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कर्ज के जाल में आंध्र प्रदेश, जानें क्या है इसकी वजह - Andhra Pradesh tripping into Abyss

AP Tripping into the Abyss: यह बेहद चिंता का विषय है कि, आंध्र प्रदेश जैसा राज्य कर्ज की जाल में फंसा हुआ है. क्या यह राज्य सरकार की गलत नीतियों का असर है, या फिर बार-बार गरीबी उन्मूलन के नाम पर कर्ज लेना राज्य के लिए वित्तीय संकट पैदा कर रहा है. अगर आगे भी ऐसा रहा तो राज्य दिवालिया होने की कगार पर पहुंच जाएगा. आंध्र प्रदेश के बिगड़ते वित्तीय हालात पर डॉ. अनंत एस का विश्लेषण...

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जगन मोहन रेड्डी और आंध्र की जनता (Photo Credit: ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 8, 2024, 5:10 PM IST

Updated : May 8, 2024, 5:24 PM IST

हैदराबाद: चुनाव से पहले मौजूदा सरकार के प्रदर्शन की समीक्षा के लिए हमेशा एक अच्छा और सही समय होता है. 5 वर्षों में राज्य के विकास और जनता के उत्थान के लिए क्या कुछ किया, उसका एक पूरा ब्यौरा लेकर वे जनता के समक्ष चुनाव के समय जाते हैं. पिछले पांच सालों में आंध्र प्रदेश एक ऐसा राज्य बन गया है जो अब ट्रेंड सेटर नहीं रहा. राज्य सरकार की नीतियों से क्या सकारात्मक और नकारात्मक परिणाम निकल कर सामने आएंगे, इस पर राज्य सरकार कोई समग्र दृष्टिकोण नहीं रख पा रहा है. राज्य की भविष्य की चिंता को छोड़ वर्तमान परिस्थितियों के आधार पर कर्ज लेना एक ट्रेंड सा बन गया है. राज्य की आर्थिक विषयों से जुड़े इन गंभीर विषयों पर सीएजी वेबसाइट के सार्वजनिक डोमेन में रखे गए राजस्व और व्यय (खर्च) विवरण पर एक दिलचस्प पहलू की ओर इशारा कर रही है.

क्या कहती है रिपोर्ट ?
रिपोर्ट के मुताबिक, आंध्र प्रदेश के बजट में सरकार गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं, उन्मूलन पर विस्तार से बड़े ही फैशनेबल तरीके से चर्चा कर, कथित तौर पर भारी-भरकम रकम आवंटित की जाती है. हालांकि, इन सब पर वास्तविक खर्च 29 फीसदी से 10 फीसदी कम है. राज्य की गरीब जनता के लिए दुर्भाग्य की बात तो यह है कि, गरीबी उन्मूलन पर सरकार की तरफ से खर्च किए गए राशि के विषय में जानकारी वित्तीय वर्ष की समाप्ति के बाद पता चलता है. तब तक सरकार बजट राशि पर मार्केटिंग कैंपेन चला चुकी होती है. वहीं, इसके उलट उधारी के मामले में ये हमेशा बजट अनुमान से ज्यादा रहे हैं. यहां तक कि सामाजिक व्यय, जिसके बारे में सरकार दावा करती है कि यह उनकी प्राथमिकता है, कभी भी बजट में किए गए वादे के अनुरूप नहीं रहा. हालांकि, यह स्पष्ट है कि राज्य राजस्व के अनुमान के आधार पर उधार ले रहा है, जो कभी पूरा नहीं हुआ और हमेशा कम पड़ा. इसे संक्षेप में समझे तो सरकार की सार्वजनिक नीति का पूर्ण कुप्रबंधन राज्य को रसातल की ओर धकेल रहा है. अगर इसकी आशंका कम भी है तो भी मामले को और भी ज्यादा बदतर बनाने के लिए, राज्य फिलहाल कर्ज काल में जी रहा है, जो उसके दिवालियापन की रेखा को पार कराने में मददगार साबित हो सकता है.

