नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने पूर्व रेल मंत्री एलएन मिश्रा के पोते की 48 साल पहले बिहार के समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर हुए विस्फोट में उनकी हत्या की निष्पक्ष दोबारा जांच की मांग वाली याचिका 16 मई को सूचीबद्ध की. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ ने वैभव मिश्रा के आवेदन को दोषियों की अपील के साथ सूचीबद्ध किया है.
दरअसल, दिगवंत कांग्रेस के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री एलएन मिश्रा को समस्तीपुर में ग्रेनेड विस्फोटों में घातक चोटें आई थी. उन्हें इलाज के लिए समस्तीपुर से दानापुर स्थानांतरित कर दिया गया, जहां 3 जनवरी, 1975 को चोटों के कारण उन्होंने दम तोड़ दिया. वैभव मिश्रा ने उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसमें निर्देश देने की उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी.
सीबीआई इस मामले में "निष्पक्ष जांच" और "पुनः जांच" करेगी. यह आरोप लगाते हुए कि जांच विफल हो गई थी, मिश्रा ने कई आधारों पर नए सिरे से जांच की मांग की थी, जिसमें यह भी शामिल था कि असली दोषियों को बरी कर दिया गया, जिससे "न्याय का मजाक" बना है. पूर्व रेल मंत्री और दो अन्य की हत्या के लिए ट्रायल कोर्ट ने दिसंबर 2014 में तीन 'आनंद मार्गियों' संतोषानंद, सुदेवानंद और गोपालजी और दोषी वकील रंजन द्विवेदी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
ट्रायल कोर्ट ने माना था कि आतंकवादी कृत्य का उद्देश्य जेल में बंद समूह के प्रमुख को रिहा करने के लिए तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार पर दबाव डालना था. दोषियों ने 2015 में उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की थी और निचली अदालत द्वारा उन्हें दोषी ठहराए जाने और सजा सुनाए जाने के फैसले को चुनौती दी थी और उन्हें जमानत दे दी गई थी. अपील अभी भी उच्च न्यायालय में लंबित है.
ट्रायल कोर्ट ने बिहार सरकार को एलएन मिश्रा और दो अन्य पीड़ितों के कानूनी उत्तराधिकारियों को 5-5 लाख रुपये देने का भी निर्देश दिया था, जो आपातकाल की घोषणा से कुछ महीने पहले तीन जनवरी 1975 को ग्रेनेड विस्फोट में मारे गए थे. कोर्ट ने माना था कि एलएन मिश्रा को खत्म करने की साजिश 1973 में बिहार के भागलपुर जिले के एक गाँव में एक बैठक में रची गई थी. इस साजिश में छह लोग शामिल थे.
बता दें, आरोपी राम नगीना प्रसाद और राम रूप को अदालत ने जनवरी 1981 में बरी कर दिया, जबकि अर्तेशानंद अवधूत की मामले की सुनवाई के दौरान 2004 में मृत्यु हो गई. दो अन्य, विशेश्वरानंद और विक्रम को सरकारी गवाह बनने के बाद माफ़ी दे दी गई. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मामला बिहार से दिल्ली ट्रांसफर किया गया था.