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100 में से 42 रुपये सैलरी व पेंशन पर खर्च, कैसे होगा हिमाचल का विकास - Himachal govt economical crisis

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jun 27, 2024, 8:15 PM IST

Himachal govt economical crisis: हिमाचल प्रदेश में हाल ही में वित्त आयोग की टीम का 3 दिन का दौरा था. वित्त आयोग की टीम ने प्रदेश की सुक्खू सरकार व अधिकारियों के साथ बैठक की और प्रदेश की आर्थिक समस्याओं और विकास कार्यों को समझा.

Debt on Himachal
कर्ज के बोझ तले दबा हिमाचल (ETV Bharat GFX)

शिमला: सरकारी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम का ऐलान और महिलाओं को 1500 रुपये देने की गारंटी के साथ अन्य लोक लुभावन वादे कर सत्ता में आई कांग्रेस सरकार इस समय घोर आर्थिक संकट से जूझ रही है.

प्रदेश के पास संसाधन सीमित हैं और खर्चे बहुत अधिक हैं. मुख्य रूप से खर्चा सरकारी कर्मचारियों की सैलरी व पेंशन का है. साल 2024-25 के बजट की बात की जाए तो इस वित्त वर्ष में अगर सरकार का 100 रुपये का बजट है तो कर्मचारियों की सैलरी व पेंशन पर 42 रुपये खर्च हो रहे हैं. इसमें 25 रुपये सैलरी पर व 17 रुपये पेंशन पर खर्च हो रहे हैं. वहीं, बचे हुआ पैसा हिमाचल में अन्य विकास कार्यों पर खर्चा होगा.

ओपीएस लागू करने के बाद आने वाले सालों में पेंशन पर खर्च अभी और बढ़ेगा. हाल ही में प्रदेश में वित्त आयोग की टीम का तीन दिन का दौरा था. वित्त आयोग की टीम के समक्ष पेश किए गए आंकड़े हिमाचल की चिंताजनक आर्थिक स्थिती को दर्शाते हैं.

इसमें प्रदेश सरकार ने अपने खर्चों का ब्यौरा दिया है. ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने और महिलाओं को 1500 रुपये देने का ऐलान और प्रदेश सरकार पर बढ़ते कर्ज ने सरकार की नींद उड़ा दी है.

100 में से 42 रुपये सैलरी व पेंशन पर खर्च:

वित्त वर्ष सैलरी पर खर्च
2026-2720,639 करोड़ रुपये
2027-28 22,502 करोड़ रुपये
2028-2924145 करोड़ रुपये
2029-3026261 करोड़ रुपये
2030-3128354 करोड़ रुपये

हिमाचल में आने वाले पांच साल में वेतन का खर्च 1.21 लाख करोड़ रुपये से अधिक होगा. आंकड़ों पर गौर करें तो वित्त वर्ष 2026-27 में सरकारी कर्मियों के वेतन पर ही सालाना 20639 करोड़ रुपए खर्च होंगे. वित्त वर्ष 2027-28 में ये खर्च 22502 करोड़ सालाना, फिर वर्ष 2028-29 में 24145 करोड़, वर्ष 2029-30 में 26261 करोड़ रुपये हो जाएगा. वर्ष 2030-31 में सरकारी कर्मियों के वेतन का खर्च सालाना 28354 करोड़ रुपए हो जाएगा. ये सारा कुल मिलाकर 121901 करोड़ रुपये बनता है.

हिमाचल पर 85 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज:

हिमाचल सरकार पर अभी 85 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज हो गया है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि राज्य सरकार को कर्ज चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है. अगले वित्तीय वर्ष से पहले ही कर्ज का आंकड़ा एक लाख करोड़ रुपये को पार कर जाएगा. यदि सोलहवें वित्त आयोग से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट अच्छी मिल गई तो राज्य सरकार को कुछ राहत मिल सकती है. यदि राज्य सरकार को माहवार 1500 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व घाटा अनुदान मिल जाए तो वेतन आदि के खर्च में कुछ सहूलियत हो जाएगी.

राज्य सरकार ने वित्त आयोग के समक्ष तर्क दिया है कि वाटर सेस के तहत आय बढ़ाने का विकल्प तलाश किया गया था, लेकिन ये फैसला अदालतों के फेर में फंस गया है. बीबीएमबी से राज्य सरकार को अपना 4000 करोड़ रुपये के करीब का एरियर नहीं मिला है. इसके अलावा वन संपदा के दोहन की इजाजत मिले तो सालाना चार हजार करोड़ रुपये राजस्व जुटाया जा सकता है.