कर्ज की जाल में आंध्र प्रदेश!
किसी भी राज्य या देश को चलाने के लिए एक मजबूत अर्थव्यवस्था की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है. यहां हर एक सेकेंड, मिनट और घंटे में राज्य की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए भारी भरकम रकम की आवश्यकता पड़ती है. अगर कोई राज्य पहले से ही कर्ज में डूबा हुआ है और उसे अन्य दायित्वों के अलावा वेतन और पेंशन का भी भुगतान करना होता है. अगर वह इन दायित्वों को पूरा करने में सक्षम नहीं है, तो ऐसे में कर्ज में डूबे राज्य के लिए नए ऋण का सहारा फिर से लेना ही पड़ेगा. अगर राज्य को कर्ज नहीं मिला तो वह कंगाल होकर गर्त में चला जाएगा और अंत में बर्बाद हो जाएगा. इसलिए, राजकोषीय प्रबंधन अगली सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. वित्तिय संकट से जूझ रहे राज्य के उत्थान के लिए केंद्र सरकार को आगे आने होगा. अब समय आ गया है कि, केंद्र अपना दोहरा खेल बंद कर राज्य के बारे में सोचे और उसे ज्यादा से ज्यादा कर्ज की अनुमति देने की अपनी जिम्मेदारी को समझे.

दो विशेषताएं, कर और ऋण
पिछले पांच वर्षों में जो दो विशेषताएं और सबसे बड़ी लिगेसी सामने आई हैं, वे हैं, सभी प्रकार के करों (टैक्स) में तेज वृद्धि और सार्वजनिक ऋण में भारी वृद्धि. इस अवधि में सबसे बड़ी कर वृद्धि देखी गई है. संपत्ति कर में वृद्धि, उपयोगकर्ता शुल्क में वृद्धि और बिजली सहित सार्वजनिक सेवाओं की लागत में वृद्धि आंध्र प्रदेश के इतिहास में सबसे तेज गति से आगे बढ़ी. प्रोपर्टी टैक्स की बात करें तो, पूंजी मूल्य प्रणाली में बदलाव के कारण पिछले तीन वर्षों में इसमें लगभग 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इससे पहले पिछले 10 वर्षों में राज्य में आवासीय क्षेत्रों के टैक्स में कोई वृद्धि नहीं हुई.

केंद्र का आंकड़ा
केंद्र सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि आंध्र प्रदेश का पेट्रोलियम उत्पादों पर स्टेट टैक्स का संग्रह 2018-19 में 10,784.2 करोड़ रुपये से बढ़कर 2022-23 में 16,28.6 करोड़ रुपये हो गया और 2023-24 के नौ महीनों में यह 12,511.3 करोड़ रुपये हो गया. आश्चचर्य की बात है कि, राज्य में पेट्रोल पर देश में सबसे ज्यादा टैक्स है. यहां पेट्रोल पर 31 फीसदी वैट प्लस 4 रुपये प्रति लीटर वैट (VAT) प्लस 1 रुपये लीटर सड़क विकास उपकर ( Cess) और उस पर वैट. यह विडंबनापूर्ण लग सकता है कि सड़क विकास के लिए उपकर (Cess) एकत्र करने के बावजूद, आंध्र प्रदेश की सड़कें एकदम दयनीय स्थिति में हैं. कर संग्रह, जो लगभग 50% वृद्धि का संकेत देता है, स्पष्ट रूप से बढ़ी हुई खपत के कारण होने वाली किसी भी वृद्धि से अधिक है और स्पष्ट रूप से उस वृद्धि का संकेत देता है जो बड़े पैमाने पर टैक्स वृद्धि के कारण हुई है.

आंध्र प्रदेश में पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स कलेक्शन

YearTotal Taxes Collected by AP (in Rs. Crores)
2014-158777.1
2015-167806.4
2016-178908.4
2017-189693.4
2018-1910784.2
2019-2010167.6
2020-2111013.5
2021-2214724.2
2022-2316428.6
2023-24 9 month12511.3

Source: ppac.gov.in

ज्यादा टैक्स कलेक्शन का प्रभाव
टैक्स के उच्च स्तर पर संग्रह (बचत) से उपभोग और मुद्रास्फीति पर इसका गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. समस्या है कि, आंध्र प्रदेश सरकार फिजुलखर्ची में भी पीछे नहीं है और वह अन्य कारणों से वह भारी मात्रा में कर्ज भी ले रहा है. सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि, राज्य सरकार कल्याण ही विकास है के नाम पर सार्वजनिक रूप से कथित तौर पर भारी कर्ज उठा रही है. राज्य सरकार की तरफ से पूंजीगत व्यय और निवेश के बजाय उपभोग को निधि देने के लिए उपयोग की जाने वाली इन अनियंत्रित उधारियों ने स्पष्ट रूप से आंध्र प्रदेश को ऋण जाल में धकेल दिया है. ऐतिहासिक रूप से, जो भी राज्य या देश कर्ज के जाल में फंसता है उसे लंबे समय तक पीड़ा झेलनी पड़ती है. सीएडी मासिक प्रमुख संकेतकों के अनुसार, राज्य ने पिछले पांच वर्षों (वित्त वर्ष 2019-20 से फरवरी 2024, यानी, वित्त वर्ष 2023-24 (11 महीने)) में कुल 2,50,321.09 करोड़ रुपये की शुद्ध उधारी ली है. यह राज्य द्वारा जारी गारंटी को शामिल नहीं किया गया है. इसके विपरीत, सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2018-19 के अंत में राज्य का बकाया ऋण 2,61,989 करोड़ रुपये था, इसलिए वर्तमान सरकार लगभग दोगुना हो गई है.

