श्रीनगर (उत्तराखंड): इन दिनों पूरे उत्तराखंड में वनाग्नि ने तांडव मचाया हुआ है. जंगलों में लग रही आग से जहां एक तरफ बेशकीमती वन संपदा जलकर खाक हो रही है तो वहीं दूसरी तरफ वनाग्नि के कारण जंगली जानवरों के भी प्राण संकट में आ गए हैं. इसके साथ वातावरण में कार्बन उत्सर्जन अपने सबसे उच्च पायदान तक पहुंच गया है. इतना ही नहीं कार्बन उत्सर्जन में 17 गुना बढ़ोतरी देखी गई है. इसका खुलासा एचएनबी गढ़वाल विवि के शोध में हुआ है.
वायुमंडल में घुला ब्लैक कार्बन: दरअसल, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर की ओर से किए जा रहे शोध में पाया गया कि वायुमंडल में आज ब्लैक कार्बन उत्सर्जन 17,533 ng/m3 (नैनो ग्राम प्रति मीटर क्यूब) तक पहुंच गया है. बायोमास बर्निंग में भी इजाफा हो रहा है. जिसके कारण वायुमंडल में 82% आग की डस्ट दूर-दूर तक दिखाई दे रही है. इसके साथ सल्फर डाइऑक्साइड भी 9.362 मॉइकोग्राम प्रति मीटर क्यूब में पहुंच गई है. जो साफ तौर पर उत्तराखंड के लिए खतरे की घंटी बजा रहे हैं.
गढ़वाल विवि में रखी जा रही नजर: बता दें कि गढ़वाल विवि के चौरास परिसर में अत्याधुनिक मशीनों के जरिए पर्यावरण में हो रहे परिवर्तनों में नजर रखी जाती है. जिसके लिए विज्ञानिकों की ओर से एथेलोमीटर (Aethalometer AE33 Black Carbon Monitor) विश्लेषक लगाया गया है. जिसमें इन दिनों वनाग्नि के बाद हो रहे कार्बन उत्सर्जन की मॉनिटरिंग की जा रही है. साथ ही यहां पर एथेलोमीटर से अहम डेटा भी जुटाए जा रहे हैं.
श्रीनगर में ब्लैक कार्बन उत्सर्जन 17 गुना बढ़ा: माना जाता है कि अगर ब्लैक कार्बन 1000 से नैनो ग्राम प्रति मीटर क्यूब से नीचे रहता है तो इससे वातावरण को सामान्य प्रभाव ही पड़ता है, लेकिन इन दिनों वनाग्नि की घटनाओं ने श्रीनगर में ब्लैक कार्बन उत्सर्जन को 17 गुना बढ़ा दिया है. इसके अलावा सल्फर डाइऑक्साइड भी डब्ल्यूएचओ के अलार्मिंग लेवल के बिल्कुल करीब पहुंच गया है. जो साफ बताता है श्रीनगर की आबोहवा में एक तरह से जहर घुल गया है.
वनाग्नि के बाद पैदा होने वाली लेयर ने सब कुछ ढका: गढ़वाल विवि के भौतिक विज्ञान विभाग में एटमॉस्फेयर फिजिक्स में शोध कर रहे शोधार्थी संजय कुमार बताते हैं कि वो वनाग्नि के कारण वातावरण में हो रहे बदलाव का अध्ययन कर रहे हैं. अध्ययन के दौरान जो आंकड़े सामने आए हैं, वो चिंताजनक है. वनाग्नि के कारण 17 गुना ज्यादा कार्बन उत्सर्जन हो रहा है. मौसम में भी उमस बढ़ने लगी है. चारों तरफ वनाग्नि के बाद पैदा होने वाली लेयर ने सब कुछ ढक दिया है.
ग्लेशियर को तेजी से पिघला रहा ब्लैक कार्बन: वहीं, शोधार्थी करन सिंह बताते हैं कि वो हर 15 दिनों में नए डेटा का अध्ययन कर रहे हैं. इस साल वनाग्नि ने पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. इस संबंध में सरकार, वन विभाग और आम जन मानस को सोचने की जरूरत है. यही ब्लैक कार्बन उत्सर्जन ग्लेशियर को तेजी के साथ भी पिघला रहा है. इसके कारण गाड़ गदेरे, प्राकृतिक स्रोत भी सूखने की कगार पर पहुंच गए हैं.
ब्लैक कार्बन और धुंध से हो रही ये परेशानी: शोध छात्र अमनदीप बताते हैं कि इस धुंध के कारण आंखों में जलन, सांस लेने में होने वाली तकलीफ से भी लोगों को दो चार होना पड़ रहा है, लेकिन इसके और भी दूरगामी घातक परिणाम देखने को भविष्य में देखने को मिल सकते हैं. अगर वनाग्नि की घटनाओं को रोका नहीं गया तो इससे पहाड़ों की पूरी जैव विविधता को बदलने में देर नहीं लगेगी.
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