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बिहार में कैसे रुकेगी 'आसमानी आफत', मुआवजा ही देती रहेगी सरकार या रोकथाम के कुछ हैं उपाय? एक्सपर्ट से जानें - lightning in Bihar - LIGHTNING IN BIHAR

बिहार में 'आसमानी आफत' से कई लोग रोज मारे जा रहे हैं. वज्रपात की घटना को सरकार न तो रोक पा रही है और न ही उसके प्रभाव को कम कर पा रही है. जबकि कई ऐसे उदाहरण है, जहां कभी वज्रपात तांडव मचाता था, वहां आज लोगों ने अपनी सूझबूझ और टेक्नॉलॉजी के सहारे कुदरत को भी मात दे दी है. सवाल इस बात का है कि आखिर बिहार में कैसे ठनका गिरने की घटनाओं को कम किया जाए..? पढ़ें पूरी खबर-

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बिहार में वज्रपात (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jul 7, 2024, 6:41 PM IST

Updated : Jul 7, 2024, 7:14 PM IST

पटना : बिहार में आकाशीय बिजली से हर साल बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो रही है. इस साल भी मानसून के शुरुआती दौर में ही 50 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. बिहार सरकार की तरफ से ऐसे सभी मृतक के आश्रितों को चार-चार लाख रुपये आर्थिक मदद दी जा रही है, साथ ही आकाशीय बिजली से रोकने के लिए कई आधुनिक तरीके भी अपनाये जा रहे हैं. बावजूद इसके यह सब नाकाफी है. यह बात विशेषज्ञ और वैज्ञानिक भी कह रहे हैं.

क्या है वज्रपात? : मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार बिजली गिरने की दो तरह की घटना होती हैं, पहली घटना बादल और जमीन के बीच और दूसरी बादलों के बीच टकराने से. इस दौरान हाई वोल्टेज बिजली का प्रवाह होता है. इसके साथ एक तेज चमक या अक्सर गरज के साथ बिजली गिरती है. दुनिया में बिजली गिरने का औसत प्रति सेकंड 50 का है. बेंजामिन फ्रैंकलिन ने 1872 में बादलों के बीच बिजली चमकने की सही वजह बताई थी.

कैसे गिरती है आकाशी बिजली : बेंजामिन फ्रैंकलिन ने बताया था कि बादलों में पानी के छोटे-छोटे कण होते हैं, जो वायु की रगड़ की वजह से आवेशित हो जाते हैं. कुछ बादलों पर पॉजिटिव चार्ज हो जाता है, तो कुछ पर नेगेटिव. आसमान में जब दोनों तरह की चार्ज वाले बादल एक दूसरे से टकराते हैं तो लाखों वोल्ट की बिजली पैदा होती है. कभी-कभी इस तरह उत्पन्न होने वाली बिजली इतनी अधिक होती है की धरती तक पहुंच जाती है. इस घटना को ही बिजली गिरना कहा जाता है.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (Etv Bharat)
बिहार में सरकार के मौत का आंकड़ा : बिहार में डिजास्टर मैनेजमेंट विभाग के आंकड़ों को ही देखें तो 2017 से 2022-23 के बीच हर साल 271 मौत और 58 लोगों के घायल होने की घटना होती रही है. बिहार में हर साल 10 लाख लोगों में 2.65 लोगों की मौत बिजली गिरने की घटना से हुई है. यह राष्ट्रीय औसत 2.55 मौतों से भी अधिक है. बिहार में बिजली गिरने की सर्वाधिक घटनाएं दक्षिण और पूर्वी हिस्से में होती रही हैं. अधिकांश ग्रामीण इलाकों में 11 से 15 साल के लड़के और 41 से 45 साल के पुरुष इसके सबसे अधिक शिकार होते हैं. मई से सितंबर के बीच सबसे अधिक मौत बिजली गिरने से होती है.

वज्रपात रोकने के सरकारी उपाय : आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. कुछ जिलों में सायरन बजाकर भी इसे रोकने की कोशिश की गई है. पटना, गया, औरंगाबाद में इसका प्रयोग किया गया. हालांकि सफलता नहीं मिली. मोबाइल पर मैसेज भी भेज कर लोगों को जागरूक करने की कोशिश हो रही है. 14 करोड़ से अधिक मैसेज भेजा गया लेकिन उसका भी लाभ नहीं हुआ.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (Etv Bharat)

सरकार की कोशिशों का कितना असर? : पिछले साल पटना आईआईटी से एक लॉकेट को लेकर MoU किया गया है. हालांकि उस लॉकेट का अभी तक क्या असर हुआ है, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. विभिन्न तरह के ट्रेनिंग कार्यक्रम और विज्ञापन के माध्यम से भी लोगों को जागरूक करने की कोशिश सरकार की तरफ से की जाती है. लेकिन सारे उपाय अब तक आकाशीय बिजली से होने वाली मौत को रोक पाने में सफल नहीं हुआ है.

