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बिहार के पूर्व CM कर्पूरी ठाकुर को मिला भारत रत्न, परिवार ने कहा- पूरे बिहार के लिए यह ऐतिहासिक क्षण - Bharat Ratna to Karpoori Thakur - BHARAT RATNA TO KARPOORI THAKUR

Jannayak Karpoori Thakur: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को आज मरणोपरांत 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया है. उनके बेटे रामनाथ ठाकुर ने यह सम्मान ग्रहण किया. राष्ट्रपति भवन में आयोजित सम्मान समारोह में सीएम नीतीश कुमार और दोनों डिप्टी सीएम भी मौजूद थे.

Bharat Ratna to Karpoori Thakur
Bharat Ratna to Karpoori Thakur
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 30, 2024, 8:17 AM IST

Updated : Mar 30, 2024, 12:15 PM IST

कर्पूरी ठाकुर को मिला भारत रत्न

पटना: जननायक कर्पूरी ठाकुर के परिवार, उनके अनुयायी और पूरे बिहार के लिए आज का दिन बेहद खास है, क्योंकि आज उनको देश का सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया है. मृत्यु के 36 साल बाद उनको केंद्र सरकार ने भारत रत्न देने का फैसला लिया है. जननायक को भारत रत्न मिलने से बिहारवासी फूले नहीं समा रहे हैं. 23 जनवरी की रात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद ही उनको सर्वोच्च सम्मान दिए जाने की जानकारी सोशल मीडिया पर साझा की थी.

रामनाथ ठाकुर ने जताई प्रसन्नता: इस मौके पर भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर ने कहा, 'मैं बहुत प्रसन्न हूं. भारत सरकार ने उनके काम को स्वीकार किया और उन्हें यह पुरस्कार दिया है. मैं पूरे देश की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त करता हूं.' वहीं, कर्पूरी ठाकुर की पोती नमिता कुमारी ने कहा कि यह सिर्फ हमारे परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार के लिए ऐतिहासिक क्षण है.

Bharat Ratna to Karpoori Thakur
कर्पूरी ठाकुर को मिला भारत रत्न

"बहुत अच्छा महसूस हो रहा है. इस भाव को शब्दों में बया कर पाना मुश्किल है. यह सिर्फ परिवार के लिए ही नहीं बल्कि पूरे बिहार के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है. मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देना चाहती हूं. उन्होंने बिहार के लोगों के लिए बहुत बड़ा काम किया है."- नमिता कुमारी, कर्पूरी ठाकुर की पोती

नीतीश समेत एनडीए नेताओं की मौजूदगी: भारत रत्न सम्मान समारोह के दौरान कर्पूरी ठाकुर के बेटे और जेडीयू सांसद रामनाथ ठाकुर और उनके परिवार के सदस्य मौजूद थे. इसके अलावे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दोनों डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, विजय कुमार सिन्हा, केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय, मंत्री प्रेम कुमार, जेडीयू सांसद ललन सिंह और राज्यसभा सांसद संजय झा समेत अन्य गणमान्य हस्तियां मौजूद थी.

Bharat Ratna to Karpoori Thakur
नीतीश समेत एनडीए नेताओं की मौजूदगी

सामाजिक न्याय के प्रणेता हैं जननायक: 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर के पितोझिया गांव में जन्मे कर्पूरी ठाकुर ने देश की राजनीति में अमिट छाप छोड़ी है. बिहार में सामाजिक न्याय की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने का श्रेय कर्पूरी ठाकुर को जाता है. वह दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे, उससे पहले उन्हें उपमुख्यमंत्री बनने का भी मौका मिला था. कर्पूरी ठाकुर के पिताजी का नाम गोकुल ठाकुर और माता जी का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था. इनके पिता गांव के सीमांत किसान थे और बाल काटने का काम करते थे.

भारत छोड़ो आंदोलन में लिया हिस्सा: सन् 1940 में कर्पूरी ठाकुर ने मैट्रिक की परीक्षा पटना विश्वविद्यालय से पास की और द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण हुए. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कर्पूरी ठाकुर ने सक्रिय राजनीति की ओर कदम बढ़ाया. आंदोलन के दौरान 26 महीने तक कर्पूरी ठाकुर भागलपुर के कैंप जेल में रहे और उन्हें कई तरह की यातनाएं दी गई. 1945 में उन्हें रिहा कर दिया गया. उसके बाद 1948 में आचार्य नरेंद्र देव और जयप्रकाश नारायण की पार्टी समाजवादी दल में प्रादेशिक मंत्री बनने का मौका इन्हें मिला.

