हजारीबाग: झारखंड के हजारीबाग का बड़कागांव प्रखंड कोयला उत्पादन के लिए पूरे देश में जाना जाता है. यहां उत्पादित कोयले से कई राज्यों में रोशनी भी मिलती है. हालांकि, कोयले के अलावा यह प्रखंड गुड़ के लिए भी काफी प्रसिद्ध है. यहां के गुड़ का स्वाद हजारीबाग के लोग ही नहीं बल्कि बड़े-बड़े शहरों के लोग भी लेते हैं. जो इसे एक बार चख लेता है, वह इसे कभी नहीं भूलता.
बड़कागांव के गुड़ का महत्व किसी से छिपा नहीं है. बाजारों में गुड़ से बनी मिठाइयों और व्यंजनों की अलग ही मांग रहती है. लोग यहां मेहमानों को गुड़ का शरबत परोसते हैं. इसके सामने चाय-कॉफी सब फीके पड़ जाते हैं. गुड़ से बनी खीर बेमिसाल होती है.
इतना ही नहीं वैद्य कई बीमारियों के इलाज में गुड़ का इस्तेमाल करते हैं. कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों को भी गुड़ खाने को कहा जाता है. बड़कागांव के गुड़ को अगर सूखी रोटी के साथ भी खाएं तो स्वाद दोगुना हो जाता है. यहां के गुड़ की खुशबू और बेहतरीन स्वाद के कारण दूर-दूर से व्यापारी यहां गुड़ खरीदने आते हैं.
दो तरह के बनाए जाते हैं गुड़
बड़कागांव में दो तरह का गुड़ बनता है. एक सादा और दूसरा तीखा. सादा गुड़ गन्ने के रस से तैयार किया जाता है. तीखे गुड़ में लौंग, इलायची, अदरक, गोलकी और दालचीनी का इस्तेमाल किया जाता है. तीखे गुड़ का स्वाद बेहद लजीज और थोड़ा महंगा भी होता है. आमतौर पर किसान तीखा गुड़ ऑर्डर पर ही बनाते हैं. गांव में गुड़ को आज भी मीठा कहा जाता है, लेकिन हर कोई यह जानने को उत्सुक रहता है कि यह बनता कैसे है और हमारे बाजारों तक कैसे पहुंचता है.
हाथों से तैयार किया जाता है गुड़
गांव के ग्रामीण अपने हाथों से गुड़ बनाते हैं. जिसके लिए उन्हें काफी मेहनत भी करनी पड़ती है. किसान पहले खेतों में गन्ने की खेती करते हैं और सर्दियों के दौरान गन्ने की कटाई की जाती है. कटाई के बाद किसान अपने घर पर या खेत में ही गुड़ बनाते हैं. पहले मशीन से इसका जूस निकाला जाता है और फिर इसे बड़ी कड़ाही में गर्म किया जाता है. बड़े चूल्हे में भाट बनाने के बाद अन्य प्रक्रियाओं से गुजरते हुए यहां ढेला गुड़ बनाया जाता है. इसके लिए किसानों को काफी मेहनत करनी पड़ती है.
बड़कागांव के गोंदलपुरा, कांडतरी, मिर्जापुर, सांढ़, शिवाडीह, सिमरातरी, बादम, हरली, नापो, खैरा तेरी, सिरमा, केरीगड़ा, जोराकाठ, गंगादोहर समेत कई इलाकों में लोग गुड़ बनाने में लगे हैं. लेकिन अब यह व्यवसाय काफी चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है.
खत्म होने के कगार पर गुड़ का व्यवसाय
कोयला खनन के कारण यह व्यवसाय प्रभावित हुआ है. जहां पहले गन्ने की खेती होती थी, वहां अब बड़ी खदानें हैं. इसके अलावा सरकार की ओर से भी इन किसानों को कोई मदद नहीं मिल रही है. जिसके कारण यह लघु उद्योग अब खत्म होने के कगार पर है. किसानों का यह भी कहना है कि सरकारी उदासीनता ने इस व्यवसाय को बर्बाद कर दिया है और दूसरी ओर विभिन्न कोयला परियोजनाओं से भी व्यवसाय प्रभावित हो रहा है.
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