ETV Bharat / bharat

हाथों से पैरों का काम फिर व्हील पर लगाम, कमजोर चेयर से जूनून का क्रिकेट - BHOPAL WHEEL CHAIR CRICKET

देश में पहली बार भोपाल में डे-नाइट व्हील चेयर क्रिकेट टूर्नामेंट शुरू. जिसमें देश के 8 राज्यों की 10 टीमें भाग ले रहीं हैं.

BHOPAL WHEEL CHAIR CRICKET
भोपाल में व्हील चेयर क्रिकेट टूर्नामेंट (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 5, 2024, 9:44 PM IST

Updated : Dec 5, 2024, 11:05 PM IST

भोपाल: इन दिनों भोपाल व्हील चेयर क्रिकेट टूर्नामेंट का गवाह बना हुआ है. यहां शुरू हुए दिव्यांग क्रिकेट टूर्नामेंट में 8 राज्यों की 10 टीमें खेल रही हैं. जिसमें मध्य प्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ जम्मू कश्मीर , केरल और हरियाणा से पुरुष टीमें हैं, जबकि जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र, झारखंड और मध्य प्रदेश की दिव्यांग महिलाओं की टीमें भी मैदान में हैं. देश भर से 180 खिलाड़ी आए हैं. भोपाल के ओल्ड कैंपियन ग्राउंड में यह टूर्नामेंट 6 दिसंबर तक होगा. क्रिकेट टूर्नामेंट की शुरूआत बुधवार को हुई थी.

हाथों से पैरों का काम और व्हील पर भी लगाम

सामान्य क्रिकेट मुकाबले से कहीं ज्यादा रोमांच वाला ये मैच सिर्फ जीत हार के लिए नहीं है. इसके हर मैच में खिलाड़ी की खुद से भी जंग होती है. हाथों से पैरों का काम लिया जाता है. आती गेंद से टाइमिंग बिठाते फील्डर का व्हील चेयर पर बैठे हुए गेंद लपकना सिर्फ टाइमिंग का खेल नहीं होता यहां. जिस समय देश आईपीएल में क्रिकेट की नई प्रतिभाओं की बोलियां देख सुन रहा है, तब इसी खेल को व्हील चेयर पर संभाले ये खिलाड़ी भी हैं. जिन्हे स्पांसर करने भी कोई तैयार नहीं.

डे-नाइट व्हील चेयर क्रिकेट (ETV Bharat)

हाथ और हिम्मत से होता है मैच

पूरा मैच व्हील चेयर पर ही होता है. लिहाजा पूरा जोर हाथों पर ही होता है. हाथों से व्हील चलाते हुए मैदान मे दौड़ना है और हाथों से ही बल्लेबाजी गेंदबाजी के साथ फील्डिंग संभालनी है. रन लेते समय बल्ले को पैरों पर रख लेते हैं और भागते जाते हैं. गेंदबाज जिस जगह पर व्हीलचेयर खड़ी है वहीं से गेंदबाजी करता है. चुनौती होती है फील्डर की जिसे गेंद को देखते हुए व्हील चेयर दौड़ानी है और गेंद जहां गिर सकती है उस जगह तक हाथों के सहारे पहुंचना है. और ठीक समय पर व्हील चेयर छोड़कर कैच पकड़ना है.

Day night Wheel Chair Cricket
भोपाल में डे-नाइट व्हील चेयर क्रिकेट टूर्नामेंट (ETV Bharat)

भारत में पहली बार डे-नाइट व्हील चेयर क्रिकेट

एमपी टीम के क्रिकेटर दीपक बताते हैं कि "फर्क बस इतना है कि हमारे यहां बाउंड्री 45-50 यार्ड की होती है और पिच 18 गज की होती है. टी 20 मैच भी होते हैं और वन डे भी. ये जो मैच चल रहा है ये टी 10 है. दस ओवर का मैच है. लेकिन डे नाइट व्हील चेयर क्रिकेट टूर्नामेंट भारत में पहली बार हो रहा है." व्हील चेयर क्रिकेटर शैलेन्द्र कहते हैं कि "हम ये बताने की कोशिश कर रहे हैं इस खेल के साथ कि व्हील चेयर कमजोरी की निशानी नहीं है. खास इसमें टीम का सिलेक्शन भी है. जिसमें ध्यान रखा जाता है कि मुकाबले में खड़ी टीम भी बराबरी की हो. कमजोर नहीं."

