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हाईकोर्ट ने कहा- अरबी आयतों वाला तिरंगा लेकर चलना राष्ट्रीय ध्वज के अपमान के समान, केस खारिज करने से इनकार किया - Allahabad High Court Order

प्रयागराज में शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि अरबी आयतों वाला तिरंगा लेकर चलना राष्ट्रीय ध्वज के अपमान के समान है. इसके साथ ही अदालत ने आरोपियों पर चल रहा केस रद्द करने से इनकार दिया.

Allahabad High Court said carrying tricolor with Arabic verses is insult to national flag Prayagraj News
अदालत ने आरोपियों पर चल रहा केस रद्द करने से इनकार दिया (Photo Credit- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 16, 2024, 7:14 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अरबी आयतों लिखा तिरंगा लेकर चलने वाले छह लोगों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा रद्द करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि ऐसी घटनाओं का फायदा सांप्रदायिक विवाद उत्पन्न करने या विभिन्न समुदायों के बीच गलतफहमी बढ़ाने के इच्छुक तत्व उठा सकते हैं.

न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने गुलामुद्दीन व पांच अन्य की याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह कृत्य प्रथमदृष्टया राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने के समान है. कोर्ट ने अभियोजन पक्ष से सहमति जताते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम की धारा 2 का उल्लंघन है. कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज धार्मिक, जातीय और सांस्कृतिक मतभेदों से ऊपर राष्ट्र की एकता और विविधता का प्रतीक है.

यह भारत की सामूहिक पहचान और संप्रभुता का प्रतिनिधित्व करने वाला एक एकीकृत प्रतीक है. तिरंगे के प्रति अनादर का कृत्य दूरगामी सामाजिक सांस्कृतिक प्रभाव डाल सकता है. खासकर भारत जैसे विविधतापूर्ण समाज में. यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि कुछ व्यक्तियों के कार्यों का उपयोग पूरे समुदाय को कलंकित करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.

जालौन थाने के इस मामले के तथ्यों के अनुसार आरोपी एक धार्मिक जुलूस में अरबी छंदों से अंकित तिरंगा लेकर चल रहे थे. जालौन पुलिस ने पिछले साल आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था. मुकदमा रद्द करने की मांग करते हुए दलील दी गई कि जांच से यह पता नहीं चला कि झंडा तिरंगा था या तीन रंगों वाला कोई और झंडा था. साथ ही पुलिस ने ऐसा कोई सबूत नहीं पेश किया, जिससे पता चले कि राष्ट्रीय ध्वज को कोई नुकसान पहुंचाया गया था.

पूरा मामला गढ़े गए तथ्यों पर आधारित था और गवाहों के बयान पुलिस द्वारा दबाव में लिए गए थे. अभियोजन की ओर से गवाहों के बयानों के आधार पर तर्क दिया कि यह पाया गया है कि तिरंगे पर अरबी में कुछ इस्लामी आयतें लिखी हुई थीं. कोर्ट ने कहा कि आरोपियों द्वारा उठाए गए तर्क तथ्यों के ऐसे प्रश्नों पर निर्णय की मांग करते हैं जिन पर केवल ट्रायल कोर्ट ही पर्याप्त रूप से निर्णय कर सकती है. कोर्ट ने कहा कि तथ्यों के प्रश्नों पर निर्णय और साक्ष्य की सराहना या संस्करण की विश्वसनीयता सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र के दायरे में नहीं आती है.

रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के मद्देनजर यह भी नहीं माना जा सकता कि आरोपित आपराधिक कार्यवाही स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण तरीके से आरोपियों पर बदला लेने के मकसद से और निजी एवं व्यक्तिगत द्वेष के कारण परेशान करने के उद्देश्य से शुरू की गई है.

ये भी पढ़ें- ताजमहल में जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक की याचिका पर हुई सुनवाई, ASI ने जवाब देने के लिए कोर्ट से मांगा समय - Agra Tajmahal Tejomahalaya Dispute

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अरबी आयतों लिखा तिरंगा लेकर चलने वाले छह लोगों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा रद्द करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि ऐसी घटनाओं का फायदा सांप्रदायिक विवाद उत्पन्न करने या विभिन्न समुदायों के बीच गलतफहमी बढ़ाने के इच्छुक तत्व उठा सकते हैं.

न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने गुलामुद्दीन व पांच अन्य की याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह कृत्य प्रथमदृष्टया राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने के समान है. कोर्ट ने अभियोजन पक्ष से सहमति जताते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम की धारा 2 का उल्लंघन है. कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज धार्मिक, जातीय और सांस्कृतिक मतभेदों से ऊपर राष्ट्र की एकता और विविधता का प्रतीक है.

यह भारत की सामूहिक पहचान और संप्रभुता का प्रतिनिधित्व करने वाला एक एकीकृत प्रतीक है. तिरंगे के प्रति अनादर का कृत्य दूरगामी सामाजिक सांस्कृतिक प्रभाव डाल सकता है. खासकर भारत जैसे विविधतापूर्ण समाज में. यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि कुछ व्यक्तियों के कार्यों का उपयोग पूरे समुदाय को कलंकित करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.

जालौन थाने के इस मामले के तथ्यों के अनुसार आरोपी एक धार्मिक जुलूस में अरबी छंदों से अंकित तिरंगा लेकर चल रहे थे. जालौन पुलिस ने पिछले साल आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था. मुकदमा रद्द करने की मांग करते हुए दलील दी गई कि जांच से यह पता नहीं चला कि झंडा तिरंगा था या तीन रंगों वाला कोई और झंडा था. साथ ही पुलिस ने ऐसा कोई सबूत नहीं पेश किया, जिससे पता चले कि राष्ट्रीय ध्वज को कोई नुकसान पहुंचाया गया था.

पूरा मामला गढ़े गए तथ्यों पर आधारित था और गवाहों के बयान पुलिस द्वारा दबाव में लिए गए थे. अभियोजन की ओर से गवाहों के बयानों के आधार पर तर्क दिया कि यह पाया गया है कि तिरंगे पर अरबी में कुछ इस्लामी आयतें लिखी हुई थीं. कोर्ट ने कहा कि आरोपियों द्वारा उठाए गए तर्क तथ्यों के ऐसे प्रश्नों पर निर्णय की मांग करते हैं जिन पर केवल ट्रायल कोर्ट ही पर्याप्त रूप से निर्णय कर सकती है. कोर्ट ने कहा कि तथ्यों के प्रश्नों पर निर्णय और साक्ष्य की सराहना या संस्करण की विश्वसनीयता सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र के दायरे में नहीं आती है.

रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के मद्देनजर यह भी नहीं माना जा सकता कि आरोपित आपराधिक कार्यवाही स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण तरीके से आरोपियों पर बदला लेने के मकसद से और निजी एवं व्यक्तिगत द्वेष के कारण परेशान करने के उद्देश्य से शुरू की गई है.

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