देहरादून: उत्तराखंड में खनन, राजस्व का एक बड़ा जरिया है. यही वजह है कि सरकार लीगल रूप से खनन करवाती है. इसके बाद भी खनन माफिया, इलीगल तरीके से भी नदी को खोखला कर रहे हैं. खनन, घरों के निर्माण समेत कामों के लिए बेहद जरूरी है, लेकिन, नदियों में हो रहा अत्यधिक खनन पर्यावरण के लिहाज से भी एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है. ऐसे में आईआईटी कानपुर के अर्थ साइंस वैज्ञानिक ने हल्द्वानी की गौला नदी में हो रहे खनन पर अध्ययन किया. जिसके बाद उन्होंने तमाम चिताएं जाहिर की.
कुमाऊं क्षेत्र की लाइफ लाइन कहे जाने वाली गौला नदी स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का साधन बनने के साथ ही राज्य सरकार को भी भारी भरकम राजस्व उपलब्ध करवाती है. हर साल गौला नदी के लाखों घन मीटर से खनन निकाला जाता है. लगातार हो रही खनन निकासी से गौला नदी का स्वरूप भी बदलता जा रहा है. अत्यधिक खनन से बदल रहे गौला नदी के स्वरूप और स्थिति जानने को लेकर अर्थ साइंस के वैज्ञानिक इसका अध्ययन कर रहे हैं.
दरअसल, आईआईटी कानपुर के अर्थ साइंस डिपार्टमेंट के प्रो राजीव सिन्हा ने गौला नदी का अध्ययन कर चिंता जाहिर की है. साथ ही कहा कि नदियों में खनन इतना बढ़ गया है कि अब नदियों के विलुप्त होने की कगार पर आ गई है. बता दें उत्तराखंड सरकार ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान 42 लाख 43 हज़ार घन मीटर गौला नदी से खनन निकासी की अनुमति दी है, जबकि अभी तक करीब 39 लाख 4876 घन मीटर उप खनिज की निकासी हो चुकी है. जिससे राज्य सरकार को करीब 120.17 करोड़ रुपए का राजस्व मिल चुका है. इसी क्रम में वित्तीय वर्ष 2023-24 में 157.42 करोड़ रुपए, 2022-23 में 80 करोड़ रुपए, 2021-22 में 146.27 करोड़ रुपए, 2020-21 में 16.88 करोड़ रुपए और 2019-20 में करीब 137 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ था.
ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत करते हुए प्रो राजीव सिन्हा ने कहा अत्यधिक खनन इतना खतरनाक साबित हो रहा सकता है कि आने वाले समय में नदियां ही विलुप्त हो जाएंगी. उन्होंने कहा नदियों में खनन इतना अधिक बढ़ गया है कि अब नदियों के विलुप्त होने का समय आ गया है. उन्होंने कहा अभी तक कई नदियों पर अध्ययन किए जा चुके हैं. वर्तमान समय में हल्द्वानी स्थित गौला नदी के 33 किलोमीटर क्षेत्र का अध्ययन कर रहे हैं. अध्ययन के दौरान पता चला है कि इस 33 किलोमीटर के क्षेत्र में अत्यधिक खनन होता है. हर साल नदियों में जितना मटेरियल आता है. उससे अधिक खनन किया जा रहा है.
जिसके चलते नदी का स्वरूप हर साल बदल रहा है. साथ ही नदी अनस्टेबल हो गई है. नदी पर जो ब्रिज बने हुए हैं उसके पिलर दिखाई दे रहे हैं. खनन को रोकने की जरूरत नहीं है बल्कि बेहतर ढंग से खनन के लिए मैनेजमेंट करने की जरूरत है. ऐसे में अब इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि जरूरत के हिसाब से खनन नहीं होना चाहिए बल्कि नदी जितना मटेरियल प्रोवाइड कर रही है उतना ही नदी से निकलना चाहिए. जिससे नदी को भी नुकसान नहीं होगा.
राजीव सिन्हा ने कहा इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए नदियों से खनन की जरूरत है. उसका रिप्लेसमेंट कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री के पास नहीं है. ऐसे में ये ध्यान रखने की जरूरत है कि नदियों से अत्यधिक खनन न करें. उन्होंने कहा नदी जितना मेटेरियल ला रही है उतना ही हर साल उसमें से निकाले, ऐसे में नदी का बैलेंस और दिशा मेंटेन रहेगी. जितना मटेरियल नदी लेकर आ रही है उससे अधिक खनन किया जा रहा है. इससे नदियों पर बुरा असर पड़ रहा है. जिससे नदियां गहरी होती जा रही हैं. उनका स्वरूप बदल रहा है.
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