पटनाः काराकाट लोकसभा सीट का मुकाबला अब रोचक मोड़ पर पहुंच गया है. अब तय हो गया कि पवन सिंह काराकाट से चुनाव लड़ेंगे. नाम वापसी का शुक्रवार को आखिरी दिन था. पवन सिंह ने अपना नामांकन पत्र वापस नहीं लिया. पवन सिंह के चुनावी मैदान में आने से सबसे ज्यादा परेशानी उपेंद्र कुशवाहा को होने वाली है क्योंकि विशेषज्ञ मानते हैं कि राजपूत वोटर्स पवन सिंह का समर्थन करेंगे. ऐसे में काराकाट का राजनीतिक समीकरण बिगड़ सकता है.
त्रिकोणीय मुकाबलाः काराकाट लोकसभा क्षेत्र में आखिरी चरण 1 जून को वोटिंग होगी. एनडीए प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा, इंडिया गठबंधन की तरफ से CPI-ML प्रत्याशी राजाराम सिंह और निर्दलीय प्रत्याशी पवन सिंह के बीच कांटे की टक्कर है. शुरू में सीट से एनडीए और महागठबंधन के बीच आमने-सामने की लड़ाई दिख रही थी लेकिन पवन सिंह जब से निर्दलीय नामांकन कराया है तब से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है.
पवन सिंह की मां ने नाम वापस लियाः बता दें कि पवन सिंह ने अपने मां का भी काराकाट से नामांकन कराया था. दरअसल ये नामांकन पवन सिंह ने सेफ्टी के लिए कराया था. अगर किसी कारण से पवन सिंह का नामांकन रद्द होता है तो उनकी मां वहां से चुनाव लड़ेगी लेकिन पवन सिंह का नामांकन वैद्द पाया गया. ऐसे में इनकी मां प्रतिमा देवी ने नामांकन वापस ले लिया है लेकिन पवन सिंह मैदान में डटे हुए हैं.
उपेंद्र कुशवाहा की राह मुश्किलः पवन सिंह के चुनाव मैदान में होने से सबसे ज्यादा परेशानी उपेंद्र कुशवाहा को है. 2024 के चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा को लग रहा था कि एनडीए के प्रत्याशी होने के कारण उनका राह आसान होगा. जातीय समीकरण और मोदी के नाम के नाम पर उनकी जीत हो जाएगी. लेकिन पवन सिंह के चुनाव मैदान में आने से समीकरण उलझ गया. हालांकि बीजेपी की ओर से पवन सिंह को बैठाने का भरपूर प्रत्यास किया गया लेकिन पवन सिंह नहीं माने.
वेट एंड वॉच के बाद मैदान में उतरेः पवन सिंह 2014 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे. 2024 में आरा से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे लेकिन बीजेपी ने आरके सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया. पवन सिंह को पश्चिम बंगाल के आसनसोल सीट से शत्रुघ्न सिन्हा के खिलाफ अपना प्रत्याशी बनाया लेकिन पवन सिंह ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया. उन्हें लगा था कि बिहार के किसी लोकसभा सीट से उन्हें प्रत्याशी बनाया जाएगा. वेट एंड वॉच के बाद उन्होंने काराकाट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला लिया.
बीजेपी ने नहीं लिया एक्शनः पवन सिंह जब से निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किए हैं उसके बाद से लगातार भाजपा के कई नेता उन्हें पार्टी से निकालने की बात कह चुके हैं. केंद्रीय मंत्री और आरा के सांसद आरके सिंह ने पवन सिंह पर कार्रवाई करने की मांग पार्टी से की. बिहार सरकार के मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार ने भी डेहरी में पवन सिंह पर कार्रवाई की मांग की थी लेकिन पार्टी के तरफ से अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई.
बीजेपी की मजबूरी जानिएः बीजेपी को इस बात का डर सता रहा है कि यदि पवन सिंह पर यदि कार्रवाई करती है तो राजपूत वोटर उनसे नाराज हो सकते हैं. क्योंकि पवन सिंह के चाहने वाले राजपूत समाज में हैं. बीजेपी के प्रवक्ता पीयूष शर्मा का कहना है कि पवन सिंह की काराकाट से चुनाव लड़ने से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. वहां के मतदाता भली-भांति जानते हैं कि पवन सिंह जीतने के लिए नहीं सिर्फ वोटरों को बरगलाने के लिए खड़े हुए हैं.
"पार्टी ने पवन सिंह को कारण बताओं नोटिस जारी किया है. यदि पवन सिंह के जवाब से पार्टी संतुष्ट नहीं होती है तो उन पर कार्रवाई भी होगी. बीजेपी को विश्वास है कि पवन सिंह भले ही चुनावी मैदान में हैं लेकिन चुनाव परिणाम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. एनडीए के प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा की जीत होगी." -पीयूष शर्मा, प्रवक्ता, BJP
क्या दूसरी बार सांसद बनेंगे उपेंद्र कुशवाहा? काराकाट से उपेंद्र कुशवाहा 2014 में सांसद बने लेकिन 2019 में एनडीए से बाहर होकर जदयू में शामिल हो गए. 2019 में JDU ने महाबली सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया और जीत मिली. फिर 2023 में उपेंद्र जदयू से अलग होकर अपनी पार्टी बनायी और एनडीए का समर्थन करने का फैसला लिया. इसके बाद सीट बंटवारे में बीजेपी ने काराकाट सीट उपेंद्र कुशवाहा को दिया. पहले तो राह आसान था लेकिन पवन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा के लिए राह मुश्किल कर दिए.
काराकाट लोकसभा का समीकरणः काराकाट लोकसभा क्षेत्र का अस्तित्व 2008 के परिसीमन के बाद हुआ. पहले बिक्रमगंज लोकसभा क्षेत्र हुआ करता था. काराकाट लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक यादवों का वोट है. काराकाट लोकसभा क्षेत्र में 3 लाख यादव वोटर हैं. 2 लाख 50 हजार कोइरी-कुर्मी की आबादी है. 1 लाख 50 हजार मुस्लिम, 2 लाख राजपूत, वैश्य 2 लाख, ब्राह्मण 75 हजार व भूमिहार की आबादी 50 हजार है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ? वरिष्ठ पत्रकार सुनील पांडेय का मानना है कि पवन सिंह के चुनाव लड़ने से अभी उपेंद्र कुशवाहा के सामने मुश्किल है. पवन सिंह जातीय ध्रुवीकरण करने के प्रयास में है ताकि उनके अपने वर्ग का वोट उनको मिल सके. जाति के साथ-साथ नवयुवक की टोली भी पवन सिंह के साथ खड़ी दिख रही है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि मतदाता उपेंद्र कुशवाहा के नाम पर ना सही लेकिन नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट कर सकते हैं.
"अभी जो स्थिति काराकाट की है, उसमें मामला त्रिकोणात्मक ही दिख रहा है. बीजेपी में जिस तरीके से झंझारपुर में वीआईपी के प्रत्याशी को पार्टी से निकाला इस प्रकार से काराकाट में भी निर्णय लेना चाहिए था, लेकिन पार्टी पवन सिंह पर निर्णय नहीं ले पा रही है. इसके पीछे राजपूत वोट बड़ा कारण है. उपेंद्र कुशवाहा के नाम पर कुछ नाराजगी है लेकिन आखिरकार वोट नरेंद्र मोदी के नाम मिल सकता है." -सुनील पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार
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