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वरिष्ठ अधिकारी कोर्ट का आदेश न मानें, तो सरकार के पास क्या है विकल्प: हाईकोर्ट - Allahabad High Court Order

अपने एक आदेश में मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि वरिष्ठ अधिकारी कोर्ट का आदेश न मानें तो सरकार के पास क्या विकल्प है. एसएसपी अलीगढ़ के हलफनामे पर हाईकोर्ट ने असंतोष जताया और गृह सचिव का हलफनामे के लिए हाईकोर्ट ने सवाल उठाया.

What option does government have if senior officials do not obey the courts order
एसएसपी अलीगढ़ के हलफनामे पर हाईकोर्ट ने असंतोष जताया (फोटो क्रेडिट- इलाहाबाद हाईकोर्ट)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 11, 2024, 8:40 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से सवाल पूछा है कि जब जिले का वरिष्ठतम पुलिस अधिकारी संवैधानिक अदालत के आदेश का पालन नहीं करता है, तो ऐसी स्थिति में सरकार के पास क्या विकल्प मौजूद हैं. एसएसपी अलीगढ़ के हलफनामे से असंतुष्ट कोर्ट ने इस मामले में प्रदेश सरकार से जवाब मांगा था. इस पर सचिव गृह ने हलफनामा दाखिल किया.

मगर अदालत गृह विभाग के जवाब से संतुष्ट नहीं थी, इसलिए उसे लौटाते हुए बेहतर हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है. कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि न तो एसएचओ सिविल लाइंस अलीगढ़ और न ही एसएसपी अलीगढ़ ने अदालत द्वारा मांगी गई जानकारी का सही तरीके से उत्तर दिया और न ही कोर्ट के आदेश का सही भावना से पालन किया गया.

सुभाष चंद्र और छह अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने मंगलवार को दिया. याची और उसके परिवार के 6 अन्य लोगों के खिलाफ उसके बड़े भाई सुभाष चंद्र ने अलीगढ़ के सिविल लाइंस थाने में धोखाधड़ी और फर्जी प्रपत्र तैयार कर फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी बनाने का मुकदमा दर्ज कराया है. इस मामले में सीजेएम कोर्ट ने याची को सम्मन जारी किया, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.

याचिका पर सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि विवेचक ने इस मामले से संबंधित तमाम महत्वपूर्ण साक्ष्य को नजरअंदाज करते हुए फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी. इसके खिलाफ उसने प्रोटेस्ट पिटिशन दाखिल की तथा प्रोटेस्ट पिटिशन पर कोर्ट ने फाइनल रिपोर्ट रद्द कर यांची को सम्मन जारी किया है. विपक्षी अधिवक्ता का कहना था कि विवेचक ने बड़े ही सतही तरीके से मात्र 18 दिनों में विवेचना पूरी की. उन्होंने न तो दस्तावेजों को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा और न ही किसी वैज्ञानिक तकनीक का सहारा लिया.

यांची से मिली भगत कर जल्दबाजी में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी. कोर्ट ने इस प्रकरण में सिविल लाइंस थाने के एसएचओ को हलफनामा दाखिल कर यह बताने का निर्देश दिया था कि इस मामले के विवेचक राजेश कुमार के पास जांच के लिए कितने मुकदमे हैं. सिविल लाइंस थाने में कुल कितने मुकदमे लंबित है. उनको किन मुकदमों की कब-कब जांच दी गई. इसकी पूरी सूची प्रस्तुत करने के लिए अदालत ने आदेश दिया था.

कोर्ट ने सवाल उठाया कि विवेचक ने इसी केस को इतनी प्राथमिकता क्यों दी. जबकि थाने में तमाम मुकदमे दर्ज हैं, जिन पर जांच लंबित है. मात्र 18 दिनों में विवेचना पूरी करने की क्या जल्दी थी. कोर्ट ने पूछा कि दस्तावेजों की जांच के लिए फॉरेंसिक और वैज्ञानिक तरीके का सहारा क्यों नहीं लिया गया. शिकायतकर्ताओं के हस्ताक्षरों के नमूने क्यों नहीं लिए.

कोर्ट ने इस मामले में 22 अप्रैल को एसएचओ को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था. मगर हलफनामा नहीं दाखिल किया गया. सरकारी वकील ने लोकसभा चुनाव का हवाला देते हुए और समय की मांग की. इस पर कोर्ट ने एसएसपी अलीगढ़ को निर्देश दिया कि वह ईमेल से हलफनामा दाखिल कर बताएं कि उन्होंने कोर्ट के आदेश का पालन न करने पर एसएचओ के खिलाफ क्या कार्रवाई की. साथ ही मांगी गई जानकारी भी उपलब्ध कराने का एसएसपी को निर्देश दिया. इसके जवाब में एसएसपी अलीगढ़ ने ईमेल से दाखिल हलफनामे में सिर्फ मुकदमों की सूची प्रस्तुत की.

इस पर कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताते हुए गृह विभाग से सवाल किया कि जब जिले का वरिष्ठतम पुलिस अधिकारी एक संवैधानिक अदालत के आदेश का सही तरीके से पालन नहीं करता है, तो सरकार के पास क्या विकल्प है. इसके जवाब में सचिव गृह ने 10 जून को हलफनामा दाखिल किया, मगर उसमें भी कोर्ट द्वारा मांगी गई जानकारी नहीं थी. इसे अदालत ने वापस करते हुए चार सप्ताह के भीतर बेहतर हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया.