1970 में बिहार के सीएम बने: 1967 के आम चुनाव में कॉर्पोरेट ठाकुर के नेतृत्व वाली पार्टी संयुक्त समाजवादी दल ताकतवर होकर उभरी और 1970 में उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया. 1973 से 77 तक वह लोकनायक जयप्रकाश के छात्र आंदोलन में सक्रिय रहे. 1977 में समस्तीपुर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से उन्हें सांसद बनने का मौका मिला और 24 जून 1977 को वह दोबारा मुख्यमंत्री बने. साल 1980 में जब मध्यावधि चुनाव हुए तो कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व वाली पार्टी लोक दल विपक्षी दल के रूप में उभरा और कर्पूरी ठाकुर नेता प्रतिपक्ष बने. खास बात ये भी है कि उन्होंने जीवन में कभी भी विधानसभा का चुनाव नहीं हारा.

'100 में 90 शोषित हैं..': कर्पूरी ठाकुर डॉ. राम मनोहर लोहिया को राजनीतिक गुरु मानते थे. कर्पूरी ठाकुर सदैव दलित-शोषित और वंचित वर्ग के उत्थान के लिए प्रयत्नशील रहते थे और संघर्ष उनके हथियार था. उनकी सादगी, सरल स्वभाव स्पष्ट विचार लोगों को जल्द प्रभावित कर लेती थी और लोगबाग उनके विराट व्यक्तित्व से आकर्षित हो जाते थे. जननायक कर्पूरी ठाकुर का चिर-परिचित नारा था. उनका दिया हुआ नारा '100 में 90 शोषित हैं. शोषितों ने ललकारा है, धन धरती और राज पाठ में 90 भाग हमारा है.' आज भी राजनीति करने वाले लोग इस नारे का इस्तेमाल खूब करते हैं.

अंग्रेजी विषय की अनिवार्यता को समाप्त: कर्पूरी ठाकुर ने सबसे पहले बिहार में पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की. 1977 में पिछड़ों के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई. 1967 में जब वह पहली बार बिहार के उपमुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने बिहार में मैट्रिक परीक्षा पास करने के लिए अंग्रेजी विषय की अनिवार्यता को समाप्त कर दी थी.

Jannayak Karpoori Thakur
Jannayak Karpoori Thakur

बेटे को दी ईमानदारी की सीख: जननायक कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी का जिक्र आज भी होता है. जब वह पहली बार उपमुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने अपने पुत्र रामनाथ ठाकुर को पत्र लिखतार पत्र में कहा था कि तुम किसी से प्रभावित मत होना. कोई लोग लालच दे तो उसके बहकावे में मत आना, इससे मेरी बदनामी होगी.

परिवारवाद के विरोधी थे कर्पूरी ठाकुर: जननायक कर्पूरी ठाकुर जब तक जीवित रहे, तब तक उनके परिवार से कोई भी व्यक्ति राजनीति में नहीं आया. एक बार कर्पूरी ठाकुर को चाहने वाले लोगों ने रामनाथ ठाकुर को टिकट देने की बात कही थी, तब कर्पूरी ठाकुर ने कहा था कि ठीक है रामनाथ को चुनाव लड़ा दो लेकिन मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा, तब जाकर लोगों को पीछे हटना पड़ा था.

सरकार से जमीन लेने से किया था इंकार: मुख्यमंत्री बनने के बाद भी फटा कुर्ता, टूटी चप्पल और बिखरे बाल कर्पूरी ठाकुर की पहचान थी. 70 के दशक में पटना में विधायकों और पूर्व विधायकों के लिए सरकार सस्ती दर पर जमीन दे रही थी. खुद कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ विधायकों ने कर्पूरी ठाकुर से कहा कि आप भी आवास के लिए जमीन ले लीजिए लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने जमीन लेने से साफ मना कर दिया. उनके ना करने पर एक विधायक ने कहा कि कर्पूरी जी आपका बाल बच्चा कहां रहेगा, तब उनका जवाब था कि अपने गांव में रहेगा.

64 साल की उम्र में उनका निधन: 17 फरवरी 1988 को कर्पूरी ठाकुर बीमार पड़ गए और इलाज के लिए पीएमसीएच ले जाने के क्रम में राजधानी पटना में उनकी मौत हो गई. उनकी मौत के बाद उनके शव यात्रा में पटना की सड़कों पर जितनी भीड़ उमड़ी थी, आज तक वैसी भीड़ कभी नहीं देखी गई. 64 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. आज उनके निधन के 36 साल के बाद केंद्र की सरकार उन्हें भारत रत्न से सम्मानित कर रही है.

