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IIT कानपुर की Research: तैयार होगी ऐसी दवा जो घटाएगी कोलेस्ट्रॉल, कोई साइड इफेक्ट भी नहीं

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर के जैविक विज्ञान और बायो इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ताओं के अध्ययन से एक अहम जानकारी सामने आई है. वो यह कि नियासिन जैसी कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाएं कैसे काम करती हैं.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 14, 2024, 9:05 AM IST

कानपुर : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर के जैविक विज्ञान और बायो इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ताओं के अध्ययन से एक अहम जानकारी सामने आई है. वो यह कि नियासिन जैसी कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाएं कैसे काम करती हैं. अत्याधुनिक क्रायोजेनिक-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) तकनीक का उपयोग करते हुए प्रोफेसर अरुण के. शुक्ला के नेतृत्व वाली टीम ने नियासिन और अन्य संबंधित दवाओं द्वारा नुकसान पहुंचाने वाले मालीक्यूल की पहचान कर ली है. इसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित भी किया गया है. मालीक्यूल तैयार करने के बाद चूहे पर सबसे पहले नई दवा का परीक्षण होगा, फिर बाजार में इसे लाया जाएगा.

तैयार होगी ऐसी दवा, जिसका नहीं होगा दुष्प्रभाव: आईआईटी कानपुर के वरिष्ठ प्रोफेसर अरुण शुक्ला ने बताया कि हमने शोध कार्य के दौरान जाना कि लोग कोलेस्ट्राल कम करने के लिए जिन दवाओं का प्रयोग करते हैं, उनमें दुष्प्रभाव बहुत अधिक होता है. हालांकि, अब हम ऐसी दवा तैयार करेंगे, जिससे कोलेस्ट्राल तो घटेगा ही, साथ ही कोई साइड इफेक्ट नहीं होगा. इससे अगर लोग लंबे समय तक कोलेस्ट्राल की दवा का उपयोग करते भी हैं तो उन्हें किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होगा. शोध के दौरान लोगों को दवा लेने के बाद जो दिक्कतें सामने आईं, उनमें त्वचा का लाल हो जाना और घबराहट आदि शामिल थीं. देश और दुनिया में अधिकांशत: लोग नियासिन का ही उपयोग करते हैं. प्रोफेसर शुक्ला ने कहा कि, “आण्विक स्तर पर नियासिन के साथ रिसेप्टर अणु GPR109A के तालमेल का विजुलाइजेशन नई दवाओं के निर्माण के लिए आधार तैयार करता है. जो अवांछनीय प्रतिक्रियाओं को कम करते हुए प्रभावकारिता बनाए रखती हैं. इस अध्ययन के नतीजे कोलेस्ट्रॉल के लिए संबंधित दवाएं और मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसी अन्य स्थितियों के लिए दवाएं विकसित करने में भी मदद करेंगे.

आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो.एस गणेश कहते हैं, यह एक महत्वपूर्ण सफलता है, क्योंकि यह दवा-रिसेप्टर इंटरैक्शन के बारे में हमारी समझ को गहरा करती है. साथ ही बेहतर चिकित्सीय एजेंटों के डिजाइन के लिए नए रास्ते खोलती है. यह उपलब्धि अनुसंधान में नवाचार और उत्कृष्टता के माध्यम से वास्तविक दुनिया की स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के प्रति हमारे समर्पण का उदाहरण देती है. नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशन के लिए इस शोध की स्वीकृति आईआईटी कानपुर में अनुसंधान एवं विकास की गुणवत्ता और उच्च मानकों का प्रमाण है.

कानपुर : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) कानपुर के जैविक विज्ञान और बायो इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ताओं के अध्ययन से एक अहम जानकारी सामने आई है. वो यह कि नियासिन जैसी कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवाएं कैसे काम करती हैं. अत्याधुनिक क्रायोजेनिक-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) तकनीक का उपयोग करते हुए प्रोफेसर अरुण के. शुक्ला के नेतृत्व वाली टीम ने नियासिन और अन्य संबंधित दवाओं द्वारा नुकसान पहुंचाने वाले मालीक्यूल की पहचान कर ली है. इसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित भी किया गया है. मालीक्यूल तैयार करने के बाद चूहे पर सबसे पहले नई दवा का परीक्षण होगा, फिर बाजार में इसे लाया जाएगा.

तैयार होगी ऐसी दवा, जिसका नहीं होगा दुष्प्रभाव: आईआईटी कानपुर के वरिष्ठ प्रोफेसर अरुण शुक्ला ने बताया कि हमने शोध कार्य के दौरान जाना कि लोग कोलेस्ट्राल कम करने के लिए जिन दवाओं का प्रयोग करते हैं, उनमें दुष्प्रभाव बहुत अधिक होता है. हालांकि, अब हम ऐसी दवा तैयार करेंगे, जिससे कोलेस्ट्राल तो घटेगा ही, साथ ही कोई साइड इफेक्ट नहीं होगा. इससे अगर लोग लंबे समय तक कोलेस्ट्राल की दवा का उपयोग करते भी हैं तो उन्हें किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होगा. शोध के दौरान लोगों को दवा लेने के बाद जो दिक्कतें सामने आईं, उनमें त्वचा का लाल हो जाना और घबराहट आदि शामिल थीं. देश और दुनिया में अधिकांशत: लोग नियासिन का ही उपयोग करते हैं. प्रोफेसर शुक्ला ने कहा कि, “आण्विक स्तर पर नियासिन के साथ रिसेप्टर अणु GPR109A के तालमेल का विजुलाइजेशन नई दवाओं के निर्माण के लिए आधार तैयार करता है. जो अवांछनीय प्रतिक्रियाओं को कम करते हुए प्रभावकारिता बनाए रखती हैं. इस अध्ययन के नतीजे कोलेस्ट्रॉल के लिए संबंधित दवाएं और मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसी अन्य स्थितियों के लिए दवाएं विकसित करने में भी मदद करेंगे.

आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो.एस गणेश कहते हैं, यह एक महत्वपूर्ण सफलता है, क्योंकि यह दवा-रिसेप्टर इंटरैक्शन के बारे में हमारी समझ को गहरा करती है. साथ ही बेहतर चिकित्सीय एजेंटों के डिजाइन के लिए नए रास्ते खोलती है. यह उपलब्धि अनुसंधान में नवाचार और उत्कृष्टता के माध्यम से वास्तविक दुनिया की स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के प्रति हमारे समर्पण का उदाहरण देती है. नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशन के लिए इस शोध की स्वीकृति आईआईटी कानपुर में अनुसंधान एवं विकास की गुणवत्ता और उच्च मानकों का प्रमाण है.

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