कुल्लू: पहाड़ों पर होने वाली धार्मिक यात्राएं अपनी मुश्किलों के लिए भी जानी जाती है. कुदरत की गोद में भगवान के धामों तक हर साल लाखों लोग जाते हैं फिर चाहे अमरनाथ की यात्रा हो या माता वैष्णो देवी की, कैलाश मानसरोवर की यात्रा हो या केदारनाथ, बद्रीनाथ समेत अन्य धामों की. यहां पहुंचकर कुदरत के नजारे मन मोह लेते हैं जो पूरी यात्रा की थकान को मिटा देते हैं. लेकिन आज हम आपको ऐसी धार्मिक यात्रा के बारे में बताते हैं जो सबसे कठिन है. इस यात्रा पर जाने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत ज्यादा फिटनेस की जरूरत होती है. ये यात्रा हिमाचल प्रदेश के मशहूर शिवधाम श्रीखंड महादेव की है. जिसका आयोजन हर साल होता है और हर साल सैकड़ों लोग इस यात्रा पर जाते हैं. लेकिन आखिर क्यों है ये सबसे कठिन धार्मिक यात्रा, इसके बारे में आपको विस्तार से बताते हैं. ताकि अगर आप इस यात्रा पर जानें की सोच रहे हैं तो उससे पहले पूरी सावधानी और तैयारी कर लें.
पंच कैलाश में से एक है ये शिवधाम
पंच कैलाशों को भगवान भोलेनाथ का निवास स्थान माना जाता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, हर कैलाश पर्वत की भगवान शिव से जुड़ी अलग-अलग पौराणिक कथाएं हैं. ये पंच कैलाश तिब्बत में कैलाश मानसरोवर, उत्तराखंड में आदि कैलाश, हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में मणिमहेश, हिमाचल के किन्नौर जिले में किन्नर कैलाश और हिमाचल के कुल्लू जिले में श्रीखंड महादेव स्थित हैं. पंच कैलाशों में से अकेले हिमाचल प्रदेश में तीन कैलाश पर्वत आते हैं. वैसे तो हर कैलाश पर्वत की यात्रा बहुत मुश्किल है लेकिन इन सब कैलाश पर्वतों में सबसे कठिन यात्रा कुल्लू जिले में पड़ने वाले श्रीखंड महादेव यात्रा को माना जाता है. इस यात्रा को सबसे कठिन धार्मिक यात्रा कहना गलत नहीं होगा. श्रीखंड महादेव की पैदल यात्रा 35 किलोमीटर है. इस सफर में दुर्गम रास्ते, पहाड़ी पगडंडिया और ग्लेशियर आते हैं. इस यात्रा में आना-जाना 70 किलोमीटर पड़ जाता है. ये यात्रा क्यों सबसे मुश्किल होती है, इसके बारे में आपको बताते हैं.
शुरू हो गई है श्रीखंड महादेव की यात्रा
साल 2024 में श्रीखंड महादेव की यात्रा आधिकारिक तौर पर 14 जुलाई से शुरू हो गई है. यह यात्रा 27 जुलाई तक चलेगी. इस यात्रा के लिए श्रद्धालुओं को 250 रुपये पंजीकरण शुल्क के रूप में चुकाने होंगे. पंजीकरण करवाने वाले श्रद्धालुओं को रजिस्ट्रेशन के बाद यात्रा के लिए स्वास्थ्य की जांच भी करवानी होगी. श्रद्धालुओं को स्वास्थ्य जांच के बाद ही यात्रा पर जाने दिया जाता है. वहीं, इस यात्रा पर 18 से 60 साल के आयु वर्ग के लोग ही जा सकते हैंं. ऑफलाइन के साथ-साथ shrikhandyatra.hp.gov.in पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन भी करवाया जा सकता है. वेबसाइट पर यात्रा के दौरान अपनाई जाने वाली सावधानियां और नियम भी लिखे हैं, जिनका पालन यात्रियों को करना होता है.
यहां से शुरू होती है पैदल यात्रा
श्रीखंड महादेव की यात्रा के लिए सबसे पहले सड़क मार्ग से हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के निरमंड नामक स्थान तक पहुंचना होता है. जहां से बस या टैक्सी लेकर जाओं नामक गांव पहुंचना होगा. इसी गांव से श्रीखंड महादेव तक की 35 किलोमीटर की यात्रा शुरू होती है. जाओं गांव से पैदल चलने के बाद सिंहगाड़ नामक स्थान आता है. सिंहगाड़ में प्रशासन ने यात्रा के लिए पंजीकरण बूथ बनाया है. जहां रजिस्ट्रेशन के साथ ही स्वास्थ्य विभाग की एक टीम श्रद्धालुओं का मेडिकल चेकअप भी करती है. सब जांच सही पाए जाने पर ही व्यक्ति को आगे जाने की परमिशन मिलती है.
