ETV Bharat / bharat

झीरम नक्सली हमला थी सुनियोजित साजिश, माओवादी कांग्रेस नेताओं का नाम पूछकर मार रहे थे गोली: शिव सिंह ठाकुर - jheeram attack anniversary

''झीरम हत्याकांड में अगर नंद कुमार पटेल नहीं मारे जाते तो वो सीएम होते. पटेल नक्सलियों के टारगेट पर थे वो सीएम नहीं बन सकें इसके लिए उनके मौत की सुपारी दी गई थी''. यह खुलासा झीरम नक्सली हमले के चश्मदीद शिव सिंह ठाकुर ने किया है. उन्होंने झीरम के अंतहीन दर्द को बयां किया है. शिव सिंह ठाकुर ने कहा है कि ऐसा लग रहा था कि नक्सलियों के सबसे बड़े टारगेट नंद कुमार पटेल हैं. वह कांग्रेस नेताओं का नाम पूछ पूछकर उन्हें गोलियां मार रहे थे.

jheeram attack anniversary
झीरम का दर्द (Etv Bharat)
author img

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : May 25, 2024, 5:03 AM IST

झीरम का दर्द (Etv Bharat)

रायपुर: आज झीरम हत्याकांड की 11वीं बरसी है. आज से ठीक 11 साल पहले माओवादियों ने बड़े ही निर्मम तरीके से कांग्रेस के दिग्गज 30 नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी थी. हत्याकांड इतना विभत्स और दिल दहलाने वाला था कि पूरा देश उसे देख कांप गया. माओवादी हिंसा से जो लोग वाकिफ नहीं थे उनके कारनामों को देख डर गए. माओवादियों के वेल्ड प्लैन्ड हमले में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व पूरी तरह से खत्म हो गया. माओवादियों के खूंखार हमले में तब के सीएम पद के सबसे बड़े दावेदार और दिग्गज नेता नंद कुमार पेटल भी मारे गए. पटेल के आलावा विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार की भी मौत हो गई.

झीरम हत्याकांड की 11वीं बरसी आज: झीरम हत्याकांड की 11वीं बरसी आज देश मना रहा है. ग्यारह सालों का लंबा वक्त बीत जाने के बाद भी अबतक हत्याकांड के दोषी पकड़े नहीं जा सके हैं. हत्याकांड की साजिश किसने रची इसका भी पता जांच एजेंसियां नहीं लगा पाई हैं. भूपेश बघेल की सरकार जब सत्ता में आई तो लगा कि जांच पूरी होगी और राज से पर्दा उठेगा. कांग्रेस का पांच साल का शासन भी खत्म हो गया. जांच जहां से शुरु हुई थी आज भी वहीं पर खड़ी है.

झीरम की कहानी चश्मदीद की जुबानी: जिस वक्त झीरम हत्याकांड को अंजाम दिया गया उस वक्त कांग्रेस के प्रचार काफिले में कांग्रेस नेता शिव सिंह ठाकुर भी मौजूद थे. माओवादियों के खूनी हमले में जान बचाकर भागने वाले शिव सिंह ठाकुर बताते हैं कि आज भी उस खूनी मंजर को याद कर उनके रौंगटे खड़े हो जाते हैं. ठाकुर बताते हैं कि ''नक्सलियों को उनका टारगेट पता था. नक्सली नंदकुमार पटेल को टारगेट करने के लिए ही पहुंचे थे. कांग्रेस के पक्ष में उस वक्त काफी बढ़िया माहौल था. ऐसा लग रहा था और हम सभी को भरोसा था कि नंद कुमार पटेल सीएम बनकर ही लौटेंगे. प्रदेश में अगर कांग्रेस की सरकार बनती तो निश्चित तौर पर पटेल ही सीएम होते. पटेल ही सीएम बनते इस बात का सभी को विश्वास था. शायद यही कारण रहा कि उनको टारगेट किया गया''.

