नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने रेलिगेयर कंपनी के पूर्व प्रमोटर शिवेंद्र सिंह के खिलाफ सीरियस फ्राड इंवेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) की ओर से जारी लुकआउट सर्कुलर नोटिस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. शिवेंद्र ने लुकआउट सर्कुलर नोटिस पर रोक लगाने की मांग की थी ताकि वे ब्रिटेन में पढ़ाई कर रहे अपने बेटों की ग्रेजुएशन सेरेमनी में शामिल हो सकें.
जस्टिस धर्मेश शर्मा की वेकेशन बेंच ने कहा कि शिवेंद्र सिंह की विदेश में भी काफी संपत्ति है और अगर उन्हें विदेश जाने की अनुमति दी जाती है तो उनके भारत लौटने की संभावना कम है. इससे जांच और ट्रायल पर असर पड़ेगा. सिंह ने 14 जून से लेकर 4 जुलाई और 20 अगस्त से लेकर 10 सितंबर तक ब्रिटेन जाने की अनुमति मांगी थी. इसके पहले उन्होंने द्वारका कोर्ट में एसएफआईओ के लुकआउट सर्कुलर पर रोक लगाने की मांग की थी, जिसे खारिज कर दिया गया था. उसके बाद शिवेंद्र सिंह ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
शिवेंद्र सिंह की ओर से पेश वकील अमित सिब्बल ने कहा कि एसएफआईओ की ओर से फोर्टिस हेल्थकेयर लिमिटेड और रेलिगेयर इंटरप्राइजेज लिमिटेड और दूसरी संबंधित कंपनियों के खिलाफ 17 फरवरी 2018 से जांच शुरू की गई, लेकिन अभी तक उनके खिलाफ अंतिम जांच रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई. सिब्बल ने कहा कि इस मामले में अभी तक शिवेंद्र सिंह को गिरफ्तार भी नहीं किया गया है और जब भी जांच एजेंसी ने बुलाया है उन्होंने सहयोग किया है. शिवेंद्र सिंह की पत्नी अपने बेटों को ग्रेजुएशन सेरेमनी में हिस्सा लेने के लिए हाल ही में ब्रिटेन गई हैं.
सुनवाई के दौरान एसएफआईओ की ओर से पेश वकील अरुणिमा द्विवेदी ने कहा कि आरोपी ने जो हलफनामा दिया है वो काफी भ्रमपूर्ण है. इसमें कहा गया है कि उसकी भारत या विदेश में कोई संपत्ति नहीं है. ये हलफनामा झूठा है. उन्होंने कहा कि शिवेंद्र सिंह की शिव होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड (एसएचपीएल) में 99 फीसदी शेयर है. एसएचपीएल का आरएचसी होल्डिंग में 50 फीसदी शेयर है.
उन्होंने कहा कि जांच में ये पता चला है कि फंड विदेश की कई कंपनियों में डायवर्ट किया गया है. द्विवेदी ने शिवेंद्र सिंह के 2022-23 के इनकम टैक्स रिटर्न का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि वे कई कंपनियों में शेयर होल्डर हैं. इसमें तीन कंपनियां विदेश में स्थित हैं. याचिकाकर्ता ने अपने बच्चों के ग्रेजुएशन सेरेमनी में शामिल होने की अनुमति मांगी है. एक पिता के लिए ये एक भावनात्मक क्षण होता है, लेकिन अगर देश के अर्थव्यवस्था का ध्यान रखें तो याचिकाकर्ता को इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है.
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