सबसे अधिक कर्ज लिया
पांच वर्षों में आंध्र प्रदेश के इतिहास में अन्य सभी सरकारों की तुलना में अधिक कर्ज लिया गया है. एक वर्ष को छोड़कर उधारी हमेशा बजट अनुमानों से बहुत ऊपर रही है. यहां तक कि राजस्व अक्सर बजट अनुमानों से काफी कम है. इस दावे के बावजूद कि राज्य सामाजिक क्षेत्र पर बड़ी मात्रा में उधार ले रहा है और खर्च कर रहा है, पिछले पांच वर्षों में व्यय बजट अनुमान से कम रहा है और यह क्रमशः 71.14 फीसदी, 68.31 फीसदी, 77.02 प्रतिशत, 74.23 प्रतिशत और 90.30 प्रतिशत था. पिछले पांच वर्षों में बजट अनुमानों की तुलना में कम वास्तविक व्यय का यही पैटर्न आर्थिक क्षेत्र के व्यय में भी स्पष्ट है, पिछले पांच वर्षों में क्रमशः 49.54 प्रतिशत, 79.80 प्रतिशत, 70.61 प्रतिशत, 87.38 प्रतिशत और 89.57 प्रतिशत रहा। इस प्रकार, जैसा कि आंकड़ों में दर्शाया गया है, 'कल्याण मॉडल' को लेकर प्रचार वास्तविकता से कहीं अधिक प्रतीत होता है.

निवेश की कमी
एक बड़ी कमी जिसका दीर्घकालिक प्रभाव पड़ना तय है, वह है पिछले पांच वर्षों में सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय की पूर्ण कमी. पिछले साल ही, केंद्र सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय को पूर्व शर्त के रूप में ऋण से जोड़ने की अनिवार्य आवश्यकता के मद्देनजर पूंजीगत व्यय में वृद्धि हुई थी. 2022-23 में पूंजीगत व्यय 7244.13 करोड़ रुपये था, जबकि बजट अनुमान 30,679.57 करोड़ रुपये था. यानी लगभग 5 करोड़ आबादी के लिए 12 महीनों के लिए लगभग 604 करोड़ रुपये प्रति माह. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि आंध्र प्रदेश राज्य के अधिकांश हिस्सों में बुनियादी ढांचा ध्वस्त हो चुका है. सड़कों, सिंचाई और पेयजल के बुनियादी ढांचे की स्थिति निवेश की इस कमी का संकेत है. सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में निवेश की इस स्पष्ट कमी का निजी निवेश और विस्तार रोजगार सृजन पर गहरा प्रभाव पड़ा है. बुनियादी ढांचे और पूंजीगत व्यय में निवेश की इस कमी की लागत कई मोर्चों पर दिखाई दे रही है.

राज्य में बढ़ता अपराध का ग्राफ
राज्य की संस्थागत ढ़ांचे में गिरावट एक बड़ी समस्या सबके सामने स्पष्ट रूप से सामने है. किसी भी प्रकार का विरोध या असहमति, चाहे वह कितना भी हल्का और कमजोर क्यों न हो, वह तुरंत तेजी से प्रतिक्रिया करती है. राज्य में व्यापक संस्थागत गिरावट एक चिंताजनक कारक है और कार्यकारी विंग द्वारा प्रशासनिक शक्ति का प्रयोग बेहद मनमाना रहा है. उद्योगों को नीति में मनमाने बदलावों का सामना करना पड़ा है, जहां विशेष राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए सभी पर्यवेक्षी, वैधानिक निकायों की शक्तियों को हथियार बना दिया गया है. राज्य सरकार की अनुचित और मनमाने रवैये का कारण ही हजारों रिट याचिकाओं और अदालत की अवमानना ​याचिकाओं के साथ आंध्र प्रदेश के हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. ऐसा कुप्रंबधन और बदहाल पहले कभी आंध्र प्रदेश में देखा नहीं गया. राज्य में इन कुछ वर्षों में नशीले पदार्थों की तस्करी, अपराध, जबरन वसूली, जुआ और अन्य सामाजिक बुराइयों में काफी तेजी से फैला है.

