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वन्यजीवों के हमलों से भरा है देवभूमि का इतिहास, 24 सालों में 7 हजार से ज्यादा घटनाएं हुई रिकॉर्ड

प्रदेश का इतिहास मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं से जुड़ा रहा है. पिछले 24 सालों के दौरान 7000 से ज्यादा हमले रिकॉर्ड किए गए हैं.

Wildlife attacks are increasing in Uttarakhand
उत्तराखंड में हमलावर हो रहे वन्यजीव (Photo-ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 9, 2024, 10:03 AM IST

देहरादून (उत्तराखंड): वाइल्ड लाइफ के लिहाज से उत्तराखंड वैसे तो बेहद धनी राज्य है. लेकिन वाइल्ड लाइफ की यही संपन्नता यहां की मुसीबत का कारण भी बनी है. दरअसल मानव वन्यजीव संघर्ष का दौर उत्तराखंड में शुरू से ही रहा है. वन्यजीवों की बाहुल्यता राज्य के लिए उत्साही विषय तो रहा है, लेकिन यहां वन्यजीवों के इंसानों पर बढ़ते हमले भी चिंता का सबब रहे हैं. गौर करने वाली बात यह रही है कि राज्य स्थापना के बाद पिछले 24 सालों में न केवल वन्यजीवों के हमले बढ़ने के संकेत मिले हैं, बल्कि इससे इंसानों को होने वाले नुकसान का आंकड़ा भी बढ़ा है.

मानव वन्यजीव संघर्ष के आंकड़े: उत्तराखंड में पिछले 24 सालों के दौरान वन्यजीवों और इंसानों का आमना सामना होता रहा है. वैसे तो इन हालातों में वन्यजीवों ने कितनी बार हमला किया इसका कोई सटीक आंकड़ा नहीं है. लेकिन जो मामले सामने आए और रिकॉर्ड किए गए उसके अनुसार प्रदेश में वन्यजीवों ने इंसानों पर कुल 7079 हमले किए. जिसमें 5885 लोग घायल हो हुए. इतना ही नहीं इन हमलों में पिछले 24 सालों के दौरान 1194 लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी.

उत्तराखंड में हमलावर हो रहे वन्यजीव (ETV Bharat)

राज्य स्थापना यानी साल 2000 से 2024 तक के आंकड़ों को बारीकी से देखें तो पता चलता है कि साल 2000 और इसके बाद के कुछ सालों में वन्यजीवों के हमले के दौरान घायल होने वाले लोगों का जो आंकड़ा औसतन 100 से 180 रहता था, वह साल 2024 आते-आते 300 से 350 तक पहुंच गया. इसी तरह साल 2000 में वन्यजीवों के हमले में मरने वालों का औसतन आंकड़ा सालाना 30 से 40 का होता था. लेकिन साल 2024 तक यह आंकड़ा औसतन 60 से 70 तक जा पहुंचा.

जंगल में इंसानी दखल बढ़ा: मानव वन्यजीव संघर्ष के आंकड़े बढ़ाने के साथ राज्य में सरकारों द्वारा इसके लिए प्रयास भी बढ़ाए गए हैं. लेकिन आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि इन प्रयासों के कारण घटनाओं को कम नहीं किया जा सका है. हालांकि इसका दूसरा पहलू यह भी है कि समय के साथ ही जंगलों में इंसानों का दखल भी बड़ा है और वन्यजीवों की संख्या भी बढ़ी हैं. इन्हीं स्थितियों के कारण उत्तराखंड वन विभाग अपने प्रयासों को सफल बताते हुए घटनाओं में जितनी बढ़ोतरी होनी चाहिए थी उतनी बढ़ोतरी नहीं होने का दावा करता है. उत्तराखंड में पिछले 24 साल के दौरान मानव वन्यजीव संघर्ष में हताहत होने वाले लोगों की मुआवजा राशि बढ़ाई गई है.

