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संथाल में दो दशक के सुखाड़ खत्म करने की कोशिश में कांग्रेस! 2004 के बाद लोकसभा चुनाव में खाली रही देश की सबसे पुरानी पार्टी की झोली - Lok Sabha elections 2024

लोकसभा आम चुनाव 2024 अब अंतिम दौर में पहुंच गया है. सात चरणों में से देश में छह चरण का मतदान हो चुका है, अंतिम चरण के लिए 01 जून को वोटिंग होगी. झारखंड में संथाल की तीन लोकसभा क्षेत्र राजमहल, दुमका और गोड्डा में 01 जून को मतदान होगा.

LOK SABHA ELECTIONS 2024
डिजाइन इमेज (फोटो- ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : May 27, 2024, 6:57 PM IST

रांची: सभी राजनीतिक दलों के लिए राज्य की 14 में से संथाल की ये तीन सीट काफी मायने रखती है, लेकिन अगर बात कांग्रेस की करें तो उसके लिए इस लिहाज से संथाल महत्वपूर्ण हैं. क्योंकि दो दशक से उसका खाता इस क्षेत्र में नहीं खुला है. 2004 में गोड्डा लोकसभा सीट से फुरकान अंसारी की चुनावी जीत के बाद 2009, 2014 और 2019 में कांग्रेस का कोई उम्मीदवार संथाल क्षेत्र (राजमहल, गोड्डा और दुमका) से जीत हासिल नहीं कर पाया है. यहां हमें यह भी याद रखना होगा कि एक समय में इसी संथाल क्षेत्र में कांग्रेस बहुत मजबूत हुआ करती थी और लगातार उनके सांसद जीत कर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे.

बीजेपी और कांग्रेस प्रवक्ता के बयान (वीडियो- ईटीवी भारत)

राजमहल लोकसभा सीट

1952 में ही अस्तित्व में आये राजमहल लोकसभा सीट पर कभी कांग्रेस का क्या वर्चस्व रहा करता था, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 05 बार इस सीट से कांग्रेस विजयी हुई. रोचक पहलू यह है कि इस सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व उसी झामुमो ने 1989 में तोड़ा जिसके साथ आज उनका महागठबंधन है. इस सीट पर 1984 के बाद कभी कांग्रेस नहीं जीती है.

दुमका लोकसभा सीट

दुमका लोकसभा सीट को भले ही आज झारखंड मुक्ति मोर्चा के गढ़ माना जाता है, लेकिन संभवतः बहुत कम लोगों को पता होगा कि 1957 से लेकर 1984 तक हुए लोकसभा चुनावों में चार बार दुमका सीट पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी और तीन बार वह चुनावी मुकाबले में दूसरे नंबर पर रही थी. 1989 में अंतिम बार झामुमो के नेता शिबू सोरेन के हाथों कांग्रेस उम्मीदवार पृथ्वी चंद किस्कू की हार के बाद से कांग्रेस कभी मुख्य मुकाबले में भी नहीं दिखी. बाद के दिनों में गठबंधन की राजनीति में यह सीट उसके हाथ से भी निकल गया .

गोड्डा लोकसभा सीट

पूरे संथाल क्षेत्र में लोकसभा की एक मात्र गोड्डा लोकसभा सीट ऐसा है जहां कांग्रेस के लिए अपना खाता खोलने की संभावना बनी और बची है. लेकिन इस सीट पर भी 2004 के बाद कांग्रेस कभी जीत दर्ज नहीं कर पाई है. आखिरी बार 2004 में कांग्रेस के फुरकान अंसारी ने भाजपा के प्रदीप यादव को हरा कर यह सीट जीती थी. उसके बाद 2009 में शिबू सोरेन के बड़े बेटे दुर्गा सोरेन के बगावत कर निर्दलीय मैदान में उतर जाने से कांग्रेसी उम्मीदवार फुरकान अंसारी भाजपा के निशिकांत दुबे के हाथों महज 6407 वोट से हार गए थे. लेकिन इसके बाद 2014 में कांग्रेस के फुरकान अंसारी की 60 हजार से अधिक मतों से हार हुई और 2019 में महागठबंधन में यह सीट बाबूलाल की पार्टी जेवीएम के खाते में चली गयी, प्रदीप यादव महागठबंधन के उम्मीदवार बने लेकिन वह निशिकांत दुबे से 184227 मतों से हार गए.

बाबूलाल मरांडी के भाजपा में चले जाने के बाद फिर एक बार INDIA ब्लॉक में गोड्डा की सीट कांग्रेस के खाते में आई है और इस बार भी प्रदीप यादव उम्मीदवार हैं. अब देखना होगा कि लोकसभा चुनाव में संथाल में कांग्रेस की दो दशकों की सुखाड़ को प्रदीप यादव अपनी जीत से हरा भरा कर पाते हैं या फिर कांग्रेस को अभी और लंबा इंतजार करना होगा.

