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आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने खोज निकाले 'नागराज वासुकी'! इनके आगे एनाकोंडा भी फेल, बस के बराबर लंबाई - found fossils of Nagraj Vasuki

आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे सांप की खोज की है, जो सांपों के मैडसोइडे परिवार का सदस्य है. इस सांप की खासियत ये है कि ये अबतक धरती पर का ये सबसे बड़ा सांप है. इसका आकार एक बस यानी इस सांप की लंबाई 11 से 15 मीटर के बीच हो सकती है. वैज्ञानिकों ने इस सांप का नाम वासुकी इंडिकस दिया है.

नागराज वासुकी
नागराज वासुकी
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 20, 2024, 2:19 PM IST

Updated : Apr 20, 2024, 2:59 PM IST

आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने खोज निकाले 'नागराज वासुकी'!

रुड़की: आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने बड़ी खोज की है. खोज करने वाले वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्हें एक ऐसे सांप का जीवाश्म मिला है, जिसे धरती का सबसे बड़ा सांप कहा जा सकता है. ये करीब 47 मिलियन वर्ष पहले मध्य इओसीन काल के दौरान वर्तमान गुजरात के क्षेत्र में रहता था. सांप की इस संरचना को वैज्ञानिकों ने वासुकी इंडिकस का नाम दिया है.

IIT Roorkee
Indian Institute of Technology Roorkee की खोज

वैज्ञानिकों का दावा: दरअसल, आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर सुनील बाजपेयी और पोस्ट-डॉक्टरल फेलो देबजीत दत्ता की उल्लेखनीय खोज में सांप की एक प्राचीन प्रजाति का अनावरण किया गया है, जिसे पृथ्वी पर अब तक पाया जाने वाला सबसे बड़े सांप माना गया है. दावा किया जा रहा है कि इस सांप का संबंध विलुप्त हो चुके मैडसोइडे सांप के परिवार से था. ये भारत के एक अद्वितीय सर्प वंश का प्रतिनिधित्व करता था. यह अभूतपूर्व खोज संस्थान की महत्वपूर्ण जीवाश्म खोजों की बढ़ती सूची में शामिल हो गई है.

IIT Roorkee
आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों को वासुकी के जीवाशम साल 2015 में मिले थे.

बस जितना लंबा सांप: प्रोफेसर सुनील बाजपेयी और देबजीत दत्ता ने बताया कि वासुकी इंडिकस की खोज सचमुच आश्चर्यजनक है. एक ऐसे सांप की कल्पना करें जो एक स्कूल बस जितना लंबा हो सकता है, जिसकी लंबाई 11 से 15 मीटर के बीच हो सकती है. इस प्राचीन विशालकाय सांप के जीवाश्म गुजरात के कच्छ में पनांद्रो लिग्नाइट खदान में पाए गए थे. इन जीवाश्मों में से 27 कशेरुक (रीढ़) असाधारण रूप से अच्छी तरह से संरक्षित थे, जिनमें से कुछ जिग्सॉ पहेली के टुकड़ों की तरह जुड़े हुए पाए गए.

IIT Roorkee
वासुकी इंडिकस के अवशेष.

टाइटनोबोआ के आकार का वासुकी इंडिकस!: वहीं, जब वैज्ञानिकों ने इन कशेरुकाओं (रीढ़) को देखा तो उन्हें उनके आकार और आकृति के बारे में एक दिलचस्प चीज़ नज़र आई. उनका सुझाव है कि वासुकी इंडिकस का शरीर चौड़ा और बेलनाकार था, जो एक मजबूत और शक्तिशाली निर्माण की ओर इशारा करता है. वासुकी इंडिकस को लेकर वैज्ञानिकों का दावा है कि इसका आकार टाइटनोबोआ सांप के बराबर है. टाइटनोबोआ सांप को पृथ्वी का अबतक का सबसे लंबा सांप माना जाता है. बता दें कि टाइटनोबोआ सांप को मॉन्सटर (दैत्य) स्नेक भी कहा जाता है.

IIT Roorkee
वासुकी इंडिकस की खोज सचमुच आश्चर्यजनक है.

गुप्त शिकारी वासुकी इंडिकस: आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं का मानना है कि वासुकी इंडिकस एक गुप्त शिकारी था, जो आज के एनाकोंडा की तरह ही धीरे-धीरे धरती पर चलता था और अपने शिकार पर हमला करने के लिए सही समय का इंतजार करता था.

IIT Roorkee
टाइटनोबोआ के आकार का था वासुकी इंडिकस.

शोधकर्ताओं का मानना है कि वासुकी इंडिकस के बड़े आकार ने उसे प्राचीन पारिस्थितिकी तंत्र में एक दुर्जेय शिकारी बना दिया होगा. वासुकी इंडिकस अद्वितीय है और इसका नाम वासुकी के नाम पर रखा गया है, जिसे अक्सर हिंदू भगवान शिव के गले में चित्रित किया जाता है. यह नाम न केवल इसकी भारतीय जड़ों को दर्शाता है, बल्कि इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का भी संकेत देता है.