औद्योगिक विकास
वैसे देखा जाए तो समग्र विकास के लिए दृष्टिकोण की कमी एक और बड़ा नुकसान यह है कि इससे औद्योगिक विकास की अंदेखी हो रही है. हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि उद्योग पूंजी और प्रौद्योगिकी प्रधान हो गए हैं और पहले की तुलना में कम संख्या में लोगों को कम कर रहे हैं. जहां उद्योग है वहां नौकरियों की पर्याप्त संभावनाएं होती हैं. वैसे यहां स्थापित उद्योगों की संख्या के बारे में आंकड़ों की कमी और प्रगति दिखाने में असमर्थता स्पष्ट है... सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 ( आंध्र प्रदेश वित्त विभाग की वेबसाइट पर नवीनतम उपलब्ध) अनुसूची A 6.1 में शीर्षक 'बड़ी और मेगा औद्योगिक परियोजनाएं चली गईं' इन टू प्रोडक्शन' में ऐसे कॉलम हैं जो मार्च 2014-2021, 2021-22 और 2022-23 (दिसंबर 2023 तक) के आंकड़ों का खुलासा करते हैं. इसलिए, 2019-2021 की अवधि के लिए वस्तुनिष्ठ विश्लेषण संभव नहीं है. इसके अलावा, मार्च 2020 से वित्तीय वर्ष 2021-22 के लगभग 6 महीने कोविड से प्रभावित थे और इसलिए यह संभावना नहीं है कि औद्योगिक विस्तार किसी भी कंपनी के खाते में था.

क्या कहते हैं आंकड़े?
2021-2022 और 2022-23 (दिसंबर 2023 तक) की तस्वीर औद्योगिक विकास की कमी की दयनीय स्थिति को दर्शाती है. यहां तक कि सरकारी स्वीकृति के अनुसार कुल 38 बड़ी और मेगा औद्योगिक परियोजनाएं उत्पादन में चली गई हैं, जिनकी कुल कीमत रु. .21,026.04 करोड़ से 20,725 व्यक्तियों को रोजगार मिला। जिस तरह से 'बड़े और मेगा' शब्द का उपयोग किया गया है उससे भ्रम और भी परिलक्षित होता है. प्रदान किए गए आंकड़ों के आधार पर निवेश का औसत आकार लगभग 554 करोड़ रुपये है और फिर भी बड़े और मेगा शब्द का उपयोग किया गया है. आम तौर पर, व्यापार जगत में, मेगा प्रोजेक्ट एक शब्द है जिसका उपयोग उन परियोजनाओं के लिए किया जाता है जो कुछ हजार करोड़ और अधिमानतः यूएस डॉलर 1 बिलियन (या लगभग 8000 करोड़ रुपये) से ऊपर हैं. हालांकि वर्तमान में चीजें निराशाजनक हैं, लेकिन भविष्य बेहतर होगा.


आंकड़े करोड़ रुपये में BE = बजट अनुमान; Exp = व्यय

FY 20202021202220232024Total – 5 years
Revenue Receipts
BE1,78,697.421,61,958.601,77,196.481,92,225.111,96,702.839,06,780.44
Actual1,11,043.151,17,136.181,50,522.511,57,768.041,52,820.406,89,290.28
Total Expenditure
BE2,12,769.332,10,300.272,13,394.922,38,940.832,55,545.881130951.23
Actual1,50,433.051,71,651.651,75,536.022,08,499.662,29,231.33935351.71
Exp Social Sector
BE1,01,163.821,04,222.2198,168.111,20,022.141,28,916.67552492.95
Actual71,971.4271,193.3375,610.689,095.621,16,413.40424284.37
Exp Eco Sector
BE61,974.8656,331.5759,187.8763,510.4658,645.82299650.58
Actual30,699.8744,950.2841,793.5755,494.9352,526.58225465.23
Capex
BE32,293.3929,907.6231,198.3830,679.5727,308.111,51,387.07
Actual12,848.1618,975.0316,372.717,244.1323,251.3878,691.41
Borrowings
BE35,620.5848,259.5937,029.7348,724.1260,162.022,29,832.04
Actual40,400.9655,167.5125,01252,508.3477,231.542,50,231.09
Borrowings
BE35,620.5848,295.5937,029.7348,724.1260,162.022,29,832.04
Actual40,400.9655,167.5125,012.7452,508.3477,231.542,50,320.35

Source: सीएजी मासिक प्रदर्शन संकेतक से संकलित

कुल मिलाकर देखा जाए तो सरकारी कुप्रबंधन आंध्र प्रदेश जैसे राज्य को रसातल की ओर धकेल रहा है. आंकड़ों, रिपोर्टो की माने तो यह किसी भी राज्य के लिए बड़ी चिंता का विषय है.