WHEEL CHAIR CRICKET IN INDIA
भारत में पहली बार डे-नाइट व्हील चेयर क्रिकेट (ETV Bharat)

'कोई मैदान भी नहीं देता, व्हील चेयर भी खटारा'

कश्मीर की टीम क्वाटर फाइनल मुकाबले में एमपी को हराकर सेमीफाइनल में पहुंच गई है. जम्मू कश्मीर व्हील चेयर क्रिकेट टीम के कप्तान आदिल को जीत की जितनी खुशी है, उतना अफसोस इस बात का भी कि उसकी टीम के खिलाड़ियों के पास स्पोर्ट्स के हिसाब से व्हील चेयर नहीं है. ईटीवी भारत से बात करते हुए कहते हैं कि "मैंने अपने पैसों से खरीद ली है ये व्हील चेयर. लेकिन सबके पास नहीं है. सरकार कहती है दिलाएंगे मदद करेंगे. पर होता कुछ नहीं. ये खटारा व्हील चेयर पर लोग खेलते हैं. जोखिम ज्यादा होता है."

'व्हील चेयर क्रिकेट में ऐसी कोई सुविधा नहीं'

एमपी की टीम के कप्तान शैलेन्द्र यादव भी कहते हैं कि "जो निशक्त जन विभाग से व्हील चेयर मिली हैं खराब हो चुकी हैं, लेकिन जिस तरह से सरकार पैरा ओलम्पिक खिलाड़ियों को सुविधाएं देती हैं, व्हील चेयर क्रिकेट में ऐसी कोई सुविधा नहीं दी जाती. खिलाड़ियों को भोजन और आने जाने का किराया मिलता है जिस पर वो एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश खेलने पहुंच जाते हैं."

गुजरात में खेला गया था व्हील चेयर क्रिकेट का पहला मैच

डीसीसीआई यानि दिव्यांग क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ऑफ इंडिया के ज्वाइंट सेकेट्री रमेश सरतापे बताते हैं कि "व्हील चेयर क्रिकेट का पहला मैच भारत के बाहर नेपाल में 2007 में हुआ था लेकिन शुरुआत आप 2017 से कह सकते हैं जब नेशनल टीमों का मैच गुजरात में हुआ. व्हील चेयर क्रिकेट खेलने में जितना मुश्किल है मुसीबते भी कम नहीं. मैं भारतीय व्हील चेयर टीम का कप्तान हूं लेकिन स्पांसर तलाशने से लेकर खिलाड़ियों के बुनियादी खर्च जुटाने तक सारे इंतजाम मुझे भी करने पड़ते हैं. मैदान मिलना आसान नहीं होता, पिच खराब हो जाएगी इसलिए राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मैदान नहीं मिल पाते."

व्हील चेयर क्रिकेट की राह में कितने ब्रेकर

क्रिकेट के लिए जिस तरह की व्हील चेयर चाहिए वो उपलब्ध नहीं है. उनकी कीमत 27 हजार से 50 हजार होती है. ना तो कोई स्पांसर करता है. ना सरकार सुविधा उपलब्ध कराती है. टूर्नामेंट के लिए राष्ट्रीय अंतरर्राष्ट्रीय मैदान नहीं मिलते. यहां से ये कहकर टूर्नामेंट कराने से इंकार कर दिया जाता है कि पिच व्हील चेयर से खराब हो जाएगी. सरकार की तरफ से कोई सुविधा अब तक इस क्रिकेट को नहीं मिल पाई है. बीसीसीआई का भी व्हील चेयर क्रिकेट को कोई सहयोग अब तक नहीं मिल पाया है. खिलाड़ियों को किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं. सिर्फ किराए और भोजन पर खेलने पहुंचते हैं. स्पांसर्स भी रुझान नहीं दिखाते लिहाजा टूर्नामेंट का आयोजन भी आसान नहीं.