वित्त आयोग के ध्यान में हैं मुफ्त की रेवड़ियां:

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में लोक लुभावने व मुफ्त की रेवड़ियों का वादा कर कांग्रेस पार्टी जनता का भरोसा जीतने में सफल रही थी. अब सुक्खू सरकार के पास एक और चुनौती है और वह चुनौती है वित्त आयोग का भरोसा जीतना. राजनीतिक दलों में मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की प्रवृति से खजाने पर पड़ने वाले बोझ को लेकर 16वां वित्त आयोग गंभीर है. इसके साथ ही कई राज्यों में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने से सरकारी कोष पर पड़ रहा विपरीत प्रभाव भी वित्त आयोग के ध्यान में है. सोलहवें वित्त आयोग ने अपने गठन के बाद सबसे पहले हिमाचल का दौरा किया है. फिलहाल वित्त आयोग ने राज्य सरकार के साथ बैठक कर हिमाचल की जरूरतों को अच्छी तरह से समझा है. वित्त आयोग ने स्वीकार किया है कि मैदानी इलाकों के मुकाबले पहाड़ों में किसी भी काम को करने के लिए बजट अधिक चाहिए होता है.

ये भी पढ़ें: कर्ज में डूबी हिमाचल सरकार नहीं झेल पाएगी कर्मियों के वेतन का भार, 2026-27 में सिर्फ सैलरी देने को 20639 करोड़ की जरूरत

हिमाचल सरकार के पूर्व वित्त सचिव केआर भारती कहते हैं कि कर्ज राज्यों के लिए एक कड़वी हकीकत है और हिमाचल जैसे छोटे राज्य के लिए ये बड़ी मुसीबत है क्योंकि छोटे पहाड़ी राज्य के पास आय के सीमित संसाधन हैं. पर्यटन और बागवानी जैसे क्षेत्र हैं लेकिन वो भी मौसम पर निर्भर हैं. हिमाचल के सियासतदानों और खासकर दोनों प्रमुख दलों को राजनीति से हटकर राजस्व बढ़ाने के उपायों पर चिंतन करना होगा. कांग्रेस सरकार ने ओपीएस का वादा किया और निभा भी दिया लेकिन आने वाले समय में ओपीएस का बोझ खजाने की कमर तोड़ने वाला है. डीए और एरियर का भुगतान न होने से कर्मचारियों में असंतोष बढ़ना भी लाजमी होगा ऐसे में नई राहें तलाशनी बहुत जरूरी है.

CAG ने भी हिमाचल को कृषि सेक्टर और सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने का सुझाव दिया है. कैग के अनुसार कृषि सेक्टर को मजबूत कर आर्थिक दशा सुधारी जा सकती है. कृषि सेक्टर को मजबूत करने से पहले राज्य को सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने की जरूरत है. पर्यटन क्षेत्र में बहुत स्कोप है लेकिन उसका फायदा उठाने के लिए कई कदम उठाने की जरूरत है.

केआर भारती के अनुसार, आबकारी विभाग सबसे बड़ा राजस्व का जरिया है. उनकी सलाह है कि प्रदेश सरकार को पर्यटन, हाइड्रो पावर पर और अधिक फोकस करना होगा. सैलानियों का आंकड़ा कम से कम पांच करोड़ सालाना होने से पर्यटन सेक्टर में उछाल आएगा. दिल्ली से हवाई सेवाओं को सुचारू करने से ही हिमाचल को पर्यटन से बड़ी रकम मिल सकती है.

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार नवनीत शर्मा कहते हैं कि सियासी दल सत्ता में आने के लिए लोकलुभावन घोषणाएं करते हैं और फिर रेवड़ियां बांटना चलन सा हो गया है जो सरकारी खजाने की सेहत पर बुरा असर डालती हैं. ऐसे में पहले से कर्ज के बोझ से जूझ रहे राज्य के लिए मुफ्त की रेवड़ियों से परहेज करना होगा. चाहे फिर बिजली फ्री की बात हो या सम्मान निधि देने की, हिमाचल के पास पहले ही आर्थिक संसाधन ना के बराबर हैं. उस पर ऐसी घोषणाएं भविष्य के खतरे को बढ़ा रही हैं. इस पर सियासतदानों को एक साथ आना होगा और सत्ता के लिए रेवड़ियां बांटने की होड़ पर लगाम लगानी होगी.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में पड़ेंगे सैलरी व पेंशन के लाले, पांच साल में वेतन को चाहिए 1.21 लाख करोड़, पेंशन का खर्च होगा 90 हजार करोड़

शिमला: सरकारी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम का ऐलान और महिलाओं को 1500 रुपये देने की गारंटी के साथ अन्य लोक लुभावन वादे कर सत्ता में आई कांग्रेस सरकार इस समय घोर आर्थिक संकट से जूझ रही है.