IIT Roorkee
आईआईटी रूड़की के प्रोफेसर सुनील बाजपेयी और पोस्ट डॉक्टरल फेलो देबजीत दत्ता ने इन अवशेषों पर अध्ययन किया.

वासुकी इंडिकस मैडसोइडे परिवार का सदस्य: वासुकी इंडिकस की खोज इओसीन काल के दौरान सांपों की जैव विविधता और विकास पर नई रोशनी डालती है. यह मैडसोइडे परिवार के भौगोलिक प्रसार के बारे में भी जानकारी प्रदान करता है, जो अफ्रीका, यूरोप और भारत में लगभग 100 मिलियन वर्षों से मौजूद था.

IIT Roorkee
वासुकी इंडिकस मैडसोइडे परिवार का सदस्य था.

सांपों का विकासवादी इतिहास: आईआईटी रुड़की के भू विज्ञान विभाग के प्रोफेसर सुनील बाजपेयी ने बताया कि यह खोज न केवल भारत के प्राचीन पारिस्थितिकी तंत्र को समझने के लिए, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप पर सांपों के विकासवादी इतिहास को जानने के लिए भी महत्वपूर्ण है. यह हमारे प्राकृतिक इतिहास को संरक्षित करने के महत्व को रेखांकित करता है और हमारे अतीत के रहस्यों को उजागर करने में अनुसंधान की भूमिका पर प्रकाश डालता है.

IIT Roorkee
वासुकी इंडिकस को लेकर माना जा रहा है कि ये करीब 47 मिलिनय वर्ष पहले मध्य इओसीन काल में दौरान वर्तमान में गुजरात क्षेत्र में रहता था.

वहीं इस खोज की सराहना करते हुए आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रोफेसर केके पंत ने कहा कि उन्हें प्रोफेसर सुनील बाजपेयी और उनकी टीम की इस उल्लेखनीय खोज पर बेहद गर्व है. वासुकी इंडिकस का अनावरण वैज्ञानिक ज्ञान को आगे बढ़ाने और अनुसंधान में उत्कृष्टता की हमारी निरंतर खोज के लिए आईआईटी रुड़की की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है.

प्रोफेसर सुनील बाजपेयी और उनकी टीम की यह खोज भारत में महत्वपूर्ण जीवाश्म खोजों की हालिया लहर का अनुसरण करती है. जीवाश्म विज्ञान अनुसंधान में आईआईटी रुड़की के निरंतर योगदान ने महत्वपूर्ण खोजों के लिए हॉटस्पॉट के रूप में भारत की प्रमुखता को मजबूत किया है. वासुकी इंडिकस की खोच आईआईटी रुड़की की अभूतपूर्व जीवाश्म खोजों की बढ़ती सूची में एक और इजाफा करता है.

पढ़ें---

आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने खोज निकाले 'नागराज वासुकी'!

रुड़की: आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने बड़ी खोज की है. खोज करने वाले वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्हें एक ऐसे सांप का जीवाश्म मिला है, जिसे धरती का सबसे बड़ा सांप कहा जा सकता है. ये करीब 47 मिलियन वर्ष पहले मध्य इओसीन काल के दौरान वर्तमान गुजरात के क्षेत्र में रहता था. सांप की इस संरचना को वैज्ञानिकों ने वासुकी इंडिकस का नाम दिया है.

IIT Roorkee
Indian Institute of Technology Roorkee की खोज

वैज्ञानिकों का दावा: दरअसल, आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर सुनील बाजपेयी और पोस्ट-डॉक्टरल फेलो देबजीत दत्ता की उल्लेखनीय खोज में सांप की एक प्राचीन प्रजाति का अनावरण किया गया है, जिसे पृथ्वी पर अब तक पाया जाने वाला सबसे बड़े सांप माना गया है. दावा किया जा रहा है कि इस सांप का संबंध विलुप्त हो चुके मैडसोइडे सांप के परिवार से था. ये भारत के एक अद्वितीय सर्प वंश का प्रतिनिधित्व करता था. यह अभूतपूर्व खोज संस्थान की महत्वपूर्ण जीवाश्म खोजों की बढ़ती सूची में शामिल हो गई है.

IIT Roorkee
आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों को वासुकी के जीवाशम साल 2015 में मिले थे.

बस जितना लंबा सांप: प्रोफेसर सुनील बाजपेयी और देबजीत दत्ता ने बताया कि वासुकी इंडिकस की खोज सचमुच आश्चर्यजनक है. एक ऐसे सांप की कल्पना करें जो एक स्कूल बस जितना लंबा हो सकता है, जिसकी लंबाई 11 से 15 मीटर के बीच हो सकती है. इस प्राचीन विशालकाय सांप के जीवाश्म गुजरात के कच्छ में पनांद्रो लिग्नाइट खदान में पाए गए थे. इन जीवाश्मों में से 27 कशेरुक (रीढ़) असाधारण रूप से अच्छी तरह से संरक्षित थे, जिनमें से कुछ जिग्सॉ पहेली के टुकड़ों की तरह जुड़े हुए पाए गए.