(आर्टिकल में दिए गए विचार लेखक की निजी राय है)

ये भी पढ़ें: 'आंध्र प्रदेश को कर्ज में डुबोया' जगन मोहन सरकार पर बरसे पीएम मोदी

हैदराबाद: चुनाव से पहले मौजूदा सरकार के प्रदर्शन की समीक्षा के लिए हमेशा एक अच्छा और सही समय होता है. 5 वर्षों में राज्य के विकास और जनता के उत्थान के लिए क्या कुछ किया, उसका एक पूरा ब्यौरा लेकर वे जनता के समक्ष चुनाव के समय जाते हैं. पिछले पांच सालों में आंध्र प्रदेश एक ऐसा राज्य बन गया है जो अब ट्रेंड सेटर नहीं रहा. राज्य सरकार की नीतियों से क्या सकारात्मक और नकारात्मक परिणाम निकल कर सामने आएंगे, इस पर राज्य सरकार कोई समग्र दृष्टिकोण नहीं रख पा रहा है. राज्य की भविष्य की चिंता को छोड़ वर्तमान परिस्थितियों के आधार पर कर्ज लेना एक ट्रेंड सा बन गया है. राज्य की आर्थिक विषयों से जुड़े इन गंभीर विषयों पर सीएजी वेबसाइट के सार्वजनिक डोमेन में रखे गए राजस्व और व्यय (खर्च) विवरण पर एक दिलचस्प पहलू की ओर इशारा कर रही है.

क्या कहती है रिपोर्ट ?
रिपोर्ट के मुताबिक, आंध्र प्रदेश के बजट में सरकार गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं, उन्मूलन पर विस्तार से बड़े ही फैशनेबल तरीके से चर्चा कर, कथित तौर पर भारी-भरकम रकम आवंटित की जाती है. हालांकि, इन सब पर वास्तविक खर्च 29 फीसदी से 10 फीसदी कम है. राज्य की गरीब जनता के लिए दुर्भाग्य की बात तो यह है कि, गरीबी उन्मूलन पर सरकार की तरफ से खर्च किए गए राशि के विषय में जानकारी वित्तीय वर्ष की समाप्ति के बाद पता चलता है. तब तक सरकार बजट राशि पर मार्केटिंग कैंपेन चला चुकी होती है. वहीं, इसके उलट उधारी के मामले में ये हमेशा बजट अनुमान से ज्यादा रहे हैं. यहां तक कि सामाजिक व्यय, जिसके बारे में सरकार दावा करती है कि यह उनकी प्राथमिकता है, कभी भी बजट में किए गए वादे के अनुरूप नहीं रहा. हालांकि, यह स्पष्ट है कि राज्य राजस्व के अनुमान के आधार पर उधार ले रहा है, जो कभी पूरा नहीं हुआ और हमेशा कम पड़ा. इसे संक्षेप में समझे तो सरकार की सार्वजनिक नीति का पूर्ण कुप्रबंधन राज्य को रसातल की ओर धकेल रहा है. अगर इसकी आशंका कम भी है तो भी मामले को और भी ज्यादा बदतर बनाने के लिए, राज्य फिलहाल कर्ज काल में जी रहा है, जो उसके दिवालियापन की रेखा को पार कराने में मददगार साबित हो सकता है.

कर्ज की जाल में आंध्र प्रदेश!
किसी भी राज्य या देश को चलाने के लिए एक मजबूत अर्थव्यवस्था की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है. यहां हर एक सेकेंड, मिनट और घंटे में राज्य की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए भारी भरकम रकम की आवश्यकता पड़ती है. अगर कोई राज्य पहले से ही कर्ज में डूबा हुआ है और उसे अन्य दायित्वों के अलावा वेतन और पेंशन का भी भुगतान करना होता है. अगर वह इन दायित्वों को पूरा करने में सक्षम नहीं है, तो ऐसे में कर्ज में डूबे राज्य के लिए नए ऋण का सहारा फिर से लेना ही पड़ेगा. अगर राज्य को कर्ज नहीं मिला तो वह कंगाल होकर गर्त में चला जाएगा और अंत में बर्बाद हो जाएगा. इसलिए, राजकोषीय प्रबंधन अगली सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. वित्तिय संकट से जूझ रहे राज्य के उत्थान के लिए केंद्र सरकार को आगे आने होगा. अब समय आ गया है कि, केंद्र अपना दोहरा खेल बंद कर राज्य के बारे में सोचे और उसे ज्यादा से ज्यादा कर्ज की अनुमति देने की अपनी जिम्मेदारी को समझे.