यात्रा के दौरान इन बातों का रखें ध्याान
श्रीखंड महादेव की पैदल यात्रा के लिए शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से स्ट्रॉन्ग होना जरूरी है. यात्रा के दौरान गर्म कपड़े, जूते, छाता, रेनकोट आदि अपने साथ रखें. इस यात्रा को पूरा करने के लिए करीब 3 दिन का समय लगता है और उसके बाद यात्री वापस बेस कैंप पहुंचते हैं. जगह-जगह रेस्क्यू टीम और पुलिस जवान श्रद्धालुओं की मदद करने के लिए भी तैनात रहते हैं.
5,227 मीटर पर स्थित हैं ऊंची शिला
भगवान भोलेनाथ को समर्पित श्रीखंड महादेव शिला समुद्रतल से 5,227 मीटर (करीब 18,750 फीट) पर है. इस शिला के दर्शन करने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु यह यात्रा करते हैं. इस शिला तक पहुंचने के लिए लंबे ग्लेशियर और बड़े-बड़े पत्थरों से होकर गुजरना पड़ता है. जब यात्रा अंतिम दौर पर पहुंचती है तब यह यात्रा बहुत ही कठिन हो जाती है. वहीं, कुछ श्रद्धालु दूर से ही शिला के दर्शन कर वापस लौट जाते हैं. श्रीखंड महादेव यात्रा में चार बेस कैंप हैं. ये बेस कैंप थाचड़ू, कुंशा, भीम डवारी, पार्वती बाग में हैं. यहां पर श्रद्धालुओं को आराम करने, खाने-पीने और मेडिकल की सुविधा मिलती है. इसके अलावा हर बेस कैंप पर पुलिस जवान लोगों की सुविधा के लिए ड्यूटी पर मौजूद रहते हैं. प्रशासन की ओर से यह सुविधा केवल आधिकारिक यात्रा के दौरान ही मिलती है.
40 से अधिक लोगों की हो चुकी है मौत
इस यात्रा में जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती है वैसे-वैसे श्रद्धालुओं को ऑक्सीजन की कमी का सामना करना पड़ता है. ऑक्सीजन की कमी के कारण कई बार श्रद्धालुओं की चढ़ाई चढ़ते हुए जान भी गई है. हालांकि इस दुर्गम रास्ते में प्राकृतिक सुंदरता मंत्रमुग्ध करने वाली है. श्रीखंड महादेव की यात्रा सबसे कठिन यात्राओं में से एक है. यही कारण है कि शारीरिक और मानसिक रूप से फिट लोगों को ही इसकी इजाजत दी जाती है. कुल्लू प्रशासन से मिली जानकारी के मुताबिक साल 2010 से अब तक करीब 40 से अधिक लोगों की यात्रा के दौरान मौत हो चुकी है. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति शुगर, बीपी, सांस लेने जैसी किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त है तो वह इस यात्रा पर बिल्कुल भी ना जाए.
हालांकि किसी भी तरह की एमरजेंसी जैसे हालात से निपटने के लिए डॉक्टरों से लेकर रेस्क्यू टीम मौजूद होती है लेकिन कई बार हालात खराब हो जाते हैं. श्रीखंड महादेव की यात्रा के लिए रूट तय होता है लेकिन कई बार कुछ लोग प्रशासन के आदेश के बावजूद गलत रास्तों से यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं और रास्ता भटकने पर अपनी जान जोखिम में डालते हैं. प्रशासन की नजर ऐसे लोगों पर भी रहती है जो बिना पंजीकरण या फिर कोई अन्य रूट लेकर इस यात्रा पर जाते हैं.
आखिर श्रीखंड महादेव यात्रा क्यों है इतनी कठिन?