बढ़ाई गई मुआवजा राशि: कभी 2 लाख से शुरू होकर यह मुआवजा राशि अब 6 लाख तक पहुंच गई है. इसी तरह मानव वन्यजीव संघर्ष को दैवीय आपदा में नोटिफाई भी कर लिया गया है. इतना ही नहीं एसडीआरएफ और आपदा निधि से तत्काल राहत देने की भी व्यवस्था हुई है और जल्द ही इसके लिए एक कोष भी स्थापित होने जा रहा है. मानव वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए वन विभाग ने जागरूकता अभियान बढ़ाए हैं. वहीं इस पर खर्च होने वाला बजट भी काफी बढ़ गया है. इसके लिए तकनीक बढ़ाने से लेकर विभाग ने मानव संसाधन भी बढ़ाए हैं.

क्या कह रहे जिम्मेदार: मानव वन्यजीव संघर्ष पर पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ आरके मिश्रा बताते हैं कि पिछले 24 साल में उन्होंने मानव वन्यजीव संघर्ष पर कई प्रयास होते हुए देखे हैं. इसलिए वह कह सकते हैं कि संघर्ष को नियंत्रित किया गया है. उन्होंने कहा की जरूरत पड़ने पर उत्तराखंड वन विभाग वन्यजीवों को ट्रेंकुलाइज करते हुए पकड़ने का भी काम करता है और उन्हें रेस्क्यू सेंटर में रखने की भी व्यवस्था की जाती है.

उत्तराखंड में इकोलॉजी का इकोनॉमी कनेक्शन: इकोलॉजी का इकोनॉमी से सीधा कनेक्शन रहता है और बेहतर इकोलॉजी राज्य की इकोनॉमी को भी बेहतर करने में मदद करती है। दरअसल उत्तराखंड में पर्यटन लोगों की रोजी-रोटी का बड़ा जरिया है और तीर्थाटन की तरह ही पर्यटन के लिए यहां लाखों लोग पहुंचते हैं. खास बात यह है कि उत्तराखंड में नेचर टूरिज्म के साथ ही वाइल्डलाइफ टूरिज्म में भारी मात्रा में होता है. इसका सीधा संबंध राज्य की इकोलॉजी से ही है. यही कारण है कि वन विभाग लोगों को वाइल्डलाइफ से जुड़कर प्रदेश की इकोनॉमी को बढ़ाने में सहयोग करने की अपील करता रहा है.

वन्यजीवों के साथ रहना सीखे: पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ आरके मिश्रा कहते हैं कि आम लोगों को जागरूक करने के लिए तमाम अभियान चलाए जाते हैं. वह भी लोगों से यही अपील करते हैं कि वो वन्यजीवों के साथ रहना सीखे, तभी वन्यजीव और उनकी सुरक्षा संभव हैं. इस दौरान पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ लोगों को अपने जीवन में कुछ महत्वपूर्ण गतिविधियों को जोड़ने की अपील भी करते हुए दिखाई देते हैं.

उत्तराखंड में पलायन के लिए भी जिम्मेदार माने गए वन्यजीव: प्रदेश में पलायन आयोग की रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि पर्वतीय जनपदों में लोगों के पलायन के पीछे वन्य जीवों का भी बड़ा रोल रहा है. दरअसल एक तरफ लोग शिकारी वन्यजीवों के खतरे से दहशत में रहते हैं तो दूसरी तरफ खेती को होते नुकसान की भी कई वन्य जीव वजह बन रहे हैं. इसके कारण खेती तबाह हो रही है और लोगों में रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो रहा है. जिससे काश्तकार को मजबूरन पलायन करना पड़ रहा है. यह बात खुद पलायन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट की है और कई जिलों में तो पलायन करने वाले लोगों के पीछे की वजह इसी को बताया गया है.