भोपाल: इन दिनों भोपाल व्हील चेयर क्रिकेट टूर्नामेंट का गवाह बना हुआ है. यहां शुरू हुए दिव्यांग क्रिकेट टूर्नामेंट में 8 राज्यों की 10 टीमें खेल रही हैं. जिसमें मध्य प्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ जम्मू कश्मीर , केरल और हरियाणा से पुरुष टीमें हैं, जबकि जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र, झारखंड और मध्य प्रदेश की दिव्यांग महिलाओं की टीमें भी मैदान में हैं. देश भर से 180 खिलाड़ी आए हैं. भोपाल के ओल्ड कैंपियन ग्राउंड में यह टूर्नामेंट 6 दिसंबर तक होगा. क्रिकेट टूर्नामेंट की शुरूआत बुधवार को हुई थी.

हाथों से पैरों का काम और व्हील पर भी लगाम

सामान्य क्रिकेट मुकाबले से कहीं ज्यादा रोमांच वाला ये मैच सिर्फ जीत हार के लिए नहीं है. इसके हर मैच में खिलाड़ी की खुद से भी जंग होती है. हाथों से पैरों का काम लिया जाता है. आती गेंद से टाइमिंग बिठाते फील्डर का व्हील चेयर पर बैठे हुए गेंद लपकना सिर्फ टाइमिंग का खेल नहीं होता यहां. जिस समय देश आईपीएल में क्रिकेट की नई प्रतिभाओं की बोलियां देख सुन रहा है, तब इसी खेल को व्हील चेयर पर संभाले ये खिलाड़ी भी हैं. जिन्हे स्पांसर करने भी कोई तैयार नहीं.

डे-नाइट व्हील चेयर क्रिकेट (ETV Bharat)

हाथ और हिम्मत से होता है मैच

पूरा मैच व्हील चेयर पर ही होता है. लिहाजा पूरा जोर हाथों पर ही होता है. हाथों से व्हील चलाते हुए मैदान मे दौड़ना है और हाथों से ही बल्लेबाजी गेंदबाजी के साथ फील्डिंग संभालनी है. रन लेते समय बल्ले को पैरों पर रख लेते हैं और भागते जाते हैं. गेंदबाज जिस जगह पर व्हीलचेयर खड़ी है वहीं से गेंदबाजी करता है. चुनौती होती है फील्डर की जिसे गेंद को देखते हुए व्हील चेयर दौड़ानी है और गेंद जहां गिर सकती है उस जगह तक हाथों के सहारे पहुंचना है. और ठीक समय पर व्हील चेयर छोड़कर कैच पकड़ना है.

Day night Wheel Chair Cricket
भोपाल में डे-नाइट व्हील चेयर क्रिकेट टूर्नामेंट (ETV Bharat)

भारत में पहली बार डे-नाइट व्हील चेयर क्रिकेट

एमपी टीम के क्रिकेटर दीपक बताते हैं कि "फर्क बस इतना है कि हमारे यहां बाउंड्री 45-50 यार्ड की होती है और पिच 18 गज की होती है. टी 20 मैच भी होते हैं और वन डे भी. ये जो मैच चल रहा है ये टी 10 है. दस ओवर का मैच है. लेकिन डे नाइट व्हील चेयर क्रिकेट टूर्नामेंट भारत में पहली बार हो रहा है." व्हील चेयर क्रिकेटर शैलेन्द्र कहते हैं कि "हम ये बताने की कोशिश कर रहे हैं इस खेल के साथ कि व्हील चेयर कमजोरी की निशानी नहीं है. खास इसमें टीम का सिलेक्शन भी है. जिसमें ध्यान रखा जाता है कि मुकाबले में खड़ी टीम भी बराबरी की हो. कमजोर नहीं."

