नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई कैबिनेट की बैठक में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' बिल को मंजूरी दे दी. इस विधेयक को संसद के इस शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है. इस मुद्दे पर बीजेपी का कहना है कि ये ऐतिहासिक बिल है और इसका सभी पार्टियां को स्वागत करना चाहिए.
सूत्रों की माने तो लंबी चर्चा और आम सहमति बनाने के लिए सरकार इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति यानी कि जेपीसी के पास भेजने की योजना बना रही है. इससे पहले सितंबर में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को मंजूरी दी थी, जिसमें पूरे भारत में एक साथ चुनाव लागू करने की बात कही गई थी.
18,000 पन्नों की रिपोर्ट
18,000 पन्नों की रिपोर्ट में चुनावों को एक साथ करने के लिए चरणबद्ध दृष्टिकोण की रूपरेखा तैयार की गई थी, जिसकी शुरुआत सबसे पहले लोकसभा और राज्य विधानसभाओं से होगी और उसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएंगे.
47 राजनीतिक दलों का समर्थन
पैनल को 47 राजनीतिक दलों से जवाब मिले थे, जिनमें से 32 ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया था. इन दलों - जिनमें भाजपा, बीजू जनता दल (BJD), जनता दल-यूनाइटेड (JDU) और शिवसेना शामिल हैं. इन दलों ने कहा कि इस प्रस्ताव से दुर्लभ संसाधनों की बचत होगी, सामाजिक सद्भाव की रक्षा होगी और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा.
देश में कब-कब हुए एक साथ चुनाव?
बता दें कि भारत में कई बार लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हो चुके हैं. 1950 में गणतंत्र बनने के बाद, 1951 से 1967 तक हर पांच साल में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए गए थे.
देश के मतदाताओं ने 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ केंद्र और राज्य दोनों के लिए वोट डाले. हालांकि, कुछ पुराने राज्यों के पुनर्गठन और नए राज्यों के उदय के साथ, 1968-69 में यह प्रक्रिया पूरी तरह से बंद कर दी गई.
चुनाव आयोग ने 1983 में अपनी वार्षिक रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया को फिर से शुरू करने का सुझाव दिया. 1999 में विधि आयोग की रिपोर्ट में भी इस अभ्यास का उल्लेख किया गया.