पटना : विधानसभा चुनाव से पहले बिहार के उपचुनाव को सत्ता का सेमीफाइनल माना जा रहा है. चार सीटों पर राजनीतिक दलों की ओर से परिवारवाद की सियासत देखने को मिली है. प्रशांत किशोर ने कुछ अलग करने की कोशिश की है, तो नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली पार्टी जनता दल यूनाइटेड भीड़ में अलग दिखने की कोशिश कर रही है.
उपचुनाव में लग सकता है परिवारवाद को झटका : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में होने वाले हैं लेकिन तैयारी अभी से शुरू हो गई है. चार सीटों पर उपचुनाव हो चुके हैं और अब फैसले की बारी है. उपचुनाव में परिवारवाद का मुद्दा पूरी तरह छाया रहा. राजनीतिक दलों ने एक दूसरे को कटघरे में खड़े भी किया. दोनों ही गठबंधन के लिए उपचुनाव अग्नि परीक्षा की तरह है. उपचुनाव के नतीजे राजनीतिक दलों को सियासत की दिशा दशा बदलने के लिए बाध्य करेगी.
एक परिवार के सदस्यों का प्रतिनिधित्व : परिवारवाद को लेकर राजनीतिक दलों के बीच बहस चलती रही है, लेकिन परिवारवाद की चरम स्थिति वह मानी जाती है जब एक ही परिवार के कई सदस्य अलग-अलग सदन के सदस्य हो जाते हैं. बिहार के अंदर ऐसे कई दल हैं जिन्होंने परिवार के सदस्य को ही अलग-अलग सदन में भेजने में संकोच नहीं किया. बिहार के क्षेत्रीय दलों के अंदर ऐसी स्थिति अधिक देखने को मिलती है.
नीतीश कुमार ने नहीं दिया बेटे बेटियों को टिकट : नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली पार्टी जनता दल यूनाइटेड भीड़ में अलग दिखने की कोशिश कर रही है. जनता दल यूनाइटेड में ऐसे एक भी उदाहरण नहीं है कि एक ही परिवार का दो या उससे अधिक सदस्य अलग-अलग सदन का प्रतिनिधित्व करता हो. लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार सरकार के दो मंत्री ने अपने परिजनों के लिए टिकट का प्रयास किया था, लेकिन नीतीश कुमार की सहमति नहीं मिली.
बेटे-बेटियों को नहीं मिला टिकट : बिहार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी अपनी बेटी के लिए टिकट चाहते थे, टिकट नहीं मिलने पर अशोक चौधरी ने लोजपा का रुख किया. बिहार सरकार के एक और मंत्री महेश्वर हजारी भी अपने पुत्र के लिए टिकट चाहते थे, लेकिन जल्दी से हरी झंडी नहीं मिलने पर उनके पुत्र ने कांग्रेस का रुख किया. झारखंड के जदयू के प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो अपने पुत्र के लिए मांडू से टिकट चाहते थे, लेकिन नीतीश कुमार ने यह कह कर सहमति नहीं दी कि खीरू महतो को राज्यसभा भेजा जा चुका है.
''हमारी पार्टी ने कभी भी पिता-पुत्र या पुत्री को एक साथ टिकट नहीं दिया है. हमारे नेता नीतीश कुमार शुरुआती दौर से परिवारवाद के खिलाफ हैं. लेकिन लालू प्रसाद यादव ने परिवारवाद की मिसाल कायम कर दी है. उपचुनाव में बिहार की जनता परिवारवाद को झटका देने का काम करेगी.'' - नीरज कुमार, प्रवक्ता, जेडीयू
लालू परिवार के चार सदस्य है जनप्रतिनिधि : नीतीश कुमार के उलट लालू प्रसाद यादव ने परिवारवाद को चरम पर पहुंचने का काम किया. लालू प्रसाद यादव के दो बेटे विधायक हैं. एक बेटी सांसद है और पत्नी विधान परिषद सदस्य है. इस तरह से कुल चार सदस्य अलग-अलग सदन का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के एक पुत्र सांसद हैं. दूसरे पुत्र विधायक बनने की होड़ में शामिल हैं. जहानाबाद सांसद सुरेंद्र यादव भी अपने बेटे को विधायक बनाने की तैयारी में हैं.
''राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लोग परिवारवाद के पोषक हैं. उपचुनाव में उन्होंने परिवारवाद के आधार पर ही टिकट देने का काम किया है. एनडीए के लोगों को परिवारवाद पर बात करने का नैतिक अधिकार नहीं है.''- अरुण कुमार, प्रवक्ता, राष्ट्रीय जनता दल
दो दलित नेता परिवारवाद को दे रहे हैं बढ़ावा : राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के दो सहयोगी दल हम और लोजपा रामविलास ने भी परिवारवाद को बढ़ाने का काम किया है. चिराग पासवान खुद सांसद हैं और उनके बहनोई जमुई से सांसद हैं. दूसरी तरफ जीतन राम मांझी केंद्र के सरकार में मंत्री हैं, तो उनके पुत्र बिहार सरकार में मंत्री हैं. जीतन राम मांझी अपनी बहू को विधानसभा पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
'बीजेपी में भी परिवारवाद का उदाहरण नहीं' : भारतीय जनता पार्टी में एक भी ऐसे उदाहरण नहीं देखने को मिलते हैं कि एक ही परिवार के दो या तीन सदस्य अलग-अलग सदन के सदस्य हों. भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष संतोष पाठक ने कहा है कि हम सैद्धांतिक रूप से परिवारवाद के खिलाफ हैं.
''बिहार बीजेपी में एक भी ऐसे उदाहरण आपको देखने को नहीं मिलेंगे कि एक ही परिवार के दो या तीन सदस्य अलग-अलग सदन का प्रतिनिधित्व करते हैं. हमारी पार्टी बेटे या बेटी को राजनीति में तब जगह देती है, जब पिता राजनीति के मुख्य धारा से अलग हो जाते हैं. हम 100000 नए कार्यकर्ता बनाने की तैयारी में है.''- संतोष पाठक, प्रदेश उपाध्यक्ष, बीजेपी
क्या कहते हैं जानकार : वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडे का मानना है कि परिवारवाद से कोई भी दल अछूता नहीं है, लेकिन नीतीश कुमार थोड़े अलग दिखते हैं. नीतीश कुमार ने कभी भी एक ही परिवार के दो या तीन सदस्य सदन में जाए इसकी अनुमति नहीं दी लेकिन छोटे दलों ने परिवारवाद को बढ़ावा दिया है.
''उपचुनाव के नतीजे यह तय कर देंगे कि बिहार की जनता का मूड क्या है? अगर बिहार की जनता ने परिवारवाद के खिलाफ फैसला दिया तो उसका असर आने वाले विधानसभा चुनाव पर पड़ना तय है. राजनीतिक दलों के लिए अभी चेतने का समय है.''- अरुण पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार
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