विशेषज्ञ क्या कहते हैं : वैज्ञानिक आनंद शंकर का कहना है कि मौसम विभाग ने आकाशीय बिजली की घटना वाले इलाके को आईडेंटिफाई किया है. उसके बारे में सरकार को जानकारी दे दी गई है कि किन जिलों में और किन स्थानों पर आकाशीय बिजली की घटना अधिक होगी. भारतीय मौसम विभाग और पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रॉपिकल मेंटरोलॉजी ने मिलकर दामिनी एप का निर्माण किया है. यह एप बिजली गिरने से आधा घंटा से 45 मिनट पहले ही अलर्ट भेजता है.

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ईटीवी भारत GFX. (Etv Bharat)

''दामिनी ऐप को प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है. लेकिन ना तो एप के बारे में ग्रामीण क्षेत्रों को जानकारी है और ना ही जो सेंसिटिव इलाके हैं आकाशीय बिजली को लेकर वहां बहुत ज्यादा काम किया गया है. इसके अलावा लाइटनिंग रॉड लगाने की बहुत जरूरत है. शहरों में भी इसे लगाया जाना चाहिए और ग्रामीण इलाकों में पंचायत स्तर पर विशेष रूप से इसे लगाने की जरूरत है. घरों में तो 5000 से 10000 रुपए में ही लाइटनिंग रॉड लग जाएगा.''- आनंद शंकर, वैज्ञानिक

लोगों को जागरुक करने की जरूरत : प्रोफेसर विद्यार्थी विकास का कहना है कि हम लोगों ने इस पर काफी काम किया है. जिस प्रकार से वज्रपात से मौत हो रही है वह चिंताजनक है. खासकर ग्रामीण इलाकों में मजदूर, किसान इसके अधिक शिकार हो रहे हैं. क्योंकि उन तक सही ढंग से मैसेज समय से पहले नहीं पहुंच पा रहा है. इस पर गंभीरता से काम करने की जरूरत है. ग्रामीण इलाकों में मई से लेकर सितंबर तक लोगों को जानकारी पहुंचे इसके लिए हॉर्न की विशेष व्यवस्था की जा सकती है.

''तड़ित चालक बड़े पैमाने पर लगाया जा सकता है. टावर में तड़ित चालक एक किलोमीटर तक की एरिया को कवर करता है. 50000 से लेकर 1 लाख तक का इसमें खर्च आ सकता है. साथ ही ग्रामीण इलाकों में भी बड़े पैमाने पर ताड़ और और लंबे पेड़ लगाने की जरूरत है, क्योंकि उन पर आकाशीय बिजली पहले गिरती है. इससे भी जान माल की राहत हो सकती है.''- विद्यार्थी विकास, प्रोफेसर

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (Etv Bharat)
वज्रमारा से सीखने की जरूरत : झारखंड में वज्रमारा नाम का एक गांव है. बताते हैं कि इस गांव में खूब वज्रपात होता था, इसलिए इसका नाम वज्रमारा रख दिया गया था. कुछ साल पहले इस गांव में कई लाइटनिंग अरेस्टर लगा दिए, जिसके बाद से यहां वज्रपात से मौतों का सिलसिला थम गया.

बांग्लादेश मॉडल की चर्चा : बांग्लादेश में भी वज्रपात खूब होता था. लोगों की जानें जाती थीं. वर्ष 2017 में तो वज्रपात से बांग्लादेश में 308 लोगों की जान चली गई थी. बांग्लादेश ने इसका तोड़ ताड़ के पेड़ में निकाला. जगह-जगह ताड़ के पेड़ लगाए जाने लगे और इसके साथ ही बांग्लादेश सरकार ने नेशनल बिल्डिंग कोड में भवनों के निर्माण में वज्रपात से बचाव के उपाय अपनाने (लाइटनिंग अरेस्टर लगाना) को अनिवार्य कर दिया. ऐसे विशेषज्ञ भी दोनों उपाय करने की सलाह लगातार सरकार को देते रहे हैं.