24 मई 2013 पसरा था मौत का सन्नाटा: साल 2013 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा का चुनाव होना था. बीजेपी और कांग्रेस दोनों प्रचार में जोर शोर से जुटी थी. तब प्रदेश के मुखिया रमन सिंह हुआ करते थे. कांग्रेस पार्टी ने रमन सिंह को सत्ता से हटाने और कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने के लिए परिवर्तन यात्रा निकाली. पूरे प्रदेश में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा घूम घूम कर प्रचार पर निकली. कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा को जनता का जोरदार सपोर्ट भी मिलने लगा. जनता के सपोर्ट को देखकर कांग्रेस के नेता भी खासे उत्साहित रहे. खुद नंद कुमार पटेल परिवर्तन यात्रा के मंच से बीजेपी पर हमलावर रहे. परिवर्तन यात्रा जब अपने शबाब पर थी तब कांग्रेस के नेता यात्रा के साथ बस्तर पहुंचे. परिवर्तन यात्रा जब झीरम घाटी में पहुंची तब नक्सलियों ने चारों और से कांग्रेस के काफिले को घेरकर गोलीबारी शुरु कर दी. नक्सलियों के हमले में कांग्रेस का पूरा का पूरा शीर्ष नेतृत्व खत्म हो गया. जो इस हमले में बच गए वो आज भी उस दिन को याद कर सिहर जाते हैं. नक्सलियों के हमले में बाल बाल बचे शिव कुमार ठाकुर कहते हैं कि '' इतना लंबा वक्त बीत जाने के बाद भी हमले में मारे गए लोगों के परिवार को न्याय नहीं मिल पाया है. 11 साल से पीड़ित के परिवार वाले न्याय की उम्मीद में दर दर की ठोकरे खा रहे हैं. आज भी हमें उम्मीद है कि एक न एक दिन हमें न्याय जरूर मिलेगा. शासन और प्रशासन से जरुर हमें नहीं मिल पा रहा है लेकिन एक दिन भगवान से न्याय जरुर मिलेगा.

कैसे हुआ हमला,क्या था खूनी मंजर: शिव सिंह ठाकुर कहते हैं कि ''नक्सलियों ने पूरी तैयारी के साथ एंबुश लगा रखा था. काफिले को रोका गया और ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार करनी शुरु कर दी गई. किसी को भी बचने का कोई मौका नहीं मिला. जो सौभाग्यशाली थे वो बड़ी मुश्किल से जान बचाकर भागे. हमारे कई साथी उस घटना में दुनिया छोड़कर चले गए. आज हम उनको याद कर सिर्फ दुख जता सकते हैं. ईश्वर दोषियों को जरुर एक दिन सजा देगा ऐसा हमें विश्वास है''.

''नक्सलियों ने लगा रखा था एंबुश'': शिव सिंह ठाकुर कहते हैं कि ''नक्सलियों के एंबुश में फंसते ही धमाका हुआ और गाड़ियों की पायलटिंग कर रही गाड़ी के चीथड़े उड़ गए. गाड़ी में जितने भी पुलिसवाले थे सभी शहीद हो गए. पायलट गाड़ी के जस्ट पीछे नंद कुमार पटेल जी की गाड़ी थी. गाड़ी में नंदु कुमार पटेल के बेटे दिनेश पटेल और कवासी लखमा भी बैठे थे. उनकी गाड़ी को माओवादियों ने चारों ओर से घेर लिया. नक्सली नंद कुमार पटेल और उनके बेटे को पकड़कर पहाड़ पर ले गए. उनको पता था कि काफिल में महेंद्र कर्मा भी हैं. नक्सलियों ने उनको मारने के लिए अंधाधुंध फायरिंग करनी शुरु कर दी. फायरिंग होते ही महेंद्र कर्मा के गार्डों ने भी गोलीबारी शुरु कर दी. फायरिंग के बीच नक्सलियों ने महेंद्र कर्मा को सरेंडर करने के लिए कहा. करीब 2 से ढाई घंटे तक गोलीबारी होती रही. मदद के लिए जब पुलिस मौके पर नहीं पहुंची तब बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा ने माओवादियों के सामने सरेंडर कर दिया. महेंद्र कर्मा के सरेंडर करते ही हम सभी लोगों ने भी आत्मसमर्पण कर दिया. जिसके बाद फायरिंग थम गई''.

''नाम पूछ पूछकर मार रहे थे गोली'': शिव सिंह ठाकुर कहते हैं कि माओवादी सबका नाम पूछ पूछकर गोली मार रहे थे. नक्सली लगातार नंद कुमार पटेल, महेंद्र कर्मा, दिनेश पटेल का नाम ले रहे थे. नंदकुमार पटेल और उनके बेटे को 34 से 40 नक्सली पहाड़ पर लगे गए. ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उनकी सुपारी दी है. जैसा फिल्मों में होता है बिल्कुल वैसा ही सबकुछ हमारी आंखों के सामने घट रहा था. नक्सलियों के माथे पर खून सवार था. माओवादी लगातार किसी से वॉकी टॉकी के जरिए बातचीत भी कर रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे माओवादियों को भी कहीं से दिशा निर्देश मिल रहे हैं और वो उनको फॉलो कर रहे हैं.

जांच पर सियासी आंच: झीरम हत्याकांड की जांच जब से शुरु हुई तब से विवादों में रही. भूपेश की सरकार के दौरान जांच को लेकर कई सवाल भी खड़े किए गए. एनआईए से लेकर एसआईटी और मजिस्ट्रियल जांच भी चली लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है. पीड़ित परिवार के लोगों को उम्मीद है कि देर सबेर भगवान उनको न्याय जरुर दिलाएंगे.