भारत रत्न मिलने से बिहारवासी गौरवान्वित: सरकार के फैसले से कर्पूरी ठाकुर को चाहने और मानने वाले लोग गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. पूरा बिहार फूले नहीं समा रहा है. आज की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर इसलिए भी प्रासंगिक है कि भ्रष्टाचार परिवारवाद और धन संग्रह राजनीतिक दलों और राजनेताओं का हथियार बन चुका है लेकिन कर्पूरी ठाकुर इन सब चीजों से दूर रहे.

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रामनाथ ठाकुर ने जताई प्रसन्नता: इस मौके पर भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर ने कहा, 'मैं बहुत प्रसन्न हूं. भारत सरकार ने उनके काम को स्वीकार किया और उन्हें यह पुरस्कार दिया है. मैं पूरे देश की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त करता हूं.' वहीं, कर्पूरी ठाकुर की पोती नमिता कुमारी ने कहा कि यह सिर्फ हमारे परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार के लिए ऐतिहासिक क्षण है.

Bharat Ratna to Karpoori Thakur
कर्पूरी ठाकुर को मिला भारत रत्न

"बहुत अच्छा महसूस हो रहा है. इस भाव को शब्दों में बया कर पाना मुश्किल है. यह सिर्फ परिवार के लिए ही नहीं बल्कि पूरे बिहार के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है. मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देना चाहती हूं. उन्होंने बिहार के लोगों के लिए बहुत बड़ा काम किया है."- नमिता कुमारी, कर्पूरी ठाकुर की पोती

नीतीश समेत एनडीए नेताओं की मौजूदगी: भारत रत्न सम्मान समारोह के दौरान कर्पूरी ठाकुर के बेटे और जेडीयू सांसद रामनाथ ठाकुर और उनके परिवार के सदस्य मौजूद थे. इसके अलावे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दोनों डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, विजय कुमार सिन्हा, केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय, मंत्री प्रेम कुमार, जेडीयू सांसद ललन सिंह और राज्यसभा सांसद संजय झा समेत अन्य गणमान्य हस्तियां मौजूद थी.

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सामाजिक न्याय के प्रणेता हैं जननायक: 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर के पितोझिया गांव में जन्मे कर्पूरी ठाकुर ने देश की राजनीति में अमिट छाप छोड़ी है. बिहार में सामाजिक न्याय की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने का श्रेय कर्पूरी ठाकुर को जाता है. वह दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे, उससे पहले उन्हें उपमुख्यमंत्री बनने का भी मौका मिला था. कर्पूरी ठाकुर के पिताजी का नाम गोकुल ठाकुर और माता जी का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था. इनके पिता गांव के सीमांत किसान थे और बाल काटने का काम करते थे.

भारत छोड़ो आंदोलन में लिया हिस्सा: सन् 1940 में कर्पूरी ठाकुर ने मैट्रिक की परीक्षा पटना विश्वविद्यालय से पास की और द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण हुए. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कर्पूरी ठाकुर ने सक्रिय राजनीति की ओर कदम बढ़ाया. आंदोलन के दौरान 26 महीने तक कर्पूरी ठाकुर भागलपुर के कैंप जेल में रहे और उन्हें कई तरह की यातनाएं दी गई. 1945 में उन्हें रिहा कर दिया गया. उसके बाद 1948 में आचार्य नरेंद्र देव और जयप्रकाश नारायण की पार्टी समाजवादी दल में प्रादेशिक मंत्री बनने का मौका इन्हें मिला.

1970 में बिहार के सीएम बने: 1967 के आम चुनाव में कॉर्पोरेट ठाकुर के नेतृत्व वाली पार्टी संयुक्त समाजवादी दल ताकतवर होकर उभरी और 1970 में उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया. 1973 से 77 तक वह लोकनायक जयप्रकाश के छात्र आंदोलन में सक्रिय रहे. 1977 में समस्तीपुर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से उन्हें सांसद बनने का मौका मिला और 24 जून 1977 को वह दोबारा मुख्यमंत्री बने. साल 1980 में जब मध्यावधि चुनाव हुए तो कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व वाली पार्टी लोक दल विपक्षी दल के रूप में उभरा और कर्पूरी ठाकुर नेता प्रतिपक्ष बने. खास बात ये भी है कि उन्होंने जीवन में कभी भी विधानसभा का चुनाव नहीं हारा.

