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स्विट्जरलैंड में होने वाले शांति शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी विश्वसनीयता प्रदान करेगी: एक्सपर्ट - India emerging key interlocutor

India emerging as key interlocutor: स्विट्जरलैंड में होने वाले शांति शिखर सम्मेलन को लेकर भारत एक प्रमुख वार्ताकार के रूप में उभर रहा है. विशेषज्ञ का कहना है कि भारत की भागीदारी स्विट्जरलैंड में सम्मेलन को विश्वसनीयता प्रदान करेगी. पढ़ें ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी की रिपोर्ट...

India's participation in the peace summit to be held in Switzerland will provide credibility (Photo IANS)
स्विट्जरलैंड में होने वाले शांति शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी विश्वसनीयता प्रदान करेगी(फोटो आईएएनएस)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Mar 22, 2024, 11:09 AM IST

नई दिल्ली: यूक्रेन में युद्ध पर भारत की अनूठी स्थिति और अब तक का संतुलित दृष्टिकोण उसे एक प्रमुख मध्यस्थ के रूप में उभरता हुआ देख सकता है. यह वास्तव में इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की भारत के उद्घाटन शांति शिखर सम्मेलन में भाग लेने को लेकर उत्सुक हैं. वर्तमान में स्विट्जरलैंड में इसकी तैयारी की जा रही है. शिखर सम्मेलन आने वाले महीनों में होने की उम्मीद है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की दोनों के साथ टेलीफोन पर बातचीत ने भारत द्वारा चल रहे रूस-यूक्रेन संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान के लिए मध्यस्थता और बातचीत करने के संभावित प्रयास की अटकलें बढ़ा दी हैं. शिखर सम्मेलन कितना महत्वपूर्ण है और संघर्ष के दृष्टिकोण में भारत की क्या भूमिका है.

इसके बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए ईटीवी भारत ने नई दिल्ली में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के उपाध्यक्ष हर्ष वी पंत से बात की. उन्होंने कहा, 'स्विट्जरलैंड में महत्वपूर्ण शांति शिखर सम्मेलन होने जा रहा है क्योंकि वहां शांति के लिए एक अभियान है जो अब काफी स्पष्ट है. युद्ध की थकान है - यूक्रेन इस युद्ध के लिए पश्चिमी राजधानियों में समर्थन में कमी की चुनौती का सामना कर रहा है. रूस भी इस संघर्ष के कारण अत्यधिक तनाव से गुजर रहा है.

पंत ने कहा कि ऐसी संभावना है कि शिखर सम्मेलन में कुछ न कुछ उभरकर सामने आ सकता है, हालांकि इस बात को लेकर सवाल हैं कि रूस इसमें शामिल होगा या नहीं. शांति शिखर सम्मेलन इस संघर्ष पर किसी प्रकार की बातचीत के समाधान की दिशा में पहला बड़ा बढ़ाने जा रहा है. और अब यह व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है कि भारत आज दुनिया में एक प्रमुख वार्ताकार है. भारत की भागीदारी के बिना शिखर सम्मेलन को विश्वसनीय बनाना बहुत मुश्किल होगा.

उन्होंने ईटीवी भारत को बताया, 'भारत उन कुछ देशों में से एक है जिनके पास दोनों पक्षों के लिए संचार के खुले चैनल हैं और यह तथ्य कि भारत एक ही दिन में रूसी और यूक्रेनी दोनों राष्ट्रपतियों से बात कर सकता है. यह भी रेखांकित करता है कि संघर्ष को सुलझाने में भारत की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है.'

भारत अपने रुख पर कायम है और कहता रहा है कि बातचीत और कूटनीति ही आगे बढ़ने का रास्ता होना चाहिए. पंत ने बताया कि पीएम मोदी ने सार्वजनिक रूप से पुतिन से कहा है कि यह युद्ध का युग नहीं है, जो पीएम को विश्वसनीयता देता है और उनका वैश्विक कद उन्हें इस मुद्दे पर पैंतरेबाजी करने की जगह देता है. ये दुनिया भर के अन्य नेताओं के लिए संभव नहीं है.

इस बीच, शांति शिखर सम्मेलन के लिए समर्थन मांगने के लिए यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा के इस महीने के अंत में भारत आने की उम्मीद है. 2022 में रूसी आक्रमण की शुरुआत के बाद से उनकी यह पहली भारत की यात्रा होगी. संभवतः 27 मार्च तक वह भारत का दौरा करेंगे. उनकी यात्रा की अभी आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है.

सूत्रों के अनुसार कुलेबा, जो संक्षिप्त यात्रा के लिए एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ आएंगे, उनके अपने भारतीय समकक्ष एस जयशंकर के साथ भारत-यूक्रेन अंतर-सरकारी आयोग की बैठक की सह-अध्यक्षता करने की भी उम्मीद है.
यह आयोग की पहली बैठक होगी, जो 2018 के बाद से द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं की देखरेख करने वाली संस्था है.

तटस्थ स्विट्जरलैंड द्वारा आयोजित रूस-यूक्रेन संघर्ष को हल करने के उद्देश्य से शांति शिखर सम्मेलन, कुलेबा की यात्रा के दौरान चर्चा के एजेंडे में सबसे ऊपर होगा. भारत ने यूक्रेन पर आक्रमण पर रूस की सार्वजनिक रूप से निंदा करने से परहेज किया है. हालांकि, भारत ने दोहराया है कि वह बातचीत और कूटनीति के माध्यम से संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान खोजने के उद्देश्य से सभी पहलों का समर्थन करता है.