झीरम हत्याकांड में शामिल 19 नक्सलियों पर NIA ने की इनाम की घोषणा
झीरम घाटी नक्सली हमला: झीरम हत्याकांड में जांच आयोग ने शुरू की सुनवाई
झीरम घाटी हत्याकांड मामले में हुई सुनवाई, NIA ने कहा राज्य सरकार नहीं कर सकती दोबारा जांच

झीरम का दर्द (Etv Bharat)

रायपुर: आज झीरम हत्याकांड की 11वीं बरसी है. आज से ठीक 11 साल पहले माओवादियों ने बड़े ही निर्मम तरीके से कांग्रेस के दिग्गज 30 नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी थी. हत्याकांड इतना विभत्स और दिल दहलाने वाला था कि पूरा देश उसे देख कांप गया. माओवादी हिंसा से जो लोग वाकिफ नहीं थे उनके कारनामों को देख डर गए. माओवादियों के वेल्ड प्लैन्ड हमले में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व पूरी तरह से खत्म हो गया. माओवादियों के खूंखार हमले में तब के सीएम पद के सबसे बड़े दावेदार और दिग्गज नेता नंद कुमार पेटल भी मारे गए. पटेल के आलावा विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार की भी मौत हो गई.

झीरम हत्याकांड की 11वीं बरसी आज: झीरम हत्याकांड की 11वीं बरसी आज देश मना रहा है. ग्यारह सालों का लंबा वक्त बीत जाने के बाद भी अबतक हत्याकांड के दोषी पकड़े नहीं जा सके हैं. हत्याकांड की साजिश किसने रची इसका भी पता जांच एजेंसियां नहीं लगा पाई हैं. भूपेश बघेल की सरकार जब सत्ता में आई तो लगा कि जांच पूरी होगी और राज से पर्दा उठेगा. कांग्रेस का पांच साल का शासन भी खत्म हो गया. जांच जहां से शुरु हुई थी आज भी वहीं पर खड़ी है.

झीरम की कहानी चश्मदीद की जुबानी: जिस वक्त झीरम हत्याकांड को अंजाम दिया गया उस वक्त कांग्रेस के प्रचार काफिले में कांग्रेस नेता शिव सिंह ठाकुर भी मौजूद थे. माओवादियों के खूनी हमले में जान बचाकर भागने वाले शिव सिंह ठाकुर बताते हैं कि आज भी उस खूनी मंजर को याद कर उनके रौंगटे खड़े हो जाते हैं. ठाकुर बताते हैं कि ''नक्सलियों को उनका टारगेट पता था. नक्सली नंदकुमार पटेल को टारगेट करने के लिए ही पहुंचे थे. कांग्रेस के पक्ष में उस वक्त काफी बढ़िया माहौल था. ऐसा लग रहा था और हम सभी को भरोसा था कि नंद कुमार पटेल सीएम बनकर ही लौटेंगे. प्रदेश में अगर कांग्रेस की सरकार बनती तो निश्चित तौर पर पटेल ही सीएम होते. पटेल ही सीएम बनते इस बात का सभी को विश्वास था. शायद यही कारण रहा कि उनको टारगेट किया गया''.

24 मई 2013 पसरा था मौत का सन्नाटा: साल 2013 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा का चुनाव होना था. बीजेपी और कांग्रेस दोनों प्रचार में जोर शोर से जुटी थी. तब प्रदेश के मुखिया रमन सिंह हुआ करते थे. कांग्रेस पार्टी ने रमन सिंह को सत्ता से हटाने और कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने के लिए परिवर्तन यात्रा निकाली. पूरे प्रदेश में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा घूम घूम कर प्रचार पर निकली. कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा को जनता का जोरदार सपोर्ट भी मिलने लगा. जनता के सपोर्ट को देखकर कांग्रेस के नेता भी खासे उत्साहित रहे. खुद नंद कुमार पटेल परिवर्तन यात्रा के मंच से बीजेपी पर हमलावर रहे. परिवर्तन यात्रा जब अपने शबाब पर थी तब कांग्रेस के नेता यात्रा के साथ बस्तर पहुंचे. परिवर्तन यात्रा जब झीरम घाटी में पहुंची तब नक्सलियों ने चारों और से कांग्रेस के काफिले को घेरकर गोलीबारी शुरु कर दी. नक्सलियों के हमले में कांग्रेस का पूरा का पूरा शीर्ष नेतृत्व खत्म हो गया. जो इस हमले में बच गए वो आज भी उस दिन को याद कर सिहर जाते हैं. नक्सलियों के हमले में बाल बाल बचे शिव कुमार ठाकुर कहते हैं कि '' इतना लंबा वक्त बीत जाने के बाद भी हमले में मारे गए लोगों के परिवार को न्याय नहीं मिल पाया है. 11 साल से पीड़ित के परिवार वाले न्याय की उम्मीद में दर दर की ठोकरे खा रहे हैं. आज भी हमें उम्मीद है कि एक न एक दिन हमें न्याय जरूर मिलेगा. शासन और प्रशासन से जरुर हमें नहीं मिल पा रहा है लेकिन एक दिन भगवान से न्याय जरुर मिलेगा.

