नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चुनावों के दौरान धारा 144 लगाए जाने पर अंतरिम आदेश जारी किया है. शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि यदि कोई व्यक्ति चुनाव के संबंध में मतदाताओं को शिक्षित करने के लिए यात्रा आयोजित करने की अनुमति के लिए आवेदन करता है तो सक्षम प्राधिकारी को ऐसे आवेदन पर तीन दिनों के भीतर फैसला करना चाहिए.
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने न्यायमूर्ति बी आर गवई की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष कहा कि चुनाव के अंत तक चुनाव आयोग ने सभी सभाओं, बैठकों, प्रदर्शनों आदि पर रोक लगा दी है.
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, 'ऐसा आदेश कैसे जारी किया जा सकता है'. भूषण ने तर्क दिया, 'संविधान पीठ के फैसले (कहते हैं) कि आप ऐसा नहीं कर सकते, शांति भंग होने की कुछ उचित वास्तविक आशंका होनी चाहिए. आप धारा 144 का आदेश जारी नहीं कर सकते'.
पीठ में न्यायमूर्ति संदीप मेहता भी शामिल थे. उन्होंने सवाल किया कि क्या आप कोई एक भी नोटिस बता सकते हैं? भूषण ने बाडमेर में जारी एक नोटिस पढ़ते हुए कहा, 'यह बाडमेर के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी आदेश है. इसमें कहा गया है कि लोकसभा चुनावों की घोषणा ईसीआई द्वारा की गई है. यह 16 मार्च की तारीख है.
ईसीआई के निर्देशों के अनुसार, 'लोकसभा चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से कराया जाए. कोई भी व्यक्ति संबंधित रिटर्निंग अधिकारी की पूर्व अनुमति के बिना जुलूस या सार्वजनिक बैठक का आयोजन नहीं कर सकेगा. लेकिन यह प्रतिबंध विवाह समारोह और अंतिम संस्कार जुलूस पर लागू नहीं होगा'.
भूषण ने कहा कि उनके ग्राहकों ने अनुमति के लिए आवेदन किया था कि वे निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं को उनके लोकतांत्रिक अधिकारों आदि का उपयोग करने के लिए शिक्षित करने के लिए लोकतंत्र यात्रा/सार्वजनिक बैठक निकाल रहे हैं. पिछली बार नवंबर और दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में, हमने वही अनुमति मांगी थी. हमें अनुमति नहीं दी गई. अब फिर, 48 घंटों के भीतर उन्हें अनुमति के लिए आवेदन पर निर्णय लेना चाहिए.
भूषण ने अदालत से एक आदेश पारित करने का आग्रह किया. जो पूरे देश पर लागू हो. पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'हम एक अंतरिम आदेश द्वारा निर्देश देते हैं. यदि किसी व्यक्ति द्वारा सक्षम प्राधिकारियों को कोई आवेदन दिया जाता है, तो ऐसे आवेदन के तीन दिनों के भीतर उस पर निर्णय लिया जाएगा. इसे दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करें'.
सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय और निखिल डे ने वकील प्रसन्ना एस के माध्यम से शीर्ष अदालत का रुख किया. इसमें किसी भी और सभी बैठकों पर रोक लगाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 144 के तहत व्यापक आदेश पारित करने के लिए मजिस्ट्रेटों और राज्य सरकारों की अंधाधुंध प्रथा पर रोक लगाने की मांग की गई. प्रत्येक लोकसभा या विधानसभा चुनाव से पहले और परिणाम घोषित होने तक सभा, जुलूस या धरना.
याचिका में तर्क दिया गया कि इन व्यापक आदेशों ने नागरिक समाज और आम जनता को चुनाव से पहले उन्हें प्रभावित करने वाले मुद्दों पर स्वतंत्र रूप से चर्चा करने, भाग लेने, संगठित होने या संगठित होने से सीधे प्रभावित किया है.
याचिका में दलील दी गई, 'चुनावों का संचालन - धारा 144 लागू करने का स्पष्ट कारण होने के नाते - न तो धारा 144 के तहत मान्यता प्राप्त एक वैध आधार है. न ही व्यापक निषेधात्मक आदेशों को लागू करने को उचित ठहराने के लिए एक आकस्मिक स्थिति है. धारा 144 के आदेश यहां दिए गए प्रकार के पारित किए गए हैं. यंत्रवत्, आम जनता पर प्रतिबंध को उचित ठहराने के लिए बिना किसी सामग्री या आवश्यकता के और वोट देने के अधिकार में एक अवैध हस्तक्षेप है'.