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प्रतिबंधित PFI के पूर्व प्रमुख की जमानत याचिका पर सुनवाई, SC ने एम्स में मेडिकल जांच का निर्देश दिया

अबूबकर की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर तत्काल इलाज की आवश्यकता है, तो हम इससे इनकार नहीं कर सकते.

E Abubacker bail Plea Supreme Court directs examination of ex-chief of PFI at AIIMS Delhi
सुप्रीम कोर्ट (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 12, 2024, 3:39 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एम्स दिल्ली को प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के पूर्व अध्यक्ष ई अबूबकर की मेडिकल जांच करने का निर्देश दिया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वह मेडिकल आधार पर जमानत के हकदार हैं.

शीर्ष अदालत ने कहा, "अगर उन्हें तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता है, अगर हम इस पर ध्यान नहीं देते हैं तो हम भी जिम्मेदार होंगे." अदालत ने आगे कहा, "अगर उन्हें तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता है, तो हम इससे इनकार नहीं कर सकते."

जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ मामले में सुनवाई की. एनआईए की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मेडिकल आधार पर जमानत का विरोध करते हुए दलील दी कि याचिकाकर्ता को चेकअप के लिए कई बार एम्स ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों को कभी नहीं लगा कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता है.

इस पर जस्टिस सुंदरेश ने कहा, "अगर लगातार सहयोग नहीं किया जा रहा है तो हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है, हम इसे खारिज कर देंगे. लेकिन कृपया इस बात को समझिए, अगर उन्हें तत्काल चिकित्सा उपचार की आवश्यकता है, अगर हम इस पर ध्यान नहीं देते हैं तो हम भी जिम्मेदार होंगे."

जस्टिस सुंदरेश ने कहा, "मेरा अपना मामला, मैंने एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में निपटाया है. सुप्रीम कोर्ट से चिकित्सा उपचार के लिए अनुरोध याचिका खारिज होने के बाद दो दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में एक आवेदन दायर किया गया था. मैंने इसे चार दिन दिए, एक दिन के भीतर उसकी (याचिकाकर्ता) मृत्यु हो गई. इसलिए हम केवल मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर आगे बढ़ेंगे."

पीठ ने कहा कि इसे देखने के दो तरीके हैं: जेल में कोई भी जेल अधिकारी या डॉक्टर जिम्मेदारी नहीं लेगा क्योंकि अगर कुछ भी होता है तो यह उसकी जिम्मेदारी है, ऐसा भी होता है, और दूसरी ओर मेहता की दलील भी सही है. जस्टिस सुंदरेश ने कहा, "इसलिए, हम डॉक्टरों पर छोड़ देते हैं...(डॉक्टर जो भी कहेंगे) हम उसके अनुसार मामले में आगे बढ़ेंगे. उपचार के लिए कितना समय चाहिए... अगर रिपोर्ट में कहा गया है कि वह सहयोग नहीं कर रहा है तो हम नहीं करेंगे."

मेहता ने कहा कि ये सामान्य अपराधी नहीं हैं, आतंकवादी कृत्य के तहत प्रशिक्षण और कई चीजों के सबूत हैं. जस्टिस सुंदरेश ने कहा, "रिपोर्ट आने दें और अदालत इसकी जांच करेगी और हम उसी के अनुसार फैसला करेंगा." उन्होंने कहा, "अभी तक, अगर उन्हें तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता है, तो हम इससे इनकार नहीं कर सकते."

फिर मेहता ने कहा कि वह बाहर आकर वही करना चाहते हैं जो वह पहले करते थे, जिसे सरकार रोकना चाहती है.

पीठ ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को दो दिनों के भीतर एम्स ले जाया जाए और मेडिकल जांच के लिए उसे इन-पेशेंट के रूप में भर्ती किया जाए.

पीठ ने मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद निर्धारित की है और निर्देश दिया है कि उक्त जांच पूरी होने के बाद निदेशक द्वारा तीन दिनों के भीतर मेडिकल रिपोर्ट सौंपी जानी चाहिए.

याचिकाकर्ता की पैरवी कर रही वरिष्ठ अधिवक्ता कामिनी जायसवाल ने अपने मुवक्किल को पीईटी स्कैन कराने की मांग की और कहा कि वह गंभीर रूप से बीमार है, क्योंकि वह अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से भी पीड़ित है.

मई 2024 में दिल्ली हाईकोर्ट ने अबूबकर को जमानत देने से इनकार कर दिया था. उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. याचिकाकर्ता पर आईपीसी की धारा 120-बी और 153-ए और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 17, 18, 18बी, 20, 22, 38 और 39 के तहत अपराध दर्ज किया गया है.

