नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ घृणास्पद और भड़काऊ सामग्री को सोशल मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक पर प्रसारित करने से रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग करने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया.
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि यह सच है कि सोशल मीडिया पर काफी अपशब्द कहे जा रहे हैं, लेकिन याचिकाकर्ता की ओर से सुझाया गया उपाय काफी ज्यादा हो सकता है. कोर्ट ने इस बात की आशंका जताई कि अगर याचिका में सरकार को प्रकाशन से पूर्व सेंसरशिप शक्ति देने की मांग मंजूर की जाती हैं तो ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरनाक हो सकती है. कोर्ट ने कहा कि सरकार को ये शक्ति पसंद आएगा.
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इस बात का संकेत किया कि वो याचिकाकर्ताओं को पहले अपनी शिकायत के साथ फेसबुक से संपर्क करने और आईटी रुल्स के रूल 3 के तहत शिकायत निवारण मेकानिज्म का पालन करने को कह सकता है. दरअसल, म्यामांर में उत्पीड़न के शिकार दो रोहिंग्या शरणार्थियों ने याचिका दायर किया है. याचिकाकर्ताओं मोहम्मद हमीम जुलाई 2018 और कौसर मोहम्मद मार्च 2022 में म्यांमार से भारत आए थे.
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याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने याचिका में फेसबुक को अल्पसंख्यक समुदायों खासकर रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ घृणास्पद पोस्ट और भाषणों को रोकने का दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की है. याचिका में कहा गया है कि फेसबुक पर ऐसे पोस्ट और भाषण अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं, लेकिन फेसबुक इन पोस्ट और भाषणों के खिलाफ जानबूझ कर कार्रवाई नहीं कर रहा है. याचिका में कहा गया है कि म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के जीवन को अमानवीय बनाने में फेसबुक का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया था.
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