प्रदेश के पास संसाधन सीमित हैं और खर्चे बहुत अधिक हैं. मुख्य रूप से खर्चा सरकारी कर्मचारियों की सैलरी व पेंशन का है. साल 2024-25 के बजट की बात की जाए तो इस वित्त वर्ष में अगर सरकार का 100 रुपये का बजट है तो कर्मचारियों की सैलरी व पेंशन पर 42 रुपये खर्च हो रहे हैं. इसमें 25 रुपये सैलरी पर व 17 रुपये पेंशन पर खर्च हो रहे हैं. वहीं, बचे हुआ पैसा हिमाचल में अन्य विकास कार्यों पर खर्चा होगा.

ओपीएस लागू करने के बाद आने वाले सालों में पेंशन पर खर्च अभी और बढ़ेगा. हाल ही में प्रदेश में वित्त आयोग की टीम का तीन दिन का दौरा था. वित्त आयोग की टीम के समक्ष पेश किए गए आंकड़े हिमाचल की चिंताजनक आर्थिक स्थिती को दर्शाते हैं.

इसमें प्रदेश सरकार ने अपने खर्चों का ब्यौरा दिया है. ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने और महिलाओं को 1500 रुपये देने का ऐलान और प्रदेश सरकार पर बढ़ते कर्ज ने सरकार की नींद उड़ा दी है.

100 में से 42 रुपये सैलरी व पेंशन पर खर्च:

वित्त वर्ष सैलरी पर खर्च
2026-2720,639 करोड़ रुपये
2027-28 22,502 करोड़ रुपये
2028-2924145 करोड़ रुपये
2029-3026261 करोड़ रुपये
2030-3128354 करोड़ रुपये

हिमाचल में आने वाले पांच साल में वेतन का खर्च 1.21 लाख करोड़ रुपये से अधिक होगा. आंकड़ों पर गौर करें तो वित्त वर्ष 2026-27 में सरकारी कर्मियों के वेतन पर ही सालाना 20639 करोड़ रुपए खर्च होंगे. वित्त वर्ष 2027-28 में ये खर्च 22502 करोड़ सालाना, फिर वर्ष 2028-29 में 24145 करोड़, वर्ष 2029-30 में 26261 करोड़ रुपये हो जाएगा. वर्ष 2030-31 में सरकारी कर्मियों के वेतन का खर्च सालाना 28354 करोड़ रुपए हो जाएगा. ये सारा कुल मिलाकर 121901 करोड़ रुपये बनता है.

हिमाचल पर 85 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज:

हिमाचल सरकार पर अभी 85 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज हो गया है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि राज्य सरकार को कर्ज चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है. अगले वित्तीय वर्ष से पहले ही कर्ज का आंकड़ा एक लाख करोड़ रुपये को पार कर जाएगा. यदि सोलहवें वित्त आयोग से रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट अच्छी मिल गई तो राज्य सरकार को कुछ राहत मिल सकती है. यदि राज्य सरकार को माहवार 1500 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व घाटा अनुदान मिल जाए तो वेतन आदि के खर्च में कुछ सहूलियत हो जाएगी.

राज्य सरकार ने वित्त आयोग के समक्ष तर्क दिया है कि वाटर सेस के तहत आय बढ़ाने का विकल्प तलाश किया गया था, लेकिन ये फैसला अदालतों के फेर में फंस गया है. बीबीएमबी से राज्य सरकार को अपना 4000 करोड़ रुपये के करीब का एरियर नहीं मिला है. इसके अलावा वन संपदा के दोहन की इजाजत मिले तो सालाना चार हजार करोड़ रुपये राजस्व जुटाया जा सकता है.