फॉरेस्ट फायर का भी मानव वन्यजीव से है कनेक्शन: उत्तराखंड में फॉरेस्ट फायर भी राज्य सरकार और लोगों के लिए बड़ी मुसीबत रहा है. जिसके कारण यह वन्यजीव जंगलों से पलायन कर मानव बस्ती की तरफ संघर्ष की वजह बन जाते हैं. जबकि जंगलों में आज की वजह इंसान ही होते हैं, ऐसे में जंगलों की आग पर नियंत्रण करके मानव वन्यजीव संघर्ष के आंकड़ों को कम किया जा सकता है.
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देहरादून (उत्तराखंड): वाइल्ड लाइफ के लिहाज से उत्तराखंड वैसे तो बेहद धनी राज्य है. लेकिन वाइल्ड लाइफ की यही संपन्नता यहां की मुसीबत का कारण भी बनी है. दरअसल मानव वन्यजीव संघर्ष का दौर उत्तराखंड में शुरू से ही रहा है. वन्यजीवों की बाहुल्यता राज्य के लिए उत्साही विषय तो रहा है, लेकिन यहां वन्यजीवों के इंसानों पर बढ़ते हमले भी चिंता का सबब रहे हैं. गौर करने वाली बात यह रही है कि राज्य स्थापना के बाद पिछले 24 सालों में न केवल वन्यजीवों के हमले बढ़ने के संकेत मिले हैं, बल्कि इससे इंसानों को होने वाले नुकसान का आंकड़ा भी बढ़ा है.

मानव वन्यजीव संघर्ष के आंकड़े: उत्तराखंड में पिछले 24 सालों के दौरान वन्यजीवों और इंसानों का आमना सामना होता रहा है. वैसे तो इन हालातों में वन्यजीवों ने कितनी बार हमला किया इसका कोई सटीक आंकड़ा नहीं है. लेकिन जो मामले सामने आए और रिकॉर्ड किए गए उसके अनुसार प्रदेश में वन्यजीवों ने इंसानों पर कुल 7079 हमले किए. जिसमें 5885 लोग घायल हो हुए. इतना ही नहीं इन हमलों में पिछले 24 सालों के दौरान 1194 लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी.

उत्तराखंड में हमलावर हो रहे वन्यजीव (ETV Bharat)

राज्य स्थापना यानी साल 2000 से 2024 तक के आंकड़ों को बारीकी से देखें तो पता चलता है कि साल 2000 और इसके बाद के कुछ सालों में वन्यजीवों के हमले के दौरान घायल होने वाले लोगों का जो आंकड़ा औसतन 100 से 180 रहता था, वह साल 2024 आते-आते 300 से 350 तक पहुंच गया. इसी तरह साल 2000 में वन्यजीवों के हमले में मरने वालों का औसतन आंकड़ा सालाना 30 से 40 का होता था. लेकिन साल 2024 तक यह आंकड़ा औसतन 60 से 70 तक जा पहुंचा.

जंगल में इंसानी दखल बढ़ा: मानव वन्यजीव संघर्ष के आंकड़े बढ़ाने के साथ राज्य में सरकारों द्वारा इसके लिए प्रयास भी बढ़ाए गए हैं. लेकिन आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि इन प्रयासों के कारण घटनाओं को कम नहीं किया जा सका है. हालांकि इसका दूसरा पहलू यह भी है कि समय के साथ ही जंगलों में इंसानों का दखल भी बड़ा है और वन्यजीवों की संख्या भी बढ़ी हैं. इन्हीं स्थितियों के कारण उत्तराखंड वन विभाग अपने प्रयासों को सफल बताते हुए घटनाओं में जितनी बढ़ोतरी होनी चाहिए थी उतनी बढ़ोतरी नहीं होने का दावा करता है. उत्तराखंड में पिछले 24 साल के दौरान मानव वन्यजीव संघर्ष में हताहत होने वाले लोगों की मुआवजा राशि बढ़ाई गई है.

