इंदौर: रियासतकालीन इमारत इंदौर की रेसीडेंसी कोठी के नामकरण पर सियासत कोई नई बात नहीं है. असहमति के बीच रेसीडेंसी कोठी को आजाद कराने वाले क्रांतिकारी शहीद सआदत खान के वंशजों ने भी सवाल खड़े कर दिए हैं. दरअसल बीते 4 दशकों से रेसीडेंसी कोठी का नामकरण शहीद सआदत खान के नाम पर किए जाने की मांग कर रहे खान परिवार ने कोठी का नाम शिवाजी महाराज के नाम पर किए जाने के बाद अब शहर की किसी अन्य सड़क अथवा पार्क को शहीद सआदत खान के नाम पर करने की मांग की है. जिससे कि होलकर रियासत मे रेसीडेंसी कोठी को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए उनके द्वारा किए गए अपने प्राणों के बलिदान को भी याद रखा जा सके.
महाराजा शिवाजी राव के नाम पर करने की घोषणा
हाल ही में 19 अक्टूबर को इंदौर नगर निगम की परिषद बैठक में शहर की इस प्राचीन इमारत को नगर निगम परिषद ने महाराजा शिवाजी राव के नाम पर करने की घोषणा की थी. हालांकि इस घोषणा के बाद पुण्यश्लोक संस्था द्वारा नगर निगम के निर्णय का विरोध करते हुए रेसीडेंसी कोठी का नाम होलकर वंश की शासक रही देवी अहिल्याबाई होलकर के नाम पर करने की मांग करते हुए रेसीडेंसी कोठी पर अहिल्याबाई होलकर के नामकरण वाले बैनर लगा दिए थे. इसके बाद संस्था के सदस्यों ने इस मामले पर जन जागरण अभियान चलाने की भी घोषणा की थी.
शहीद सआदत खान के नाम पर करने की मांग
रेसीडेंसी कोठी को 1857 की क्रांति में सआदत खान ने अंग्रेजों से मुक्त कराया था. शहीद की पांचवीं पीढ़ी के वंशज कोठी का नाम सआदत खान के नाम पर करने के लिए 4 दशकों से मांग कर रहे हैं. अब जब नाम शिवाजी महाराजा के नाम पर हो गया है तो उन्होंने पुरानी मांग को सार्वजनिक करते हुए अब किसी अन्य इमारत सड़क अथवा पार्क का नामकरण सआदत खान के नाम पर करने की मांग की है.
4 दशक पुरानी है मांग
इंदौर में उनके वंशज रिजवान खान बताते हैं कि "पिछले 4 दशकों से उनके पिता अजीजुल्लाह खान यही मांग शासन प्रशासन से करते रहे हैं. इसके अलावा एक बार देश के प्रमुख शहीदों के वंशजों ने भी सम्मिलित रूप से इस मांग का ज्ञापन इंदौर संभाग आयुक्त के माध्यम से नगर निगम को भिजवाया था लेकिन उसे पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. उन्होंने बताया यह अपने आप में दुखद है कि शहर में कोई बगीचा कोई पुल मेट्रो स्टेशन या अन्य कोई इमारत 1857 के क्रांतिकारियों के नाम पर नहीं है. सआदत खान होलकर सेवा में महत्वपूर्ण पद पर थे लेकिन इसके बावजूद रेसीडेंसी कोठी का नाम उनके नाम पर नहीं रखा जा सका. फिलहाल उनकी मजार भी जर्जर हालत में है जिसे देखने वाला भी कोई नहीं है."
सआदत खान ने कराया था अंग्रेजों से मुक्त
वंशज रिजवान खान बताते हैं कि "1857 की क्रांति के दौरान शहीद सआदत खान होलकर रियासत की सेना में रिसालदार थे. जिन्होंने इंदौर में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का आगाज करते हुए रेसीडेंसी कोठी को अंग्रेजों से मुक्त करने के लिए 1 जुलाई 1857 को कोठी पर पहला हमला किया था. उस दौरान कई घंटे की मुठभेड़ के बाद रेसीडेंसी कोठी को अंग्रेजों से आजाद कर लिया था. इसके बाद सआदत खान अपने अन्य क्रांतिकारी साथी वंश गोपाल भागीरथ सिलावट और अपने भाई सरदार खान समेत करीब 3000 क्रांतिकारी के साथ देश को आजाद करने के लिए दिल्ली की ओर कूच कर गए.
दिल्ली में जब यह क्रांति सफल होने लगी तो अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्जा कर तत्कालीन मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार कर सआदत खान का साथ देने वाले बहादुर शाह जफर के बेटे शहजादा फिरोज का सर कलम कर दिया. इसके बाद 16 साल तक सआदत खान अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आ सके. बाद में पकड़े जाने पर 1 अक्टूबर 1874 को अंग्रेजों ने उन्हें फांसी दे दी थी. आज भी उनका स्मारक रेसीडेंसी कोठी परिसर में मौजूद है."