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मई से सितंबर का महीना महत्वपूर्ण : मई से सितंबर का महीना किसानी का महीना भी होता है, किसान मजदूर खेतों में काम करते हैं. आकाशीय बिजली का सबसे अधिक शिकार वही लोग होते हैं. उनके लिए सूचना पहुंचे यह सबसे अधिक जरूरी है. हॉर्न के माध्यम से यह सूचना उन तक पहुंचाई जा सकती है. पंचायत स्तर पर इसका इंतजाम हो सकता है. एक्सपर्ट तो यह भी कह रहे हैं कि बिहार सरकार मौत होने के बाद जितनी राशि दे रही है यदि सही ढंग से लाइटनिंग अरेस्टर लगाये तो सरकार को राशि देने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी.

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पटना : बिहार में आकाशीय बिजली से हर साल बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो रही है. इस साल भी मानसून के शुरुआती दौर में ही 50 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. बिहार सरकार की तरफ से ऐसे सभी मृतक के आश्रितों को चार-चार लाख रुपये आर्थिक मदद दी जा रही है, साथ ही आकाशीय बिजली से रोकने के लिए कई आधुनिक तरीके भी अपनाये जा रहे हैं. बावजूद इसके यह सब नाकाफी है. यह बात विशेषज्ञ और वैज्ञानिक भी कह रहे हैं.

क्या है वज्रपात? : मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार बिजली गिरने की दो तरह की घटना होती हैं, पहली घटना बादल और जमीन के बीच और दूसरी बादलों के बीच टकराने से. इस दौरान हाई वोल्टेज बिजली का प्रवाह होता है. इसके साथ एक तेज चमक या अक्सर गरज के साथ बिजली गिरती है. दुनिया में बिजली गिरने का औसत प्रति सेकंड 50 का है. बेंजामिन फ्रैंकलिन ने 1872 में बादलों के बीच बिजली चमकने की सही वजह बताई थी.

कैसे गिरती है आकाशी बिजली : बेंजामिन फ्रैंकलिन ने बताया था कि बादलों में पानी के छोटे-छोटे कण होते हैं, जो वायु की रगड़ की वजह से आवेशित हो जाते हैं. कुछ बादलों पर पॉजिटिव चार्ज हो जाता है, तो कुछ पर नेगेटिव. आसमान में जब दोनों तरह की चार्ज वाले बादल एक दूसरे से टकराते हैं तो लाखों वोल्ट की बिजली पैदा होती है. कभी-कभी इस तरह उत्पन्न होने वाली बिजली इतनी अधिक होती है की धरती तक पहुंच जाती है. इस घटना को ही बिजली गिरना कहा जाता है.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (Etv Bharat)
बिहार में सरकार के मौत का आंकड़ा : बिहार में डिजास्टर मैनेजमेंट विभाग के आंकड़ों को ही देखें तो 2017 से 2022-23 के बीच हर साल 271 मौत और 58 लोगों के घायल होने की घटना होती रही है. बिहार में हर साल 10 लाख लोगों में 2.65 लोगों की मौत बिजली गिरने की घटना से हुई है. यह राष्ट्रीय औसत 2.55 मौतों से भी अधिक है. बिहार में बिजली गिरने की सर्वाधिक घटनाएं दक्षिण और पूर्वी हिस्से में होती रही हैं. अधिकांश ग्रामीण इलाकों में 11 से 15 साल के लड़के और 41 से 45 साल के पुरुष इसके सबसे अधिक शिकार होते हैं. मई से सितंबर के बीच सबसे अधिक मौत बिजली गिरने से होती है.

वज्रपात रोकने के सरकारी उपाय : आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. कुछ जिलों में सायरन बजाकर भी इसे रोकने की कोशिश की गई है. पटना, गया, औरंगाबाद में इसका प्रयोग किया गया. हालांकि सफलता नहीं मिली. मोबाइल पर मैसेज भी भेज कर लोगों को जागरूक करने की कोशिश हो रही है. 14 करोड़ से अधिक मैसेज भेजा गया लेकिन उसका भी लाभ नहीं हुआ.

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सरकार की कोशिशों का कितना असर? : पिछले साल पटना आईआईटी से एक लॉकेट को लेकर MoU किया गया है. हालांकि उस लॉकेट का अभी तक क्या असर हुआ है, इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. विभिन्न तरह के ट्रेनिंग कार्यक्रम और विज्ञापन के माध्यम से भी लोगों को जागरूक करने की कोशिश सरकार की तरफ से की जाती है. लेकिन सारे उपाय अब तक आकाशीय बिजली से होने वाली मौत को रोक पाने में सफल नहीं हुआ है.

