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पब्लिक टॉयलेट में लिखा महिला का मोबाइल नंबर, कोर्ट ने कहा-ये कृत्य माफी लायक नहीं - HC refuses to grant relief

Karnataka HC refuses to grant relief : पब्लिक टॉयलेट में महिला के मोबाइल नंबर के साथ 'कॉल गर्ल' लिखने वाले के खिलाफ केस रद्द करने से हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा कृत्य किसी महिला के लिए दर्दनाक अनुभव है. आरोपी को माफी नहीं दी जा सकती. जानिए क्या है पूरा मामला.

Karnataka HC
कर्नाटक हाईकोर्ट (ETV Bharat File Photo)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jun 16, 2024, 3:47 PM IST

बेंगलुरु: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना कि पब्लिक टॉयलेट में महिला का मोबाइल नंबर 'कॉल गर्ल' के रूप में लिखने से न केवल महिला की गरिमा गिरी, बल्कि मानसिक यातना भी हुई. कोर्ट ने इस प्रकार के आरोपी के खिलाफ मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया.

चित्रदुर्ग के रहने वाले अल्ला बक्शा पाटिल ने एक आवेदन दायर किया था. उसने बेंगलुरु में उप्पारापेट पुलिस द्वारा दर्ज मामले को रद्द करने और इसकी जांच करने की मांग की थी. मामले की सुनवाई करने वाली जस्टिस एम नागाप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने की. बेंच ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप पत्र को रद्द करने से इनकार कर दिया.

तल्ख टिप्पणी की : बेंच ने कहा 'किसी महिला की निजता को उजागर करने से उसे व्यक्तिगत रूप से गंभीर मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है. इससे एक महिला की आत्मा को भी ठेस पहुंचती है. इससे शारीरिक क्षति से ज्यादा पीड़ा होता है. किसी महिला के खिलाफ ऐसे कृत्यों में शामिल होने से एक दर्दनाक अनुभव होता है.'

बेंच ने कहा कि 'याचिकाकर्ता द्वारा किया गया कृत्य एक महिला के बारे में अशोभनीय बातें लिखकर और जनता को फोन करके अश्लील बातें करने के लिए उकसाकर उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाता है. वर्तमान युग डिजिटल युग है. आजकल सोशल मीडिया पर अपमानजनक बयान, चित्र या वीडियो प्रसारित करके एक महिला की गरिमा से समझौता किया जा रहा है, इसलिए ऐसे मामलों में यदि आरोपी केस को रद्द करने की मांग करते हुए अदालत के समक्ष आता है, तो अदालत को हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है.'

'ये निजता के अधिकार का अतिक्रमण' : बेंच ने कहा कि 'महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा सबसे अमानवीय कृत्य है. लेकिन मौजूदा मामले में महिला की निजता के अधिकार का अतिक्रमण किया गया है. इस तरह का कृत्य उचित नहीं है. इन मामलों पर सख्ती से निपटा जाना चाहिए. याचिकाकर्ता के आचरण से महिला को सार्वजनिक रूप से अपमानित होना पड़ा. इस तरह के आरोप से बचा नहीं जा सकता.' इसके अलावा पीठ ने आदेश में कहा कि जांचकर्ता किसी अन्य महिला से पूछताछ करने के लिए स्वतंत्र हैं जिसने पीड़िता के मोबाइल नंबर आरोपी को दिए थे.

ये है मामला : चित्रदुर्ग जिले की एक सरकारी कर्मचारी महिला के मोबाइल नंबर पर अप्रत्याशित समय पर गुमनाम लोगों से कॉल आने लगीं. उसे धमकी दी गईं. इन कॉल्स की जांच करने पर पता चला कि 'बेंगलुरु के मैजेस्टिक बस स्टैंड पर जेंट्स टॉयलेट की दीवारों पर लिखा था, 'कॉल गर्ल (बेलेवेनु), से संपर्क किया जा सकता है.'

इस संबंध में महिला ने चित्रदुर्ग के सीईएन पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई. उसने साथ काम करने वाली एक महिला कर्मचारी पर संदेह जताया. चित्रदुर्ग पुलिस ने केस बेंगलुरु के उप्पारापेट पुलिस स्टेशन में ट्रांसफर कर दिया.

