धीरज सजवाण, देहरादून: उत्तराखंड में इन दिनों आगामी फायर सीजन की तैयारियों जोरों शोरों से चल रही हैं. सुप्रीम कोर्ट से मिली हरी झंडी के बाद 28 साल बाद फिर से उत्तराखंड में फायर लाइन बनाने का काम किया जाएगा. इसके लिए वन विभाग पहले ही सर्वे करवा चुका है. इसके साथ ही इस बार फायर एप पर फॉरेस्ट फायर की रिपोर्टिंग होगी. जियो टैगिंग (Geo Tagging) की मदद से इन घटनाओं की रिपोर्टिंग की जाएगी.
क्या होती है फायर लाइन, अंग्रेजों ने सुझाया था तरीका: उत्तराखंड में हर साल लाखों हेक्टेयर जंगल आग के कारण प्रभावित होते हैं. इन जंगलों में रहने वाले कई छोटे बड़े जीव भी वनाग्नि से भस्म हो जाते हैं. ऐसे में जंगलों में भड़कने वाली इस आग पर नियंत्रण पाने के लिए फायर लाइन एक बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. फायर लाइन दो जंगलों के बीच की वो खाली जगह होती है, जहां पर पेड़ों को हटा दिया जाता है. ताकि एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर भड़कने वाली आग इस खाली जगह की वजह से आगे ना बढ़ पाए.
इस तरह से दो वन प्रभागों के बीच में फायर लाइन खींचने का नियम ब्रिटिशकाल से फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में चल रहा है. आज भी फायर लाइन का ये नियम चल रहा है. इसके तहत दो वन प्रभागों के बीच में 100 फीट की फायर लाइन होनी चाहिए. इसके अलावा अलग-अलग रेंज के बीच में 50 फीट की फायर लाइन का नियम है. इसके अलावा रेंज के अंदर पड़ने वाली अलग-अलग बीट के बीच में 30 फीट की फायर लाइन बनाने का नियम है.
28 साल बाद आई फायर लाइन की याद: आखिरी बार उत्तराखंड में फायर लाइन की मेंटेनेंस यानी फायर लाइन पर पेड़ों को हटाने का काम 1996 में किया गया था. उसके बाद अब 28 साल बाद दोबारा इन फायर लाइन को मेंटेन किया जाएगा, लेकिन अब इस फायर लाइन पर तकरीबन 5 लाख पेड़ मौजूद हैं.
अब तक क्यों नहीं हुई फायर लाइन की सफाई? फायर लाइन की मेंटेनेंस यानी फायर लाइन की सफाई वनाग्नि को रोकने का अच्छा उपाय है. इसके बावजूद भी उत्तराखंड में 1996 के बाद से यह काम नहीं किया गया. इसके पीछे की कुछ तकनीकी वजह हैं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के गोधा बर्मन केस मामले में दिए गए एक फैसले ने इस काम पर ब्रेक लगा दिया था. 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊंचाई पर पेड़ काटने पर रोक लगा दी गई थी.
इस फैसले के बाद उत्तराखंड के खास तौर से पर्वतीय इलाकों में फायर लाइन पर पेड़ काटने में कानूनी बाधा रही, लेकिन पिछले साल 18 अप्रैल 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना यही फैसला बदल दिया. इसके बाद उत्तराखंड वन विभाग के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के इस बदले हुए फैसले को आधार बनाते हुए अपने सभी प्रभागीय वन अधिकारियों को फाइन लाइन के मेंटेनेंस को लेकर के निर्देश दिए.
अब वन विभाग ने फायर लाइन की सफाई को लेकर सर्वे का काम शुरू किया है. हालांकि, इसमें पता चला है कि फायर लाइन पर 5 लाख के आसपास पेड़ हैं. वन विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार, इनमें से कुमाऊं मंडल में 1.5 लाख और गढ़वाल मंडल में 3.5 लाख पेड़ फायर लाइन पर पड़ रहे हैं. इस मामले पर बोलते हुए अपर प्रमुख वन संरक्षक वनग्नि एवं आपदा प्रबंधन निशांत वर्मा ने कहा इसे लेकर के प्रक्रिया गतिमान है. उन्होंने ईटीवी भारत से टेलिफोनिक बातचीत में कहा फिलहाल इसको लेकर के फील्ड वर्क चल रहा है. फायर लाइन पर मौजूद 5 लाख पेड़ों के निस्तारण को लेकर के होमवर्क किा जा रहा है. अलग-अलग जगह पर मौजूद फायर लाइन पर पड़ने वाले पेड़ों के कटान को लेकर के तमाम तरह के एप्रुवल्स और तकनीकी पहलू पर भी विभाग काम कर रहा है. संबंधित नियमों और प्रावधानों के अनुसार ही इसका निस्तारण किया जाएगा.
फायर एप पर होगी फॉरेस्ट फायर की रिपोर्टिंग: अपर प्रमुख वन संरक्षक वनग्नि एवं आपदा प्रबंधन निशांत वर्मा ने कहा इस बार विभाग जंगल की आग से बेहद हाईटेक तरीके से लड़ेगा. उन्होंने बताया इस बार फॉरेस्ट फायर की पूरी रिपोर्टिंग ऑनलाइन एप के जरिए की जाएगी. पिछले साल केवल एक जिले (रुद्रप्रयाग) में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर फॉरेस्ट फायर एप को लांच किया गया था. इस बार पूरे राज्य भर में इसी एप के जरिए रियल टाइम मॉनिटरिंग और उस पर रिस्पांस दर्ज किया जाएगा. साथ ही इस एप के जरिए जियो टैगिंग की मदद से इन घटनाओं की रिपोर्टिंग की जाएगी.
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