दो विशेषताएं, कर और ऋण
पिछले पांच वर्षों में जो दो विशेषताएं और सबसे बड़ी लिगेसी सामने आई हैं, वे हैं, सभी प्रकार के करों (टैक्स) में तेज वृद्धि और सार्वजनिक ऋण में भारी वृद्धि. इस अवधि में सबसे बड़ी कर वृद्धि देखी गई है. संपत्ति कर में वृद्धि, उपयोगकर्ता शुल्क में वृद्धि और बिजली सहित सार्वजनिक सेवाओं की लागत में वृद्धि आंध्र प्रदेश के इतिहास में सबसे तेज गति से आगे बढ़ी. प्रोपर्टी टैक्स की बात करें तो, पूंजी मूल्य प्रणाली में बदलाव के कारण पिछले तीन वर्षों में इसमें लगभग 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इससे पहले पिछले 10 वर्षों में राज्य में आवासीय क्षेत्रों के टैक्स में कोई वृद्धि नहीं हुई.

केंद्र का आंकड़ा
केंद्र सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि आंध्र प्रदेश का पेट्रोलियम उत्पादों पर स्टेट टैक्स का संग्रह 2018-19 में 10,784.2 करोड़ रुपये से बढ़कर 2022-23 में 16,28.6 करोड़ रुपये हो गया और 2023-24 के नौ महीनों में यह 12,511.3 करोड़ रुपये हो गया. आश्चचर्य की बात है कि, राज्य में पेट्रोल पर देश में सबसे ज्यादा टैक्स है. यहां पेट्रोल पर 31 फीसदी वैट प्लस 4 रुपये प्रति लीटर वैट (VAT) प्लस 1 रुपये लीटर सड़क विकास उपकर ( Cess) और उस पर वैट. यह विडंबनापूर्ण लग सकता है कि सड़क विकास के लिए उपकर (Cess) एकत्र करने के बावजूद, आंध्र प्रदेश की सड़कें एकदम दयनीय स्थिति में हैं. कर संग्रह, जो लगभग 50% वृद्धि का संकेत देता है, स्पष्ट रूप से बढ़ी हुई खपत के कारण होने वाली किसी भी वृद्धि से अधिक है और स्पष्ट रूप से उस वृद्धि का संकेत देता है जो बड़े पैमाने पर टैक्स वृद्धि के कारण हुई है.

आंध्र प्रदेश में पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स कलेक्शन

YearTotal Taxes Collected by AP (in Rs. Crores)
2014-158777.1
2015-167806.4
2016-178908.4
2017-189693.4
2018-1910784.2
2019-2010167.6
2020-2111013.5
2021-2214724.2
2022-2316428.6
2023-24 9 month12511.3

Source: ppac.gov.in

ज्यादा टैक्स कलेक्शन का प्रभाव
टैक्स के उच्च स्तर पर संग्रह (बचत) से उपभोग और मुद्रास्फीति पर इसका गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. समस्या है कि, आंध्र प्रदेश सरकार फिजुलखर्ची में भी पीछे नहीं है और वह अन्य कारणों से वह भारी मात्रा में कर्ज भी ले रहा है. सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि, राज्य सरकार कल्याण ही विकास है के नाम पर सार्वजनिक रूप से कथित तौर पर भारी कर्ज उठा रही है. राज्य सरकार की तरफ से पूंजीगत व्यय और निवेश के बजाय उपभोग को निधि देने के लिए उपयोग की जाने वाली इन अनियंत्रित उधारियों ने स्पष्ट रूप से आंध्र प्रदेश को ऋण जाल में धकेल दिया है. ऐतिहासिक रूप से, जो भी राज्य या देश कर्ज के जाल में फंसता है उसे लंबे समय तक पीड़ा झेलनी पड़ती है. सीएडी मासिक प्रमुख संकेतकों के अनुसार, राज्य ने पिछले पांच वर्षों (वित्त वर्ष 2019-20 से फरवरी 2024, यानी, वित्त वर्ष 2023-24 (11 महीने)) में कुल 2,50,321.09 करोड़ रुपये की शुद्ध उधारी ली है. यह राज्य द्वारा जारी गारंटी को शामिल नहीं किया गया है. इसके विपरीत, सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2018-19 के अंत में राज्य का बकाया ऋण 2,61,989 करोड़ रुपये था, इसलिए वर्तमान सरकार लगभग दोगुना हो गई है.