जांच में ये खुलासा : जहां शिकायतकर्ता काम कर रही थी, पुलिस ने उसकी जूनियर असिस्टेंट से पूछताछ की. उसने कहा 'शिकायतकर्ता महिला मुझे परेशान कर रही थी. इसलिए मैंने सबक सिखाने के लिए अपने दोस्त (याचिकाकर्ता) को उसका मोबाइल नंबर दे दिया. मैंने उसे वरिष्ठ अधिकारियों के माध्यम से चेतावनी देने के लिए कहा, लेकिन उसने टॉयलेट की दीवारों पर उसका मोबाइल नंबर लिख दिया.'

पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ जांच कर रही थी. उसने ट्रायल कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया. याचिकाकर्ता अल्ला बक्शा पाटिल ने इस पर सवाल उठाते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

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चित्रदुर्ग के रहने वाले अल्ला बक्शा पाटिल ने एक आवेदन दायर किया था. उसने बेंगलुरु में उप्पारापेट पुलिस द्वारा दर्ज मामले को रद्द करने और इसकी जांच करने की मांग की थी. मामले की सुनवाई करने वाली जस्टिस एम नागाप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने की. बेंच ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप पत्र को रद्द करने से इनकार कर दिया.

तल्ख टिप्पणी की : बेंच ने कहा 'किसी महिला की निजता को उजागर करने से उसे व्यक्तिगत रूप से गंभीर मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है. इससे एक महिला की आत्मा को भी ठेस पहुंचती है. इससे शारीरिक क्षति से ज्यादा पीड़ा होता है. किसी महिला के खिलाफ ऐसे कृत्यों में शामिल होने से एक दर्दनाक अनुभव होता है.'

बेंच ने कहा कि 'याचिकाकर्ता द्वारा किया गया कृत्य एक महिला के बारे में अशोभनीय बातें लिखकर और जनता को फोन करके अश्लील बातें करने के लिए उकसाकर उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाता है. वर्तमान युग डिजिटल युग है. आजकल सोशल मीडिया पर अपमानजनक बयान, चित्र या वीडियो प्रसारित करके एक महिला की गरिमा से समझौता किया जा रहा है, इसलिए ऐसे मामलों में यदि आरोपी केस को रद्द करने की मांग करते हुए अदालत के समक्ष आता है, तो अदालत को हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है.'

'ये निजता के अधिकार का अतिक्रमण' : बेंच ने कहा कि 'महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा सबसे अमानवीय कृत्य है. लेकिन मौजूदा मामले में महिला की निजता के अधिकार का अतिक्रमण किया गया है. इस तरह का कृत्य उचित नहीं है. इन मामलों पर सख्ती से निपटा जाना चाहिए. याचिकाकर्ता के आचरण से महिला को सार्वजनिक रूप से अपमानित होना पड़ा. इस तरह के आरोप से बचा नहीं जा सकता.' इसके अलावा पीठ ने आदेश में कहा कि जांचकर्ता किसी अन्य महिला से पूछताछ करने के लिए स्वतंत्र हैं जिसने पीड़िता के मोबाइल नंबर आरोपी को दिए थे.

ये है मामला : चित्रदुर्ग जिले की एक सरकारी कर्मचारी महिला के मोबाइल नंबर पर अप्रत्याशित समय पर गुमनाम लोगों से कॉल आने लगीं. उसे धमकी दी गईं. इन कॉल्स की जांच करने पर पता चला कि 'बेंगलुरु के मैजेस्टिक बस स्टैंड पर जेंट्स टॉयलेट की दीवारों पर लिखा था, 'कॉल गर्ल (बेलेवेनु), से संपर्क किया जा सकता है.'

इस संबंध में महिला ने चित्रदुर्ग के सीईएन पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई. उसने साथ काम करने वाली एक महिला कर्मचारी पर संदेह जताया. चित्रदुर्ग पुलिस ने केस बेंगलुरु के उप्पारापेट पुलिस स्टेशन में ट्रांसफर कर दिया.

जांच में ये खुलासा : जहां शिकायतकर्ता काम कर रही थी, पुलिस ने उसकी जूनियर असिस्टेंट से पूछताछ की. उसने कहा 'शिकायतकर्ता महिला मुझे परेशान कर रही थी. इसलिए मैंने सबक सिखाने के लिए अपने दोस्त (याचिकाकर्ता) को उसका मोबाइल नंबर दे दिया. मैंने उसे वरिष्ठ अधिकारियों के माध्यम से चेतावनी देने के लिए कहा, लेकिन उसने टॉयलेट की दीवारों पर उसका मोबाइल नंबर लिख दिया.'

पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ जांच कर रही थी. उसने ट्रायल कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया. याचिकाकर्ता अल्ला बक्शा पाटिल ने इस पर सवाल उठाते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

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