सितंबर 2022 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, 'आज का युग युद्ध का युग नहीं है.' यूक्रेन ने 2023 में उप विदेश मंत्री एमिन दजापारोवा को भी भारत भेजा और इसके बाद फरवरी में उपविदेश मंत्री इरीना बोरोवेट्स ने भारत का दौरा किया.

ये भी पढ़ें- रूस ने यूक्रेन में बड़े पैमाने पर मिसाइल हमले किए, 12 से अधिक घायल - Russia Missile Attack In Kyiv

नई दिल्ली: यूक्रेन में युद्ध पर भारत की अनूठी स्थिति और अब तक का संतुलित दृष्टिकोण उसे एक प्रमुख मध्यस्थ के रूप में उभरता हुआ देख सकता है. यह वास्तव में इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की भारत के उद्घाटन शांति शिखर सम्मेलन में भाग लेने को लेकर उत्सुक हैं. वर्तमान में स्विट्जरलैंड में इसकी तैयारी की जा रही है. शिखर सम्मेलन आने वाले महीनों में होने की उम्मीद है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की दोनों के साथ टेलीफोन पर बातचीत ने भारत द्वारा चल रहे रूस-यूक्रेन संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान के लिए मध्यस्थता और बातचीत करने के संभावित प्रयास की अटकलें बढ़ा दी हैं. शिखर सम्मेलन कितना महत्वपूर्ण है और संघर्ष के दृष्टिकोण में भारत की क्या भूमिका है.

इसके बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए ईटीवी भारत ने नई दिल्ली में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के उपाध्यक्ष हर्ष वी पंत से बात की. उन्होंने कहा, 'स्विट्जरलैंड में महत्वपूर्ण शांति शिखर सम्मेलन होने जा रहा है क्योंकि वहां शांति के लिए एक अभियान है जो अब काफी स्पष्ट है. युद्ध की थकान है - यूक्रेन इस युद्ध के लिए पश्चिमी राजधानियों में समर्थन में कमी की चुनौती का सामना कर रहा है. रूस भी इस संघर्ष के कारण अत्यधिक तनाव से गुजर रहा है.

पंत ने कहा कि ऐसी संभावना है कि शिखर सम्मेलन में कुछ न कुछ उभरकर सामने आ सकता है, हालांकि इस बात को लेकर सवाल हैं कि रूस इसमें शामिल होगा या नहीं. शांति शिखर सम्मेलन इस संघर्ष पर किसी प्रकार की बातचीत के समाधान की दिशा में पहला बड़ा बढ़ाने जा रहा है. और अब यह व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है कि भारत आज दुनिया में एक प्रमुख वार्ताकार है. भारत की भागीदारी के बिना शिखर सम्मेलन को विश्वसनीय बनाना बहुत मुश्किल होगा.

उन्होंने ईटीवी भारत को बताया, 'भारत उन कुछ देशों में से एक है जिनके पास दोनों पक्षों के लिए संचार के खुले चैनल हैं और यह तथ्य कि भारत एक ही दिन में रूसी और यूक्रेनी दोनों राष्ट्रपतियों से बात कर सकता है. यह भी रेखांकित करता है कि संघर्ष को सुलझाने में भारत की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है.'

भारत अपने रुख पर कायम है और कहता रहा है कि बातचीत और कूटनीति ही आगे बढ़ने का रास्ता होना चाहिए. पंत ने बताया कि पीएम मोदी ने सार्वजनिक रूप से पुतिन से कहा है कि यह युद्ध का युग नहीं है, जो पीएम को विश्वसनीयता देता है और उनका वैश्विक कद उन्हें इस मुद्दे पर पैंतरेबाजी करने की जगह देता है. ये दुनिया भर के अन्य नेताओं के लिए संभव नहीं है.

इस बीच, शांति शिखर सम्मेलन के लिए समर्थन मांगने के लिए यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा के इस महीने के अंत में भारत आने की उम्मीद है. 2022 में रूसी आक्रमण की शुरुआत के बाद से उनकी यह पहली भारत की यात्रा होगी. संभवतः 27 मार्च तक वह भारत का दौरा करेंगे. उनकी यात्रा की अभी आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है.

सूत्रों के अनुसार कुलेबा, जो संक्षिप्त यात्रा के लिए एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ आएंगे, उनके अपने भारतीय समकक्ष एस जयशंकर के साथ भारत-यूक्रेन अंतर-सरकारी आयोग की बैठक की सह-अध्यक्षता करने की भी उम्मीद है.
यह आयोग की पहली बैठक होगी, जो 2018 के बाद से द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं की देखरेख करने वाली संस्था है.

तटस्थ स्विट्जरलैंड द्वारा आयोजित रूस-यूक्रेन संघर्ष को हल करने के उद्देश्य से शांति शिखर सम्मेलन, कुलेबा की यात्रा के दौरान चर्चा के एजेंडे में सबसे ऊपर होगा. भारत ने यूक्रेन पर आक्रमण पर रूस की सार्वजनिक रूप से निंदा करने से परहेज किया है. हालांकि, भारत ने दोहराया है कि वह बातचीत और कूटनीति के माध्यम से संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान खोजने के उद्देश्य से सभी पहलों का समर्थन करता है.

सितंबर 2022 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, 'आज का युग युद्ध का युग नहीं है.' यूक्रेन ने 2023 में उप विदेश मंत्री एमिन दजापारोवा को भी भारत भेजा और इसके बाद फरवरी में उपविदेश मंत्री इरीना बोरोवेट्स ने भारत का दौरा किया.

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