साथ ही अदालत ने याची के खिलाफ चल रहे हैं मुकदमे की कार्रवाई पर रोक लगा दी तथा याची के अधिवक्ता को इस मामले की केस डायरी दाखिल करने का आदेश दिया.

ये भी पढ़ें- BJP के 218 MLA लोकसभा में नहीं जिता पाए अपना क्षेत्र, विधानसभा चुनाव आज हों तो चली जाए सीएम योगी की कुर्सी? - UP Assembly Election 2027

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से सवाल पूछा है कि जब जिले का वरिष्ठतम पुलिस अधिकारी संवैधानिक अदालत के आदेश का पालन नहीं करता है, तो ऐसी स्थिति में सरकार के पास क्या विकल्प मौजूद हैं. एसएसपी अलीगढ़ के हलफनामे से असंतुष्ट कोर्ट ने इस मामले में प्रदेश सरकार से जवाब मांगा था. इस पर सचिव गृह ने हलफनामा दाखिल किया.

मगर अदालत गृह विभाग के जवाब से संतुष्ट नहीं थी, इसलिए उसे लौटाते हुए बेहतर हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है. कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि न तो एसएचओ सिविल लाइंस अलीगढ़ और न ही एसएसपी अलीगढ़ ने अदालत द्वारा मांगी गई जानकारी का सही तरीके से उत्तर दिया और न ही कोर्ट के आदेश का सही भावना से पालन किया गया.

सुभाष चंद्र और छह अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने मंगलवार को दिया. याची और उसके परिवार के 6 अन्य लोगों के खिलाफ उसके बड़े भाई सुभाष चंद्र ने अलीगढ़ के सिविल लाइंस थाने में धोखाधड़ी और फर्जी प्रपत्र तैयार कर फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी बनाने का मुकदमा दर्ज कराया है. इस मामले में सीजेएम कोर्ट ने याची को सम्मन जारी किया, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.

याचिका पर सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि विवेचक ने इस मामले से संबंधित तमाम महत्वपूर्ण साक्ष्य को नजरअंदाज करते हुए फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी. इसके खिलाफ उसने प्रोटेस्ट पिटिशन दाखिल की तथा प्रोटेस्ट पिटिशन पर कोर्ट ने फाइनल रिपोर्ट रद्द कर यांची को सम्मन जारी किया है. विपक्षी अधिवक्ता का कहना था कि विवेचक ने बड़े ही सतही तरीके से मात्र 18 दिनों में विवेचना पूरी की. उन्होंने न तो दस्तावेजों को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा और न ही किसी वैज्ञानिक तकनीक का सहारा लिया.

यांची से मिली भगत कर जल्दबाजी में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी. कोर्ट ने इस प्रकरण में सिविल लाइंस थाने के एसएचओ को हलफनामा दाखिल कर यह बताने का निर्देश दिया था कि इस मामले के विवेचक राजेश कुमार के पास जांच के लिए कितने मुकदमे हैं. सिविल लाइंस थाने में कुल कितने मुकदमे लंबित है. उनको किन मुकदमों की कब-कब जांच दी गई. इसकी पूरी सूची प्रस्तुत करने के लिए अदालत ने आदेश दिया था.

कोर्ट ने सवाल उठाया कि विवेचक ने इसी केस को इतनी प्राथमिकता क्यों दी. जबकि थाने में तमाम मुकदमे दर्ज हैं, जिन पर जांच लंबित है. मात्र 18 दिनों में विवेचना पूरी करने की क्या जल्दी थी. कोर्ट ने पूछा कि दस्तावेजों की जांच के लिए फॉरेंसिक और वैज्ञानिक तरीके का सहारा क्यों नहीं लिया गया. शिकायतकर्ताओं के हस्ताक्षरों के नमूने क्यों नहीं लिए.

कोर्ट ने इस मामले में 22 अप्रैल को एसएचओ को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था. मगर हलफनामा नहीं दाखिल किया गया. सरकारी वकील ने लोकसभा चुनाव का हवाला देते हुए और समय की मांग की. इस पर कोर्ट ने एसएसपी अलीगढ़ को निर्देश दिया कि वह ईमेल से हलफनामा दाखिल कर बताएं कि उन्होंने कोर्ट के आदेश का पालन न करने पर एसएचओ के खिलाफ क्या कार्रवाई की. साथ ही मांगी गई जानकारी भी उपलब्ध कराने का एसएसपी को निर्देश दिया. इसके जवाब में एसएसपी अलीगढ़ ने ईमेल से दाखिल हलफनामे में सिर्फ मुकदमों की सूची प्रस्तुत की.

इस पर कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताते हुए गृह विभाग से सवाल किया कि जब जिले का वरिष्ठतम पुलिस अधिकारी एक संवैधानिक अदालत के आदेश का सही तरीके से पालन नहीं करता है, तो सरकार के पास क्या विकल्प है. इसके जवाब में सचिव गृह ने 10 जून को हलफनामा दाखिल किया, मगर उसमें भी कोर्ट द्वारा मांगी गई जानकारी नहीं थी. इसे अदालत ने वापस करते हुए चार सप्ताह के भीतर बेहतर हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया.

साथ ही अदालत ने याची के खिलाफ चल रहे हैं मुकदमे की कार्रवाई पर रोक लगा दी तथा याची के अधिवक्ता को इस मामले की केस डायरी दाखिल करने का आदेश दिया.

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