देहरादून (उत्तराखंड): हमारे फूड चेन में छोटे से जीव यानी मधुमक्खियों की बड़ी हिस्सेदारी होती है. हम सभी मधुमक्खियों के अस्तित्व पर निर्भर हैं. मधुमक्खियां फूलों के परागण में मदद करती हैं, जिससे फसलों की पैदावार बढ़ती है. जो सीधे तौर पर हमारे खाद्य स्रोत को सुरक्षित रखती हैं. इसके अलावा मधुमक्खियां पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) में अहम भूमिका निभाती हैं. ऐसे में उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता है.
क्यों मनाया जाता है विश्व मधुमक्खी दिवस? ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए मधुमक्खी वैज्ञानिक प्रोफेसर वीपी उनियाल ने बताया कि एक यूरोपियन पेंटर और आर्टिस्ट एंटोन जंसा (Anton Jansa) के जन्मदिन पर पूरे विश्व में विश्व मधुमक्खी दिवस मनाया जाता है. एंटोन जंसा का जन्म 20 मई 1734 को हुआ था. एंटोन जंसा ने अपना पूरा जीवन मधुमक्खियों और बी की प्रजातियों के संरक्षण में लगा दिया था.
यही वजह है कि दुनिया भर में 20 मई का दिन विश्व मधुमक्खी दिवस के रूप में मनाया जाता है. प्रोफेसर बीपी उनियाल बताते हैं कि वो एक पेंटर थे और उन्होंने मधुमक्खियों को लेकर अपनी पेंटिंग के जरिए पूरी दुनिया को बताया कि बी हमारे पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) के लिए कितनी जरूरी है और इसके संरक्षण के क्या महत्व हैं?
धरती पर मधुमक्खी न हो तो केवल 4 साल तक ही जीवित रह पाएगा इंसान: ईटीवी भारत से बातचीत में प्रोफेसर बीपी उनियाल ने कहा कि मधुमक्खी (BEE) के महत्व को वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कुछ इस तरह से व्यक्त किया था कि यदि धरती से मधुमक्खियों को हटा दिया जाए तो पूरी मानव सभ्यता केवल चार दिन ही जीवित रह पाएगी.
उन्होंने बताया कि आज इंसान की ओर से इस्तेमाल किए जाने वाले सभी फूड प्रोडक्ट्स में से 70 फीसदी फूड प्रोडक्ट्स मधुमक्खियों और बी की प्रजातियों के परागण यानी पॉलिनेशन से प्राप्त होता है. यानी मधुमक्खियों से ही फल, सब्जियों, दलहन समेत अन्य चीजों में पॉलिनेशन होता है. प्रोफेसर उनियाल ने बताया कि धीरे-धीरे से जिस तरह जनसंख्या के साथ पॉल्यूशन बढ़ रहा है, यह मधुमक्खियों की प्रजातियों पर खतरे को बढ़ा रहा है.
इसके साथ और भी कई अन्य आधुनिकीकरण मधुमक्खियों के खत्म होने के बड़े कारण हैं. दूसरी तरफ बी और मधुमक्खियों के संरक्षण को लेकर किसी तरह की कोई जागरूकता नहीं है. आज भी आम व्यक्ति मधुमक्खियों को शहद के लिए ही उपयोगी समझता है. जबकि, मधुमक्खियों की भूमिका हमारे पारिस्थितिक तंत्र में बहुत ज्यादा है.
दुनिया में लगातार घट रही है मधुमक्खियों की संख्या, हिमालय में डेढ़ सौ प्रजातियां: प्रोफेसर वीपी उनियाल बताते हैं कि पूरी दुनिया में बी की तकरीबन 20 हजार प्रजातियों को चिन्हित किया गया है. जैव विविधता से भरपूर हिमालय राज्य उत्तराखंड की बात करें तो मधुमक्खियों की प्रजाति का एक बड़ा हिस्सा यहां के जंगलों में निवास करता है.
