नई दिल्ली: माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में जेल भेजे गए डीयू के रामलाल आनंद कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईं बाबा को बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा बरी करने के बाद जेल से रिहा कर दिया गया है. शुक्रवार को वे परिवार के साथ दिल्ली पहुंच सकते हैं. उनकी पत्नी वसंता ने कहा कि हमारे बहुत सारे सवाल हैं. साथ ही मीडिया के भी बहुत सारे सवाल होंगे. इसी संबंध में 11 मार्च को प्रेस क्लब में पत्रकार वार्ता आयोजित कर मीडियाकर्मियों को जवाब दिया जाएगा. साथ ही हम भी अपनी बात सबके सामने रखेंगे.
उनकी पत्नी ने बताया कि पूर्व प्रोफेसर जीएन साईं बाबा की तबीयत ठीक नहीं है और उनको बहुत कमजोरी है. उनके हाथ भी ठीक से काम नहीं कर रहे हैं. 10 साल जेल में रहने के चलते उनको शारीरिक रूप से काफी परेशानियां हुई हैं. इससे वे कई तरह की बीमारियों से ग्रस्त हो गए हैं. वहीं उनके समर्थक छात्रों ने कहा कि पूर्व प्रोफेसर के साथ अन्याय किया गया है.
यह है मामला: जीएन साईं बाबा को 2014 में माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में जेल भेजा गया था. 2014 में गिरफ्तारी से पहले जीएन साईं बाबा, रामलाल आनंद कालेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे. वह 90 प्रतिशत दिव्यांग हैं. गिरफ्तारी के बाद उन्हें गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. उनके साथ पांच अन्य को भी सजा सुनाई गई थी. इनमें से एक पांडु नरोटे की हिरासत में ही मौत हो गई थी.
हालांकि, मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने जीएन साईं बाबा सहित अन्य लोगों की भी आजीवन कारावास की सजा पर रोक लगाते हुए उन्हें रिहा कर दिया. उन सभी को 2017 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. वह खुद के माओवादियों का साथ देने के आरोप से इनकार करते रहे हैं.
आदिवासियों के अधिकारों का किया प्रचार: जानकारी के अनुसार, जीएन साईं बाबा आंध्र प्रदेश के एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे. वह शुरू से ही मेधावी छात्र थे. उनकी एक कोचिंग क्लास में वसंता से मुलाकत हुई थी, जिसके बाद दोनों ने शादी कर ली थी. अखिल भारतीय पीपुल्स रेजिस्टेंस फोरम के एक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने कश्मीर और उत्तर पूर्व में मुक्ति आंदोलनों के समर्थन में दलित और आदिवासी अधिकारों के प्रचार के लिए काफी यात्रा भी की थी.