कैसे हुआ हमला,क्या था खूनी मंजर: शिव सिंह ठाकुर कहते हैं कि ''नक्सलियों ने पूरी तैयारी के साथ एंबुश लगा रखा था. काफिले को रोका गया और ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार करनी शुरु कर दी गई. किसी को भी बचने का कोई मौका नहीं मिला. जो सौभाग्यशाली थे वो बड़ी मुश्किल से जान बचाकर भागे. हमारे कई साथी उस घटना में दुनिया छोड़कर चले गए. आज हम उनको याद कर सिर्फ दुख जता सकते हैं. ईश्वर दोषियों को जरुर एक दिन सजा देगा ऐसा हमें विश्वास है''.

''नक्सलियों ने लगा रखा था एंबुश'': शिव सिंह ठाकुर कहते हैं कि ''नक्सलियों के एंबुश में फंसते ही धमाका हुआ और गाड़ियों की पायलटिंग कर रही गाड़ी के चीथड़े उड़ गए. गाड़ी में जितने भी पुलिसवाले थे सभी शहीद हो गए. पायलट गाड़ी के जस्ट पीछे नंद कुमार पटेल जी की गाड़ी थी. गाड़ी में नंदु कुमार पटेल के बेटे दिनेश पटेल और कवासी लखमा भी बैठे थे. उनकी गाड़ी को माओवादियों ने चारों ओर से घेर लिया. नक्सली नंद कुमार पटेल और उनके बेटे को पकड़कर पहाड़ पर ले गए. उनको पता था कि काफिल में महेंद्र कर्मा भी हैं. नक्सलियों ने उनको मारने के लिए अंधाधुंध फायरिंग करनी शुरु कर दी. फायरिंग होते ही महेंद्र कर्मा के गार्डों ने भी गोलीबारी शुरु कर दी. फायरिंग के बीच नक्सलियों ने महेंद्र कर्मा को सरेंडर करने के लिए कहा. करीब 2 से ढाई घंटे तक गोलीबारी होती रही. मदद के लिए जब पुलिस मौके पर नहीं पहुंची तब बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा ने माओवादियों के सामने सरेंडर कर दिया. महेंद्र कर्मा के सरेंडर करते ही हम सभी लोगों ने भी आत्मसमर्पण कर दिया. जिसके बाद फायरिंग थम गई''.

''नाम पूछ पूछकर मार रहे थे गोली'': शिव सिंह ठाकुर कहते हैं कि माओवादी सबका नाम पूछ पूछकर गोली मार रहे थे. नक्सली लगातार नंद कुमार पटेल, महेंद्र कर्मा, दिनेश पटेल का नाम ले रहे थे. नंदकुमार पटेल और उनके बेटे को 34 से 40 नक्सली पहाड़ पर लगे गए. ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उनकी सुपारी दी है. जैसा फिल्मों में होता है बिल्कुल वैसा ही सबकुछ हमारी आंखों के सामने घट रहा था. नक्सलियों के माथे पर खून सवार था. माओवादी लगातार किसी से वॉकी टॉकी के जरिए बातचीत भी कर रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे माओवादियों को भी कहीं से दिशा निर्देश मिल रहे हैं और वो उनको फॉलो कर रहे हैं.

जांच पर सियासी आंच: झीरम हत्याकांड की जांच जब से शुरु हुई तब से विवादों में रही. भूपेश की सरकार के दौरान जांच को लेकर कई सवाल भी खड़े किए गए. एनआईए से लेकर एसआईटी और मजिस्ट्रियल जांच भी चली लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है. पीड़ित परिवार के लोगों को उम्मीद है कि देर सबेर भगवान उनको न्याय जरुर दिलाएंगे.

झीरम हत्याकांड में शामिल 19 नक्सलियों पर NIA ने की इनाम की घोषणा
झीरम घाटी नक्सली हमला: झीरम हत्याकांड में जांच आयोग ने शुरू की सुनवाई
झीरम घाटी हत्याकांड मामले में हुई सुनवाई, NIA ने कहा राज्य सरकार नहीं कर सकती दोबारा जांच
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.