IIT Roorkee
वासुकी इंडिकस के अवशेष.

टाइटनोबोआ के आकार का वासुकी इंडिकस!: वहीं, जब वैज्ञानिकों ने इन कशेरुकाओं (रीढ़) को देखा तो उन्हें उनके आकार और आकृति के बारे में एक दिलचस्प चीज़ नज़र आई. उनका सुझाव है कि वासुकी इंडिकस का शरीर चौड़ा और बेलनाकार था, जो एक मजबूत और शक्तिशाली निर्माण की ओर इशारा करता है. वासुकी इंडिकस को लेकर वैज्ञानिकों का दावा है कि इसका आकार टाइटनोबोआ सांप के बराबर है. टाइटनोबोआ सांप को पृथ्वी का अबतक का सबसे लंबा सांप माना जाता है. बता दें कि टाइटनोबोआ सांप को मॉन्सटर (दैत्य) स्नेक भी कहा जाता है.

IIT Roorkee
वासुकी इंडिकस की खोज सचमुच आश्चर्यजनक है.

गुप्त शिकारी वासुकी इंडिकस: आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं का मानना है कि वासुकी इंडिकस एक गुप्त शिकारी था, जो आज के एनाकोंडा की तरह ही धीरे-धीरे धरती पर चलता था और अपने शिकार पर हमला करने के लिए सही समय का इंतजार करता था.

IIT Roorkee
टाइटनोबोआ के आकार का था वासुकी इंडिकस.

शोधकर्ताओं का मानना है कि वासुकी इंडिकस के बड़े आकार ने उसे प्राचीन पारिस्थितिकी तंत्र में एक दुर्जेय शिकारी बना दिया होगा. वासुकी इंडिकस अद्वितीय है और इसका नाम वासुकी के नाम पर रखा गया है, जिसे अक्सर हिंदू भगवान शिव के गले में चित्रित किया जाता है. यह नाम न केवल इसकी भारतीय जड़ों को दर्शाता है, बल्कि इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का भी संकेत देता है.

IIT Roorkee
आईआईटी रूड़की के प्रोफेसर सुनील बाजपेयी और पोस्ट डॉक्टरल फेलो देबजीत दत्ता ने इन अवशेषों पर अध्ययन किया.

वासुकी इंडिकस मैडसोइडे परिवार का सदस्य: वासुकी इंडिकस की खोज इओसीन काल के दौरान सांपों की जैव विविधता और विकास पर नई रोशनी डालती है. यह मैडसोइडे परिवार के भौगोलिक प्रसार के बारे में भी जानकारी प्रदान करता है, जो अफ्रीका, यूरोप और भारत में लगभग 100 मिलियन वर्षों से मौजूद था.

IIT Roorkee
वासुकी इंडिकस मैडसोइडे परिवार का सदस्य था.

सांपों का विकासवादी इतिहास: आईआईटी रुड़की के भू विज्ञान विभाग के प्रोफेसर सुनील बाजपेयी ने बताया कि यह खोज न केवल भारत के प्राचीन पारिस्थितिकी तंत्र को समझने के लिए, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप पर सांपों के विकासवादी इतिहास को जानने के लिए भी महत्वपूर्ण है. यह हमारे प्राकृतिक इतिहास को संरक्षित करने के महत्व को रेखांकित करता है और हमारे अतीत के रहस्यों को उजागर करने में अनुसंधान की भूमिका पर प्रकाश डालता है.

IIT Roorkee
वासुकी इंडिकस को लेकर माना जा रहा है कि ये करीब 47 मिलिनय वर्ष पहले मध्य इओसीन काल में दौरान वर्तमान में गुजरात क्षेत्र में रहता था.

वहीं इस खोज की सराहना करते हुए आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रोफेसर केके पंत ने कहा कि उन्हें प्रोफेसर सुनील बाजपेयी और उनकी टीम की इस उल्लेखनीय खोज पर बेहद गर्व है. वासुकी इंडिकस का अनावरण वैज्ञानिक ज्ञान को आगे बढ़ाने और अनुसंधान में उत्कृष्टता की हमारी निरंतर खोज के लिए आईआईटी रुड़की की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है.

प्रोफेसर सुनील बाजपेयी और उनकी टीम की यह खोज भारत में महत्वपूर्ण जीवाश्म खोजों की हालिया लहर का अनुसरण करती है. जीवाश्म विज्ञान अनुसंधान में आईआईटी रुड़की के निरंतर योगदान ने महत्वपूर्ण खोजों के लिए हॉटस्पॉट के रूप में भारत की प्रमुखता को मजबूत किया है. वासुकी इंडिकस की खोच आईआईटी रुड़की की अभूतपूर्व जीवाश्म खोजों की बढ़ती सूची में एक और इजाफा करता है.

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Last Updated : Apr 20, 2024, 2:59 PM IST
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