नई दिल्ली: आज इमरजेंसी की 50वीं बरसी है. आज ही के दिन 25 जून 1975 को तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी. दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी की संसद सदस्यता के चुनाव को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया गया था. इस पर इंदिरा गांधी बौखला गई और उन्होंने आनन फानन में 25 जून की रात को देश में आपातकाल लगा दिया. यह आपातकाल 21 मार्च 1977 तक 19 महीने तक लागू रहा. आपातकाल के 49 साल बीत चुके हैं. कहा जा रहा था कि चुनाव रद्द होने के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और जबरन आपातकाल लगाकर करीब 2 साल तक सत्ता में बनी रहीं.
आपातकाल लगते ही विपक्ष के एक-एक नेता को चुन चुन कर पकड़ कर जेल में बंद किया जाने लगा. ऐसे में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़े युवाओं को भी पकड़ा गया. बताया जाता है कि उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने मंत्रिमंडल और राष्ट्रपति के बिना सलाह के अचानक आधी रात को आपातकाल की घोषणा कर दी. आपातकाल के समय 19 महीने जेल में बिताने वाले डॉक्टर वेद व्यास महाजन ने बताया कि आपातकाल लगने के बाद बहुत तेजी से संघ और भाजपा के अलावा विपक्ष के अन्य नेताओं को पकड़कर जेल भेज दिया गया. करीब एक लाख 40 हजार लोगों को पड़कर जेलों में बंद किया गया था.
इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया का नारा
उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द होने के बाद कांग्रेसियों ने कहा कि हम कोर्ट के आदेश को नहीं मानते. दिल्ली में जगह-जगह कांग्रेस के नेताओं ने टेंट लगा कर इंदिरा गांधी के समर्थन में कार्यक्रम किए और नारा दिया इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया. इस तरह से कांग्रेसियों ने इंदिरा गांधी के हौंसले को बढ़ाया. उस समय के बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने दिल्ली आकर इंदिरा गांधी को सुझाव दिया कि आप आपातकाल लगा दो. इंदिरा गांधी ने होम सेक्रेटरी से आपातकाल फाइल पर साइन करने के लिए कहा, लेकिन उसने साइन करने से मना कर दिया तो राजस्थान के मुख्य सचिव को बुलाकर गृह सचिव बनाया गया और उनसे इमरजेंसी के आदेश पर साइन कराए गए और 25 जून को रात 12:00 बजे से पहले सभी अधिकारियों से साइन कराके इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने की घोषणा कर दी.
लोगों में आपातकाल का खौफ
वेद व्यास महाजन ने कहा कि हम लोगों ने सीधे रेडियो पर सुना उस समय टीवी नहीं होते थे. रेडियो पर संदेश आया कि यह आकाशवाणी है. अब आप प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का देश के नाम संदेश सुनें. इंदिरा गांधी ने घोषणा की कि देश में आंतरिक विद्रोह की स्थिति को देखते हुए राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा कर दी है. इसके बाद लोगों पर अत्याचार शुरू हो गया. मैं अंडर ग्राउंड था. मेरे पास पैसे नहीं थे तो मैं चुपके-चुपके अपनी पत्नी के पास गया. पत्नी राजघाट पावर हाउस के पास स्कूल में टीचर थी. मैंने वहां किसी को बोला शकुंतला महाजन को बुला दीजिए. पत्नी मुझे देखते ही बोली अरे आप यहां तक आ गए. मुझे मरवाओगे क्या. मैंने कहा मुझे कुछ पैसे चाहिए. उन्होंने दूर से ही 200 रुपये देते हुए मुझे वहां से जाने के लिए कहा. इस तरह डर और खौफ लोगों में था. अगर कोई उस समय आपातकाल का विरोध कर रहे लोगों के संपर्क में भी आ जाता था तो पुलिस उसे भी उठा लेती थी. बहुत मारपीट की जाती थी. वह सब सरकार से माफी मांगने के लिए कहते थे. हमारा कहना था कि हमने कुछ किया ही नहीं है तो माफी किस बात की मांगे.
