामिल आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो का सिल्ली, लंबोदर महतो का गोमिया और सुनीता चौधरी का रामगढ़ से चुनाव लड़ना फिक्स है. सिर्फ जदयू के सरयू राय को लेकर तस्वीर साफ नहीं हो पा रही है. पूर्व सीएम रघुवर दास के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा रोड़े डाल रहा है. हालांकि यह मसला सीधे तौर पर नीतीश कुमार और पीएम मोदी के स्तर पर सुलझना है. लेकिन भाजपा पर अपने कद्दावर नेता रघुवर दास के सम्मान को बचाए रखने का दबाव है.
कांग्रेस के नेता जिनपर किसी तरह का नहीं है डाउट
इस लिस्ट में पहला नाम मंत्री बन्ना गुप्ता का है. जमशेदपुर पश्चिम सीट से वर्तमान विधायक बन्ना गुप्ता की दावेदारी पक्की है. इस सीट पर बन्ना गुप्ता और सरयू राय के बीच कांटे की टक्कर होती रही है. 2005 में भाजपा की टिकट पर जब सरयू राय जीते तब सपा का प्रत्याशी रहते हुए बन्ना गुप्ता ने अच्छी चुनौती दी थी. 2009 में कांग्रेस प्रत्याशी बनकर सरयू राय से हार का बदला ले लिया था. लेकिन 2014 में फिर सरयू राय ने पटखनी देकर मुकाबले को बराबरी पर ला दिया था. 2019 में तो तस्वीर ही बदल गई थी. सरयू राय के रघुवर दास के खिलाफ चुनाव लड़ने की वजह से बन्ना गुप्ता ने भाजपा के देवेंद्र नाथ सिंह को बड़े अंतर से हराकर अपना लोहा मनवाया था.
जामताड़ा के विधायक और हेमंत कैबिनेट में मंत्री इरफान अंसारी कांफिडेंस के साथ चुनावी तैयारी में जुटे हुए हैं. वह जामताड़ा से पिछले दो बार से लगातार कांग्रेस के विधायक हैं. आलमगीर आलम के ईडी कार्रवाई में जेल जाने के बाद कांग्रेस के पास अल्पसंख्यक चेहरा के तौर पर इरफान अंसारी ही बचे हैं. इसलिए उनको मंत्री भी बनाया गया. इस सीट पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में रहते हैं. हालांकि 2005 में यहां से भाजपा और 2009 में झाममो के प्रत्याशी रहे विष्णु प्रसाद भैया जीते थे. लेकिन गठबंधन की वजह से कांग्रेस को मुस्लिम और आदिवासी वोट का समर्थन जीत की राह आसान कर देता है.
महगामा की कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह का भी चुनाव लड़ना तय है. इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच टक्कर होती रही है. राज्य बनने के बाद हुआ चार चुनावों में दो बार भाजपा और दो बार कांग्रेस की जीत हुई है. पहली बार महगामा से चुनाव लड़कर दीपिका पांडेय सिंह ने भाजपा के मजबूत नेता अशोक कुमार को हराया था. उनपर कांग्रेस आलाकमान का भी आशीर्वाद रहा है. कई राज्यों में पार्टी कई जिम्मेदारी दे चुकी है. बादल पत्रलेख को मंत्री पद से हटाने के बाद दीपिका पांडेय को कांग्रेस ने जगह दी. इस लिस्ट में मांडर की विधायक शिल्पी नेहा तिर्की भी हैं. उन्होंने अपने पिता बंधु तिर्की के राजनीतिक जमीन को बखूबी संभाला है.
इसके अलावा रही बात कांग्रेस के मजबूत नेता डॉ. रामेश्वर उरांव की तो उनकी नजर अपनी परंपरागत सीट लोहरदगा पर है. लेकिन भीतरखाने में चर्चा है कि रामेश्वर उरांव इस बार अपने पुत्र को प्रोजेक्ट करना चाह रहे हैं.
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