बढ़ाई गई मुआवजा राशि: कभी 2 लाख से शुरू होकर यह मुआवजा राशि अब 6 लाख तक पहुंच गई है. इसी तरह मानव वन्यजीव संघर्ष को दैवीय आपदा में नोटिफाई भी कर लिया गया है. इतना ही नहीं एसडीआरएफ और आपदा निधि से तत्काल राहत देने की भी व्यवस्था हुई है और जल्द ही इसके लिए एक कोष भी स्थापित होने जा रहा है. मानव वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए वन विभाग ने जागरूकता अभियान बढ़ाए हैं. वहीं इस पर खर्च होने वाला बजट भी काफी बढ़ गया है. इसके लिए तकनीक बढ़ाने से लेकर विभाग ने मानव संसाधन भी बढ़ाए हैं.

क्या कह रहे जिम्मेदार: मानव वन्यजीव संघर्ष पर पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ आरके मिश्रा बताते हैं कि पिछले 24 साल में उन्होंने मानव वन्यजीव संघर्ष पर कई प्रयास होते हुए देखे हैं. इसलिए वह कह सकते हैं कि संघर्ष को नियंत्रित किया गया है. उन्होंने कहा की जरूरत पड़ने पर उत्तराखंड वन विभाग वन्यजीवों को ट्रेंकुलाइज करते हुए पकड़ने का भी काम करता है और उन्हें रेस्क्यू सेंटर में रखने की भी व्यवस्था की जाती है.

उत्तराखंड में इकोलॉजी का इकोनॉमी कनेक्शन: इकोलॉजी का इकोनॉमी से सीधा कनेक्शन रहता है और बेहतर इकोलॉजी राज्य की इकोनॉमी को भी बेहतर करने में मदद करती है। दरअसल उत्तराखंड में पर्यटन लोगों की रोजी-रोटी का बड़ा जरिया है और तीर्थाटन की तरह ही पर्यटन के लिए यहां लाखों लोग पहुंचते हैं. खास बात यह है कि उत्तराखंड में नेचर टूरिज्म के साथ ही वाइल्डलाइफ टूरिज्म में भारी मात्रा में होता है. इसका सीधा संबंध राज्य की इकोलॉजी से ही है. यही कारण है कि वन विभाग लोगों को वाइल्डलाइफ से जुड़कर प्रदेश की इकोनॉमी को बढ़ाने में सहयोग करने की अपील करता रहा है.

वन्यजीवों के साथ रहना सीखे: पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ आरके मिश्रा कहते हैं कि आम लोगों को जागरूक करने के लिए तमाम अभियान चलाए जाते हैं. वह भी लोगों से यही अपील करते हैं कि वो वन्यजीवों के साथ रहना सीखे, तभी वन्यजीव और उनकी सुरक्षा संभव हैं. इस दौरान पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ लोगों को अपने जीवन में कुछ महत्वपूर्ण गतिविधियों को जोड़ने की अपील भी करते हुए दिखाई देते हैं.

उत्तराखंड में पलायन के लिए भी जिम्मेदार माने गए वन्यजीव: प्रदेश में पलायन आयोग की रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि पर्वतीय जनपदों में लोगों के पलायन के पीछे वन्य जीवों का भी बड़ा रोल रहा है. दरअसल एक तरफ लोग शिकारी वन्यजीवों के खतरे से दहशत में रहते हैं तो दूसरी तरफ खेती को होते नुकसान की भी कई वन्य जीव वजह बन रहे हैं. इसके कारण खेती तबाह हो रही है और लोगों में रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो रहा है. जिससे काश्तकार को मजबूरन पलायन करना पड़ रहा है. यह बात खुद पलायन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट की है और कई जिलों में तो पलायन करने वाले लोगों के पीछे की वजह इसी को बताया गया है.

फॉरेस्ट फायर का भी मानव वन्यजीव से है कनेक्शन: उत्तराखंड में फॉरेस्ट फायर भी राज्य सरकार और लोगों के लिए बड़ी मुसीबत रहा है. जिसके कारण यह वन्यजीव जंगलों से पलायन कर मानव बस्ती की तरफ संघर्ष की वजह बन जाते हैं. जबकि जंगलों में आज की वजह इंसान ही होते हैं, ऐसे में जंगलों की आग पर नियंत्रण करके मानव वन्यजीव संघर्ष के आंकड़ों को कम किया जा सकता है.
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