पिता-पुत्र को जेल में डाला गया
वहीं, आपातकाल के समय पिता और पुत्र दोनों को ही जेल में डाला गया था. उस समय को याद करते हुए सुरेश बिंदल ने बताया कि रात के समय दमे के मरीज मेरे पिताजी को घर से उठा लिया गया. मैं पहले से ही अंडरग्राउंड था. मैं कभी चोरी से घर पर लैंडलाइन से फोन करता था. एक दिन मेरा फोन रिकॉर्ड कर लिया गया और लाहौरी गेट चौक पर हम तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. मेरे साथ उस समय के जन संघ के जिला अध्यक्ष और जिला कार्यवाह भी थे. हमको पड़कर तिहाड़ जेल के वार्ड नंबर 2 में रखा गया. बगल के ही एक नंबर वार्ड में राज नारायण बंद थे. उनका केस खत्म हो गया तो हमें एक नंबर वार्ड में रख दिया गया. उसके बाद डीआईआर और फिर मीसा लगा दिया गया.
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उन्होंने बताया कि इस दौरान परिवार को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा. उस समय नई-नई शादी हुई थी. मेरी उम्र करीब 21 साल थी. मेरी पत्नी परेशान रहती थी. वह नींद की आठ-आठ गोलियां खाकर सोती थी. जेपी आंदोलन के चलते मुझ पर उस समय 48 मुकदमे दर्ज किए गए और दिसंबर 1976 में जेल से बाहर आ सका. रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया था. परिवार को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा.
वहीं, महेश्वर ने बताया कि आपातकाल लगने के अगले ही दिन पकड़ शुरू हो गई थी. मैं उस समय संघ की एक शाखा का मुख्य शिक्षक था. उस समय मीडिया पर पूरी तरह बना लगा दिया गया था संघ की एक पत्रिका जनवरी निकलती थी हम लोग सुबह 3:00 बजे उसे पत्रिका को जगह-जगह वितरण करने का काम करते थे पुलिस को इस बात की जानकारी मिली तो उन्होंने हमें पकड़ने के लिए अभियान तेज कर दिया उसे पत्रिका को 3:00 बजे वितरण करते हुए हमें पकड़ लिया गया और ले जाकर तिहाड़ की जेल नंबर साथ में बंद कर दिया.
बर्फ की सिल्लियों पर लिटाकर दी गई यातनाएं
सीलमपुर गांव के नरेश शर्मा ने बताया कि आपातकाल के समय मेरी उम्र करीब 14 साल थी. मैं नौवीं कक्षा में पढ़ता था. हमारा स्कूल हिंदू शिक्षा समिति द्वारा संचालित थे तो उन स्कूलों को बंद कर दिया गया था, जिसके खिलाफ हमने सत्याग्रह करके विरोध किया था. फिर गिरफ्तार करके हमें शाहदरा की बच्चा जेल में रखा गया. बर्फ की सिल्लियों पर लिटाया गया. हमारे सामने ही दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के महामंत्री हेमंत बिश्नोई को नाक से नमक का पानी चढ़ाया गया. भयंकर यातनाएं दी गई. हम लोगों से माफी मांगने के लिए कहा गया. हमने कहा किससे माफी मांगें जब हमने कुछ गलत किया ही नहीं. उस समय जोश था. हमने माफी नहीं मांगी. सारी यातनाओं को झेला. नौवीं कक्षा के पेपर भी मैंने जेल से दिए.
जेल में अत्याचार किया गया
उन्होंने बाताया कि मेरे ऊपर देवी इंदिरा रूल (डीआईआर) लगाया गया. पहली बार 8 महीने के लिए और बाद में 23 दिन के लिए मैं जेल में रहा. उस समय संघ की एक शाखा का कार्यवाह था. मुझे 8 महीने के बाद जमानत मिल गई थी. फिरोजशाह कोटला में बच्चों की जेल थी. इसके बाद दोबारा जब जेल गया तो मजिस्ट्रेट ने छह महीने की सजा सुनाई थी. लेकिन 23 दिन बाद ही आपातकाल हटा लिया गया और सरकार ने सारे केस वापस ले लिए. मयूर विहार में रहने वाले राधेश्याम ने बताया कि उस समय हम दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ते थे छात्र आंदोलन का हिस्सा था. जो भुगतान करके जेल भेजा गया. जेल में बहुत अत्याचार किया जाता था. मारपीट की जाती थी. नाखूनों के ऊपर मोम गिराया जाता था.
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