'100 में 90 शोषित हैं..': कर्पूरी ठाकुर डॉ. राम मनोहर लोहिया को राजनीतिक गुरु मानते थे. कर्पूरी ठाकुर सदैव दलित-शोषित और वंचित वर्ग के उत्थान के लिए प्रयत्नशील रहते थे और संघर्ष उनके हथियार था. उनकी सादगी, सरल स्वभाव स्पष्ट विचार लोगों को जल्द प्रभावित कर लेती थी और लोगबाग उनके विराट व्यक्तित्व से आकर्षित हो जाते थे. जननायक कर्पूरी ठाकुर का चिर-परिचित नारा था. उनका दिया हुआ नारा '100 में 90 शोषित हैं. शोषितों ने ललकारा है, धन धरती और राज पाठ में 90 भाग हमारा है.' आज भी राजनीति करने वाले लोग इस नारे का इस्तेमाल खूब करते हैं.

अंग्रेजी विषय की अनिवार्यता को समाप्त: कर्पूरी ठाकुर ने सबसे पहले बिहार में पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की. 1977 में पिछड़ों के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई. 1967 में जब वह पहली बार बिहार के उपमुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने बिहार में मैट्रिक परीक्षा पास करने के लिए अंग्रेजी विषय की अनिवार्यता को समाप्त कर दी थी.

Jannayak Karpoori Thakur
Jannayak Karpoori Thakur

बेटे को दी ईमानदारी की सीख: जननायक कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी का जिक्र आज भी होता है. जब वह पहली बार उपमुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने अपने पुत्र रामनाथ ठाकुर को पत्र लिखतार पत्र में कहा था कि तुम किसी से प्रभावित मत होना. कोई लोग लालच दे तो उसके बहकावे में मत आना, इससे मेरी बदनामी होगी.

परिवारवाद के विरोधी थे कर्पूरी ठाकुर: जननायक कर्पूरी ठाकुर जब तक जीवित रहे, तब तक उनके परिवार से कोई भी व्यक्ति राजनीति में नहीं आया. एक बार कर्पूरी ठाकुर को चाहने वाले लोगों ने रामनाथ ठाकुर को टिकट देने की बात कही थी, तब कर्पूरी ठाकुर ने कहा था कि ठीक है रामनाथ को चुनाव लड़ा दो लेकिन मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा, तब जाकर लोगों को पीछे हटना पड़ा था.

सरकार से जमीन लेने से किया था इंकार: मुख्यमंत्री बनने के बाद भी फटा कुर्ता, टूटी चप्पल और बिखरे बाल कर्पूरी ठाकुर की पहचान थी. 70 के दशक में पटना में विधायकों और पूर्व विधायकों के लिए सरकार सस्ती दर पर जमीन दे रही थी. खुद कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ विधायकों ने कर्पूरी ठाकुर से कहा कि आप भी आवास के लिए जमीन ले लीजिए लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने जमीन लेने से साफ मना कर दिया. उनके ना करने पर एक विधायक ने कहा कि कर्पूरी जी आपका बाल बच्चा कहां रहेगा, तब उनका जवाब था कि अपने गांव में रहेगा.

64 साल की उम्र में उनका निधन: 17 फरवरी 1988 को कर्पूरी ठाकुर बीमार पड़ गए और इलाज के लिए पीएमसीएच ले जाने के क्रम में राजधानी पटना में उनकी मौत हो गई. उनकी मौत के बाद उनके शव यात्रा में पटना की सड़कों पर जितनी भीड़ उमड़ी थी, आज तक वैसी भीड़ कभी नहीं देखी गई. 64 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. आज उनके निधन के 36 साल के बाद केंद्र की सरकार उन्हें भारत रत्न से सम्मानित कर रही है.

भारत रत्न मिलने से बिहारवासी गौरवान्वित: सरकार के फैसले से कर्पूरी ठाकुर को चाहने और मानने वाले लोग गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. पूरा बिहार फूले नहीं समा रहा है. आज की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर इसलिए भी प्रासंगिक है कि भ्रष्टाचार परिवारवाद और धन संग्रह राजनीतिक दलों और राजनेताओं का हथियार बन चुका है लेकिन कर्पूरी ठाकुर इन सब चीजों से दूर रहे.

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पद्म पुरस्कारों का ऐलान, बिहार की शांति देवी समेत इन इन हस्तियों को मिला सम्मान

Last Updated : Mar 30, 2024, 12:15 PM IST
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