देहरादून (उत्तराखंड): चिपको आंदोललन एवं गांधीवादी विचारों के रूप में अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने वाले स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा की पत्नी बिमला बहुगुणा का निधन हो गया है. 93 साल की उम्र में बिमला बहुगुणा ने अंतिम सांस ली. स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा के बेटे राजीव नयन बहुगुणा ने सोशल मीडिया पर मां के निधन की जानकारी साझा की है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बिमला बहुगुणा के निधन पर शोक व्यक्त किया है.
सामाजिक कार्यों में रहती थी सक्रिय: स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा के बेटे राजीव नयन बहुगुणा ने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा कि,
भोर 2.10 बजे मां ने अंतिम साँस ली. वह देहरादून, शास्त्री नगर स्थित आवास पर थीं. अंत घड़ी चूंकि मैं उनके साथ अकेला था, अतः घबरा न जाऊं, यह सोच कर उखड़ती सांसों के साथ पड़ोस में रहने वाले मेरे चचेरे बड़े भाई को बुलवाने के निर्देश दिए. सतत 93 साल तक प्रज्वलित एक ज्योति शिखा का अनंत ज्योति में मिलन.
गौर हो कि, अपने पति सुंदरलाल बहुगुणा की भांति ही बिमला बहुगुणा ने भी अपना संपूर्ण जीवन पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र और सामाजिक उत्थान को समर्पित किया है.
बिमला बहुगुणा, अपनी साफ समझ, कड़ी मेहनत और समर्पण की भावना के लिए जानी जाती थीं. लक्ष्मी आश्रम जिसकी स्थापना महात्मागांधी की नजदीकी शिष्या सरला बेन ने की थी. बिमला बहुगुणा उस आश्रम की सबसे प्रिय छात्राओं में एक गिनी जाती थीं.
सामाजिक उत्थान के प्रति आजीवन समर्पित, पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान देने वाली, स्व. सुंदर लाल बहुगुणा जी की पत्नी बिमला बहुगुणा जी के निधन का समाचार अत्यंत दुःखद है।
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) February 14, 2025
ईश्वर पुण्यात्मा को श्री चरणों में स्थान एवं शोकाकुल परिजनों को यह असीम दुःख सहन करने की…
स्व सुंदरलाल बहुगुणा के बेटे राजीव नयन बहुगुणा के मुताबिक कि दिसंबर 1946 को कौसानी में महिला शिक्षा और ग्रामीण भारत के उदय को लेकर लक्ष्मी आश्रम की स्थापना की गई थी. शुरुआती दौर में लक्ष्मी आश्रम की देखरेख महात्मा गांधी की नजदीकी शिष्या सरला बेन कर रही थी. हालांकि जब आश्रम की स्थापना हुई उसे दौरान अल्मोड़ा जिले के रहने वाले लोगों में विरोधाभास की स्थिति थी. लेकिन पौड़ी और टिहरी जिले में आश्रम को लेकर उत्साह देखा गया. क्योंकि टिहरी जिले से एक साथ पांच छात्राओं ने आश्रम में दाखिला लिया था. इन पांचों छात्राओं में एक छात्रा बिमला नौटियाल भी थी. समय के साथ बिमला नौटियाल आश्रम की सबसे प्रिय छात्रा बन गई.
मिली 'वन देवी' की उपाधि: जानकार मानते थे हैं कि आश्रम से बाहर की सामाजिक गतिविधियों में भी बिमला बहुगुणा काफी अहम भूमिका निभाती थी. जब विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में आश्रम के प्रतिनिधित्व की जरूरत पड़ी तो बिमला बहुगुणा का ही नाम चुना गया था, बिमला बहुगुणा भूदान आंदोलन में अपने बेहतर काम के लिए भी जानी जाती रहीं. विनोबा भावे के मंत्री दामोदर ने बिमला को "वन- देवी" की उपाधि दी थी और कहा था कि ऐसी लड़की उन्होंने पहले कभी नहीं देखी, जो बहुत आसानी और मजबूती से नौजवानों का सही मार्गदर्शन करती हैं.
शादी के लिए रखी थी शर्त: बहुत ही कम लोग जानते हैं कि बिमला बहुगुणा और सुंदर लाल बहुगुणा की शादी की कहानी बड़ी रोचक है. साल 1954 में बिमला बहुगुणा ने शादी के लिए सुंदर लाल के सामने शर्त रखी थी. जिसके बाद ही उन्होंने विवाह के लिए हां किया था. दरअसल बिमला को पिता की एक चिट्ठी के जरिए मालूम चला कि उनका विवाह सुंदर लाल के साथ तय हुआ है. इस चिट्ठी में आदेश दिया गया था कि अमुक दिनांक,अमुक माह में उनका विवाह सुंदर लाल के साथ तय कर दिया गया है. अब बिमला बहुत ही दुविधा में थीं वो शादी नहीं करना चाहती थीं लेकिन अपनी छोटी बहनों की पढ़ाई बीच में ना छूट जाए और पिता जी नाराज ना हो जाए, ये भी डर उनको सता रहा था. तो उन्होंने विवाह से पहले एक शर्त रखी.
शादी के लिए शर्त ये थी कि सुंदरलाल राजनीतिक कामों को छोड़कर एक आश्रम की स्थापना करें. जिस पर सुंदरलाल भी तैयार हो गए और तब सड़क से मीलों दूर सिलयारा आश्रम की शुरुआत की गई. विवाह ठक्कर बाबा आश्रम में संपन्न हुआ था.
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