रांची: शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है. नवरात्र में मां भवानी के नौ रूपों की आराधना की जाती है. वैसे तो पूरा देश मां दुर्गा की भक्ति में लीन हो चुका है, लेकिन रांची में 'गोरखा जवानों' की दुर्गा पूजा अपने आप में बेहद खास होती है. कलश स्थापना के साथ ही झारखंड आर्म्ड फोर्स (जैप) की शक्ति पूजा शुरू हो गई है.
कलश स्थापना के साथ की गई फायरिंग
झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई का मामला हो या फिर निजी सुरक्षा का मामला, दोनों ही मामलों में गोरखा जवान सभी पर भारी पड़ते हैं. हर किसी की चाहत होती है कि अगर बॉडीगार्ड उसे मिले तो वह गोरखा का जवान हो. गोरखा जवान मां शक्ति के उपासक होते हैं. यही वजह है कि वह कभी भी सुरक्षा को लेकर पीछे नहीं हटते हैं. हर साल की भांति इस बार भी शक्ति के उपासक गोरखा जवान धूमधाम से मां शक्ति की उपासना में जुट गए हैं. शक्ति के उपासक माने जाने वाले गोरखा जवानों के लिए नवरात्र बेहद अहम होता है. पूरे नवरात्र गोरखा जवान अपने समाज की रक्षा, अपने हथियारों की सुरक्षा और देश की सुरक्षा के लिए मां शक्ति की आराधना करते हैं.
गोरखा जवानों की पूजा नेपाली परंपरा के अनुसार की जाती है. कलश स्थापना के दिन मां को फायरिंग से सलामी दी जाती है, फिर नवमी के दिन भी 101 बलि के साथ फायरिंग से सलामी दी जाती है. इस बटालियन में बलि और हथियारों की पूजा का अपना ही एक खास महत्व होता है. महानवमी के दिन गोरखा जवान अपने हथियार मां दुर्गा के चरणों में रखकर पूजा करते हैं. मां के चरणों में बलि देते हैं. गोरखा जवानों में हथियारों की पूजा की परंपरा इस बटालियन के गठन के समय से ही चली आ रही है. इनका मानना है कि दुश्मनों से मुकाबले के समय उनके हथियार धोखा न दे और सटीक चले, इसलिए वे मां दुर्गा के सामने हर नवमी को अपने-अपने हथियारों की पूजा बड़े ही श्रद्धा भाव से करते हैं.
1880 से चली आ रही नवरात्र पूजा
जैप में नवरात्र की पूजा 1880 में तत्कालीन गोरखा ब्रिगेड के द्वारा शुरू की गई थी. 1911 में बिहार के अस्तित्व में आने पर यह बिहार मिलिट्री पुलिस (बीएमपी) कहलाने लगा. झारखंड की स्थापना के बाद बीएमपी का नाम बदलकर झारखंड आर्म्ड फोर्स रखा गया. यहां पूजा करने की परंपरा नेपाली रीति रिवाज के साथ आज भी जारी है. इस पूजा में महासप्तमी को पर्यावरण की पूजा की जाती है, जिसे फूल पाती शोभा यात्रा कहा जाता है. इस यात्रा में नौ पेड़ों की पूजा की जाती है और पर्यावरण सुरक्षित रहे, मां से इसकी प्रार्थना की जाती है. इस दौरान बंदूकों की सलामी भी दी जाती है. इसके साथ ही महानवमी को शस्त्र पूजा और बलि का भी आयोजन किया जाता है.
सबसे भरोसेमंद बॉडीगार्ड
गोरखा जवानों पर मां दुर्गा की विशेष कृपा है. शायद यही वजह है कि चाहे नक्सलियों से लोहा लेने की बात हो या फिर वीआईपी सुरक्षा, हर कोई गोरखा जवानों पर भरोसा करता है तो वहीं दूसरी तरफ गोरखा जवान मां शक्ति पर पूर्ण रूप से भरोसा करते हैं. जिसकी वजह से 1880 से इस फोर्स को सबसे विश्वसनीय रक्षक के रूप में देखा जाता है.
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