विशेषज्ञ क्या कहते हैं : वैज्ञानिक आनंद शंकर का कहना है कि मौसम विभाग ने आकाशीय बिजली की घटना वाले इलाके को आईडेंटिफाई किया है. उसके बारे में सरकार को जानकारी दे दी गई है कि किन जिलों में और किन स्थानों पर आकाशीय बिजली की घटना अधिक होगी. भारतीय मौसम विभाग और पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रॉपिकल मेंटरोलॉजी ने मिलकर दामिनी एप का निर्माण किया है. यह एप बिजली गिरने से आधा घंटा से 45 मिनट पहले ही अलर्ट भेजता है.

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''दामिनी ऐप को प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है. लेकिन ना तो एप के बारे में ग्रामीण क्षेत्रों को जानकारी है और ना ही जो सेंसिटिव इलाके हैं आकाशीय बिजली को लेकर वहां बहुत ज्यादा काम किया गया है. इसके अलावा लाइटनिंग रॉड लगाने की बहुत जरूरत है. शहरों में भी इसे लगाया जाना चाहिए और ग्रामीण इलाकों में पंचायत स्तर पर विशेष रूप से इसे लगाने की जरूरत है. घरों में तो 5000 से 10000 रुपए में ही लाइटनिंग रॉड लग जाएगा.''- आनंद शंकर, वैज्ञानिक

लोगों को जागरुक करने की जरूरत : प्रोफेसर विद्यार्थी विकास का कहना है कि हम लोगों ने इस पर काफी काम किया है. जिस प्रकार से वज्रपात से मौत हो रही है वह चिंताजनक है. खासकर ग्रामीण इलाकों में मजदूर, किसान इसके अधिक शिकार हो रहे हैं. क्योंकि उन तक सही ढंग से मैसेज समय से पहले नहीं पहुंच पा रहा है. इस पर गंभीरता से काम करने की जरूरत है. ग्रामीण इलाकों में मई से लेकर सितंबर तक लोगों को जानकारी पहुंचे इसके लिए हॉर्न की विशेष व्यवस्था की जा सकती है.

''तड़ित चालक बड़े पैमाने पर लगाया जा सकता है. टावर में तड़ित चालक एक किलोमीटर तक की एरिया को कवर करता है. 50000 से लेकर 1 लाख तक का इसमें खर्च आ सकता है. साथ ही ग्रामीण इलाकों में भी बड़े पैमाने पर ताड़ और और लंबे पेड़ लगाने की जरूरत है, क्योंकि उन पर आकाशीय बिजली पहले गिरती है. इससे भी जान माल की राहत हो सकती है.''- विद्यार्थी विकास, प्रोफेसर

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वज्रमारा से सीखने की जरूरत : झारखंड में वज्रमारा नाम का एक गांव है. बताते हैं कि इस गांव में खूब वज्रपात होता था, इसलिए इसका नाम वज्रमारा रख दिया गया था. कुछ साल पहले इस गांव में कई लाइटनिंग अरेस्टर लगा दिए, जिसके बाद से यहां वज्रपात से मौतों का सिलसिला थम गया.

बांग्लादेश मॉडल की चर्चा : बांग्लादेश में भी वज्रपात खूब होता था. लोगों की जानें जाती थीं. वर्ष 2017 में तो वज्रपात से बांग्लादेश में 308 लोगों की जान चली गई थी. बांग्लादेश ने इसका तोड़ ताड़ के पेड़ में निकाला. जगह-जगह ताड़ के पेड़ लगाए जाने लगे और इसके साथ ही बांग्लादेश सरकार ने नेशनल बिल्डिंग कोड में भवनों के निर्माण में वज्रपात से बचाव के उपाय अपनाने (लाइटनिंग अरेस्टर लगाना) को अनिवार्य कर दिया. ऐसे विशेषज्ञ भी दोनों उपाय करने की सलाह लगातार सरकार को देते रहे हैं.

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मई से सितंबर का महीना महत्वपूर्ण : मई से सितंबर का महीना किसानी का महीना भी होता है, किसान मजदूर खेतों में काम करते हैं. आकाशीय बिजली का सबसे अधिक शिकार वही लोग होते हैं. उनके लिए सूचना पहुंचे यह सबसे अधिक जरूरी है. हॉर्न के माध्यम से यह सूचना उन तक पहुंचाई जा सकती है. पंचायत स्तर पर इसका इंतजाम हो सकता है. एक्सपर्ट तो यह भी कह रहे हैं कि बिहार सरकार मौत होने के बाद जितनी राशि दे रही है यदि सही ढंग से लाइटनिंग अरेस्टर लगाये तो सरकार को राशि देने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी.

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Last Updated : Jul 7, 2024, 7:14 PM IST
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