रांचीः कोयल शंख जोन, ये वो जोन है जहां कई दशकों तक भाकपा माओवादियों ने लाल आतंक के बल पर न सिर्फ राज किया बल्कि लाल आतंक इसी जोन से हुई उगाही से जमकर फला-फुला भी. लेकिन अब परिस्थितियों बिल्कुल बदल गई हैं.
झारखंड पुलिस के प्रहार से कोयल शंख जोन में भाकपा माओवादी बेहद कमजोर हो गए हैं. पांच लाख के इनामी रंथू की इसी हफ्ते हुई गिरफ्तारी ने शंख जोन की रही सही ताकत भी खत्म कर दी है.
मजबूत माना जाता कोयल शंख जोन
झारखंड का सबसे खतरनाक नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के सबसे मजबूत गढ़ में से एक कोयल शंख जोन तबाह हो चुका है. ऑपरेशन डबल बुल से शुरू हुई शंख जोन के पतन की कहानी पांच लाख के इनामी रंथू उरांव के गिरफ्तारी के बाद लगभग अब खत्म ही हो चली है. शंख जोन में अब एक मात्र चुनौती 15 लाख का इनामी रविन्द्र गंझू ही बचा है, जो अपनी जान बचाकर भागा-भागा फिर रहा है.
कोयल शंख जोन में रंथू एक बड़ी चुनौती के रूप में बचा हुआ था लेकिन अब वो भी अपने चार साथियों, भारी मात्रा में असलहों और गोला बारूद के साथ पकड़ा गया. डीआईजी रांची अनूप बिरथरे की अगुवाई में गुमला पुलिस ने बीते मंगलवार को रंथू को गिरफ्तार कर शंख जोन का दहशत न के बराबर कर दिया.
कैसी है शंख जोन की सरंचना
भाकपा माओवादियों के कोयल शंख जोन में झारखंड का दक्षिणी पलामू (बूढ़ा पहाड़ सहित), लातेहार, गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा और खूंटी शामिल है. ये वैसे क्षेत्र हैं जहां से भाकपा माओवाद जमकर फला-फुला. इस इलाके में एक करोड़ के इनामी नक्सली नेता अरविंद जी, प्रशांत बोस और सुधाकरण ने अपने प्रयास से शंख जोन में बूढ़ा पहाड़ और बुल बुल जंगल को नक्सलियों का अभेद किला बना दिया.
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1993 से लेकर 2015 तक दक्षिणी पलामू, लातेहार, गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा और खूंटी में लगभग नक्सलियों की हुकूमत सी चलती थी. नक्सलियों का तांडव ऐसा था कि इन जिलों में जिले के एसपी के भी हत्या कर दी गई थी. कोयल शंख जोन को छत्तीसगढ़ के माओवादियों से भी मजबूती मिलती थी. छत्तीसगढ़ से आकर टेक विश्वनाथ जैसे नक्सली कमांडर झारखंड में बेहद प्रभावित हुए. शंख जोन से नक्सलियों को करोड़ों रुपये केवल बीड़ी पत्ता के कारोबार से ही हासिल हो जाता था.
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नक्सली संगठनों का खासकर भाकपा माओवादियों का अपनी गतिविधियों का संचालन के लिए एक प्रशासनिक ढांचा होता है. इस ढांचे में सबसे ऊपर पोलित ब्यूरो होता है उसके बाद केंद्रीय कमेटी और रीजनल कमेटी होती है. रीजनल कमेटी अलग-अलग भागों में कार्य करती है. जिसमें स्टेट कमेटी, डिवीजनल कमेटी और एरिया कमेटी होती है. इसके बाद और नीचे अलग-अलग कमेटी कार्य करती है.
पोलित ब्यूरो के द्वारा ही कोयल शंख जोन का गठन किया गया था. कोयल शंख जोन को छत्तीसगढ़ से भी जोड़ा गया था ताकि रेड कॉरिडोर को सेफ किया जा सके. छत्तीसगढ़ से जुड़े रेड कॉरिडोर की वजह से ही बूढ़ा पहाड़ पर नक्सलियों ने वर्षों तक अपना कब्जा जमाए रखा था. बूढ़ा पहाड़ भी नक्सलियों के चंगुल से आजाद हो चुका है.
कोयल शंख जोन की राजधानी थी बूढ़ा पहाड़
झारखंड समेत बिहार, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में माओवादियों के मुख्यालय के तौर पर बूढ़ा पहाड़ का इस्तेमाल पिछले तीन दशक से हो रहा था. बूढ़ा पहाड़ को कोयल शंख जोन की राजधानी तक कहा जाता था. 1990 से ही घोर नक्सल प्रभाव वाला इलाका रहा बूढ़ा पहाड़ झारखंड, बिहार और छत्तीसगढ़ के माओवादियों के लिए बड़ा आश्रय स्थल था. लेकिन पिछले पांच सालों में बेहतरीन रणनीति के बल पर झारखंड पुलिस ने 32 साल से माओवादी गतिविधियों के केंद्र रहे कोयल शंख जोन को नक्सल मुक्त करा लिया है. कोयल शंख जोन को नक्सल मुक्त बनाने में पुलिस और सीआरपीएफ के ज्वाइंट ऑपरेशन ऑक्टोपस और डबल बुल का सबसे बड़ा योगदान है.
