रांचीः इंडिया ब्लॉक में शामिल राजद के सामने इस बार चुनौतियां बेशुमार हैं. आलम तो ये कि राजद के इकलौते विधायक सत्यानंद भोक्ता का चतरा से चुनाव लड़ना नामुमकिन है. क्योंकि चतरा सीट एससी के लिए रिजर्व है. जबकि भोक्ता जाति को एससी कैटेगरी से निकालकर एसटी का दर्जा दिया जा चुका है.
अब सत्यानंद भोक्ता के सामने राजनीतिक अस्तित्व का मसला है. वह अपनी बहू रश्मि प्रकाश को चुनाव लड़ाना चाह रहे हैं. लेकिन उनके पास राजनीतिक अनुभव नहीं है. राजद के सामने चुनौती है चतरा सीट को बचाए रखना. राजद को ऐसा नेता चाहिए जो ना सिर्फ जमीनी तौर पर मजबूत हो बल्कि आर्थिक रुप से भी सक्षम हो. यह भी दिक्कत है कि बहू को टिकट नहीं मिलने पर सत्यानंद भोक्ता उन्हें बतौर निर्दलीय भी मैदान में उतार सकते हैं.
चतरा में खूब चला है पाला बदलने का दौर
चतरा एक ऐसी सीट हैं जहां ज्यादातर मजबूत प्रत्याशी समय समय पर पाला बदलते रहे हैं. वर्तमान राजद विधायक सत्यानंद भोक्ता ने एकीकृत बिहार के समय साल 2000 में भाजपा की टिकट पर चतरा में विजय हासिल की थी. उस वक्त आज के भाजपा नेता जनार्दन पासवान ने राजद से चुनाव लड़ा था. झारखंड बनने के बाद 2005 में हुए पहले चुनाव के समय भाजपा की टिकट पर सत्यानंद भोक्ता ने राजद के जनार्दन पासवान को हराया था. 2009 में समीकरण बदल गया था. भाजपा ने सुबेदार पासवान को प्रत्याशी बना दिया. वह राजद के जनार्दन पासवान से हार गये थे. 2014 में जयप्रकाश सिंह भोक्ता को भाजपा का टिकट मिलने पर सत्यानंद भोक्ता जेवीएम प्रत्याशी बनकर उतरे थे लेकिन भाजपा से हार गये.
2019 में चतरा की तस्वीर पूरी तरह बदल गयी. सत्यानंद भोक्ता राजद के प्रत्याशी बन गये जबकि राजद छोड़कर जनार्दन पासवान भाजपा में आ गये. इस मुकालबे में राजद की टिकट पर तीसरी बार सत्यानंद भोक्ता की जीत हुई. राजद के इकलौते विधायक के नाते उन्हें हेमंत कैबिनेट में मंत्री पद भी मिला. भोक्ता जाति को एसटी का दर्जा मिलने से सत्यानंद भोक्ता के सामने बहू को चुनाव लड़ाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचा है. चतरा के स्थानीय पत्रकार नौशाद का कहना है कि सत्यानंद भोक्ता विकल्प तलाश चुके हैं. लेकिन उनके लिए एसटी सीट पर कहीं जगह बनती नहीं दिख रही है.
2019 में राजद का परफॉर्मेंस
2019 में राजद ने सिर्फ चतरा सीट पर जीत हासिल की थी. एक सीट पर प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई थी. देवघर एससी सीट पर राजद के सुरेश पासवान ने जबरदस्त टक्कर दी थी. वह बहुत कम वोट के अंतर से भाजपा प्रत्याशी नारायण दास से हार गये थे. गोड्डा में राजद के संजय प्रसाद यादव का भाजपा के अमित मंडल से अच्छा मुकाबला हुआ था. लेकिन राजद नेता की 4,512 वोट के अंतर से हार हुई थी. कोडरमा सीट पर राजद के अमिताभ कुमार और भाजपा की नीरा यादव के बीच कांटे की टक्कर हुई थी. यहां नीरा यादव महज 1,797 वोट से अपनी सीट बचा पाईं थीं.
बरकट्ठा सीट पर जब्त हुई थी जमानत
बरकट्ठा में राजद ने खालिद खलील को चुनावी मैदान में उतारा था लेकिन उनकी जमानत जब्त हो गयी थी. इस सीट पर अमित यादव बतौर निर्दलीय जीते थे. दूसरे स्थान पर भाजपा के जानकी प्रसाद यादव रहे. राजद प्रत्याशी को महज 4867 वोट मिले थे. इस बार अमित यादव भाजपा में जा चुके हैं. सिर्फ चतरा सीट पर राजद का खाता खुला था. यहां सत्यानंद भोक्ता ने भाजपा के जनार्दन पासवान को हराया था. एससी के लिए रिजर्व छतरपुर में राजद ने अजय कुमार को मैदान में उतारा था. उन्हें भाजपा की पुष्पा देवी ने बड़े मार्जिन से हराया था. हुसैनाबाद में राजद के संजय कुमार यादव को 31,444 वोट मिले थे. उन्हें एनसीपी के कमलेश कुमार सिंह ने 9,849 वोट के अंतर से हराया था.
इस समीकरण से साफ है कि राजद के सामने चुनौतियां बढ़ीं हुई हैं. इंडिया गठबंधन के तहत मिली सात सीटों में से चतरा सीट जीतने के अलावा राजद प्रत्याशियों ने सिर्फ देवघर, गोड्डा और कोडरमा सीट पर टक्कर दी थी. मौजूदा हालात में सिर्फ एक सीट पर जीत से काम नहीं चलने वाला है. लिहाजा इस बार राजद के सामने करो या मरो वाली स्थिति है. खास बात है कि इस परफॉर्मेंस के बावजूद झारखंड राजद के नेता सीट की संख्या बढ़ाने का दवाब डालते आ रहे हैं.
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