सबसे अधिक कर्ज लिया
पांच वर्षों में आंध्र प्रदेश के इतिहास में अन्य सभी सरकारों की तुलना में अधिक कर्ज लिया गया है. एक वर्ष को छोड़कर उधारी हमेशा बजट अनुमानों से बहुत ऊपर रही है. यहां तक कि राजस्व अक्सर बजट अनुमानों से काफी कम है. इस दावे के बावजूद कि राज्य सामाजिक क्षेत्र पर बड़ी मात्रा में उधार ले रहा है और खर्च कर रहा है, पिछले पांच वर्षों में व्यय बजट अनुमान से कम रहा है और यह क्रमशः 71.14 फीसदी, 68.31 फीसदी, 77.02 प्रतिशत, 74.23 प्रतिशत और 90.30 प्रतिशत था. पिछले पांच वर्षों में बजट अनुमानों की तुलना में कम वास्तविक व्यय का यही पैटर्न आर्थिक क्षेत्र के व्यय में भी स्पष्ट है, पिछले पांच वर्षों में क्रमशः 49.54 प्रतिशत, 79.80 प्रतिशत, 70.61 प्रतिशत, 87.38 प्रतिशत और 89.57 प्रतिशत रहा। इस प्रकार, जैसा कि आंकड़ों में दर्शाया गया है, 'कल्याण मॉडल' को लेकर प्रचार वास्तविकता से कहीं अधिक प्रतीत होता है.

निवेश की कमी
एक बड़ी कमी जिसका दीर्घकालिक प्रभाव पड़ना तय है, वह है पिछले पांच वर्षों में सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय की पूर्ण कमी. पिछले साल ही, केंद्र सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय को पूर्व शर्त के रूप में ऋण से जोड़ने की अनिवार्य आवश्यकता के मद्देनजर पूंजीगत व्यय में वृद्धि हुई थी. 2022-23 में पूंजीगत व्यय 7244.13 करोड़ रुपये था, जबकि बजट अनुमान 30,679.57 करोड़ रुपये था. यानी लगभग 5 करोड़ आबादी के लिए 12 महीनों के लिए लगभग 604 करोड़ रुपये प्रति माह. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि आंध्र प्रदेश राज्य के अधिकांश हिस्सों में बुनियादी ढांचा ध्वस्त हो चुका है. सड़कों, सिंचाई और पेयजल के बुनियादी ढांचे की स्थिति निवेश की इस कमी का संकेत है. सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में निवेश की इस स्पष्ट कमी का निजी निवेश और विस्तार रोजगार सृजन पर गहरा प्रभाव पड़ा है. बुनियादी ढांचे और पूंजीगत व्यय में निवेश की इस कमी की लागत कई मोर्चों पर दिखाई दे रही है.

राज्य में बढ़ता अपराध का ग्राफ
राज्य की संस्थागत ढ़ांचे में गिरावट एक बड़ी समस्या सबके सामने स्पष्ट रूप से सामने है. किसी भी प्रकार का विरोध या असहमति, चाहे वह कितना भी हल्का और कमजोर क्यों न हो, वह तुरंत तेजी से प्रतिक्रिया करती है. राज्य में व्यापक संस्थागत गिरावट एक चिंताजनक कारक है और कार्यकारी विंग द्वारा प्रशासनिक शक्ति का प्रयोग बेहद मनमाना रहा है. उद्योगों को नीति में मनमाने बदलावों का सामना करना पड़ा है, जहां विशेष राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए सभी पर्यवेक्षी, वैधानिक निकायों की शक्तियों को हथियार बना दिया गया है. राज्य सरकार की अनुचित और मनमाने रवैये का कारण ही हजारों रिट याचिकाओं और अदालत की अवमानना ​याचिकाओं के साथ आंध्र प्रदेश के हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. ऐसा कुप्रंबधन और बदहाल पहले कभी आंध्र प्रदेश में देखा नहीं गया. राज्य में इन कुछ वर्षों में नशीले पदार्थों की तस्करी, अपराध, जबरन वसूली, जुआ और अन्य सामाजिक बुराइयों में काफी तेजी से फैला है.