पहले क्षेत्रीय राजनीति का उदय और बाद में भाजपा विरोध में गठबंधन की राजनीति से कांग्रेस को नुकसान

संथाल के क्षेत्र की लोकसभा सीटों पर कांग्रेस की दो दशकों की सुखाड़ के सवाल पर झारखंड की राजनीति को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि संथाल ही नहीं पूरे बिहार-झारखंड में कांग्रेस कमजोर है. ये इसलिए है क्योंकि क्षेत्रीय दल काफी मजबूती से लोगों के बीच अपनी पैठ बनाते चले गए. बिहार में जनता दल और झारखंड में झामुमो ने सबसे ज्यादा कांग्रेस के वोट बैंक को ही निशाना बनाया. सतेंद्र सिंह कहते हैं कि बाद के दिनों में जब भाजपा का उभार होता गया वैसे वैसे बाकी बचे कोर वोटर में से ज्यादातर भाजपा की ओर चले गए. सतेंद्र सिंह कहते हैं कि जब बाद में भाजपा को रोकने लिए महागठबंधन की राजनीति शुरू हुई तो उसका लाभ भी क्षेत्रीय दलों ने अधिक उठाया.

वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि संथाल क्षेत्र में कांग्रेस ज्यादा पिछड़ते इसलिए चली गयी क्योकि यहां कांग्रेस का मुकाबला राजमहल, दुमका में झामुमो से ही होता था. महागठबंधन की राजनीति में बाद में सीट झामुमो को मिलती रही और पार्टी का संगठन कमजोर होता गया.

अपनी गलतियों का खामियाजा भुगत रही है कांग्रेस- भाजपा

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रदीप सिन्हा कहते हैं कि संथाल में कांग्रेस अपनी कारगुजारियों से कमजोर हुई है. जनता के उम्मीदों पर खड़ी नहीं उतरी कांग्रेस की जगह पहले लोगों ने क्षेत्रीय दलों पर ज्यादा भरोसा किया. इसके बाद भाजपा की तरफ लोगों का आकर्षण बढ़ गया. अब संथाल में कांग्रेस के लिए कोई होप और स्कोप नहीं बचा है.

इस बार माहौल कांग्रेस के पक्ष में-राकेश सिन्हा

कांग्रेस के लिए पिछले दो दशक से लोकसभा चुनाव में संथाल इलाके में सुखाड़ वाली स्थिति पर भाजपा के तंज का जवाब देते हुए झारखंड कांग्रेस के प्रदेश महासचिव राकेश सिन्हा ने कहा कि भाजपा ज्यादा उत्साहित न हों. इस बार जनता महंगाई,बेरोजगारी,सरना धर्म कोड पर वोट कर रही है और इस बार संथाल में कांग्रेस की गोड्डा में प्रचंड जीत होगी.

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रांची: सभी राजनीतिक दलों के लिए राज्य की 14 में से संथाल की ये तीन सीट काफी मायने रखती है, लेकिन अगर बात कांग्रेस की करें तो उसके लिए इस लिहाज से संथाल महत्वपूर्ण हैं. क्योंकि दो दशक से उसका खाता इस क्षेत्र में नहीं खुला है. 2004 में गोड्डा लोकसभा सीट से फुरकान अंसारी की चुनावी जीत के बाद 2009, 2014 और 2019 में कांग्रेस का कोई उम्मीदवार संथाल क्षेत्र (राजमहल, गोड्डा और दुमका) से जीत हासिल नहीं कर पाया है. यहां हमें यह भी याद रखना होगा कि एक समय में इसी संथाल क्षेत्र में कांग्रेस बहुत मजबूत हुआ करती थी और लगातार उनके सांसद जीत कर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे.

बीजेपी और कांग्रेस प्रवक्ता के बयान (वीडियो- ईटीवी भारत)

राजमहल लोकसभा सीट

1952 में ही अस्तित्व में आये राजमहल लोकसभा सीट पर कभी कांग्रेस का क्या वर्चस्व रहा करता था, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 05 बार इस सीट से कांग्रेस विजयी हुई. रोचक पहलू यह है कि इस सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व उसी झामुमो ने 1989 में तोड़ा जिसके साथ आज उनका महागठबंधन है. इस सीट पर 1984 के बाद कभी कांग्रेस नहीं जीती है.

दुमका लोकसभा सीट

दुमका लोकसभा सीट को भले ही आज झारखंड मुक्ति मोर्चा के गढ़ माना जाता है, लेकिन संभवतः बहुत कम लोगों को पता होगा कि 1957 से लेकर 1984 तक हुए लोकसभा चुनावों में चार बार दुमका सीट पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी और तीन बार वह चुनावी मुकाबले में दूसरे नंबर पर रही थी. 1989 में अंतिम बार झामुमो के नेता शिबू सोरेन के हाथों कांग्रेस उम्मीदवार पृथ्वी चंद किस्कू की हार के बाद से कांग्रेस कभी मुख्य मुकाबले में भी नहीं दिखी. बाद के दिनों में गठबंधन की राजनीति में यह सीट उसके हाथ से भी निकल गया .