हिमाचल प्रदेश में सुंदरनगर के रहने वाले तरुण गोयल जो पेशे से लेखक और पर्वतारोही हैं बताते हैं कि श्रीखंड महादेव यात्रा में अलग-अलग पड़ाव हैं. तरुण गोयल कहते हैं कि इस यात्रा में जहां खड़ी चढ़ाइयां हैं. वहीं, बड़े-बड़े बर्फ के ग्लेशियर हैं. लगातार उतराई-चढ़ाई आती रहती है. फिर जब आप एक बार श्रीखंड महादेव पर शिला के दर्शन कर लेते हैं तो वहां से वापस लौटना भी कठिन है. वापस लौटते वक्त भी उतराई-चढ़ाई का ट्रेक मिलता है. सावन के मौसम में यात्रा होती है तो बारिश के कारण फिसलन भी बढ़ जाती है. इस यात्रा से लौटते वक्त भी चढ़ाई और उतराई का ट्रैक मिलता है. इस यात्रा पर दुर्गम रास्तों पर आना-जाना करीब 70 किलोमीटर हो जाता है इसलिए इसे सबसे कठिन धार्मिक यात्रा माना जाता है. इस यात्रा में घोड़े-खच्चरों और पालकी की सुविधा नहीं मिलती. इसके अलावा इस यात्रा पर हेलिकॉप्टर की सुविधा भी नहीं मिलती है. सारी यात्रा पैदल ही करनी पड़ती है. यही कारण है कि इस यात्रा को सबसे कठिन धार्मिक यात्रा माना जाता है. बता दें कि तरुण गोयल ने साल 2017 में एक ही सीजन में हिमाचल प्रदेश में पड़ने वाले तीन कैलाशों श्रीखंड महादेव, मणिमहेश और किन्नर कैलाश की यात्रा की थी. वहीं, वह हिमाचल और जम्मू कश्मीर में की गई पहाड़ों की यात्राओं पर एक किताब भी लिख चुके हैं जिसका नाम "सबसे ऊंचा पहाड़" है.
जबकि अमरनाथ या वैष्णो देवी की यात्रा में सिर्फ जाते वक्त ही चढ़ाई होती है वापसी के वक्त उतराई सफर को आसान बना देती है. वहीं इन यात्राओं में हेलीकॉप्टर से लेकर घोड़े, खच्चर से भी यात्रा पूरी कर सकते हैं. लेकिन श्रीखंड महादेव की दुर्गम यात्रा में ये सुविधाएं नहीं है.
श्रीखंड महादेव से जुड़ी पौराणिक मान्यता
निरमंड गांव के रहने वाले पंडित चमन शर्मा का कहना है कि श्रीखंड महादेव यात्रा कई सालों से चली आ रही है. धार्मिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव से वरदान मिलने के बाद असुर भस्मासुर भगवान को भी भस्म करना चाहता था तब भगवान शिव यहीं पर आकर छिपे थे. बताया जाता है कि असुर भस्मासुर ने भगवान शिव से वरदान मांगा था कि वह अगर अपना हाथ किसी के सिर पर रखे तो वह भस्म हो जाए. इसके बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर भस्मासुर को उसके हाथों से ही भस्म करवा दिया था. भस्मासुर के अंत के बाद भगवान शिव गुफा से निकले थे. मान्यता है कि महादेव यहां एक शिला के रूप में मौजूद हैं और भस्मासुर का आतंक देख मां पार्वती की आंखों में आंसू आ गए थे जिस कारण यहां एक सरोवर बन गया जिसे आज पार्वती बाग के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस सरोवर की एक धार यहां से 25 किलोमीटर दूर निरमंड के देव ढांक तक गिरती है.
महाभारत काल से जुड़ी है एक और मान्यता
श्रीखंड महादेव की एक कहानी महाभारत काल से भी जुड़ी हुई है. आनी के रहने वाले हरी राम शर्मा और जीवन शर्मा का कहना है कि पांडव अपने वनवास के दौरान यहां पहुंचे थे और उन्होंने अपना कुछ वक्त यहां बिताया था. यहां बड़ी-बड़ी शिलाओं को काटकर रखा गया है और कुछ गुफाएं भी मौजूद हैं. उनके अनुसार यह काम पांडु पुत्र भीम ने किया था जिसके निशान आज भी यहां मिलते हैं. यही वजह है कि यहां एक स्थान भीम डवार कहलाता है. इसके अलावा यहां एक राक्षस रहता था जो यहां आने वाले भक्तों को मार देता था. भीम ने ही उस राक्षस का वध किया था और उसी राक्षस के खून के कारण यहां की जमीन लाल हो गई.
प्रशासन ने कर ली है पूर्ण तैयारी
कुल्लू पुलिस ने साल 2024 की श्रीखंड महादेव के लिए तैयारियां पूर्ण कर ली हैं. यह यात्रा 14 जुलाई से शुरू हो रही है. ऐसे में ट्रैक बनकर तैयार है और जगह-जगह अस्थायी टॉयलेट्स बनाए गए हैं. एसपी कुल्लू ने जानकारी देते हुए कहा "इस बार थाचड़ू, कुंशा, भीम डवारी, पार्वती बाग में बेस कैंप बनाए गए हैं जहां श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए टेंट लगाए गए हैं. श्रद्धालु अपने साथ लाए टेंट का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. इस यात्रा पर श्रद्धालुओं को जत्थों में रवाना किया जाता है ताकि उनके रहने और खाने-पीने से लेकर अन्य व्यवस्थाएं आसानी से की जा सकें."
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