आगरा : पीएम मोदी के ट्वीट के बाद देश की राजनीति में कच्चातिवु द्वीप का मामला गरमाया हुआ है. भाजपा इसे चुनावी मुद्दा बना रही है. कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा पीएम पहले भी उठा चुके हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव के चलते यह फिलहाल हॉट टॉपिक बना हुआ है. हालांकि यह बहुत कम लोगों को ही पता होगा कि कच्चातिवु द्वीप का आगरा से भी कनेक्शन है. जी हां, यह द्वीप श्रीलंका को सौंंपे जाने के ठीक बाद आगरा के ही ब्रज खंडेलवाल ने यह मामला उठाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. आइए जानते हैं, कच्चातिवु की आगरा से कनेक्शन की दिलचस्प कहानी.
1974 में श्रीलंका को सौंपा गया था तमिलनाडु का कच्चातिवु द्वीप
देश की पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने 25 नवंबर 1974 को तमिलनाडु के कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को कुछ शर्तों के साथ सौंप दिया था. मगर करीब 200 एकड़ के कच्चातिवु द्वीप से आगरा का कनेक्शन बेहद खास है. कच्चातिवु का जिन्न 50 साल बाद एक बार फिर बोतल से बाहर निकला है. दरअसल पूर्व पीएम इंदिरा गांधी द्वारा श्रीलंका को यह द्वीप सौंप जाने के ठीक बाद आगरा के वरिष्ठ पत्रकार ब्रज खंडेलवाल ने ये मुद्दा उठाया था. उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. जिस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस देकर जवाब मांगा था. ब्रज खंडेलवाल ने ईटीवी भारत को बताया कि, पूर्व पीएम ने पता नहीं किस आधार पर ये कदम उठाया था. मगर, ये गलत था. असंवैधानिक और गैरकानूनी था. ये देश की एकता अखंडता को कमजोर करने वाला फैसला था. अवैध और असंवैधानिक तरीके से देश के एक अभिन्न अंग कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को दिया गया.
दिल्ली हाईकोर्ट में दायर याचिका में क्या कहा था
वरिष्ठ पत्रकार ब्रज खंडेलवाल बताते हैं, तब पत्रकारिता की शुरूआत थी. तभी जब यह मामला सामने आया तो हाईकोर्ट में याचिका दायर की. 1973 और 1974 में ये चर्चा जोरों पर थी कि भारत सरकार अपनी दरियादिली दिखाने और श्रीलंका से अच्छे संबंध बनाने के लिए रामेश्वर के पास कच्चातिवु द्वीप उसे दे रही है. 25 नवंबर 1974 को यह द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया था. याचिका में तब मैंने कहा था कि कच्चातिवु द्वीप भारत का हिस्सा है, इसे श्रीलंका को नहीं दिया जाए. इस पर सरकार विचार करे. दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने याचिका की सुनवाई में मुझसे पूछा कि उनकी याचिका पर विचार क्यों किया जाए? इस पर मैंने अदालत में अपना पक्ष रखा था. मैंने कहा था कि मैं धर्मनिरपेक्ष हूं. संविधान में मुझे पूजा का अधिकार है. जिस कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को दिया गया है, वहां पर पुराना चर्च है. मैं वहां पर जाना चाहता हूं. उनके मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है. इस पर अदालत की और से उनकी याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस देकर जवाब मांगा था.
कुछ तारीख के बाद याचिका हुई थी खारिज
ब्रज खंडेलवाल बताते हैं कि इस मामले में हाईकोर्ट में कुछ तारीखें भी पड़ी थीं. कई बिंदुओं पर बहस हुई थी. 1975 में देश में आंतरिक इमरजेंसी भी लगी थी. इसी आधार पर सन 1975 में दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी.
ब्रजलाल ने ये जताई थी ये आशंका
ब्रज खंडेलवाल बताते हैं, कच्चातिवु द्वीप का सामरिक महत्व है. अपनी याचिका में ये भी मैंने आशंका जताई थी कि इस द्वीप का दुश्मन देश दुरुपयोग कर सकता है. क्योंकि, उस समय अमेरिका से हमारे संबंध अच्छे नहीं थे. इसलिए, देश की सुरक्षा को लेकर भी बडा सवाल था. हालांकि, इमरजेंसी के कारण यह खारिज हो गई थी. अब सरकार को इसके लिए प्रयास करने चाहिए. ये पूरी प्रक्रिया गैरकानूनी और असंवैधानिक रही थी. हम किसी को अपने देश की एक इंच भूमि नहीं देश सकते हैं. ये देश की एकता और अखंडता का सवाल है. मेरा मानना है कि ये कच्चातिवु द्वीप भारत में वापस आना भी चाहिए.
अभी श्रीलंका से अच्छे संबंध, सरकार करे पहल
ब्रज खंडेलवाल कहते हैं कि अभी श्रीलंका में हालात अच्छे नहीं हैं. जब श्रीलंका में अच्छे हालात थे तो हमारे उससे अच्छे संबंध नहीं थे. इसका खामियाजा भी देश को उठाना पडा था. अभी श्रीलंका की भारत खूब मदद कर रहा है. श्रीलंका पर दबाव भी है. पीएम मोदी के इस मामले उठाने से 50 साल बाद कच्चातिवु द्वीप का जिन्न बाहर तो निकल आया है, अब देखना है कि, सरकार इस बारे में क्या कदम उठाएगी. मेरे ख्याल से सरकार को इसे भारत में शामिल करना चाहिए. इसलिए वार्ता करके कच्चातिवु द्वीप को भारत मेंं शामिल किया जा सकता है.