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बुद्धेश्वर के मारे जाने के बाद कमजोर शंख जोन
झारखंड में लातेहार, लोहरदगा, गुमला में कोयल शंख जोन के जरिए बड़े पैमाने पर लेवी की वसूली होती थी. सरकारी ठेकों, बीड़ी पत्ता कारोबारियों से लेवी वसूली कर भारी रकम बूढ़ा पहाड़ के नक्सलियों तक पहुंचायी जाती थी. माओवादियों को पैसे झारखंड के इलाके से मिलते थे, जबकि छत्तीसगढ़ के रास्ते वहां रहने वाले माओवादियों तक रसद पहुंचायी जाती थी. लेवी वसूलकर माओवादी शीर्ष तक पहुंचाने का काम रीजनल कमांडर बुद्धेश्वर उरांव का था.
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लेकिन सुरक्षा बलों ने बुद्धेश्वर को 15 जुलाई 2021 को गुमला के कुरूमगढ़ में मार गिराया था. इसके बाद लेवी वसूली की जिम्मेदारी रविंद्र गंझू को मिली. फरवरी 2022 में पुलिस ने रविंद्र गंझू के दस्ते के खिलाफ ऑपरेशन डबल बुल शुरू किया था, तब रविंद्र दस्ते के एक दर्जन से अधिक माओवादी पकड़े गए, भारी पैमाने पर हथियार भी बरामद किए गए. इसके बाद से ही कोयल शंख तक पहुंचने वाली लेवी पूरी तरह बंद हो गई.
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90 के दशक से 100 की संख्या में हथियारबंद दस्ता होता था
1990 में माओवादी संगठन के उभार के बाद कोयल शंख जोन पर हमेशा ही पोलित ब्यूरो या सेंट्रल कमेटी मेंबर कैंप करते थे. खासकर बूढ़ा पहाड़ पर बड़े माओवादियों के साथ 100 की संख्या में हथियारबंद दस्ता होता था. कोयल शंख जोन अरविंद उर्फ देवकुमार सिंह, सुधाकरण, मिथलेश महतो, विवेक आर्या, प्रमोद मिश्रा और विमल यादव जैसे शीर्ष माओवादियों का कार्यक्षेत्र रहा. साल 2019 में देवकुमार की मौत के बाद सुधाकरण को जिम्मेदारी मिली, लेकिन सुधाकरण के तेलंगाना में सरेंडर के बाद संगठन में ही लीडरशिप को लेकर फूट पड़ गई.
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सुरक्षा बलों ने मिला माओवादियों की आपसी कलह का फायदा
सुरक्षा बलों ने यहां माओवादियों के आपसी कलह का फायदा उठाया. बिरसाई समेत कई माओवादी या तो सरेंडर किए या गिरफ्तार हुए. साल 2021 में माओवादियों ने मिथलेश को यहां भेजा, लेकिन बाद में माओवादियों के बीच आपसी कलह के कारण मिथलेश बूढ़ा पहाड़ से निकलकर बिहार चला गया, जहां वह गिरफ्तार हो गया. इसके बाद बूढ़ा पहाड़ पर सैक कमांडर मारकुस बाबा उर्फ सौरभ, सर्वजीत यादव, नवीन यादव अपने दस्ते के साथ कैंप कर रहे थे. लेकिन पुलिस अभियान से घबराकर कुछ ने सरेंडर कर दिया कुछ शंख जोन से फरार हो गए.
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बेहतरीन रणनीति के बल पर की गई कार्रवाई
कोयल शंख जोन को नक्सल मुक्त कराने की जिम्मेदारी तत्कालीन डीजीपी नीरज सिन्हा ने खुद उठायी थी. उनके साथ आईजी अभियान अमोल वी होमकर, तत्कालीन डीआईजी जगुआर अनूप बिरथरे (वर्तमान में रांची डीआईजी) स्पेशल ब्रांच और एसआईबी के अफसरों की भूमिका अहम रही.
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अब रविंद्र गंझू की तलाश
कोयल शंख जोन से नक्सलियों की सफाये की रणनीति में तत्कलीन एसटीएफ डीआईजी और वर्तमान में रांची डीआईजी के पद पर तैनात आईपीएस अनुप बिरथरे का विशेष योगदान रहा है. मंगलवार को नक्सली रंथू उरांव की गिरफ्तारी भी गुमला से कर ली गई जो एक तरह से शंख जोन का अंतिम बड़ा नक्सली था. डीआईजी अनूप बिरथरे ने बताया की कोयल शंख जोन में नक्सली बहुत कमजोर हो चुके हैं. यह सब पांच साल की मेहनत का परिणाम है. अब इस इलाके में 15 लाख का रविन्द्र गंझू ही बचा हुआ है. जिसकी सरगर्मी से तलाश की जा रही है.
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