नेशनल मिशन ऑन हिमालय स्टडीज (NMHS) के तहत भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India) और गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान (Govind Ballabh Pant National Institute of Himalayan Environment) ने एक सर्वे करवाए हैं. सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड में 146 पॉलिनेटर स्पीशीज यानी परागण करने वाली मधुमक्खी और ततैया की पहचान की गई है.
यह सर्वे उत्तराखंड के गंगोत्री नेशनल पार्क, नंदा देवी नेशनल पार्क मुनस्यारी क्षेत्र, हिमाचल के लाहौल स्पीति क्षेत्र और जम्मू कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में की गई थी. जहां पर डेढ़ सौ के करीब परागण करने वाली मधुमक्खियों और ततैये की प्रजातियां पाई गई हैं.
बेतहाशा शहरीकरण और जंगलों की आग बनी मधुमक्खियों की दुश्मन: अपनी समृद्ध जैव विविधता से भरपूर हिमालय राज्य उत्तराखंड में भी आज मधुक्खियों के ऊपर संकट गहराता जा रहा है. जिसका सबसे बड़ा उदाहरण दून घाटी है. जहां पर पिछले 50 सालों में न जाने कितने पेड़ कट गए और कितने क्षेत्रफल भूमि पर नया निर्माण हो गया है, जो कि मधुमक्खियों को खत्म करने का एक सबसे बड़ा कारण है.
उन्होंने कहा कि भले ही आम व्यक्ति मधुमक्खी के रूप में केवल शहद के उपयोग को जानता है, लेकिन शोधकर्ता और किसान अच्छे से जानते हैं कि मधुमक्खियों की ओर से किए जाने वाले पॉलिनेशन यानी परागण की क्या भूमिका होती है. किस तरह से यह मधुमक्खियों खेती, प्रकृति और इकोसिस्टम को मजबूत बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.
वहीं, इसके अलावा उत्तराखंड में लगातार बढ़ती फॉरेस्ट फायर की घटनाओं ने भी हिमालय की एक सिस्टम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली इन मधुमक्खियों के जीवन पर गहरा असर किया है. प्रोफेसर उनियाल का कहना है कि जिस तरह से प्रकृति का ताना-बाना जंगल में मौजूद हर एक छोटे से लेकर बड़े जीव के जरिए बना है, उस पूरे सिस्टम को जंगल की आग नष्ट कर रही है. उनका कहना है कि मोटी नजर में तो हम जंगलों में लगी आग से हुए नुकसान की भरपाई कर लेंगे, लेकिन प्रकृति को सजाने वाले इन छोटे इकोसिस्टम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जीवों को लेकर के भी हमें सोचना होगा.
संरक्षण को लेकर लगाए गए बी हाउस: देहरादून में मधुमक्खियों को समर्पित शब्द 'बी' डे के मौके पर वरिष्ठ शोधकर्ता प्रोफेसर वीपी उनियाल के नेतृत्व में जागरूकता अभियान फैलाने के लिए ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम किया गया. जहां पर मधुमक्खियों पर बनी दुनिया की सबसे बेहतरीन डॉक्यूमेंट्री में से एक का प्रदर्शन किया गया.
इसके अलावा माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के छात्रों के साथ इस संबंध में कुछ प्रतियोगिताएं भी आयोजित की गई. इस मौके पर प्रोफेसर वीपी उनियाल की पहल पर पहली बार कॉलेज परिसर में कुछ अलग तरह के बी हाउस यानी मक्खियों के घर बनाए गए. यह खास तरह के भी हाउस सॉलिटेरी बी के लिए बनाए गए थे. यानी उन मधुमक्खियों के लिए जो कि ज्यादातर अकेले रहना पसंद करती हैं.
प्रोफेसर उनियाल ने बताया कि आज अत्यधिक बढ़ती मानवीय गतिविधियों के चलते खासतौर से इन सॉलिटेरी बी हाउस जो कि प्राकृतिक रूप से पहले मिट्टी, पेड़ों और इधर-उधर मधुमक्खियों बनाती थी, वो अब खत्म हो चुके हैं. इसके लिए उनका एक प्रयास है कि मधुमक्खियों को इन बी हाउस के जरिए अपना आशियाना मिल पाए.
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