WHEEL CHAIR CRICKET IN INDIA
भारत में पहली बार डे-नाइट व्हील चेयर क्रिकेट (ETV Bharat)

'कोई मैदान भी नहीं देता, व्हील चेयर भी खटारा'

कश्मीर की टीम क्वाटर फाइनल मुकाबले में एमपी को हराकर सेमीफाइनल में पहुंच गई है. जम्मू कश्मीर व्हील चेयर क्रिकेट टीम के कप्तान आदिल को जीत की जितनी खुशी है, उतना अफसोस इस बात का भी कि उसकी टीम के खिलाड़ियों के पास स्पोर्ट्स के हिसाब से व्हील चेयर नहीं है. ईटीवी भारत से बात करते हुए कहते हैं कि "मैंने अपने पैसों से खरीद ली है ये व्हील चेयर. लेकिन सबके पास नहीं है. सरकार कहती है दिलाएंगे मदद करेंगे. पर होता कुछ नहीं. ये खटारा व्हील चेयर पर लोग खेलते हैं. जोखिम ज्यादा होता है."

'व्हील चेयर क्रिकेट में ऐसी कोई सुविधा नहीं'

एमपी की टीम के कप्तान शैलेन्द्र यादव भी कहते हैं कि "जो निशक्त जन विभाग से व्हील चेयर मिली हैं खराब हो चुकी हैं, लेकिन जिस तरह से सरकार पैरा ओलम्पिक खिलाड़ियों को सुविधाएं देती हैं, व्हील चेयर क्रिकेट में ऐसी कोई सुविधा नहीं दी जाती. खिलाड़ियों को भोजन और आने जाने का किराया मिलता है जिस पर वो एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश खेलने पहुंच जाते हैं."

गुजरात में खेला गया था व्हील चेयर क्रिकेट का पहला मैच

डीसीसीआई यानि दिव्यांग क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ऑफ इंडिया के ज्वाइंट सेकेट्री रमेश सरतापे बताते हैं कि "व्हील चेयर क्रिकेट का पहला मैच भारत के बाहर नेपाल में 2007 में हुआ था लेकिन शुरुआत आप 2017 से कह सकते हैं जब नेशनल टीमों का मैच गुजरात में हुआ. व्हील चेयर क्रिकेट खेलने में जितना मुश्किल है मुसीबते भी कम नहीं. मैं भारतीय व्हील चेयर टीम का कप्तान हूं लेकिन स्पांसर तलाशने से लेकर खिलाड़ियों के बुनियादी खर्च जुटाने तक सारे इंतजाम मुझे भी करने पड़ते हैं. मैदान मिलना आसान नहीं होता, पिच खराब हो जाएगी इसलिए राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मैदान नहीं मिल पाते."

व्हील चेयर क्रिकेट की राह में कितने ब्रेकर

क्रिकेट के लिए जिस तरह की व्हील चेयर चाहिए वो उपलब्ध नहीं है. उनकी कीमत 27 हजार से 50 हजार होती है. ना तो कोई स्पांसर करता है. ना सरकार सुविधा उपलब्ध कराती है. टूर्नामेंट के लिए राष्ट्रीय अंतरर्राष्ट्रीय मैदान नहीं मिलते. यहां से ये कहकर टूर्नामेंट कराने से इंकार कर दिया जाता है कि पिच व्हील चेयर से खराब हो जाएगी. सरकार की तरफ से कोई सुविधा अब तक इस क्रिकेट को नहीं मिल पाई है. बीसीसीआई का भी व्हील चेयर क्रिकेट को कोई सहयोग अब तक नहीं मिल पाया है. खिलाड़ियों को किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं. सिर्फ किराए और भोजन पर खेलने पहुंचते हैं. स्पांसर्स भी रुझान नहीं दिखाते लिहाजा टूर्नामेंट का आयोजन भी आसान नहीं.

Last Updated : Dec 5, 2024, 11:05 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.