वित्त आयोग के ध्यान में हैं मुफ्त की रेवड़ियां:

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में लोक लुभावने व मुफ्त की रेवड़ियों का वादा कर कांग्रेस पार्टी जनता का भरोसा जीतने में सफल रही थी. अब सुक्खू सरकार के पास एक और चुनौती है और वह चुनौती है वित्त आयोग का भरोसा जीतना. राजनीतिक दलों में मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की प्रवृति से खजाने पर पड़ने वाले बोझ को लेकर 16वां वित्त आयोग गंभीर है. इसके साथ ही कई राज्यों में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने से सरकारी कोष पर पड़ रहा विपरीत प्रभाव भी वित्त आयोग के ध्यान में है. सोलहवें वित्त आयोग ने अपने गठन के बाद सबसे पहले हिमाचल का दौरा किया है. फिलहाल वित्त आयोग ने राज्य सरकार के साथ बैठक कर हिमाचल की जरूरतों को अच्छी तरह से समझा है. वित्त आयोग ने स्वीकार किया है कि मैदानी इलाकों के मुकाबले पहाड़ों में किसी भी काम को करने के लिए बजट अधिक चाहिए होता है.

ये भी पढ़ें: कर्ज में डूबी हिमाचल सरकार नहीं झेल पाएगी कर्मियों के वेतन का भार, 2026-27 में सिर्फ सैलरी देने को 20639 करोड़ की जरूरत

हिमाचल सरकार के पूर्व वित्त सचिव केआर भारती कहते हैं कि कर्ज राज्यों के लिए एक कड़वी हकीकत है और हिमाचल जैसे छोटे राज्य के लिए ये बड़ी मुसीबत है क्योंकि छोटे पहाड़ी राज्य के पास आय के सीमित संसाधन हैं. पर्यटन और बागवानी जैसे क्षेत्र हैं लेकिन वो भी मौसम पर निर्भर हैं. हिमाचल के सियासतदानों और खासकर दोनों प्रमुख दलों को राजनीति से हटकर राजस्व बढ़ाने के उपायों पर चिंतन करना होगा. कांग्रेस सरकार ने ओपीएस का वादा किया और निभा भी दिया लेकिन आने वाले समय में ओपीएस का बोझ खजाने की कमर तोड़ने वाला है. डीए और एरियर का भुगतान न होने से कर्मचारियों में असंतोष बढ़ना भी लाजमी होगा ऐसे में नई राहें तलाशनी बहुत जरूरी है.

CAG ने भी हिमाचल को कृषि सेक्टर और सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने का सुझाव दिया है. कैग के अनुसार कृषि सेक्टर को मजबूत कर आर्थिक दशा सुधारी जा सकती है. कृषि सेक्टर को मजबूत करने से पहले राज्य को सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने की जरूरत है. पर्यटन क्षेत्र में बहुत स्कोप है लेकिन उसका फायदा उठाने के लिए कई कदम उठाने की जरूरत है.

केआर भारती के अनुसार, आबकारी विभाग सबसे बड़ा राजस्व का जरिया है. उनकी सलाह है कि प्रदेश सरकार को पर्यटन, हाइड्रो पावर पर और अधिक फोकस करना होगा. सैलानियों का आंकड़ा कम से कम पांच करोड़ सालाना होने से पर्यटन सेक्टर में उछाल आएगा. दिल्ली से हवाई सेवाओं को सुचारू करने से ही हिमाचल को पर्यटन से बड़ी रकम मिल सकती है.

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार नवनीत शर्मा कहते हैं कि सियासी दल सत्ता में आने के लिए लोकलुभावन घोषणाएं करते हैं और फिर रेवड़ियां बांटना चलन सा हो गया है जो सरकारी खजाने की सेहत पर बुरा असर डालती हैं. ऐसे में पहले से कर्ज के बोझ से जूझ रहे राज्य के लिए मुफ्त की रेवड़ियों से परहेज करना होगा. चाहे फिर बिजली फ्री की बात हो या सम्मान निधि देने की, हिमाचल के पास पहले ही आर्थिक संसाधन ना के बराबर हैं. उस पर ऐसी घोषणाएं भविष्य के खतरे को बढ़ा रही हैं. इस पर सियासतदानों को एक साथ आना होगा और सत्ता के लिए रेवड़ियां बांटने की होड़ पर लगाम लगानी होगी.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में पड़ेंगे सैलरी व पेंशन के लाले, पांच साल में वेतन को चाहिए 1.21 लाख करोड़, पेंशन का खर्च होगा 90 हजार करोड़

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