औद्योगिक विकास
वैसे देखा जाए तो समग्र विकास के लिए दृष्टिकोण की कमी एक और बड़ा नुकसान यह है कि इससे औद्योगिक विकास की अंदेखी हो रही है. हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि उद्योग पूंजी और प्रौद्योगिकी प्रधान हो गए हैं और पहले की तुलना में कम संख्या में लोगों को कम कर रहे हैं. जहां उद्योग है वहां नौकरियों की पर्याप्त संभावनाएं होती हैं. वैसे यहां स्थापित उद्योगों की संख्या के बारे में आंकड़ों की कमी और प्रगति दिखाने में असमर्थता स्पष्ट है... सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 ( आंध्र प्रदेश वित्त विभाग की वेबसाइट पर नवीनतम उपलब्ध) अनुसूची A 6.1 में शीर्षक 'बड़ी और मेगा औद्योगिक परियोजनाएं चली गईं' इन टू प्रोडक्शन' में ऐसे कॉलम हैं जो मार्च 2014-2021, 2021-22 और 2022-23 (दिसंबर 2023 तक) के आंकड़ों का खुलासा करते हैं. इसलिए, 2019-2021 की अवधि के लिए वस्तुनिष्ठ विश्लेषण संभव नहीं है. इसके अलावा, मार्च 2020 से वित्तीय वर्ष 2021-22 के लगभग 6 महीने कोविड से प्रभावित थे और इसलिए यह संभावना नहीं है कि औद्योगिक विस्तार किसी भी कंपनी के खाते में था.

क्या कहते हैं आंकड़े?
2021-2022 और 2022-23 (दिसंबर 2023 तक) की तस्वीर औद्योगिक विकास की कमी की दयनीय स्थिति को दर्शाती है. यहां तक कि सरकारी स्वीकृति के अनुसार कुल 38 बड़ी और मेगा औद्योगिक परियोजनाएं उत्पादन में चली गई हैं, जिनकी कुल कीमत रु. .21,026.04 करोड़ से 20,725 व्यक्तियों को रोजगार मिला। जिस तरह से 'बड़े और मेगा' शब्द का उपयोग किया गया है उससे भ्रम और भी परिलक्षित होता है. प्रदान किए गए आंकड़ों के आधार पर निवेश का औसत आकार लगभग 554 करोड़ रुपये है और फिर भी बड़े और मेगा शब्द का उपयोग किया गया है. आम तौर पर, व्यापार जगत में, मेगा प्रोजेक्ट एक शब्द है जिसका उपयोग उन परियोजनाओं के लिए किया जाता है जो कुछ हजार करोड़ और अधिमानतः यूएस डॉलर 1 बिलियन (या लगभग 8000 करोड़ रुपये) से ऊपर हैं. हालांकि वर्तमान में चीजें निराशाजनक हैं, लेकिन भविष्य बेहतर होगा.


आंकड़े करोड़ रुपये में BE = बजट अनुमान; Exp = व्यय

FY 20202021202220232024Total – 5 years
Revenue Receipts
BE1,78,697.421,61,958.601,77,196.481,92,225.111,96,702.839,06,780.44
Actual1,11,043.151,17,136.181,50,522.511,57,768.041,52,820.406,89,290.28
Total Expenditure
BE2,12,769.332,10,300.272,13,394.922,38,940.832,55,545.881130951.23
Actual1,50,433.051,71,651.651,75,536.022,08,499.662,29,231.33935351.71
Exp Social Sector
BE1,01,163.821,04,222.2198,168.111,20,022.141,28,916.67552492.95
Actual71,971.4271,193.3375,610.689,095.621,16,413.40424284.37
Exp Eco Sector
BE61,974.8656,331.5759,187.8763,510.4658,645.82299650.58
Actual30,699.8744,950.2841,793.5755,494.9352,526.58225465.23
Capex
BE32,293.3929,907.6231,198.3830,679.5727,308.111,51,387.07
Actual12,848.1618,975.0316,372.717,244.1323,251.3878,691.41
Borrowings
BE35,620.5848,259.5937,029.7348,724.1260,162.022,29,832.04
Actual40,400.9655,167.5125,01252,508.3477,231.542,50,231.09
Borrowings
BE35,620.5848,295.5937,029.7348,724.1260,162.022,29,832.04
Actual40,400.9655,167.5125,012.7452,508.3477,231.542,50,320.35

Source: सीएजी मासिक प्रदर्शन संकेतक से संकलित

कुल मिलाकर देखा जाए तो सरकारी कुप्रबंधन आंध्र प्रदेश जैसे राज्य को रसातल की ओर धकेल रहा है. आंकड़ों, रिपोर्टो की माने तो यह किसी भी राज्य के लिए बड़ी चिंता का विषय है.

(आर्टिकल में दिए गए विचार लेखक की निजी राय है)

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Last Updated : May 8, 2024, 5:24 PM IST
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