गोड्डा लोकसभा सीट

पूरे संथाल क्षेत्र में लोकसभा की एक मात्र गोड्डा लोकसभा सीट ऐसा है जहां कांग्रेस के लिए अपना खाता खोलने की संभावना बनी और बची है. लेकिन इस सीट पर भी 2004 के बाद कांग्रेस कभी जीत दर्ज नहीं कर पाई है. आखिरी बार 2004 में कांग्रेस के फुरकान अंसारी ने भाजपा के प्रदीप यादव को हरा कर यह सीट जीती थी. उसके बाद 2009 में शिबू सोरेन के बड़े बेटे दुर्गा सोरेन के बगावत कर निर्दलीय मैदान में उतर जाने से कांग्रेसी उम्मीदवार फुरकान अंसारी भाजपा के निशिकांत दुबे के हाथों महज 6407 वोट से हार गए थे. लेकिन इसके बाद 2014 में कांग्रेस के फुरकान अंसारी की 60 हजार से अधिक मतों से हार हुई और 2019 में महागठबंधन में यह सीट बाबूलाल की पार्टी जेवीएम के खाते में चली गयी, प्रदीप यादव महागठबंधन के उम्मीदवार बने लेकिन वह निशिकांत दुबे से 184227 मतों से हार गए.

बाबूलाल मरांडी के भाजपा में चले जाने के बाद फिर एक बार INDIA ब्लॉक में गोड्डा की सीट कांग्रेस के खाते में आई है और इस बार भी प्रदीप यादव उम्मीदवार हैं. अब देखना होगा कि लोकसभा चुनाव में संथाल में कांग्रेस की दो दशकों की सुखाड़ को प्रदीप यादव अपनी जीत से हरा भरा कर पाते हैं या फिर कांग्रेस को अभी और लंबा इंतजार करना होगा.

पहले क्षेत्रीय राजनीति का उदय और बाद में भाजपा विरोध में गठबंधन की राजनीति से कांग्रेस को नुकसान

संथाल के क्षेत्र की लोकसभा सीटों पर कांग्रेस की दो दशकों की सुखाड़ के सवाल पर झारखंड की राजनीति को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि संथाल ही नहीं पूरे बिहार-झारखंड में कांग्रेस कमजोर है. ये इसलिए है क्योंकि क्षेत्रीय दल काफी मजबूती से लोगों के बीच अपनी पैठ बनाते चले गए. बिहार में जनता दल और झारखंड में झामुमो ने सबसे ज्यादा कांग्रेस के वोट बैंक को ही निशाना बनाया. सतेंद्र सिंह कहते हैं कि बाद के दिनों में जब भाजपा का उभार होता गया वैसे वैसे बाकी बचे कोर वोटर में से ज्यादातर भाजपा की ओर चले गए. सतेंद्र सिंह कहते हैं कि जब बाद में भाजपा को रोकने लिए महागठबंधन की राजनीति शुरू हुई तो उसका लाभ भी क्षेत्रीय दलों ने अधिक उठाया.

वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि संथाल क्षेत्र में कांग्रेस ज्यादा पिछड़ते इसलिए चली गयी क्योकि यहां कांग्रेस का मुकाबला राजमहल, दुमका में झामुमो से ही होता था. महागठबंधन की राजनीति में बाद में सीट झामुमो को मिलती रही और पार्टी का संगठन कमजोर होता गया.

अपनी गलतियों का खामियाजा भुगत रही है कांग्रेस- भाजपा

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रदीप सिन्हा कहते हैं कि संथाल में कांग्रेस अपनी कारगुजारियों से कमजोर हुई है. जनता के उम्मीदों पर खड़ी नहीं उतरी कांग्रेस की जगह पहले लोगों ने क्षेत्रीय दलों पर ज्यादा भरोसा किया. इसके बाद भाजपा की तरफ लोगों का आकर्षण बढ़ गया. अब संथाल में कांग्रेस के लिए कोई होप और स्कोप नहीं बचा है.

इस बार माहौल कांग्रेस के पक्ष में-राकेश सिन्हा

कांग्रेस के लिए पिछले दो दशक से लोकसभा चुनाव में संथाल इलाके में सुखाड़ वाली स्थिति पर भाजपा के तंज का जवाब देते हुए झारखंड कांग्रेस के प्रदेश महासचिव राकेश सिन्हा ने कहा कि भाजपा ज्यादा उत्साहित न हों. इस बार जनता महंगाई,बेरोजगारी,सरना धर्म कोड पर वोट कर रही है और इस बार संथाल में कांग्रेस की गोड्डा में प्रचंड जीत होगी.

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