यह भी पढ़ें- अनुच्छेद 370 से लेकर केजरीवाल की जमानत तक, जस्टिस खन्ना ने दिए कई फैसले, इन मुद्दों का करना होगा निपटान

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एम्स दिल्ली को प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के पूर्व अध्यक्ष ई अबूबकर की मेडिकल जांच करने का निर्देश दिया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वह मेडिकल आधार पर जमानत के हकदार हैं.

शीर्ष अदालत ने कहा, "अगर उन्हें तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता है, अगर हम इस पर ध्यान नहीं देते हैं तो हम भी जिम्मेदार होंगे." अदालत ने आगे कहा, "अगर उन्हें तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता है, तो हम इससे इनकार नहीं कर सकते."

जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ मामले में सुनवाई की. एनआईए की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मेडिकल आधार पर जमानत का विरोध करते हुए दलील दी कि याचिकाकर्ता को चेकअप के लिए कई बार एम्स ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों को कभी नहीं लगा कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता है.

इस पर जस्टिस सुंदरेश ने कहा, "अगर लगातार सहयोग नहीं किया जा रहा है तो हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है, हम इसे खारिज कर देंगे. लेकिन कृपया इस बात को समझिए, अगर उन्हें तत्काल चिकित्सा उपचार की आवश्यकता है, अगर हम इस पर ध्यान नहीं देते हैं तो हम भी जिम्मेदार होंगे."

जस्टिस सुंदरेश ने कहा, "मेरा अपना मामला, मैंने एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में निपटाया है. सुप्रीम कोर्ट से चिकित्सा उपचार के लिए अनुरोध याचिका खारिज होने के बाद दो दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में एक आवेदन दायर किया गया था. मैंने इसे चार दिन दिए, एक दिन के भीतर उसकी (याचिकाकर्ता) मृत्यु हो गई. इसलिए हम केवल मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर आगे बढ़ेंगे."

पीठ ने कहा कि इसे देखने के दो तरीके हैं: जेल में कोई भी जेल अधिकारी या डॉक्टर जिम्मेदारी नहीं लेगा क्योंकि अगर कुछ भी होता है तो यह उसकी जिम्मेदारी है, ऐसा भी होता है, और दूसरी ओर मेहता की दलील भी सही है. जस्टिस सुंदरेश ने कहा, "इसलिए, हम डॉक्टरों पर छोड़ देते हैं...(डॉक्टर जो भी कहेंगे) हम उसके अनुसार मामले में आगे बढ़ेंगे. उपचार के लिए कितना समय चाहिए... अगर रिपोर्ट में कहा गया है कि वह सहयोग नहीं कर रहा है तो हम नहीं करेंगे."

मेहता ने कहा कि ये सामान्य अपराधी नहीं हैं, आतंकवादी कृत्य के तहत प्रशिक्षण और कई चीजों के सबूत हैं. जस्टिस सुंदरेश ने कहा, "रिपोर्ट आने दें और अदालत इसकी जांच करेगी और हम उसी के अनुसार फैसला करेंगा." उन्होंने कहा, "अभी तक, अगर उन्हें तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता है, तो हम इससे इनकार नहीं कर सकते."

फिर मेहता ने कहा कि वह बाहर आकर वही करना चाहते हैं जो वह पहले करते थे, जिसे सरकार रोकना चाहती है.

पीठ ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को दो दिनों के भीतर एम्स ले जाया जाए और मेडिकल जांच के लिए उसे इन-पेशेंट के रूप में भर्ती किया जाए.

पीठ ने मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद निर्धारित की है और निर्देश दिया है कि उक्त जांच पूरी होने के बाद निदेशक द्वारा तीन दिनों के भीतर मेडिकल रिपोर्ट सौंपी जानी चाहिए.

याचिकाकर्ता की पैरवी कर रही वरिष्ठ अधिवक्ता कामिनी जायसवाल ने अपने मुवक्किल को पीईटी स्कैन कराने की मांग की और कहा कि वह गंभीर रूप से बीमार है, क्योंकि वह अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से भी पीड़ित है.

मई 2024 में दिल्ली हाईकोर्ट ने अबूबकर को जमानत देने से इनकार कर दिया था. उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. याचिकाकर्ता पर आईपीसी की धारा 120-बी और 153-ए और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 17, 18, 18बी, 20, 22, 38 और 39 के तहत अपराध दर्ज किया गया है.

यह भी पढ़ें- अनुच्छेद 370 से लेकर केजरीवाल की जमानत तक, जस्टिस खन्ना ने दिए कई फैसले, इन मुद्दों का करना होगा निपटान

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