रांची: झारखंड की अन्नपूर्णा देवी और संजय सेठ पर पीएम नरेंद्र मोदी की कृपा बरसी है. अन्नपूर्णा देवी कैबिनेट मंत्री बन गई हैं. पूर्ववर्ती सरकार में राज्यमंत्री थीं. वह यादव समाज से आती हैं. वहीं रांची से लगातार दूसरी बार सांसद बने संजय सेठ राज्य मंत्री बन गये हैं. वह वैश्य समाज से आते हैं. खास बात है कि लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी सरकार में पहली बार ऐसा हुआ है, जब झारखंड के किसी भी आदिवासी नेता को जगह नहीं मिली है. इसकी वजह का अनुमान लगाना सबसे आसान है क्योंकि पांचों एसटी सीटों पर भाजपा का कोई प्रत्याशी नहीं जीत पाया. कैबिनेट मंत्री रहते हुए अर्जुन मुंडा खुद चुनाव हार गये.
अब इस बात की चर्चा शुरु हो गई है कि लगातार चौथी बार चुनाव जीतने वाले गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे को जगह क्यों नहीं मिली. सवाल यह भी उठ रहे हैं कि एससी के लिए रिजर्व इकलौते पलामू सीट से हैट्रिक लगाने वाले विष्णु दयाल राम और जमशेदपुर से हैट्रिक लगाने वाले कुर्मी नेता विद्युत वरण महतो आखिर मंत्री क्यों नहीं बन पाए. क्योंकि इन तीनों सांसदों का कद अन्नपूर्णा देवी और संजय सेठ से बड़ा माना जाता है. चर्चा इसलिए भी हो रही है क्योंकि कुछ माह बाद ही झारखंड में विधानसभा का चुनाव होना है. इस लिहाज से कास्ट फैक्टर वाला समीकरण बहुत मायने रखता है.
एसटी के बाद कुर्मी वोट बैंक है प्रभावशाली
एक अनुमान के मुताबिक झारखंड की 25 से 30 सीटों पर कुर्मी वोटर प्रभाव डालते हैं. इनमें से 12 सीटों पर सीधा प्रभाव रहता है. जबकि 09 सीटें एससी के लिए रिजर्व हैं. वर्तमान में 09 एससी सीटों में से 06 सीटें भाजपा के पास हैं तो दो सीटें झामुमो और एक सीट पर कांग्रेस का कब्जा है. जाहिर है कि झारखंड में एससी वोटरों पर भाजपा की अच्छी पकड़ है. रही बात गोड्डा की तो वहां ब्राह्मण वोटर हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
गोड्डा की छह विधानसभा सीटों में पोड़ैयाहाट, महगामा और जरमुंडी में कांग्रेस, मधुपुर में झामुमो तो गोड्डा और देवघर सीट पर भाजपा का कब्जा है. इस लोकसभा क्षेत्र के मधुपुर से हफीजुल हसन और जरमुंडी से बादल पत्रलेख झारखंड सरकार में मंत्री है. इससे इस सीट का महत्व समझा जा सकता है. फिर भी तीनों कैटेगरी के किसी भी सीनियर सांसद को मंत्री नहीं बनाया गया. अब सवाल है कि क्या ऐसा करना भाजपा की स्ट्रेटजी का हिस्सा है.
भाजपा ने खोल दिया है राजनीति का नया चैप्टर
इस मसले पर झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार आनंद कुमार की राय पर गौर करने की जरूरत है. उनके मुताबिक भाजपा पिछले दो तीन साल से आदिवासियों पर काम कर रही थी. 7 जनवरी 2023 को अमित शाह चाईबासा आए थे. विजय संकल्प रैली का आगाज किया था. बाद में दुमका भी गये. प्रधानमंत्री छह माह में दो बार खूंटी गये.
भगवान बिरसा की जन्मस्थली भी गये. लेकिन आदिवासियों में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और संविधान बदलने का मुद्दा हावी रहा. ऊपर से अर्जुन मुंडा भी हार गये. अब भाजपा को लग रहा है कि आदिवासी को राष्ट्रपति बनाने का फायदा ओडिशा में मिल गया लेकिन झारखंड में नहीं मिला. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और ओडिशा में आदिवासी वोट मिले हैं. वहीं झारखंड में दो महिला नेत्री सीता सोरेन और मधु कोड़ा का दांव लगाकर देख लिया. नतीजा सिफर रहा.
माइनस आदिवासी और माइनस कुर्मी की रणनीति
अब भाजपा समझ चुकी है कि इससे कुछ होने वाला नहीं है. अब लगता है कि भाजपा यहां माइनस आदिवासी और माइनस कुर्मी पॉलिटिक्स खेलेगी. क्योंकि इस बार कुर्मी का वोट भाजपा को नहीं मिला है. खूंटी, सिंहभूम, रांची, गिरिडीह में कुर्मी वोट भाजपा को नहीं मिला. गोमिया में जयराम लीड किए. सिल्ली और ईचागढ़ में देवेंद्र महतो को वोट मिला.
इससे लग रहा है कि भाजपा अब दबाव की राजनीति से बाहर निकलकर अलग रास्ता तैयार कर रही है. यही वजह है कि आजसू के सांसद को भी मंत्री नहीं बनाया. इससे साफ है कि कुर्मी को भाजपा अब तवज्जो देने के मूड में नहीं है. सुदेश महतो कुर्मी वोट नहीं संभाल पाए. यह बिल्कुल सही है कि एसटी की 28 सीटों में से कम से कम आधी सीट जीते बगैर भाजपा को सरकार बनाना मुश्किल है. भाजपा इस बात को बखूबी समझती होगी. इसलिए अब इस वोट बैंक को यहां के स्थानीय आदिवासी नेताओं के जरिए साधने की कोशिश होगी.
एससी और अगड़ी की नहीं हुई है अनदेखी
रही बात इकलौते एससी सांसद वीडी राम की तो यह समझना जरूरी है कि झारखंड को एससी के लिए नहीं जाना जाता है. इस राज्य की पहचान एसटी और ओबीसी के लिए होती है. जहां तक एससी की बात है तो बिहार के जीतन राम मांझी मंत्री बन चुके हैं. झारखंड में कुल 37 सीटें आरक्षित हैं. एससी की छह से सात सीटें भाजपा को मिल जाती हैं. रही बात अगड़ी जाति की तो इनके पास भाजपा के सिवाय कोई दूसरा चारा नहीं है. ढुल्लू के मामले में यह दिख गया. वहां कहा जा रहा था कि फारवर्ड की नाराजगी की वजह से ढुल्लू हार सकते हैं लेकिन फॉरवर्ड नहीं बंटे. झारखंड में यादव और वैश्य समाज का भाजपा को साथ मिला है. यह एक वजह हो सकती है जिसकी वजह से अन्नपूर्णा देवी और संजय सेठ का ओहदा बढ़ाया गया.
झारखंड में क्या है जातीय समीकरण
राष्ट्रीय ओबीसी मोर्चा के झारखंड अध्यक्ष राजेश गुप्ता के मुताबिक झारखंड में ओबीसी की आबादी अनुमानन 50 प्रतिशत से ज्यादा है. इसमें सबसे ज्यादा आबादी कुर्मी जाति की है. इसके बाद बनिया जाति का नंबर है. संख्या के मामले में यादव जाति तीसरे स्थान पर है. इसके अलावा कुशवाहा, कुम्हार, लोहार, नाई जैसी कई ओबीसी जातियां हैं. जनसंख्या के मामले में दूसरे नंबर पर एसटी और तीसरे नंबर एससी समाज है. जनसंख्या के मामले में चौथे नंबर पर अगड़ी जातियां आती हैं. इनमें ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, कायस्थ, मारवाड़ी, खान, पठान शामिल हैं.
जनसंख्या का हवाला देते हुए राजेश गुप्ता ने कहा कि कैबिनेट में किसको जगह मिलनी चाहिए, यह तो पीएम के अधिकार क्षेत्र में आता है. लेकिन नैतिक रूप से उनसे अपेक्षा की जाती है कि जनसंख्या अनुपात में जातियों का प्रतिनिधित्व हो. उन्होंने कहा कि वर्तमान केंद्र सरकार से उम्मीद की जाती है कि एसटी और एससी की तरह ओबीसी के लिए अलग से मंत्रालय बने. ताकि नीतियों में ओबीसी की भागीदारी बढ़ सके.
पीएम मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल में झारखंड को लेकर अपनी नीति स्पष्ट कर दी है. जो साथ देंगे, उनको जगह मिलेगी. जो भीतरघात करेंगे, उनको खामियाजा भुगतना पड़ेगा. शायद यही वजह है कि आजसू के इकलौते सांसद को मोदी सरकार में जगह नहीं मिली.
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